।। गिरौदपुरी मेला को प्रभावित करने का षडयंत्र ।।
छत्तीसगढ़ के सरजमीं पर मानव मानव एक कह विश्व के प्रथम जातिविहिन वर्ग विहिन समानता और मानवता पर केन्द्रित विश्व प्रसिद्ध सतनाम पंथ (धर्म ) का प्रवर्तन गुरु घासीदास ने गिरौदपुरी में औंरा -धौंरा तेदू वृक्ष के समीप विशाल मैदान में एकत्र हजारों जनसमूह के समक्ष अपने सुदीर्ध साधना एंव देशाटन से प्राप्त सद्ज्ञान के द्वारा लोक कल्याण के निमित्त फागुन शुक्ल सप्तमीं 1795 को किया । उसी की याद मे प्रतिवर्ष लाखों लोगों का आगमन होते हैं। और सद्गुरु की कृपा और सत्संग से उनकी दिव्य वाणी का श्रवण कर तीन दिनो तक प्रकृतस्थ जीवन जीते आत्म शोधन करते हैं। यह संसार का अनुठा मेला है जहां पर कोई खेल- तमाशे य नाच -पेखन झूले सर्कस फिल्म प्रदर्शन आदि नही होते ।बल्कि पंथी मंगल भजन चौका आरती सत्संग प्रवचन सतनाम संस्कृति पर व्याख्यान मसला शोध संगोष्ठी व कवि सम्मेलन जैसे साहित्यिक व बौद्धिक परिचर्चाएं होते हैं। यहा सात्विक आहार विहार ही होते है ।मांस -मदिरा नशीले पदार्थों तंबाकू गुड़ाखू बीड़ी सिगरेट शराब गांजे गुटखा इत्यादि प्रतिबंधित रहते हैं यह सब चीज इसे अन्य मेले से अलग करते हैं। इसलिए इसे दुनियां के पवित्रम जगहों पर प्रमुख स्थान प्राप्त हैं। इसलिए इनकी वैश्विक ख्याति हैं।
परन्तु इस तरह की छवि को धूमिल करने का प्रयास कुछेक वर्षों से कुछेक असामाजिक व शरारती तत्व करते आ रहे हैं।
यहां एक बार अफवाह फैलाकर दंगे कराए गये जिसमें हिंसक वारदातें हुई ।तब से मेला की भरावट में लगातार कमियां आई हैं। यह विशुद्ध धार्मिक व सामाजिक मेला है पर विराट समुदाय को वोट में बदलने कयावदों से यह प्रभावित भी होने लगा है । इन सबसे कैसे मूल स्वरुप को बचाकर रखा जाय और बाह्य हस्तक्षेप से मुक्त रखे इन पर भी विचार करने का समय हैं। स्वभाविक है मनुष्य है और लोकतंत्र देश के नागरिक है तो राष्ट्रीय कर्तव्य है और सभी वोटर है तो वोट किस विचार धारा को दे इनके लिए सबकी अपनी अपनी मनोदशा व अवस्था हैं। पर अपनी इस राजनैतिक चेतना को गिरौदपुरी की पावन धार्मिक आस्था से नही जोड़ना चाहिये । विविध राजनैतिक विचार धारा में बटे अनुयाईयों को सतनाम के मार्ग पर एक साथ चलने और लोक कल्याण हेतु समवेत स्वर में मुखरित होने संकल्पित होने की आवश्यकता हैं।
गिरौदपुरी मेला तिथि फागुन शुक्ल पंचमी छटमी व सप्तमी को ही आजकल गांव- गांव में सप्तमी को पालो चढाने और रंगारंग आयोजन होने लगे हैं। मुझे एक जगह से आमंत्रण भी मिला यह जानकर मुझे असहज लगा कि कैसे वैश्विक स्तर पर चर्चित मेला को जाने-अनजाने हमारे लोग उसी दिन कार्यक्रम आयोजित प्रभावित करने लगे हैं। ऐसा क्यो किसलिए और किसके सलाह से कर रहे हैं इन पर विचार किये जा सकते हैं। जनमानस मे एकाएक यह विचार कैसे आने लगा कि सप्तमी तिथि को अपने गांव घर पर ही रहेन्गे और आयोजन करेंगे ।एक दूसरे के देखा देखी अनेक ग्राम व संगठन ऐसा करने लगे हैं। क्या अन्यत्र ऐसा होते है?
अन्य धर्म के मेले पर्व जैसे कुंभ , मांघी पून्नी /कार्तिक पुन्नी संक्रांति मेला ,दीक्षा भूमि मेला , कल्प कुंभ मेला के तिथियो मे क्या गांव -गांव मे आयोजन की प्रथा है? नही तब सतनाम पंथ के मेला के तिथी पर ही गांव गांव में आयोजन किस प्रयोजन से ?
कही गिरौदपुरी मेला की आपार सफलता और जनास्था के सैलाब को बाधित करने का षडयंत्र तो नही है?
इसी तरह गिरौदपुरी के चारों ओर 50 कि मी के दायरे मे भोजन भंडारा समिति तीन दिनों तक भजन कीर्तन सत्संग रात्रि में करने लगे हैं। इस तरह लोगों का गिरौदपुरी मेले मे आना- जाना प्रभावित हो रहे हैं। रायपुर से निकलते ही श्रद्धालुओं के लिए भोजन भंडारा दोंदे , सारागांव , खरोरा , भैंसा , संडी ,पलारी , वटगन , लवन , कसडोल ,कटगी इस सड़क किनारे अनेक बडे ग्रामों मे उपलब्ध होते है साथ ही रात्रि भजन कीर्तन ।लाखों लोग तो रायपुर से गिरौदपुरी के मध्य ही फसे रह जाते हैं। इसी तरह चारो ओर बिलासपुर से रायगढ़ महासमुन्द , सारंगढ़ बलौदाबाजार की ओर से आने वालों और उस मार्ग पर जगह जगह यही महौल रहता है ।आयोजक भी मेला मे नही आते बल्कि व्यस्तता के कारण आगे - पीछे आते हैं। फलस्वरुप मेले में रौनक कम होने लगे हैं। लोग अलग अलग जगहों पर थम सा जा रहे हैं। )
दो दशक पहले मेला में 12-15 लाख लोगों को जमवाड़ा होते थे अब वह आधा हो गये हैं ! दिनो दिन मेले का रौनक खत्म हो रहे हैं। ऐसा क्यो रहे हैं क्या बारहों माह आम दरफ्त के कारण ? यही एक मात्र बड़ा कारण हो ऐसा भी नहीं हैं। या फिर नई पीढ़ी को इन धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजनों मे सहभागी होने रुची नही ? या है तो वहां अपेक्षित सुविधाएं नहीं। खासतौर पर प्रसाधन आदि का तो कोई व्यवस्थित साधन भी नही हैं ।
नि:संदेह मेला स्थल का विकास पहले के अपेक्षा हुआ हैं। विराट जैतखाम यात्री सेड और जरुरत की चीजे व भोजन सामाग्री के लिए होटल रेस्त्रां भी खुल गये हैं ।इन सब सुविधाएं से तो तीर्थ यात्रियों / श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ता पर ऐसा नही हो रहा हैं क्यो ?क्या कारण है ?
यह सब यक्ष प्रश्न व विचारणीय बातें है कि उक्त तिथि को कोई आयोजन न कर सभी मेले पहुचें और अपनी धार्मिक निष्ठा के साथ- साथ सामाजिक संगठन को भी प्रदर्शित करें। कम से कम गिरौदपुरी , भंडारपुरी , चटुवा - बाराडेरा व बोड़सरा मेले में सबकी सहभागिता हो ताकि इन सतनाम धामों का रौनक और महत्व कायम रहें।
अपने -अपने ग्रामों में आयोजन करने के अनेक सुविधाजनक तिथियां हैं कृपया स्थानीय स्तर पर बारहों माह आयोजन किये जा सकते हैं। परन्तु किसी निर्धारित स्थल व तिथि पर लगने वाले मेले के दिन जरुर मेले में शामिल हो और अपनी धार्मिक निष्ठा व सामाजिक संगठन को प्रदर्शित करें।
हमारे उत्साही आयोजक एंव संस्थाओं के पदाधिकारी गण इनकी तह में जाकर उचित निदान करे और बढ़ते संगठन व सामाजिक एकीकरण के विरुद्ध हो रहे षडयंत्र का पर्दाफाश करें।
जय सतनाम
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