"सतनाम संस्कृति की केन्द्र स्थल"
महानदी एंव जोगनदी धाटी सभ्यता में बौद्ध धम्म का प्राचीन अवशेष सर्वत्र विद्यमान है।इसी स्थल से महायान शाखा का सूत्रपात भी हुआ। सम्राट इंद्रभूति सरहपाद आनंद प्रभु नागार्जुन सदृश्य महान व्यक्तित्व की जन्मभूमि रहा है।उनके प्रभाव जनमानस और इस परिछेत्र की भाषा बोली और संस्कृति पर पड़ा ।
ट्रान्समहानदी का यह छेत्र अपनी नैसर्गिक सौन्दर्य और सधन वन प्रांतर के के कारण साधको अन्वेषकों के लिए सदा आकर्षण का केन्द्र रहा। इसी परिछेत्र सतपथ संस्कृति का भी उद्गम हुआ।सत्यवंत प्रजाति जो श्वेत ध्वजवाहक रहे का कर्मभूमि रहा।शैव शाक्त वैष्णव बौद्ध नाथ सिद्ध साधुओं साध्वियों का यह साधना स्थली तुरतुरिया सिद्धखोल साधुगढ सिंहगढ सिहांसन पाट गिरौदपुरी कुर्रुपाट सोनाखान नारायणपुर सिरपुर बम्हनी जैसे जगहों मे इनके केन्द्र है। पलाशनी को जोकनदीऔर
अब सतनाम संस्कृति मे "योगनदी" कही जाने लगी है।
तपोभूमि गिरौदपुरी इनके तट पर विराजित है जहां सुरम्य व नैसर्गिक सौन्दर्य का सृजन करती है।सोनाखान और गिरौदपुरी के मध्य बीच नदी मेंं हाथी की आकृति वाली शिलाखंड को श्रद्धालू सोनाखान राजा रामराय द्वारा गुरुघासीदास को मरवाने मद पिलाकर भेजे गये मानते है जो बाबा जी के तपबल से शिलाखंड मे परिवर्तित हो गये ।
बाहरहाल इस किवदंती से यह तो पता चलता है कि तत्कालीन समय में गुरु बाबा के नव प्रवर्तन जो व्यक्ति स्वतंत्रता व समानता पर आधारित रहे से सुविधाभोगी गण राजा सामंत व पंडे पुजारीआदि उद्वेलित रहे और उनके सतनाम जागरण के तीव्र विरोध किए। बाबा जी को ग्राम्य देवी कुर्रुपाट मे नरबलि तक दिए गये .... फलस्वरुप वे अपने प्रिय जन्म और साधना स्थल को छोड़ने विवश हुए ... वे महानदी पार कर गिरौदपुरी से तेलासी भंडार तकरीबन ७०-८० कि मी दूर आकर बसे! महासमुन्द जिला के प्राचीन नगरी सिरपुर ही बाबा जी के ससुराल है।और वहा से ५-१० कि मी दूर तेलासी भंडार (बीच मे हमारे ग्राम जुनवानी ) स्थित है।सतनाम धर्म के उद्गम और विकास योगनदी महानदी के कछार में हुआ । और यह तेजी से विस्तारित भी ।
गुरुघासीदास जी की अमृतवाणी में लरिया का स्पष्ट प्रभाव है। और इसलिए उनके अनुयाई छत्तीसगढ और सीमावर्ती उड़ीसा मे आबाद है।
महानदी और योगनदी वंदनीय है जिनकी पावन तट पर संसार की" प्रथम जातिविहिन मानव समुदाय" का गठन हुआ। भारतीय नवजागरण का शंखनाद हुआ।
।। सतनाम ।।