संपादकीय ...
गिरौदपुरी मेला के विकास हेतु ट्रस्ट का गठन और गिरौदपुरी महोत्सव आयोजन होना चाहिये
प्राचीन भारत के दक्षिणापथ के नाम से चर्चित दक्षिण कोशल छत्तीसगढ़ को "संत भूमि "की संज्ञा दी जा सकती हैं क्योंकि यहां अनेक ज्ञानी -ध्यानी , साधु ,संत ,महात्मा, तपस्वी ऋषि- मुनि की धरती हैं। जैसे हिमालयीन परिक्षेत्र के दो प्रांत हिमाचल और उतराखंड को देवभूमि कहे जाते है तो संतों गुरुओं की भूमि छत्तीसगढ़ संत भूमि के रुप में चिन्हाकित हैं।
भारतीय संस्कृति में संत मत का प्रवर्तन सिंधु घाटी से लेकर महानदी घाटी तक आबाद रहा हैं। इन्ही संतों गुरुओं की परिपाटी में गुरु घासीदास का अभ्युदय और उनके द्वारा सतनाम पंथ का युगान्तरकारी प्रवर्तन अत्यंत रोचक दास्तान हैं। इसके माध्यम से भारत वर्ष में नव जागरण इससे तात्कालीन समाज के प्रत्येक क्षेत्र चाहे वह सामाजिक हो धार्मिक आर्थिक राजनैतिक हो यहां तक कि स्त्री पुरुष दोनो के की जीवन अभूतपूर्व क्रांति हुईं।
मानव के जीवन संघर्ष में श्रमण यानि परिश्रम और सत्य निष्ठा पर जीवन यापन करते सदाचारी जीवन शैली का जो उदाहरण यहां मिलते हैं वह अयन्त्र दुर्लभ हैं। संभवत: इसलिए भी छत्तीसगढ़ के वाशिंदों की प्रशंसा अंग्रजों से लेकर वर्तमान समय में पर प्रांतिक कलावंत लेखक -विचारक भी अक्सर "छत्तीसगढ़िया सब ले बढिया" के विशेषण से संबोधित करते आ रहे हैं।
तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम मेला जोगनदी और महानदी के तटवर्ती कछारी भू-भाग में प्रतिवर्ष त्रिदिवसीय फागुन शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक विशालकाय मेला भरता हैं। जहां पर 12-15 लाख समुदाय देश - विदेश से एकत्र होते हैं। और यहां पावन वातावरण और वन प्रातंर में प्रकृतितस्थ आत्मशोधन कर वर्ष भर के दैनंदिनी में अक्षुण ऊर्जा का संचरण करने की दिशा में प्रयास करते हैं।
मेला स्थल में स्थित धुनि मंदिर , मुख्य मंदिर ,जोड़ा जैतखाम औरा- धौरा एंव तेंदू का वृक्ष अत्यंत पवित्र माने गये हमजहां के शीतल छांव में बैठकर पल भर के लिए ध्यान व आत्म चिंतन कर श्रद्धालू अपना जीवन धन्य करते हैं।
मुख्य मंदिर के अतिरिक्त जन्म स्थली , सफुरा माता समाधि तलाब , बहरा डोली , मरार बाड़ी , शेर पंजा मंदिर , चरणकुंड अमृतकुंड छाता पहाड़ ,पचकुंडी , सुंदरबन जैसे रम्य स्थल है जिनके दर्शन मात्र से हृदय एंव मन मस्तिष्क में पवित्र भाव का संचरण होता संतत्व भाव जागृत होते हैं।
आपार श्रद्धा भक्ति के कारण विराट समुदाय स्वनियंत्रित होते हैं। स्वयं के गृहग्राम से लेकर गुरुघासीदास बाबा जन्म स्थान , या जोगनदी तट से लेकर मुख्य मंदिर तक लाखों की संख्या में जमीन नापते श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता हैं। उनके पृथक कारीडोर या मार्ग की व्यवस्था अत्यंत जरुरी हैं।
मुख्य मंच प्रतिवर्षानुसार छोटा पड़ता जा रहा हैं। सजावटी समान , लाईट ,माइक टेंट कनात और श्रद्धालुओं के जमघट से सदैव प्राब्लम होते आ रहे हैं।
अत: मुख्य मंच को अन्यत्र शिफ्ट करना नितांत जरुरी है।अन्यथा यही पर सर्वाधिक जमघट लगता हैं श्रद्घालुओं और दर्शकों को बहुत ही कठिनाई होते हैं। निरंतर 72 घंटों तक चलने वाली भजन कीर्तन सत्संग प्रस्तुति के अतिरिक्त हमारे लोक कलाकार ,कवि ,साहित्यकार बुद्धिजीवियों / योग साधकों के लिए भी एक पृथक मंच का होना आवश्यक हैं ताकि उन्हे भी अपनी प्रतिभा प्रदर्शन करने का अवसर प्राप्त हो सकें। जैसे मेले में उनके नाम से महोत्सव होते हैं ठीक उसी तरह "तपोभूमि गिरौदपुरी महोत्सव" का आयोजन होना चाहिये जहां पर सतनाम धर्म संस्कृति के अनुरुप कार्यक्रम हो।
मेला की विशालता और बारहों माह आम दरफ्त होने से अनेक तरह की सुविधाओं का होना जरुरी है ।जैसे- सत्संग भवन , चौका भजन भवन, सांस्कृतिक कार्यक्रम व सत्संग प्रवचन हेतु स्टेडियम या प्रेक्षागृह का होना नितांत आवश्यक हैं। नाड़ियल प्रसाद व दैनंदिनी की समाग्री हेतु जो स्थाई दुकानें / झोफड़ियां बेतरतीब है उन्हे व्यवस्थित किया जाय ताकि मेला प्रांगण की सौन्दर्य में अभिवृद्धि हो। मंदिर परिसर से कम से कम 500 मीटर की दूरी पर ही ये दुकानें संचालित होना चाहिये।
इसके साथ धाम के रुप मे प्रतिष्ठित हो जाने पर गुरु निवास साधु -संत के लिए आवास ,भोजन , परिवहन स्वच्छ जल वाहित आधुनिक शुलभ होना नितांत आवश्यक हैं। ताकि मंदिर प्रांगण और मेला परिसर की स्वच्छता व पवित्रता बनी रहें। वहां पर रम्य उद्यान का भी विकास हो।
इन सबके लिए मेला प्रबंधक कमेटी के साथ -साथ ट्रस्ट का गठन बहुत ही आवश्यक हैं। देश - विदेश में में चर्चित और प्रदेश का एक मात्र विशालकाय मेला के उचित प्रबंधन और विकास हेतु शासन भी सार्थक पहल कर सकती हैं।
गिरौदपुरी मेला पर्व की हार्दिक बधाई सहित यह अंक सादर समर्पित हैं।
- डा. अनिल कुमार भतपहरी ( 9617777514)
सचिव
सतनाम साहित्य प्रकोष्ठ
प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज
No comments:
Post a Comment