Thursday, March 28, 2024

बोलोगे तो बचेगी कहावतें

बोलोगे तो बचेगी कहावतें 
       - डा. अनिल कुमार भतपहरी 
कहावतें को लोकोक्ति भी कहें जाते हैं। कहावत के रुप रुढ़ हो चली लोकोत्तियां को उदाहणार्थ भी प्रस्तुत किये जाते हैं। 
 देखा जाय तो लोकोक्ति दो शब्दों के मेल से बना  हैं, लोक + उक्ति = लोकोक्ति। लोक  यानि समुदाय और उक्ति यानि कथन । समुदाय किसी  कथन का  यथावत निरंतर  प्रयोग अपने दैनंदिनी में करते आ रहे हो  और वह एक विशिष्ट अर्थ या भाव को अभिव्यक्त करने के लिए रुढ़ हो चुका हो वह वाक्यांश या सूत्र लोकोक्ति के रुप में जाने जाते हैं और सतत प्रचलन से वे प्रसिद्ध हो जाते हैं।
 यह लोकोक्ति काव्यात्मक स्वरुप लिए अलंकृत और सटीक शब्दों की सुगम्फित संरचना होती हैं। जो कि सहज ही  हृदयंगम और बोध जन्य हो जाते हैं। 
   कृष्णचंद्र शर्मा के अनुसार " लोकोक्ति वह संक्षिप्त चमत्कारपूर्ण वाक्य हैं, जिसमें किसी अनुभूति एवं तथ्य की चिंतनपूर्ण अभिव्यक्ति होती हैं।"1 

    जन समुदाय परस्पर लोकाचार व क्रिया व्यापार में प्राय: अपनी बातों  को प्रभावी ढंग से कहने और मनवाने  के लिए लोकोत्ति एंव  मुहावरें का प्राय: प्रयोग करते  हुए आ रहे हैं।‌इसलिए हमारी लोक भाषाओं में सर्वाधिक लोकोत्तियों का अनुप्रयोग देखने को मिलती हैं। यह इतना सहज और सरल उच्चारणीय हो गये है कि अनायस लोगों के मुंह से प्रसंग व घटना देख बोलचाल में निकल पड़ते  हैं-
जैसे तीन तिकाड़ा काम बिगाड़ा , काम न काज  के दुश्मन अनाज के  
नाच न जाने आंगन टेढ़ा 
चोर -चोर मौसेरे भाई 
हाथ कंगन को आरसी क्या 
या सांच को आंच क्या 
 उक्त शब्द सरंचना काव्यात्मक तो है उनमें विशिष्ट भावार्थ भी समादृत हैं। इसलिए पाश्चात्य विचारक जान एग्रीकोला कहते हैं-
Short sentences in to which ,as in rules ,the ancientas hav compressed life " 2
   यानि वे लघु वाक्य ,जिनमें सूत्रों की तरह पूर्वजों ने अपनी जीवनानुभूतियों को व्यक्त किए हैं।
इस तरह की लोकोक्ति जन सामान्य के बीच बहु प्रचलित हैं। 
इसलिए कहे जा सकते हैं अभी इनका क्षरण या विस्मरण की अवस्था नही हैं। पर बहुत तेजी से हिन्दी और स्थानीय भाषा बोली का यह अलंकृत विशिष्ट शब्दांश के जगह अंग्रेजी के शब्द या कोटेशन का चलन बढ़ोतरी हो रहे हैं। जिससे यह क्षरण की ओर अग्रसर हैं। इनका संरक्षण कोश आदि बनाकर नही अपितु बोलचाल में व्यवहृत करने से होगा। उदय नारायण तिवारी जी   "लोकोत्तियों को अनुभूत ज्ञान की निधि कहें हैं।" 3 इस तरह देखे तो यह  भाषा और साहित्य ही नही मानव समाज के  लिए अमुल्य धरोहर हैं। 
    लोकोक्ति प्राय: पद्यात्मक या लयात्मक होते है और उनमे छंद विधान भी विद्यमान हो जाते हैं।
    मनुष्य की सुख -सुविधा व सूचना व मनोरंजन  हेतु ईजाद पत्र - पत्रिकाएं  ,आकाशवाणी, दूरदर्शन विविध टी वी चैनल्स अब केवल संचार माध्यम या समाचार आदि के लिए  मीडिया  बस नही रहा बल्कि  अब  विलास की सामाग्री के रुप मे विकसित हो चूके हैं। इसमें  मोबाइल  इंटरनेट, ब्लाग, वाट्साप, इंस्टाग्राम रिल्स युट्युब   एंव विविध एप आदि के द्वारा वैश्विक फलक पर प्रसिद्धि व रोजी - रोजगार के मार्ग भी प्रशस्त हो रहे हैं।  इसमें अंग्रेजी का बोल-बाला है । अब तो इतने ट्रांन्सलेटर एप आ चुके है कि भाषानुवाद अब बेहद सरल हो गये फलस्वरुप हिन्दी का चलन और मोबाइल की बोर्ड मे हिन्दी की  देवनागरी लिपि अब अंग्रेजी की रोमन लिपि ने  लेखन स्थान बना लिए हैं। तब इस दौर मे बोल चाल व लेखन से मुहावरा व लोकोक्ति की क्षरण या उपयोग कमतर होते जाने की स्थिति स्पष्ट रुप से परिलक्षित हो रहे हैं। जबकि यह किसी के कथन को सुस्पष्ट व प्रभावी बनाते हैं-

बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद 
 यह अनभिज्ञ और व्यर्थ प्रलाप करने वालों के लिए सटीक बैठते हैं। 
 इसी तरह यदि कोई ढोंग कर रहे है और लोगों को धोखा दे रहे हो उनके लिए यह लोकोक्ति देखिए कैसे प्रभावी हैं-

नौ सौ चुहा खाकर बिल्ली हज को चली 
  और शत्रु को आदर देने से उनका हृदय परिवर्तन होता है तथा उन्हे अपना बना सकते है यह नीति युक्ति कितना संप्रेषणीय हैं। इसे छत्तीसगढ़ी मे गुरुघासीदास की अमृतवाणी के रुप में भी जाने जाते हैं। उनकी अनेक उपदेशनाएं व सूत्र कथन लोकोक्ति के रुप में प्रचलन में हैं-

  "बइरी ल ऊंच पीढ़ा देव ।"

  इसी तरह आत्मबल और मन की शक्ति को हर संभव बनाए रखने हेतु नीति कथन है-
मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।‌
  प्रेम प्रसंग पर प्रेमी जोड़े की चाह को समाज में मान्यता देने यह लोकोक्ति दर्शनीय है -
 "लड़का लड़की राजी तो क्या करे काजी "
  कृषि प्रधान देश मे कृषि से संबंधित अनगिनत लोकोक्तियां हैं-
    तिरिया रोवे मरद बिन खेती रोये जलद बिन 
    बाल बियासी रोपा धान 
          तेला पछिने आवै आन 
        
  लोकोक्तियों में  प्राय: शब्द शक्ति  निहित होती हैं। शब्द शक्तियां तीन है - अमिधा ,लक्षणा और व्यंजना ।
अमिधा - अमिधा का कार्य संकेत या बिंब ग्रहण करना है । पंडितराज जगन्नाथ के अनुसार - "शब्द एवं अर्थ के परस्पर संबंध को अमिधा कहते हैं।" 4
 जैसे -सास बिन ससुराल क्या 
    सांच को आंच क्या 

लक्षणा - मुख्य अर्थ के जगह रुढ़ि   या प्रयोजन से मुख्यार्थ के योग से कोई अन्य अर्थ लक्षित होते है उसे लक्षणा कहते हैं। डा सुधाकर कलवडे के अनुसार - मुख्य अर्थ को छोड़कर जहां रुढ़ियां प्रचलन के कारण अन्य अर्थ ग्रहण किया जाता है वहां रुढ़ा लक्षणा होती हैं। 5 
प्राय: लक्षणा शब्द शक्ति से युक्त अनेक लोकोक्तियां देखने / सुनने मिलती है - 
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद 
नौ दिन चले अढ़ाई कोस 
होनहार बिरवान के होत चिकने पात 
  जब अमिधा और लक्षणा युक्त लोकोत्तियां शब्द व्यापार या अर्थ प्रतीति मे समर्थ न हो या बेहद साधारण हो तब विशिष्ट अर्थ प्रयोजन हेतु व्यंजना का अनुप्रयोग की जाती हैं। 
जैसे - चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात 
मुख मे राम बगल में छुरी 
   इसके साथ ही लोकोक्ति मे प्रतीक / प्रतिरुप का भी अनुप्रयोग बहुधा होते हैं। डा. भागीरथी मिश्र ने प्रतीक को परिभाषित करते लिखते है - 
" अपने रुप ,गुण ,कार्य ,या विशेषताओं के सादृश्य एवं प्रत्यक्षता के कारण ,जब कोई वस्तु या कार्य किसी किसी अप्रस्तुत वस्तु के भाव विचार, क्रिया- कलाप, देश ,जाति ,संस्कृति आदि का प्रतिनिधित्व करता हुआ प्रकट किया जाता है, तब वह प्रतीक कहलाता हैं।" 6
  डा नगेन्द्र  ने प्रतीक को सरलतम ढंग से अभिव्यक्त करते है -  "प्रतीक एक प्रकार से रुढ़ उपमान का ही दूसरा नाम हैं।जब उपमान स्वतंत्र न रहकर पदार्थ विशेष के लिए रुढ़ हो जाता है तो वह प्रतीक बन जाता है।" 7 

राम तेरी माया कहीं धूप कहीं छाया 
यहा धूप और छाया सुख -दु:ख  का प्रतीक हैं।
गुणी और अवगुणी व्यक्ति के प्रतीक स्वरुप यह लोकोक्ति द्रष्ट्व्य हैं- 
सूप बोले तो बोले चलनी तक बोलें 
बिंब - प्रतीक की तरह लोकोक्ति मे बिंब की प्रभावशाली उपस्थिति होते है और अर्थ की प्रतीति को पुरी तरह उजागर करती हैं।
जैसे जरुरत मंदों के बीच किसी एक वस्तु की उपयोगिता कितनी महत्वपूर्ण होते है यह देखिए -
   एक अनार सौ बीमार 
या ऊट के मुंह मे जीरा 
हाथी के मुंह में सोहारी इत्यादि 
   इसी तरह जहां से लाभ मिल रहा हो वहां के कष्टप्रद स्थिति भी सह्य होते है - 

दुधारी गरुवा की लात मीठ 8 

मुहावरा या लोकोत्ति जीवन निर्वाह  प्राय: हर क्षेत्र में देखे जा सकते हैं। यहां तक कि पशु पक्षी कीट पतंग  मनुष्य के अंग -प्रत्यंग और उनके क्रिया- व्यापार आदि का उल्लेख भी इनमें मिलती हैं। इनके द्वारा भी प्रभावी कथन कहने की परंपरा रही है-
जैसे-  भैंसा के  सींग भैसा ल गरु 
छत्तीसगढ़ी (व्यर्थ का भार )
भैंसा का सींग बुढापे मे उनके लिए भार हो जाते हैं।

 
टीटही के भरोसा सरग नइ रुके (छत्तीसगढ़ी )
टीटही एक पक्षी बादल की गर्जना  सुन वे अपनी घोसलें को बचाने दोनो पैर से आकाश को रोकने का प्रयास करती हैं।
  तो उनके ऐसा करने वर्षा थमती नही ।
इसी तरह मनुष्यों के अंग का उल्लेख निम्न लोकोत्ति में द्रष्ट्व्य हैं- आंखे पथराना  (मृत्यु के ठीक पहले की अवस्था)  
आंखे दिखाना  (गुस्से से देखना)     प्रयोग -शिक्षक ने आखें दिखाई 
या आंखें  नीची करना - लज्जित होना ।
उनकी गलती पकड़ी ग ई तो उनकी आंखें नीची हो गई ।9

वस्तु या सामाग्री को लेकर भी रोचक लोकोत्तियों का प्रयोग देखने मिलती हैं। कुछ तो आरंभ से है या पुराने है कुछेक न ई वस्तु के प्रचलन के बाद उनकी प्रवृत्ति के अनुरुप प्रचलन मे आये जान पड़ते है - 

किताबी कीड़ा होना =  पढाकू होना 
प्रयोग -केवल कीताबी कीड़ा होने से नही चलेगा कुछ तो व्यवहारिक   ज्ञान होना चाहिये ।
सुपा बोले तो बोले चलनी भी बोले - जिसमे दोष नही वह बोले तो समझ आते है पर जिसमे छिद्र ही छिद्र याने दोष ही दोष हो वह बोले तो बात असह्य हो जाते हैं।

तूफान खड़ा करना = बवाल करना ।
प्रयोग - पदाधिकारी ने उसे अकमर्ण्यता के लिए डांटा तो उसने तूफान खड़ा कर दिया। 10
   
    आजकल युवा पीढ़ी  टीन  एजर के वार्तालाप में से  लोकोक्ति या मुहावरा  नही सुनाई देती । तब यह चिंता स्वभाविक है कि इन सुक्त मय सुंदर शब्वालियों को कैसे संरक्षित  किया जाय। किताबे छापकर या उनके संग्रहण  कोश बनाकर ही नही बल्कि इसे फ्लुयेंट यानि  सहज उच्चारण में लाकर टीन एजर या न ई पीढ़ी में कैसे आरोपित करें ? हमें इस यक्ष प्रश्न का उत्तर तलाशने होन्गें। 
       इन प्रश्नों के उत्तर हेतु चिंतन मनन करने से एक ही प्रभावी उत्तर सामने आते है और वह है बोलने से ही बचेगी कहावतें अन्यथा यह विलुप्ति हो जाएन्गे ।आजकल हिन्दी के साथ -साथ स्थानीय लोक भाषाओं का भी व्यवहार पढ़े -लिखे वर्गों में सीमित हो रहे हैं। आधुनिक संचार माध्यम  नेट मोबाइल आदि ने वैसे भी जन साधारण को अनबोलना कर रहे है ऐसे में लोकोक्ति , मुहावरे , पहेलियों से उक्त मोहक व मजेदार वार्तालाप क्षरण की ओर हैं। यह सब पहले नाट्य मंचों फिल्मों आदि में बहुतायत प्रयोग होते थे अब वहां भी इनका प्रयोग कमतर होते जा रहे हैं। 
   अत: लोगों मे इनका प्रचलन बढे इस हेतु सार्थक प्रयास करने होन्गें।
 क्योकि बोलोगे तो बचेगी कहावते 
इसके सिवा कुछ और नही हैं राहें 


संदर्भ - 
1  डा. गीतेश अमरोहित , छत्तीसगढ़ी कहावत कोश  पृ 13 वैभव प्रकाशन रायपुर 2016 

2 डा गीतेश अमरोहित , छत्तीसगढ़ी कहावत कोश पृ 14 , वैभव प्रकाशन रायपुर 

3 वही पृ 12
4 आचार्य मम्मट काव्य प्रकाश 2/6
5 साहित्य शास्त्र परिचय पृ 45
6 डा भागीरथी मिश्र काव्यशास्त्र पृ 255
7 डा नगेन्द्र काव्य बिम्ब पृ 7 
8 डा गीतेश अमरोहित छत्तीसगढ़ी कहावत कोश पृ 161  वैभव प्रकाशन रायपुर 2016 

9  आचार्य डा. हरिवंश तरुण मानक हिन्दी मुहावरा -लोकोत्ति कोश पृ 15 
प्रकाशन संस्थान नयी दिल्ली 
10 आचार्य डा. हरिवंश तरुण मानक  हिन्दी मुहावरा - लोकोक्ति कोश  पृ 141
प्रकाशन संस्थान नयी दिल्ली 
        - डा. अनिल कुमार भतपहरी ( 9617777514 ) 
    सचिव 
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग 
 सेक्टर 27 छत्तीसगढ़ गृह निर्माण भवन द्वितीय तल अटल नगर नवा रायपुर छत्तीसगढ़

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