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शिवरात्रि पर विशेष -
यह आलेख २०१४ से सोशल मीडिया में घुम रहे हैं।
"महाशिवरात्रि पर तीन महान गुरु , प्रवर्तक व्यक्तित्व और उनका प्रभाव "
शिव बाबा का शिवगण बुद्ध बाबा का बहुजन एंव गुरघासी बाबा का संतज
भारतीय संस्कृति व जनमानस में उक्त तीनो नाम मंगलमय व कल्याण कारक हैं । शिव शंकर का शिवगण" बुद्ध का "बहुजन" एंव गुरुघासी का "संतजन " जंबु द्वीप ,भारत वर्ष आम जन हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश वर्तमान में जाने -अनजाने उपेक्षित हैं। शिव का भूत पिशाच पशु है ।बुद्ध का श्रमण शूद्र है ।और गुरुघासी का संतजन सत्यान्वेषी सतनामी होकर भी बहिष्कृत व तिरस्कृत ऐसा क्यो हुआ? कैसे हुआ और ये सभी श्रमण संस्कृति के वाहक मेहनत जनता किस षडयंत्र का शिकार हुआ यह विचारणीय हैं। इन तीनों के अनुयाई उत्पादक है , विराट स्वरुप में है परन्तु परस्पर बटे हुए एंव भटके हुए हैं। तथा इनके ऊपर चंद लोग इनके ही परिश्रम मे जीते इनके ऊपर ही राज कर रहे है ऐसा क्यो?
क्या इनके भाग्योदय नही होगा या कहां पर इनके विकास की धारा रुकी या ठहरी हुई है? इन पर विमर्श होनी चाहिये ।
वर्तमान में इन सबको एकत्र होकर देश की संप्रभुता को अर्जित करने मिलकर प्रयास करना चाहिए। वैचारिक एंव सांस्कृतिक /साहित्यिक रुप से भी एकीकरण बौद्धिक जनों को करना चाहिए। ताकि सदियों की दासता से इन्हे मुक्ति मिले।
बहरहाल आज शिवरात्रि के दिन शिव के साथ साथ बुद्ध और गुरुघासीदास के प्रदेय और व्यक्तित्व के संक्षिप्त तथ्यों एंव तत्वों को समझने के निमित्त यह आलेख सुत्रतात्मक स्वरुप में प्रस्तुत हैं -
महादेव शंकर और महान संत गुरु घासीदास में व्यक्तित्व में कुछ समानताएं मिलती हैं या युं कहे शैव पंथ व सतनाम पंथ में कुछ समानताएं है । बाबा और गुरु नाम शैव सम्प्रदाय से भी संदर्भित है इसलिए अनेक विचारक उन दोनों में समाहार करते हैं।उन दोनों में कुछ साम्यता झलकते हैं जिनका उल्लेख निम्नवत हैं:-
1दोनों दाढ़ी मुछ जटा धारी हैं।
2खडाऊ कमण्डल युक्त हैं अर्ध विवृत देह ओजस्वी स्वरुप वान हैं।
3 गंगा एक के जटा में तो दुसरे के चरण में
4 दोनों के अनुयायी मुख्य धारा से वंचितहैं। एक का भुत्त पिशाच तो दुसरे का अछूत दलित ।
5दोनों का दाम्पत्य जीवन। एवम दोनों का सामान वियोग।
6 सती भस्म होना औरपुनः जीवनदान सफुरा का भूसमाधि और पुनः जीवन दान।
7 दोनों वन पर्वत प्रकृति प्रेमी एंव सद्गृहस्थ हैं।
8 तपस्या समाधि योग में दोनों प्रवीण एवम अंतर्यामी।
9 दोनों का श्वेत ध्वज।
10 पावन दिन या बार सोमवार।
11 दोनों औघट दानी सदा लोक हितकारी
12 दोनो नव प्रवर्तक तपोनिष्ठ व सत्यनिष्ठ है।
13दोनों के प्रतीक स्तंभ एवम ध्वज सफेद।
14 एक का शिवलिंग प्रतीक दूसरे का जैत खाम प्रतीक दोनों तेजस्वी व् उर्ध्गामी।
15 दोनों को कंठी या रुद्राक्ष माला प्रिय
16 दोनों चन्दन तिलक धारी
18 दोनों के पास सर्प ।
दोनों तपस्वी व् दिन दुखियों के स्वामी।
19 दोनों सत्यवादी व सतनाम प्रवर्तक
20 दोनों बाबा व् गुरु पद धारी व् मंत्र द्रष्टा परम सिद्ध हैं।21 दोनों अव्यवस्था व् असत के विरोधी क्रन्तिकारी।औरइस तरह का यह अप्रतिम संयोग इन दोनों जन अराध्यों में परिलक्षित हैं।
एक पौराणिक पात्र और ऐतिहासिक पात्र है । शैव नाथ सिद्ध बौद्ध सहजयान और सतनाम संस्कृति में आरम्भ से ही समन्वय भाव रहा है। यह सुखद संजोग ही है इस तरह की साम्यता व जनास्था जनजीवन में परिव्याप्त हैं।
सत्यंम् शिवम् सुन्दरम
सत श्री सतनाम। संसार सतनाम मय हो।
डा. अनिल भतपहरी , ९६१७७७७५१४
उक्त लेख में
"प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद"
इस आलेख को अनेक ग्रुप में लोग शेयर किए हैं। और इनकी मिली जुली प्रतिक्रिया आई हैं। और संभवतः कुछ दिनों तक आते रहेन्गे।
बहरहाल भारत और विश्व में सत्य के प्रति जनमानस में अटूट आस्था हैं। और हमारा संपूर्ण वांड्गमय (साहित्य दर्शन आदि ) में उसी परम सत्य की महिमा गाई हैं। सत्य के साधक उपासक के व्यक्तित्व- कृतित्व भले अलग हो पर वे उसी सत्य के कारण लोक में पूजनीय हैं। उनके ऊपर गहरी आस्था हैं।
किसी के साथ किसी का तुलना का अर्थ जहाँ जो चीजें हैं उसे उन दोनो मतों -पंथो के साथ कर रहे है।वहाँ वह चीजें वैसा ही हो या हैं, ऐसा नहीं हैं।और न ऐसा समझना चाहिए। कुछ समानताएं है तो बहुत कुछ असमानताएं भी रहते हैं। इसलिए ही वे एक दूसरे से पृथक व स्वतंत्र रहते हैं। इस तरह सबकी अपनी अस्तित्व व अस्मिता कायम रहते हैं।
संसार में अनेक मत ,पंथ संप्रदाय, मजहब रिलिजन हैं उन सब के परस्पर तुलनात्मक बातें होते है किये जा सकते हैं। ताकि समानताओं को जान समझ कर अनुयायियों में परस्पर सद्भाव व सौहार्द बनी रहें ।
बहरहाल सबकी अपनी -अपनी महत्ता हैं। अनुयाईयों में उनके प्रति गहरी आस्था हैं।
इस तुलनात्मक विवरण को पढ़ - समझ कर लोग अपनी प्रतिक्रिया दिए वह उनकी अपनी समझ और विवेक हैं।
आप सभी का धन्यवाद
।।जय सतनाम ।। नम: शिवाय ।।
[2:12pm, 21/05/2016] डाँ.अनिल कुमार भतपहरी:
"तथागत बुद्ध बाबा और गुरु घासी बाबा "
तथागत बुद्ध बाबा और गुरु घासी बाबा के जीवन चरित साधना सिद्धि उपदेश व क्रियाकलापों मे एक अनुपम साम्य है।
आज बुद्ध पूर्णिमा के पावन पर्व पर दोनो प्रवर्तकों के परस्पर जुडी समान मानवतावादी दृष्टिकोण पर विचार करते है हालांकि दोनो के बीच दो हजार वर्ष का अन्तराल हैं। पर दोनो ने तत्कालीन सामाजिक वर्जनाओं के विरुद्ध जन जागरण चलाकर धम्म और पंथ का प्रवर्तन किए जो वास्तविक रुप से धर्म की श्रेणी में आबद्ध है। एक धर्म के रुप में प्रतिष्ठित हो चुका हैं,जबकि दूसरा प्रतिष्ठित होने के लिए प्रयारत (लंबित) हैं।
आइए दोनों की साम्यता पर विहंगम दृष्टि डालते हैं-
१ जन्म पूर्व
उनकी माताओं महामाया व अमरौतीन को गर्भावस्था मे अद्भुत मनोहारी स्वपन व विशिष्ट अनुभव हुये।
एक को हाथी और चमकते सितारे दिखी तो दुसरी आमा चानी और आगन मे (अन्जोर रौशनी )बिखरते देखे।
२. बचपन
सिद्धार्थ के जन्म के बाद ज्योतिष आये और चक्रवर्ती सम्राट व साधु बन जाने के घोषणा किये।
घासी के जन्म के बाद साधु आये शिशु को गोद व सर मे रख नाचने लगे।उनके नाम करण कर उनके पाव छु कर आशीष लिये।माता पिता हतप्रभ-सा देखते रहे।
३. बाल्यकाल
दोनो आम बच्चो से अलग ध्यान मग्न व शान्त चित्त कुछ खोजने जानने के लिये उद्विग्न।
पशु- पक्षी के उपर दया घायल का उपचार कर उन्हे दोनो द्वारा जीवन दान,महिमा मय व्यक्तित्व ।
४ युवावस्था
पराक्रमी पुरषार्थी , विवाह
स्वपसन्द वधु वरण। यशोधरा व सफूरा से।
एक का वैभव शाली विलासपूर्ण जीवन तो दूसरे का मर्यादा पूर्ण सुखमय जीवन।
५श्रेष्ठ गृहस्थ
पुत्र प्राप्ति,
६ जीवन मे दुख. का दिग्दर्शन .
७जन जीवन की पीडा अभाव व तिरस्कार से विचलित मन शान्ति व कुछ सत्य की तलाश मे यात्रा
८.वन मे तप कठोर साधाना ६ वर्ष व ६ माह
७ सिद्धी आत्म ज्ञान व आत्म साक्षात्कार ।
८ समाज मे आकर उन ज्ञान से सिद्धांत व उपदेश का प्रसारण ।
९ वर्तमान धार्मिक रीति -नीति सन्सकृति के समनान्तर सच्चनाम और सतनाम मत का प्रचार -प्रसार।
१० देशाटन प्रवास चातुर्मास रामत रावटी ।
११ बुद्ध ने अष्टमार्ग पन्चशील २२ प्रतिग्या ३७ पारमिता।सहित अपना सच्च्नाम दर्शन जन भाषा पालि मे लोगो सहज समझ आने वाली सरल शब्द मे व्यक्त किये।
१२ गुरु बाबा ने सप्त सिद्धान्त ९ रावटी २७ मुक्तक ४२ अमृतवाणी व दृष्टान्त बोघ कथाओ द्वारा जन मानस को सरल जन भासा छत्तीसगढ़ी मे सतनाम दर्शन व्यक्त किये।
१३ दोनो सत्य अहिन्सा सादगी व प्रकृतस्थ जीवन को महत्त्व दिये।
१४ दोनो द्रष्टा व उपदेशक ।
१५ भिख्खु सन्ध का निर्माण
१६ सन्त समाज का निर्माण, महंत साटीदार भंडारी
१७ ढोन्ग पाखन्ड. मिथ्या भ्रम के जगह सत्य की स्थापना।
१८ ईश्वर पन्डे पुजारी योग्य हवन
आदी कर्म कान्ड के स्थान पर
सहज योग ध्यान समाधि का प्रचलन कराये।
१९ तर्क पर आधारित ज्ञान मार्गी जीवन
२० निरंतर गतिमान , सत्संग प्रवचन और सात्विक रहन सहन श्वेत/ कषाय वसन
२१ जीते जी निर्वाण / परमपद की प्राप्ति !
प्राचीन बौद्ध ,सिद्ध व पाली साहित्य के अध्ययन से यह भी ज्ञात होता हैं कि भारत बौद्ध मय था बहुसंख्यक समाज परिश्रमी और सदाचारी थे उनका अस्तित्व आज पर्यन्त ग्रामीण जन जीवन में द्रष्टव्य हैं। सहज सरल जीवन दर्शन इन्ही संत गुरु प्रवर्तकों से ही जनमानस में परिव्याप्त हुआ है।
बुद्ध उच्चरित पाली के सच्चनाम ही गुरुघासीबाबा उच्चरित छत्तीसगढी के सतनाम है।
बौद्ध सिद्धो की वाणी प्राचीन पंथी व मंगल भजनो में अन्तरध्वनित हैं।
प्राचीन सहजयानी ही वर्तमान सतनामी हैं।
।। सच्चनाम -सतनाम ।।
बुद्ध जंयती की हार्दिक बधाई व मंगलकामनाएं
इस तरह से उक्त इक्कीस बिन्दुओं पर सामान्यतः विश्लेषण करे तो जो साम्यता दिग्दर्शन होते हैं।वह केवल संयोग ही नहीं अपितु दोनो के समान विचार धाराएँ है जो लोक कल्याण के मार्ग प्रशस्त करते हैं ।
डा. अनिल भतपहरी
९६१७७७७५१४
ऊंजियार - सदन अमलीडीह ,रायपुर
-डा. अनिल भतपहरी/ 9617777514
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