Tuesday, December 10, 2019

Satnam dharm sanskriti ki kendra sthal

"सतनाम संस्कृति की केन्द्र स्थल"

महानदी एंव जोगनदी धाटी सभ्यता में बौद्ध धम्म का प्राचीन अवशेष सर्वत्र विद्यमान है।इसी स्थल से महायान शाखा का सूत्रपात भी हुआ। सम्राट इंद्रभूति सरहपाद आनंद प्रभु नागार्जुन सदृश्य महान व्यक्तित्व की जन्मभूमि रहा है।उनके प्रभाव जनमानस और इस परिछेत्र की भाषा बोली और संस्कृति पर पड़ा ।
ट्रान्समहानदी का यह छेत्र अपनी नैसर्गिक सौन्दर्य और सधन वन प्रांतर के  के कारण  साधको अन्वेषकों के लिए सदा आकर्षण का केन्द्र रहा। इसी परिछेत्र सतपथ संस्कृति का भी उद्गम हुआ।सत्यवंत प्रजाति जो श्वेत ध्वजवाहक रहे का कर्मभूमि रहा।शैव शाक्त वैष्णव बौद्ध नाथ सिद्ध साधुओं साध्वियों  का यह साधना स्थली तुरतुरिया सिद्धखोल साधुगढ सिंहगढ सिहांसन पाट गिरौदपुरी कुर्रुपाट सोनाखान नारायणपुर सिरपुर बम्हनी‌    जैसे जगहों मे इनके केन्द्र है। पलाशनी‌‌ को जोकनदीऔर
अब सतनाम संस्कृति मे "योगनदी" कही जाने लगी है।
    तपोभूमि गिरौदपुरी इनके तट पर विराजित है जहां सुरम्य व नैसर्गिक सौन्दर्य का सृजन करती है।सोनाखान और गिरौदपुरी के मध्य बीच नदी मेंं हाथी की आकृति वाली शिलाखंड को श्रद्धालू सोनाखान राजा रामराय द्वारा गुरुघासीदास को मरवाने मद पिलाकर भेजे गये मानते है जो बाबा जी के तपबल से शिलाखंड मे परिवर्तित हो गये ।
  बाहरहाल इस किवदंती से यह तो पता चलता है कि तत्कालीन समय में गुरु बाबा के नव प्रवर्तन जो‌ व्यक्ति स्वतंत्रता व  समानता पर आधारित रहे  से सुविधाभोगी गण राजा सामंत व पंडे पुजारीआदि  उद्वेलित रहे और उनके सतनाम जागरण के तीव्र विरोध किए। बाबा जी को‌ ग्राम्य देवी कुर्रुपाट मे नरबलि तक दिए गये .... फलस्वरुप वे अपने प्रिय जन्म और साधना स्थल को   छोड़ने विवश हुए ... वे महानदी पार कर गिरौदपुरी से तेलासी भंडार तकरीबन ७०-८० कि मी दूर आकर बसे! महासमुन्द जिला के प्राचीन नगरी सिरपुर ही बाबा जी के ससुराल है।और वहा से ५-१०  कि मी दूर तेलासी भंडार (बीच मे हमारे ग्राम जुनवानी ) स्थित है।सतनाम धर्म के उद्गम और विकास  योगनदी महानदी के कछार में हुआ । और यह तेजी से विस्तारित भी ।
     गुरुघासीदास जी की अमृतवाणी में लरिया का स्पष्ट प्रभाव है। और इसलिए उनके अनुयाई छत्तीसगढ और सीमावर्ती उड़ीसा मे आबाद है।
         महानदी और योगनदी वंदनीय है जिनकी पावन तट पर संसार की" प्रथम जातिविहिन मानव समुदाय" का गठन हुआ। भारतीय नवजागरण का शंखनाद हुआ।
         ।। सतनाम ।।

सतनाम संस्कृति में आस्था और विश्वास

सतनाम संस्कृति मे कही पर भी  जादुई  चमत्कार की बातें नही की गई ।न ऐसा गुरु चरित में है। उनके महिमामय कार्यों को हमारे लेखक कवि अलंकृत शैली में वर्णन किए है जिसे जन साधारण और कथित विज्ञान वादी चमत्कार आदि मानकर अवहेलना करते है।
बुधारू का सर्पदंश से जड़ी बुटी से इलाज था।मृत बछिया का जीवनदान पशुधन संरक्षण है ।उसी तरह सफूरा जीवन दान स्त्री सशक्तिकरण है।मछली प्रसंग जीव धारियों के प्रति दया व शाकाहार प्रवत्ति को बढावा देना है।कृषि में बेहतर उत्पादन और नवीन तकनीक से कृषि कार्य है।
   अधर नागर का महिमा संतो के हृदय रुपी खेत मे सतनाम रुपी बीज बोकर अधर रुप नागर चलाकर सतनाम पंथ का विशिष्ट बोध व  प्रचार प्रतिनिधियों को कराना है। इसी तरह उनके  तीन वृक्ष का सानिध्य विलक्षण प्रयोजन है। इन गुण  युक्त  औरां धौरा तेंदू वृक्ष के सानिध्य आबोहवा में सुकून शांति पाने की बातें कहे है।गुरु घासीदास बाबा जी ने इनके पास ध्यान मग्न चिन्तन मनन कर पिडीत मानवता के लिए नायाब सूत्र निकाले सतनाम दर्शन प्रस्तुत कर लोक जागरण किए।इसलिए यह स्थल दर्शनीय है।इसलिए जहां जहां सतनाम भवन निर्मित किए जा रहे है उन परिसर में इन विशिष्ट गुण धर्मी औषधीय वृक्षों के रोपण करे ताकि  उद्वेलित मन को सुकून शांति मिले। ऐसा अक्सर अपील करते रहे है।
     ज्ञात हो कि आंवला सी  विटामिन युक्त औषधिय वृक्ष है जिनसे होकर हवा स्फर्ति और ताजगी देते है।तो धौरा की सधन छांव शारीरिक कष्ट थकान और चपाचपय का तीव्र गति से निदान करते है।बेहद तकलीफ मे प्रसुताओ के पीड़ा शमन का कार्य धौरा के छाल व पत्ते का रस करते है।
    इसी तरह तेंदू वृक्ष तो जेठ की भीषण गर्मी  मे लहलहाते है।शीतल छायादार और उच्च रक्तचाप इनके छांह में बैठने मात्र से नियंत्रित होते है।
    हमने इनके सञदर्भ में शोध पत्र भी प्रस्तुत किए है व सतनाम सञदेश मे प्रकाशित भी है।
     अंधविश्वास रहित मानवता एंव समानता पर आधारित सतनाम संस्कृति है।उनकी वास्तविकताओं से परीचित कराना आप हम सबका नैतिक दायित्व है महोदय।
      अन्यथा हमारे भोले भाले लोगों को कितने ऐसे लोग है जो पल भर भ्रमित और छलित कर लेते है।सतनामी समुदाय वर्तमान में  सबसे अधिक दिग्भ्रमित होके  अपनी आस्था श्रद्धा  ही नही अपनी बेशकीमती समय और संशाधन को अन्यत्र खर्च कर कृत्रिम सुख शांति पाने  मे लगे है ।
     आप हम जैसे लोग गाहे- बगाहे तर्क ज्ञान विज्ञान के नाम पर दिग्भ्रमित  करते  उनकी आस्था श्रद्धा को चोटिल करने में लगे रहते है। 
    कृपया ऐसा न हो ! तर्क ज्ञान  विज्ञान  सम्मत सतनाम है इन्हे साबित करना और प्रचार प्रसार करना हमारा कार्य होना चाहिए ताकि अनजान व  गैर लोग भी यहां आकर अध्यात्मिक सुखानुभूति ग्रहण के सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर हो सके।

    ।।  सतनाम ।।

औरा धौरा और तेंदू का पेड़

गुरुघासीदास जंयती के पावन अवसर पर गुरुघासीदास शोध पीठ  पं र शु वि वि एंव गुरुघासीदास साहित्य संस्कृति आकादमी द्वारा आयोजित शोध संगोष्ठी में सतनाम धर्म संस्कृति में औरा -धौरा और तेंदू पेड़ की महत्ता  एंव उनके तले  गुरुघासीदास की आध्यात्मिक साधना पर आधार व्यक्तव्य देते हुए ....

हमारे सुधि पाठकों हेतु शोध पत्र का सारांश -

"औरा-धौंरा वृछ तले ध्यानरत  गुरुघासीदास"

छत्तीसगढ़ की पावन धरा पर सुदुर वनांचल में सतनम जागरण के अलख जगाते गुरुघासीदास ने  सतनाम पंथ का प्रवर्तन किए ।
     इनके पूर्व वे सोनाखान के बीहड़ वन एंव छाता पहाड़ में कठोर अग्नि तपस्या किए।
सतनाम ग्यानोदय और अभीष्ट सिद्धि के उपरान्त वे गिरौदपुरी वापस आए .. उनके आगमन की सूचना का बेहतरीन वर्णन मि चूशोल्म ने बड़ी ही अलंकारिक शैली मे किए है ...
हजारो लोग इस तपस्वी को देखने सुनने उमडने लगे और लाखो लोगो मैदान मे एकत्र हुए ।
फागुन शुक्ल सप्तमी को वे सतनाम की दिव्य सप्त संदेश देते छत्तीसगढ़ की धरा पर सतनाम पंथ जो स्वतंत्र धर्म सदृश्य था का प्रवर्तन किए ...
  तदुपरान्त वे इसी विशाल प्रांगण के समीप पहाड़ी में स्थित तीन पेड़ के झुरमुट के पास ध्यानस्थ होकर नित्य दर्शन को आकांछी जनमानस को उपदेशना देने लगे ...
  यह ३ सौभाग्यवती पेड़ थे औंरा धौरा और तेंदू ।
औंरा - हिन्दी मे इसे आंवला कहते है संस्कृत मे अमृता अमृत फल पंचरसा कहते हैं।
अंग्रेज़ी में एंब्लिक माइरीबालन कहते हैं। वैज्ञानिक नाम रिबीस युवा क्रिप्सा नाम है।
औषधीय गुण आयु वृद्धि काया कल्प मेधा यौवन  वीर्यवर्धक है।
ऋषि च्यवन ने कभी इसी के आधार पर च्यबन प्राश बनाकर मानव हितार्थ दिव्य औषधि का निर्माण किए ।आवला हरण और बहेरा यह त्रिफला आयुर्वेद की त्रिदोष कफ पित्त वात नाशक है ।इसके यह प्रमुख धटक है।

धौरा- यह बहुपयोगी व औषधि गुणो से युक्त पौधे हैं। इनका वैज्ञानिक नाम  एनोजेसीस लैटी फोलिया है ।जो १८-२० फीट की ऊचाइ वाले सधन पत्ते दार सफेद तने वाला पेड है। इस कारण यह धौरा नाम पडा ।
जिनके चपाचय हमारे अंदर आहार निद्रा और आंतरिक जैविक धड़ी को नियंत्रित करते हैं। तनाव और ब्लड प्रेशर को इनके छांव मे बैठने मात्र से राहत मिलते हैं। आत्।हीना खत्म हो आत्मसंबल बढता है। मन मे दृढता व संकल्प बोध आते है। इनके गोंद बनते हू और प्राकृतिक रुप से इनके पत्ते में रेशम कीट पलते हैं तथा उच्च स्तर के टसर यानि  कोसा सिल्क मिलते हैं। इनमें वस्त्र आदि बनाकर मानच सभ्यता के दो डग भरे ।

औषधीय गुण चपाचय गर्भ प्रसव सर्दी खासी  मे राहत ल्युकोरा टानिक कृषि उपकरण चारकोल निर्माण ...मे
तेंदू - अनेक औषधीय गुणो के खान और एंटीबायोटिक फल तथा डायबिटीज़ के राम बाण फलमीठा और कसैला का स्वाद अप्रतिम स्वाद लिए यह विलछण  पेड़ हैं। जो भीषण गरमी मे लहलहाते है।
  जब सूर्य की  प्रचंड ताप से वनप्रातंर झुलसते है तब अ
यह गहन छाया व डारबी ग्रीन पत्ते से दूर से सुकुन पहुचाते है।
यह मध्यम आकार १५-२० फीट की ऊंचाई वाले यह पेड आकर्षित करते हैं।
  इनका वैज्ञानिक नाम डायोसपायरस मेलैनोआक्सीलन है।
   इनकी पत्ते की बीडी बनाकर लोग पीते हैं बाबा जी ने इनके संरछण और व्यसन रोकने के लिए संदेश कहे कि "चोगी झन पिहा ।
ताकि तेंदू पेड़ संरछित रहे । फलस्वरुप जो व्यसन न त्याग सके कलान्तर में चोगिया सतनामी के रुप में चिन्हित किए गये।और फिर वे घीरे घीरे व्यसन त्याग सात्विक सतनामी हुए ।
यह फल  कुपषित जनता को पोषण दे यह चेतना भी इनके पीछे भी नजर आते है।यह मल्टीविटामिन से युक्त आहारी फल है।कच्चे तेदू के बीच को चावल की भात की तरह खाकर पेट भर सकते हैं।
  फल को सुखाकर रखते है और जब चाहे तब इसे सूखे मेवे की तरह खाए जाते हैं।
    इस तरह देखे तो इन बहुगुणी पौधे जो प्रकृति ने एक जगह विशिष्ट प्रयोजन हेतु  उगाए थे को बाबा जी अपना आश्रय बनाया ।
  आज यह पेड़ और उनके परिसर विश्व में पवित्रतम स्थनो मे शुमार है।जहां प्रतिदिन हजारो लोग आस्था से सर झुकाते है।
  फागुन शुक्ल सप्तमी  को विश्व का सबसे बड़ा ग्राम के रुप मे तीन दिन तक परिणत हो जाते हैं।
     जहां १२-१५ लाख लोग स्व नियंत्रित प्रकृतस्थ साधनात्मक जीवन यापन करने की प्रेरणा लेते हैं और अपने मार्गदर्शक गुरु के सानिध्य प्राप्त करते हैं।
औरा धौरा पेड के उडत हे शोर
तेंदू के तीर ह छागे अंजोर
सतनाम जपइय्या हवय ग मोर बाबा ।...

     डा अनिल कुमार भतपहरी
        सहा प्राध्यापक
    शा. बृजलाल वर्मा महाविद्यालय पलारी
    9098165229

सतनाम सहज योग व सतयोग

सहजयोग- सतयोग
          ।।सतनाम।।
सतनाम धर्म संस्कृति में सहज योग ध्यान आदि का अतिशय महत्व है। समाज में अनेक  जल और भू समाधि साधक मौजूद हैं। अग्नि समाधि साधक गुरु घासीदास के सम्माFCCन के खातिर आज पर्यन्त कोई नहीं लेते।
   बहरहाल जनसाधारण मेहनत कश कर्मयोगी हैं। सादा जीवन उच्च विचार और कम में संतुष्टि भाव  सत‌नाम संतमत की विशेषताएँ हैं।
      प्राचीन विरासत से ही सहजयोग और सतयोग की परंपरा विकसित हैं। गुरुवंशजों में कुछ गुरुओं  एंव कुछ संत- महंत जिनमें   दिव्य  जी  पुनीदास संतोष कुर्रे व मनोहर जी  सहजयोगी हैं। और हमलोग भी सतयोग आरंभ किए हैं। इस वर्ष  गिरौदपुरी मेले मे शिविर भी लगाए गये  जहां अनेक साधु महात्मा आकर ध्यान व सतयोग की गुढ़तम बाते बताते है। एक साधक पिथौरा परिक्षेत्र का था वे सहजयोग व समाधि साधक थे। वे  एकांत में अकेले रहते थे अपनी अद्भूत  आपबीति संस्मरण सुनाए  एक दिन  उनकी कुटियां के बाडी में डोमी नाग सांप काट दिए। दो अवचेतन अवस्था विष बाधा से ग्रसित रहे ।वे अपनी विशिष्ट योग बल से  बिना इलाज विषमुक्त हो बच गये ।वे इनका श्रेय अपनी योग विद्या को दिए। हमलोग श्रवण कर हतप्रभ हुए। यह सब अनुसंधान का विषय है।
    बहरहाल  गुरुवंदना केंद्र राजेन्द्र‌नगर रायपुर व अमलीडीह में इंजी गेन्दले सर एंव डा अनिल भतपहरी द्वारा सतयोग कार्यशाला का आयोजन किए जाते हैं। इच्छुक जन ९६१७७७७५१४ में संपर्क करे।
      प्राचीन परंपरा का पुनर्जागरण कर‌ना ही हमलोगो का ध्येय हैं। दिव्य जी जैसे  अनेक लोग सक्रिय हैं। और सोशल मीडिया में प्रचार प्रसार करते रहते हैं। वे सभी धन्यवाद के सुपात्र है।
            ।। सतनाम।।

गुरु अम्मर दास

गुरु अम्मरदास जी गुरुघासीदास के ज्येष्ठ पुत्र है।वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे तथा ध्यान योग समाधि में निष्णान्त थे।
    वे गुरुघासीदास के अमृतवाणी उपदेश और सतनाम दर्शन को जनमानस में पंथी गीत व मंगल भजन के रुप मे लयात्मक रुप देकर जनमानस के कंठाहार बनाए।
   जनश्रुति है कि वे सतनाम पंथ के प्रचार हेतु शिवनाथ नदी के उसपार अपने ससुराल प्रतापपुर  परिछेत्र  सफेद रंग के  हंसालीली घोड़ा से जा रहे थे।सिमगा से आगे चटुआ धाट के समीप इमली पेड़ के झुरमुट के समीप वे साधनारत हो गये।उनके दर्शनार्थ आसपास से जनसमूह उमड़ने लगे।
      वे अनुआई को साढ़े तीन दिन की शव समाधि लेने की इच्छा व्यक्त किए और समाधिस्थ हो गये।  चारों ओर से  बेकाबू भीड़ दर्शनार्थ उमड पड़े । सतनामियों की एकजुटता और संगठन से घबराकर कुछ सडयंत्री व द्वेषी जन लोगों में भ्रम फैलाने लगे कि लाश में प्राण नही है और इसमें जीव आ नही सकते ।इसके क्रियाकर्म कर दो । जनमानस भजन कीर्तन करते रहे एक दिन बीत दो दिन बीत शव मे चेतना आई नही ।सतनाम द्वेषी लोग
लोग भ्रम फैलाते रहे अंतत: तीसरे दिन शव को दफना दिए गये। पर कुछ भक्त वही बैठे शोकमग्न थे।
साढ़े तीन दिन बाद शाम को  प्राण ज्योति स्वरुप आई शव की चारो ओर परिक्रमा की और शव में सुरंग सा हो गये जलधारा फूट पड़ी । प्रत्यछ दर्शी रोते बिलखते वापस आ गये ।
  यह १८४५ के आसपास हुआ। गुरुघासीदास भी अपने तेजस्वी पुत्र के वियोग से विह्वल  व अनमना होते रहे ।अंतत: एकान्तवास के लिए प्रयाण कर गये।
    कलान्तर मे हरिनभठ्ठा के मालगुजार आधारदास सोनवानी जी ने उक्त समाधि स्थल मे १९०२ के आसपास भव्य मंदिर बनवाए ।और शिल्पकार समकालीन समय मे अन्यत्र हिन्दू मंदिरों के अनुशरण करते कुछ विवादस्पद शिल्प बनाए .... जो वर्तमान मे  अप्रसांगिक है।‌

सतनाम संस्कृति से प्रभावित महात्मा गांधी

छत्तीसगढ़ के सतनाम संस्कृति से प्रभावित महात्मा गांधी जी

महात्मा गांधी जी का आगमन छत्तीसगढ़ में १९२० को हुआ।तब यहां के जनमानस जिनमें सतनामी समाज  गोरक्षा आन्दोलन के साथ अपने हक अधिकार और मुख्यधारा में आने संधर्षरत थे साथ ही अन्य वर्गो से मिलकर कृषि कार्य आदि के लिए   कंडेल नहर सत्याग्रह में सम्मलित रहे  एंव आदिवासी  समाज  के साथ मिलकर जंगल सत्याग्रह चला रहे थे।ब्रिटिश सरकार और उनकी नीतियों से आक्रान्त  समुदाय आन्दोलित थे।इसी माहौल में गांधी जी का छत्तीसगढ़ आगमन हुआ।वे सभी आन्दोलन रत समुदाय से और उनके नेतृत्व कर्ता से मिले और वस्तुस्थिति से अवगत हुए। गुरु अगम दास गोसाई के साथ ७२ सतनामी संत महंत के साथ उनकी परिचर्चा और उन्हे लखनऊ राष्ट्रीय अधिवेशन में आमंत्रित करना एक बहुत बड़ी राष्ट्रीय व सामाजिक धटनाक्रम रहा है।
     समकालीन समय में  छत्तीसगढ़ को अशिक्षा (चूकि इनकी शुरुआत महज ३०-४० साल ही हुए थे और नव साक्षर जन ही नेतृत्व कर रहे थे )  और वन प्रातंर के रहवासी समझ आधुनिक विचारधारा से अनभिज्ञ मान लिए गये थे।में ऐसा स्वस्फूर्त आन्दोलन देख गांधी जी और समकालीन शीर्ष कांग्रेस नेतृत्व को सुखद अनुभूति हुई।
     अनेक तरह के जन जागरण का कार्य द्रूत गति से जारी था। इन आन्दोलन और व्यक्ति स्वतंत्रता के केन्द्र में गुरुघासीदास के सतनाम जागरण  और उनके यशस्वी पुत्र राजा गुरुबालकदास के सतनाम आन्दोलन के महत्वपूर्ण भूमिका रहा है‌।
       अगर सतनाम जागरण के  प्रारब्ध में देखा जाय तो अशिक्षा और आधुनिक ज्ञान चेतना से वंचित यह प्रांत धार्मिक कर्मकांड तथा अनेक मत मतान्तर और पशुबलि - नरबलि जैसे कुरीतियों के केन्द्र स्थली रहा है। सतपूड़ा मैकल  और दण्डकारण्य के मध्य तथा सरगुजा बस्तर के सघन वनप्रांतर लगभग शेष भारत से कटा हुआ था। जहां आदिम प्रवृत्तियां अपनी चरमावस्था में था। छोटे छोटे ३६ रियासतों और जमीन्दारी में फैले यह भूभाग सामंत पाडे परधान मोकरदम  सिरहा बैगा पंडे पुजारी के आतंक तथा तांत्रिक मांत्रिकों के मकड़जाल से उलझा जात पात ऊच नीच छुआछूत से ग्रसित  था।ऐसे वातावरण में सुदूर  सोनाखान वनांचल के गिरौदपूरी ग्राम में गुरुघासीदास का अभ्युदय और उनका साधना सिद्धी उपरान्त  मानव मानव एक की उद्धोष के साथ सतनाम जागरण यहां के जनमानस को भीतर तक उद्वेलित किए और  बाह्य स्वरुप मे अपने हक अधिकार और कर्तव्य  के जागृत किए। यही सब बाते आजादी के आन्दोलन की पूर्व पीठिका रही हैं।
    सतनाम  जागरण व सिद्धान्त से अनुप्राणित होकर अनेक प्रज्ञावान व समुदाय  अपने हक अधिकार  और कर्तव्य के लिए आन्दोलित होने लगे।
      द्वितीय विश्वयुद्ध में हार  के बाद ब्रिटिश शासन अपना औपनिवेशिक सत्ता जो अनेक देशों में फैले थे को  को समेटने लगे थे ।फलस्वरुप वे लोग  भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण के पूर्व वहां की सामाजिक धार्मिक व राजनैतिक मसले को सुलझाने के लिए गोलमेज परिषद ( राऊंड टेबल  कांफ्रेस) लंदन में आयोजित किए।इसमें भारतीय प्रतिनिधित्व कर्ता में महात्मा गांधी डा अम्बेडकर जिन्ना आदि सम्मलित हुए।ज्ञात हो कि तीनो काफ्रेंस मे डा अम्बेडकर सम्मलित हुए और अपनी बाते मनवाने कामयाब हुए कि भारत में अनु जाति वर्गों की हालात ठीक नही है।उन्हे उनकी हालात सुधारने विशेष अवसर प्रदान किया जाय।वे दो मताधिकार लेकर आए । इससे समकालीन उच्च वर्गीय नेतृत्व में आक्रोश फैला और इन्हे रद्द करने गांधी जी को आमरण अनशन करना पड़ा फलस्वरुप महात्मा गांधी और डा अम्बेडकर के बीच पूना पैक्ट हुआ। इसके बाद समाज सुधार व अस्पृश्यता निवारण हेतु कांग्रेस व गांधी जी अभियान चला ।इस सिलसिले में वह पुन: छत्तीसगढ के ५ दिवसीय प्रवास पर आये ।
अस्पृश्यता निवारण कार्यक्रम में गांधी जी आगमन और यहां  उनके आगमन के पूर्व ही सामाजिक सौहार्द्र तथा अनुसूचित जाति के लोगो को पं सुन्दरलाल शर्मा जी द्वारा राजिम के मंदिर प्रवेश की कार्यक्रम प्रसिद्ध हो चूके थे।पं मिलऊ दास सतनामी  कौंदकेरा निवासी व चमसूर निवासी सुन्दरलाल शर्मा की युति ने वह कार्य कर दिखाया जो शैष भारत में कही नही हुआ था।
   उनकी इस कार्य को सुनकर महात्मा गांधी जी काफी प्रभावित हुए और कंकाली तालाब रायपुर के सभा स्थल में भरी सभा के मध्य सुन्दरलाल शर्मा जी को" गुरु"  कह कर संबोधित किए।
   उनकी यह बाते काव्यात्मक रुप में रेंखाकित हो गये -
    गांधी काम ओखर आय ले पहिली होगिन सुरु।
भरे सभा मं सुन्दरलाल ल कहिन ओमन गुरु ।।
      इसी तरह जब में रायपुर से बलौदाबाजार गये तो यह परिक्षेत्र सतनामी बाहुल्य है।और उसी अंचल में गुरुघासीदास व उनके पुत्र राजा गुरु बालकदास का संयुक्त अभियान सतनाम जागरण और आन्दोलन चला यह परिक्षेत्र उन के साक्षी रहा है।खान पान रहन सहन और सत्य के प्रति अटूट निष्ठा सतनामियों की देखते बनती गहै। उनके साथ गुरु संत महंत का काफिला चला और उनके जगह जगह पर स्वागत सत्कार होते गये। इस यात्रा में एक विधवा स्त्री प्रसंग रेखाकित करने योग्य है। पंक्तिबद्ध खडे उक्त महिला ने जब गाञधी जी को प्रणाम करना चाही तो गांधी जी यह कर मना किए कि पहले एक रुपये चंदा दो। वह तपाक से बोली कि अभी तो पैसे नही है।आप यही  ठहरों मै घर से पैसे ला रही हूं। गांधी जी उनकी हाजिर जवाबी और उनकी सागदी सचाई व  श्रदधा  के कायल हुए।
    उच्च वर्गीय हिन्दूओ का सतनामियों के प्रति इतनी धृणा और द्वेषपूर्ण व्यवहार और उनकी बहुलता के बावजूद शांति पूर्ण जीवन शैली से गाञधी जी बेहद गहराई से प्रभावित हुए।वे यह  जानने कि कैसे इन वर्गों में सहनशीलता आई ।तब गुरु और महंत कहे कि सतनाम मर्मांतक पीड़ा को भी बर्दाश्त कर शमन  लिए जाते है। क्योकि हमारे यहां गुरुघासीदास प्रणीत शिक्षा असत न सुने असत न कहे असत न देखे सतनाम जीवन दर्शन है। इनका शिल्पांकन उपदेश भंडारपुरी के मोती महल के कंगुरे  में अंकित 3 बंदरों के शिल्पांकन से है।जो अनिहर्श संदेश प्रसारित करते आ रहे है।
  जो बुराई या असत भाव है उसे यदि हम न देखे न सुने और न कहे तो हमें कोई फर्क नही पडने वाला। बल्कि जो ऐसा करते है उन्हे ही कष्ट होते है।
    सतनामी समाज उक्त संदेश को आत्मसात कर सादगी पूर्ण सत्य निष्ठा से जीवन यापन करते आ रहे है।गांधी को यह बाते भीतर तक झकझोरे और उक्त दृष्टान्त को अंत:करण में बसाकर संतत्व भाव को ग्रहित किया।वे सतनामियों के गुरु और ७२ प्रतिनिधी मंडल को उनकी गोरक्षा आन्दोलन उनकी सादगी पूर्ण जीवन वृत्त के लिए सम्मानीत करने लख नऊ आमंत्रित किए।वहां मोतीलाल नेहरु स्वामी श्रद्धानंद आदि शीर्ष लोगो  से मिले और जनेऊ संस्कार कर सम्मानित किए गये।
         इस तरह देखा जाय तो गांधी जी  के आगमन और उनसे प्रभावित यहा के जनमानस खासकर सतनामियों का जुड़ाव महत्वपूर्ण है।देश की स्वतंत्रता आन्दोलन में अपना सर्वस्व न्योछावर कर बड़ी संख्या में सतनामी सम्मलित हुए।
रायपुर मे १९२१ में सतनामी आश्रम की स्थपना हुई और इनके माध्यम से जन जागरण का कार्य आरंभ हुआ।जो आजादी के आन्दोलन मे परीणित हुआ। गोसाई बाडा गुढियारी साहेब बाडा और मांगडा बाडा जवाहर नगर से स्वतंत्रता आन्दोलन संचालित होने लगे इन में सतनामियों की भागीदारी सर्वाधिक हुआ। और ग्रामीण अंचल में विस्तारित हुआ। आजादी के साथ समाज के मुख्यधारा में सतनामियों मे यह स्वतंत्रता आन्दोलन जनान्दोलन के रुप में हुआ ।और इनके नेतृत्व कर रहे गुरु अगमदास गोसाई महंत नयन दास महिलांग अंजोरदास मालगुजार रतिराम आदि के नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गये।
     गांधी जी भी सतनामियों की जीवन शैली उनकी स्वतंत्रता आन्दोलन मे उनके सहभागिता व  उत्साह  देख प्रभावित हुए और वे तीन बंदर वाली  दृष्टान्त को यहां से जाने के बाद रखने लगे ।वर्तमान में भंडारपुरी महल में स्थापित  यह प्रतीक गांधी जी के तीन बंदर के नाम विख्यात है।
     - डा.अनिल कुमार भतपहरी
                   सहायक संचालक
     उच्च शिक्षा संचालनालय ,इन्द्रावती भवन अटल नगर नवा रायपुए