Sunday, March 31, 2024

तोर सुरता आवे न

रिगबिग चंदैनी उवे 
सुघर ये मन लूभावे 
पुन्नी के चंदा देख
तोर सुरता ह आवे 
रानी तोर सुरता आवे न ..

रिगबिग चांदनी uve
जोत्था झोट्ठा जोगनी बरे 
सुध लम्हे तोर डहर
 मिले बर मन ह हदरे 
राजा तोर सुरता आवे न ...


महकत हवय मोंगरा 
मुड़ म तोर खोचे गजरा
लगथे तय तीर मे आगें
रानी तोर सुरता आवे न 

निकल के घर दुवारी
पहुचेव कुआ बारी 
सुने निक ददरिया गाये न 
मन मयूर झुम्मर नाचे न

अमलीडीह रवि 31-3-24 शाम 7 बजे ।

Thursday, March 28, 2024

बोलोगे तो बचेगी कहावतें

बोलोगे तो बचेगी कहावतें 
       - डा. अनिल कुमार भतपहरी 
कहावतें को लोकोक्ति भी कहें जाते हैं। कहावत के रुप रुढ़ हो चली लोकोत्तियां को उदाहणार्थ भी प्रस्तुत किये जाते हैं। 
 देखा जाय तो लोकोक्ति दो शब्दों के मेल से बना  हैं, लोक + उक्ति = लोकोक्ति। लोक  यानि समुदाय और उक्ति यानि कथन । समुदाय किसी  कथन का  यथावत निरंतर  प्रयोग अपने दैनंदिनी में करते आ रहे हो  और वह एक विशिष्ट अर्थ या भाव को अभिव्यक्त करने के लिए रुढ़ हो चुका हो वह वाक्यांश या सूत्र लोकोक्ति के रुप में जाने जाते हैं और सतत प्रचलन से वे प्रसिद्ध हो जाते हैं।
 यह लोकोक्ति काव्यात्मक स्वरुप लिए अलंकृत और सटीक शब्दों की सुगम्फित संरचना होती हैं। जो कि सहज ही  हृदयंगम और बोध जन्य हो जाते हैं। 
   कृष्णचंद्र शर्मा के अनुसार " लोकोक्ति वह संक्षिप्त चमत्कारपूर्ण वाक्य हैं, जिसमें किसी अनुभूति एवं तथ्य की चिंतनपूर्ण अभिव्यक्ति होती हैं।"1 

    जन समुदाय परस्पर लोकाचार व क्रिया व्यापार में प्राय: अपनी बातों  को प्रभावी ढंग से कहने और मनवाने  के लिए लोकोत्ति एंव  मुहावरें का प्राय: प्रयोग करते  हुए आ रहे हैं।‌इसलिए हमारी लोक भाषाओं में सर्वाधिक लोकोत्तियों का अनुप्रयोग देखने को मिलती हैं। यह इतना सहज और सरल उच्चारणीय हो गये है कि अनायस लोगों के मुंह से प्रसंग व घटना देख बोलचाल में निकल पड़ते  हैं-
जैसे तीन तिकाड़ा काम बिगाड़ा , काम न काज  के दुश्मन अनाज के  
नाच न जाने आंगन टेढ़ा 
चोर -चोर मौसेरे भाई 
हाथ कंगन को आरसी क्या 
या सांच को आंच क्या 
 उक्त शब्द सरंचना काव्यात्मक तो है उनमें विशिष्ट भावार्थ भी समादृत हैं। इसलिए पाश्चात्य विचारक जान एग्रीकोला कहते हैं-
Short sentences in to which ,as in rules ,the ancientas hav compressed life " 2
   यानि वे लघु वाक्य ,जिनमें सूत्रों की तरह पूर्वजों ने अपनी जीवनानुभूतियों को व्यक्त किए हैं।
इस तरह की लोकोक्ति जन सामान्य के बीच बहु प्रचलित हैं। 
इसलिए कहे जा सकते हैं अभी इनका क्षरण या विस्मरण की अवस्था नही हैं। पर बहुत तेजी से हिन्दी और स्थानीय भाषा बोली का यह अलंकृत विशिष्ट शब्दांश के जगह अंग्रेजी के शब्द या कोटेशन का चलन बढ़ोतरी हो रहे हैं। जिससे यह क्षरण की ओर अग्रसर हैं। इनका संरक्षण कोश आदि बनाकर नही अपितु बोलचाल में व्यवहृत करने से होगा। उदय नारायण तिवारी जी   "लोकोत्तियों को अनुभूत ज्ञान की निधि कहें हैं।" 3 इस तरह देखे तो यह  भाषा और साहित्य ही नही मानव समाज के  लिए अमुल्य धरोहर हैं। 
    लोकोक्ति प्राय: पद्यात्मक या लयात्मक होते है और उनमे छंद विधान भी विद्यमान हो जाते हैं।
    मनुष्य की सुख -सुविधा व सूचना व मनोरंजन  हेतु ईजाद पत्र - पत्रिकाएं  ,आकाशवाणी, दूरदर्शन विविध टी वी चैनल्स अब केवल संचार माध्यम या समाचार आदि के लिए  मीडिया  बस नही रहा बल्कि  अब  विलास की सामाग्री के रुप मे विकसित हो चूके हैं। इसमें  मोबाइल  इंटरनेट, ब्लाग, वाट्साप, इंस्टाग्राम रिल्स युट्युब   एंव विविध एप आदि के द्वारा वैश्विक फलक पर प्रसिद्धि व रोजी - रोजगार के मार्ग भी प्रशस्त हो रहे हैं।  इसमें अंग्रेजी का बोल-बाला है । अब तो इतने ट्रांन्सलेटर एप आ चुके है कि भाषानुवाद अब बेहद सरल हो गये फलस्वरुप हिन्दी का चलन और मोबाइल की बोर्ड मे हिन्दी की  देवनागरी लिपि अब अंग्रेजी की रोमन लिपि ने  लेखन स्थान बना लिए हैं। तब इस दौर मे बोल चाल व लेखन से मुहावरा व लोकोक्ति की क्षरण या उपयोग कमतर होते जाने की स्थिति स्पष्ट रुप से परिलक्षित हो रहे हैं। जबकि यह किसी के कथन को सुस्पष्ट व प्रभावी बनाते हैं-

बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद 
 यह अनभिज्ञ और व्यर्थ प्रलाप करने वालों के लिए सटीक बैठते हैं। 
 इसी तरह यदि कोई ढोंग कर रहे है और लोगों को धोखा दे रहे हो उनके लिए यह लोकोक्ति देखिए कैसे प्रभावी हैं-

नौ सौ चुहा खाकर बिल्ली हज को चली 
  और शत्रु को आदर देने से उनका हृदय परिवर्तन होता है तथा उन्हे अपना बना सकते है यह नीति युक्ति कितना संप्रेषणीय हैं। इसे छत्तीसगढ़ी मे गुरुघासीदास की अमृतवाणी के रुप में भी जाने जाते हैं। उनकी अनेक उपदेशनाएं व सूत्र कथन लोकोक्ति के रुप में प्रचलन में हैं-

  "बइरी ल ऊंच पीढ़ा देव ।"

  इसी तरह आत्मबल और मन की शक्ति को हर संभव बनाए रखने हेतु नीति कथन है-
मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।‌
  प्रेम प्रसंग पर प्रेमी जोड़े की चाह को समाज में मान्यता देने यह लोकोक्ति दर्शनीय है -
 "लड़का लड़की राजी तो क्या करे काजी "
  कृषि प्रधान देश मे कृषि से संबंधित अनगिनत लोकोक्तियां हैं-
    तिरिया रोवे मरद बिन खेती रोये जलद बिन 
    बाल बियासी रोपा धान 
          तेला पछिने आवै आन 
        
  लोकोक्तियों में  प्राय: शब्द शक्ति  निहित होती हैं। शब्द शक्तियां तीन है - अमिधा ,लक्षणा और व्यंजना ।
अमिधा - अमिधा का कार्य संकेत या बिंब ग्रहण करना है । पंडितराज जगन्नाथ के अनुसार - "शब्द एवं अर्थ के परस्पर संबंध को अमिधा कहते हैं।" 4
 जैसे -सास बिन ससुराल क्या 
    सांच को आंच क्या 

लक्षणा - मुख्य अर्थ के जगह रुढ़ि   या प्रयोजन से मुख्यार्थ के योग से कोई अन्य अर्थ लक्षित होते है उसे लक्षणा कहते हैं। डा सुधाकर कलवडे के अनुसार - मुख्य अर्थ को छोड़कर जहां रुढ़ियां प्रचलन के कारण अन्य अर्थ ग्रहण किया जाता है वहां रुढ़ा लक्षणा होती हैं। 5 
प्राय: लक्षणा शब्द शक्ति से युक्त अनेक लोकोक्तियां देखने / सुनने मिलती है - 
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद 
नौ दिन चले अढ़ाई कोस 
होनहार बिरवान के होत चिकने पात 
  जब अमिधा और लक्षणा युक्त लोकोत्तियां शब्द व्यापार या अर्थ प्रतीति मे समर्थ न हो या बेहद साधारण हो तब विशिष्ट अर्थ प्रयोजन हेतु व्यंजना का अनुप्रयोग की जाती हैं। 
जैसे - चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात 
मुख मे राम बगल में छुरी 
   इसके साथ ही लोकोक्ति मे प्रतीक / प्रतिरुप का भी अनुप्रयोग बहुधा होते हैं। डा. भागीरथी मिश्र ने प्रतीक को परिभाषित करते लिखते है - 
" अपने रुप ,गुण ,कार्य ,या विशेषताओं के सादृश्य एवं प्रत्यक्षता के कारण ,जब कोई वस्तु या कार्य किसी किसी अप्रस्तुत वस्तु के भाव विचार, क्रिया- कलाप, देश ,जाति ,संस्कृति आदि का प्रतिनिधित्व करता हुआ प्रकट किया जाता है, तब वह प्रतीक कहलाता हैं।" 6
  डा नगेन्द्र  ने प्रतीक को सरलतम ढंग से अभिव्यक्त करते है -  "प्रतीक एक प्रकार से रुढ़ उपमान का ही दूसरा नाम हैं।जब उपमान स्वतंत्र न रहकर पदार्थ विशेष के लिए रुढ़ हो जाता है तो वह प्रतीक बन जाता है।" 7 

राम तेरी माया कहीं धूप कहीं छाया 
यहा धूप और छाया सुख -दु:ख  का प्रतीक हैं।
गुणी और अवगुणी व्यक्ति के प्रतीक स्वरुप यह लोकोक्ति द्रष्ट्व्य हैं- 
सूप बोले तो बोले चलनी तक बोलें 
बिंब - प्रतीक की तरह लोकोक्ति मे बिंब की प्रभावशाली उपस्थिति होते है और अर्थ की प्रतीति को पुरी तरह उजागर करती हैं।
जैसे जरुरत मंदों के बीच किसी एक वस्तु की उपयोगिता कितनी महत्वपूर्ण होते है यह देखिए -
   एक अनार सौ बीमार 
या ऊट के मुंह मे जीरा 
हाथी के मुंह में सोहारी इत्यादि 
   इसी तरह जहां से लाभ मिल रहा हो वहां के कष्टप्रद स्थिति भी सह्य होते है - 

दुधारी गरुवा की लात मीठ 8 

मुहावरा या लोकोत्ति जीवन निर्वाह  प्राय: हर क्षेत्र में देखे जा सकते हैं। यहां तक कि पशु पक्षी कीट पतंग  मनुष्य के अंग -प्रत्यंग और उनके क्रिया- व्यापार आदि का उल्लेख भी इनमें मिलती हैं। इनके द्वारा भी प्रभावी कथन कहने की परंपरा रही है-
जैसे-  भैंसा के  सींग भैसा ल गरु 
छत्तीसगढ़ी (व्यर्थ का भार )
भैंसा का सींग बुढापे मे उनके लिए भार हो जाते हैं।

 
टीटही के भरोसा सरग नइ रुके (छत्तीसगढ़ी )
टीटही एक पक्षी बादल की गर्जना  सुन वे अपनी घोसलें को बचाने दोनो पैर से आकाश को रोकने का प्रयास करती हैं।
  तो उनके ऐसा करने वर्षा थमती नही ।
इसी तरह मनुष्यों के अंग का उल्लेख निम्न लोकोत्ति में द्रष्ट्व्य हैं- आंखे पथराना  (मृत्यु के ठीक पहले की अवस्था)  
आंखे दिखाना  (गुस्से से देखना)     प्रयोग -शिक्षक ने आखें दिखाई 
या आंखें  नीची करना - लज्जित होना ।
उनकी गलती पकड़ी ग ई तो उनकी आंखें नीची हो गई ।9

वस्तु या सामाग्री को लेकर भी रोचक लोकोत्तियों का प्रयोग देखने मिलती हैं। कुछ तो आरंभ से है या पुराने है कुछेक न ई वस्तु के प्रचलन के बाद उनकी प्रवृत्ति के अनुरुप प्रचलन मे आये जान पड़ते है - 

किताबी कीड़ा होना =  पढाकू होना 
प्रयोग -केवल कीताबी कीड़ा होने से नही चलेगा कुछ तो व्यवहारिक   ज्ञान होना चाहिये ।
सुपा बोले तो बोले चलनी भी बोले - जिसमे दोष नही वह बोले तो समझ आते है पर जिसमे छिद्र ही छिद्र याने दोष ही दोष हो वह बोले तो बात असह्य हो जाते हैं।

तूफान खड़ा करना = बवाल करना ।
प्रयोग - पदाधिकारी ने उसे अकमर्ण्यता के लिए डांटा तो उसने तूफान खड़ा कर दिया। 10
   
    आजकल युवा पीढ़ी  टीन  एजर के वार्तालाप में से  लोकोक्ति या मुहावरा  नही सुनाई देती । तब यह चिंता स्वभाविक है कि इन सुक्त मय सुंदर शब्वालियों को कैसे संरक्षित  किया जाय। किताबे छापकर या उनके संग्रहण  कोश बनाकर ही नही बल्कि इसे फ्लुयेंट यानि  सहज उच्चारण में लाकर टीन एजर या न ई पीढ़ी में कैसे आरोपित करें ? हमें इस यक्ष प्रश्न का उत्तर तलाशने होन्गें। 
       इन प्रश्नों के उत्तर हेतु चिंतन मनन करने से एक ही प्रभावी उत्तर सामने आते है और वह है बोलने से ही बचेगी कहावतें अन्यथा यह विलुप्ति हो जाएन्गे ।आजकल हिन्दी के साथ -साथ स्थानीय लोक भाषाओं का भी व्यवहार पढ़े -लिखे वर्गों में सीमित हो रहे हैं। आधुनिक संचार माध्यम  नेट मोबाइल आदि ने वैसे भी जन साधारण को अनबोलना कर रहे है ऐसे में लोकोक्ति , मुहावरे , पहेलियों से उक्त मोहक व मजेदार वार्तालाप क्षरण की ओर हैं। यह सब पहले नाट्य मंचों फिल्मों आदि में बहुतायत प्रयोग होते थे अब वहां भी इनका प्रयोग कमतर होते जा रहे हैं। 
   अत: लोगों मे इनका प्रचलन बढे इस हेतु सार्थक प्रयास करने होन्गें।
 क्योकि बोलोगे तो बचेगी कहावते 
इसके सिवा कुछ और नही हैं राहें 


संदर्भ - 
1  डा. गीतेश अमरोहित , छत्तीसगढ़ी कहावत कोश  पृ 13 वैभव प्रकाशन रायपुर 2016 

2 डा गीतेश अमरोहित , छत्तीसगढ़ी कहावत कोश पृ 14 , वैभव प्रकाशन रायपुर 

3 वही पृ 12
4 आचार्य मम्मट काव्य प्रकाश 2/6
5 साहित्य शास्त्र परिचय पृ 45
6 डा भागीरथी मिश्र काव्यशास्त्र पृ 255
7 डा नगेन्द्र काव्य बिम्ब पृ 7 
8 डा गीतेश अमरोहित छत्तीसगढ़ी कहावत कोश पृ 161  वैभव प्रकाशन रायपुर 2016 

9  आचार्य डा. हरिवंश तरुण मानक हिन्दी मुहावरा -लोकोत्ति कोश पृ 15 
प्रकाशन संस्थान नयी दिल्ली 
10 आचार्य डा. हरिवंश तरुण मानक  हिन्दी मुहावरा - लोकोक्ति कोश  पृ 141
प्रकाशन संस्थान नयी दिल्ली 
        - डा. अनिल कुमार भतपहरी ( 9617777514 ) 
    सचिव 
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग 
 सेक्टर 27 छत्तीसगढ़ गृह निर्माण भवन द्वितीय तल अटल नगर नवा रायपुर छत्तीसगढ़

सजाएं हैं गुलिस्तां

#anilbhattcg 

सजाएं हैं गुलिस्ता 

कतारबद्ध चलती हुई 
बचींटियों की पंक्ति को 
छेड़ना तक नागवार हैं
जो जहां पनपा उसे 
वहां से हटाना दुश्वार हैं
कोई हक नही तुम्हें 
किसी को बेवजह 
प्रताड़ित करो 
या उन्हें दिग्भ्रमित कर 
अन्यत्र विस्थापित करो 
अनावश्यक हस्तक्षेप कर 
उन्हे शासित करो 
चलिये विवश है अभी वे 
बेचारें बिखर जायेगें 
अट्टाहास तुम्हारा 
यूं मसल कर रख देंगें‌ 
पर यह मत भूलों 
कि चींटी हाथी को भी 
मार डालती  हैं
वक्त बलवान सदा 
सबको मौका देती हैं
तुम तो कुछ भी नहीं 
फिर भी इतराते हो 
बस्तियां उजाड़ते हो 
शोषण दमन विस्थापन को  
विकास समझ कर 
सत्ता की रौब झाड़ते हो 
मूल्यों और आस्थाओं की 
बातें कर लच्छेदार 
बन बैठे हो सूबेदार 
रहना खबरदार 
अबकी बार 
बिखरी हुई पंक्तियां 
तलाशते अपनी अस्मिता 
एकत्र हो सजाएं हैं गुलिस्तां 
पहरेदार ये चींटियां 
तिलमिलाकर काट खाएगें 
ढो ले जाएंगी तेरी बोटियां 
चढ़ेगी नहीं चूल्हें पर
बार-बार काठ की हड़ियां
झंहिउञ
      - डांअनिल भतपहरी 9617777514

28 मार्च 24 ऊर्जा पार्क प्रात: 9 बजे चींटियोंर।।इ।ल।के कतार देखते हुये ।

Wednesday, March 27, 2024

प्रीत किया मन मीत बनाया

प्रीत किया मन मीत बनाया 
गीत लिखा संगीत सजाया 
धन दौलत भी सब जोड़ लिया 
जीने के भ्रम से मरने लगा रोज 
पर एक दिन जीना छोड़ दिया 
सतनाम सुरना छोड़ दिया ....
 

नौकर चाकर मोटर गाड़ी 
जीवन तेरा  वैभवशाली 
रहा सफर हरदम प्यारे, पैदल चलना छोड़ दिया ...

तेरी बातों  मे है  जादू 
बेकाबु भीड़ करता काबु 
जीवन भर कहते रहे पर  मौन रहना छोड़ दिया ...

उड़ते आकाश फिरते विदेश 
सम्मानीय सदा देश- विदेश 
सोना सा जीवन तेरा पर ढ़लना छोड़ दिया

भरता रहा सब रीते गागर 
उपलब्धियों का रखा सागर 
बुझा न प्यास तेरा प्यारे,जल रखना छोड़ दिया

सेक्टर 27 नवा रायपुर ,  27-3-2024 बुधवार 3.55 बजे

Tuesday, March 26, 2024

तोर नयना म

तोर नयना म का जादू भरे हवय 
ओ मन देखे देखे करथे ।
तोर बयना म का जादू भरे हवय ग 
मन सुने सुने करथे ।

देखे हव  जब ले मय हर तोला 
चिटिक चैन नही नही तरसत हे चोला...

जस तोर हाल संगी तस मोर हाल 
तही मोर उत्तर अउ तही मोर सवाल ...

कका बबा संग म चल देव धामी मनाबोन 
अक्ती बिहाब बर चल मनौती मनाबोन  ...

Sunday, March 24, 2024

पौनी - पसारी

पांच पौनी मे ब्राह्मण ,रावत,  नाई ,धोबी और मेहर+मोची आते हैं। इनके अपने गंवई  + पारा बटे हुये थे और एक दूसरे के क्षेत्र का अतिक्रमण नही करते थे। प्रमुख कृषक समुदाय  तेली कुर्मी  सतनामी लोधी अघरिया आदि लघु + बडे किसान थे जो पौनियों / श्रमिकों को  रोजी - रोजगार देथे। बाकी कुम्हार  लोहार सोनार कहार कलार  मरार केवट ढीमर मन दैनंदिनी समान  बनाय अउ साग भाजी मछरी कोतरी उपजा के जीवन यापन करय ।
    एक तरह से सीमित संसाधन अउ जरुरत थे  गांव  पहले पहल आत्म निर्भर थे। 
   आजादी के आसपास  अन्य प्रांत के लोगो का आव्रजन हुआ और वही लोग  नगरी करण और औद्योगिकीकरण को बढ़ाया। इनकी आयातीत संस्कृति  ने यहां की  ग्रामीण जन -जीवन को प्रभावित कर सामाजिक ताने +बाने को  तहस नहस कर दिया । वनांचलों में गोड़ कंवर बिंझवार  माडिया ध्रुवा हल्बा उराव और महार कलार रहते थे। स्वच्छंद जीवन शैली वाली अरण्यक संस्कृति थे।
   आधुनिक शिक्षा और संवैधानिक व्यवस्था से  पौनियों और श्रमिक समुदाय का शोषण भी थमा और उनमे जन जागरण भी आया ।

Saturday, March 23, 2024

जग म होगे गुरु के अमर नाम

सतनाम, सतनाम..जय सतनाम
सतनाम सतनाम सतनाम जी 
गुरु बबा के जग म जबर नाम जी
घासी बाबा के नाम जबर नाम जी 
जग म होगे  गुरु के अमर नाम जी

धरम धरती ह होगे  अधरम के डेरा   
जात -पात ऊंच -नीच छुआछूत घनेरा 
जीव होगे मनखे मन के हलकान जी ...

सुन्ता सुम्मत  के सुघ्घर पंथ चलाइस 
भटकत हंसा ल सत मारग देखाइस 
सिरजिस पावन धरम  सतनाम जी 
जग म होगे गुरु के अमर नाम जी...
    अमलीडीह 24-3-24 शनिवार प्रात: 10-30 बजे 

प्रतिनियुक्ति के वापसी

मोर प्रतिनियुक्ति के वापसी होगे हे  आदरणीय !  आप मन संग रहिके  तीन बछर ले जोरहा बुता उरकाय के ज उन अवसर मिलिस ओहर हमर सौभाग्य हे । जशपुर ले बीजापुर अउ रायगढ़ के  लरियाआंचल से डोंगरगढ़ के मराठी भाषी तक चारो मुड़ा किंजर किंजर के आयोजन करेन इहा के जम्मो प्रमुख भाषा बोली के साहित्यकार ल संघारेन ।
    हमन के समय मानक शब्दकोश समिति , सुरहुत्ती मासिक पत्रिका  अउ कत्कोन अनजान फेर पोठ पांडुलिपि मन 
ल छापेन । राज भर के साधक साहित्यकार मन ल खोज खोज के सम्मानित करेन आयोग म जोडेन अउ  पाठ्यक्रम बर सरलग बुता करेन ।
     कहु न कहु संघरबोन त बने बताचिता तको होत रही।
आप मन छत्तीसगढ़ी भाषा  कला संस्कृति के मनखे अव अउ समर्पित ढ़ग ले काम करत हव ।हमन आप मन के सदैव सांधरों म रहिबोन ।
  जय जोहार जय छत्तीसगढ़ 
होरी तिहार के बधाई ।

Friday, March 22, 2024

नदियों और वनों बचाइये



।‌।नदियों और वनों को बचाइये ।।

ग्लोबल वार्मिंग और  प्राकृतिक संपदा के अंधाधुंध  दोहन से मौसम चक्र में अप्रत्याशित परिवर्तन होने लगा हैं। फलस्वरुप पृथ्वी की पारिस्थितिकी और यहां रहे  जीव जन्तु उनके जीवन निर्वाह के तत्व बड़ी तेजी से क्षरित होते जा रहे हैं। इन सबका स्पष्ट प्रभाव  मानव जीवन में पड़ने लगा हैं। समय रहते इन सब बदलाव के प्रति सचेत होने की आवश्यकता हैं। पृथ्वी सम्मेलन में इन सब पर गहनता से विचार करने के तीन दशक बीत जाने और विशेषज्ञों द्वारा निरंतर सचेत करने के बावजूद अपेक्षित सतर्कता शासन प्रशासन एंव जन मानस द्वारा नही किया जाना बेहद चिंतनीय हैं।  

संतुलित विकास की बाते होते रहने के बाद भी गंभीरता पूर्वक इस दिशा में कार्य नही हो पा रहा हैं। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि  छत्तीसगढ़  की जीवन दायिनी  महानदी सुख रही हैं । विशेषज्ञ कह रहे हैं कि आगामी 10 वर्षों में उचित प्रबंधन न हो तो भयावह स्थिति निर्मित हो सकती हैं।
    महानदी समूचा छत्तीसगढ़ की अंत: जल प्रवाह की वाहिका हैं इनकी सहायक नदियों में खारुन ,शिवनाथ सेतगंगा ,आगर ,अरपा , जोग, हसदेव केलो हैं। महानदी सदानीरा रहेगी तो इन नदियों का जलभराव और भूगर्भ जल स्त्रोत कायम रहेगा ।अन्यथा यह पुरी भूगर्भिक जल स्त्रोत को खीच कर सुखा सकती हैं।  
     जल बिन सर्वत्र त्राहिमाम / कोहराम मच जाएगा ।अभी भी वक्त  है वर्षा जल  को प्रति दस किमी में स्टाप डेम /एनीकेट  बनाकर रोका जाय। नदी तट पर हवा से नमी अवशोषित कर जड़ से जल विसर्जित करने वाले पेड़- पौधे का  रोपण कर के प्रभावी संरक्षण भी  कर सकते हैं। साथ ही उद्गम सिहावा से लेकर हीराकुंड तक कृषि मत्स्य पालन , वाटर गेम आदि से  रोजी- रोजगार , नदियों के दोनो ओर यातायात और धार्मिक सांस्कृतिक मेले यात्रा द्वारा  महानदी व अन्य  नदी तट को प्रदेश की समृद्धि के कारक के रुप में विकसित किया जा सकता हैं।
   न कि यहां की बेश कीमती जैव विविधता से युक्त  वनों  हसदेव जंगल , बार अभ्यारण , गुरुघासीदास अभ्यारण , उदंति ,  कांगेर वेली जैसे प्राणवायु देने वाली वनप्रांतर को   उजाड़कर कर , यहां निहित अमूल्य खनिजों का दोहन कर इस शस्य श्यामला  भूमि को मरुस्थल बनाकर और नदियों को मारकर महज कुछेक वर्षों के लिए आर्थिक लाभ उठाने का उद्यम किए जाय।  अन्य समृद्ध राज्यों और नव धनाड्यों  के उद्योगों के  लिए कच्चा माल उपलब्ध कराया जाय ।
           बल्कि ग्लोबल वार्मिग के चलते हो रहे मौसम परिवर्तन और वर्षा न होने के कारण  मानवता  की रक्षा के लिए वनों , नदियों  और प्राकृतिक जल स्त्रोतों को बचाना हमारी पहली प्राथमिकता क्योकि‌ यह रहेगा तो हम सब रहेंगें।
             धन्यवाद 
                  - डा. अनिल कुमार भतपहरी 
                          ( 9617777514 )
                               सचिव 
          छत्तीसगढ़  राजभाषा आयोग रायपुर 

Thursday, March 21, 2024

हंसा उबर जाही ( पंथी गीत )

#anilbhattcg 

आज विश्व कविता दिवस है पर कल रात्रि जेहन में पंथी  गीत धुन के साथ कौंधनें लगा  और वही  गूंज रहा है । अभी-अभी वाल पर लिखाया तब जाकर मन को सुकून मिला ...
     ।‌।हंसा उबर जाही ।।

सतनामी घर जनम होही संतो 
त मोर भाग संवर जाही 
संतों मोर हंसा उबर जाही ...

जात -पात छूआछूत ल रहू सदा  दुरिहा 
छल कपट भरम भूत ल लेके का करिहा 
सतनाम सुमरन नित मुख भाखी 
हो संतों मोर भाग संवर जाही ...

सत अउ इमान के रसता  म  रेगिहंव 
भुखे ल भोजन दे पियासे ल पियाइहव 
दु:खी मनखे के सेवा म जीव तर जाही 
हो संतों मोर भाग संवर जाही ...

हिरदे सफा अउ मन राखो निश्छल 
खानी बानी सादा गाबो पंथी मंगल 
हंसा अम्मर लोक हबर जाही 
हो संतों मोर भाग संवर जाही ...

       - डा. अनिल भतपहरी 

21-3-2024  गुरुवार प्रात: 9-30 
    ऊर्जा पार्क रायपुर

Wednesday, March 20, 2024

मुक्ति के पट

विचार विन्यास 

       नववर्ष की प्रथम सप्ताह में ‌भोजनोपरांत गुनगुनी धूप में  जुगाली करते यह विचार अक्समात जे़हन में कौंधा कि नववर्ष की स्वर्णिम किरणें  कोरोना से  मुक्ति के पट खोल रहें हैं यह अभिनंदनीय हैं। पहले दिन से ही रोज नई -नई वैक्सीन और उनके माक ड्रील/  ट्रायल का खबर से समाचार गुलज़ार हो रहे हैं। नित नये सकरात्मक समाचार से आमजन में तो नही कह सकते पर अपने में आत्मविश्वास व आत्मबल भी तेजी से बढ़ने लगा है ।हालाँकि अन्नदाता  किसान आन्दोलित हैं ,उन्हे तारिख उपर तारिख मिल रहे हैं। किसान होने के कारण थोड़ी नैराश्य भाव है कि कब इनके दिन बहुरेन्गे ? क्योंकि आजादी के बाद बेचारे अब भी अपनी उत्पाद की कीमत लगाने या बेचने की स्वतंत्रता नहीं पा सके है।
       बहरहाल बात  एक विचार के जे़हन में कौधने से आरंभ हुआ और वह बात -चित में कही ओझल होने को तत्पर हैं। अनगिनत विचार आते हैं और युं ही चले जाते हैं। कुछ व्यक्त होते हैं कुछ अभिव्यक्त  ,कुछ दफ्न हो जाते हैं। कुछ तो मनो -मतिष्क को  मथते रहते हैं।
    यह विचार व्यक्त नहीं हो पा रहा है न दफ़्न ! अपितु मथे जा रहे हैं  कि अब कोरोना काल के बाद आर्थिक विकास की दर क्या होगी?  धर्म -अध्यात्म का क्या हाल- चाल रहेगा ?  इनके आड़ में दान दक्षिणा से  पलने वाले वर्ग का क्या होगा ?  हमारे करुणा के स्त्रोत तलाशने व उद्गारने वाले कवि  लेखक कलाकार  उनका सार्वजनिक प्रदर्शन तथा उनसे उनकी रोजी- रोजगार  कैसे पटरी पर आएन्गे? और तो और हमारी शिक्षा पर्यटन तीर्थ मेले का क्या होगा ?  सरकारी कर्मचारी तो अपने बिना महंगाई भत्ते इंक्रीमेंट व एरियर वाली  वेतन में जी खा रहे  है।पर नीजि जगत में मंदी के चलते रोजगार विहिन लोग और इन उद्योगों में खप रहे मजदूर जो अपने गांव चले चले वे कब लौटेन्गे ? लाकडाउन में थमे जन जीवन गतिमान कैसे होन्गे ?
       सच कहे यह वर्ष संताप का रहा  बीस वाकिय में मानवता के लिए विष सदृश्य हो गये थे। सही प्रबंधन और व्यवस्थाओं के चलते  हालाँकि उबरे पर लोमहर्षक मंजर रोगटे खडे होने वाला भी रहा । जातिय व धार्मिक उपद्रव भी छिटपुट रहा है। राजनैतिक उठा पटक और रस्साकशी अपेक्षाकृत कमतर रहा पर शह मात का गेम बदस्तूर चल ही रहा है। 
    आम जन जीवन ठहरा सा हैं और उनमें हलचल जारी हैं। बहुत कुछ नई धारणाओं का  विकास हुआ है। खान -पान, रहन -सहन में तेजी से  बदलाव आया और लोगों में लापरवाही या बेफिक्री कम हुई हैं।
   एक बात स्पष्टतः दृढ़ हुई कि जीना महत्वपूर्ण है कैसे जीए यह महत्वपूर्ण नहीं हैं। फलस्वरुप फैशन और दिखावे की जगह अब स्वस्थ जीवन शैली विकसित होने लगा है। सेहत की चिन्ता अब सर्वोपरि हो गये हैं। शिक्षा आन लाइन होकर व्यक्तिक हो गये । सरकारी नौकरियां ही अब प्रथम प्राथमिकता नहीं रहा न मेरिट बल्कि इल्म हुनर और स्वरोजगार व नीजि संस्थान की ओर आकर्षण बढने लगा है हालाँकि यह प्रक्रिया एक दशक से जारी है पर कोरोना काल ने इसे बहुत अच्छी तरह प्रतिस्थापित किया है। 
     रचनाधर्मी लोग बाहर नहीं तो अपने मोबाईल के माध्यम से कक्ष के भीतर और चलते फिरते धुमते सक्रिय हो गये हैं। मोबाईल इस दारुण समय में पथ प्रदर्शक की ही तरह नहीं अपितु अभिन्न मित्र की तरह लोगों के जीवन में स्थान बना लिए हैं। इनके द्वारा वे हर तरह से अपडेट हो रहे हैं। और सतर्क भी।
     विचारों का  विन्यास इसी तरह फैलती जाती हैं भले उनपर अमल हो न हो ।मानव मन विचारों के अजायबघर हैं जहाँ मूर्त -अमूर्त  विचार सागर की  लहरों के मानिंद उठते हैं। झझकोरते हैं अशांत उद्विग्न होकर  उद्वेलित  करते हैं तो यदा कदा  शांत धीर गंभीर भी करते हैं । संतुष्ट असंतुष्ट भाव भी विचार प्रवाह में किसी कश्ती के मानिंद हिचकोलें खाते हैं।
   बहरहाल जो विचार कौंधा वह यह है कि "  अच्छे दिन आएन्गे या युं ही संधर्ष चलता रहेगा । संधर्ष से हार -जीत  मिलती हैं। पर सभी जीत से सुख शांति समृद्धि  मिले यह नहीं कह सकते ।अशोक कलिंग जीत कर अशांत हो गये ! और शांति के लिए सत्य या  बुद्ध के मार्ग का अनुशरण किया। उसी तरह कोरोना को जीत कर क्या व्यक्ति  सुखी होन्गे? हमें ऐसा नहीं लगता हां संकट से राहत जरुर मिलेगी । शांति तो उन्हे  प्राकृतस्थ जीवन यापन करने या सत्य या बुद्ध के मार्ग का अनुशरण से ही संभाव्य हैं। दावा नहीं ।अत एव   यह यक्ष प्रश्न  अनुत्तरित बचा रहेगा। 
     कुछ बचा रहता हैं तभी चक्र चलता हैं।  यह समय चक्र ऐसा ही हैं। उत्थान- पतन ,हार -जीत और  पाना- खोना यह नियति हैं। यह स्वभाविक भी इसलिए निरंतर श्रमण अवस्था में गतिमान रहे हमारी यात्रा गुफा कंदरा से  सैंधव काल की भव्यतम जीवन स्तर से अब पांच सितारा लाईफ तक आ चुके हैं। मैट्रोपोलिश सिटिज़ में सेवन स्टार कल्चर डेवलप हो चुके हैं। अनंत भोग और उनके अनंत आनंद के  पारावर  छलक रहे हैं।  बावजूद एक अतृप्त मन व्याकूल क्यो और किसलिए  हैं? 
           बहिर्यात्रा और अन्तर्यात्रा भी जारी हैं अनगिनत पथिक चल रहे हैं। एक ऐसी मंजिल की ओर जहाँ कुछ भी नहीं हैं। शुन्य गगन बीच बासा हो जहाँ सतनाम प्रकाशा हो कह कर हमारे संतों गुरुओं ने मार्ग निर्दिष्ट किया पर सवाल यह है कि वे लोग भी वहाँ पहुँच सकें ? वे बताए चेताए इसलिये बड़े बुजुर्ग की तरह अपनत्व भाव लिए पूज्यनीय हैं। उन्हे मिथकीय पात्र न बनावें। ताकि उनकी अमृतवाणी सागर मंथन में अमृत की मानिंद सुर- असुर की  झप्पटे और महामोहिनी की नर्तन आदाओं वाली बंटवारे में कही छलक या गिर न जाय ... फिर जुटते रहना तलाशने !  संगमों  के इर्द-गिर्द उन्मत्त । 
        भीड़ मन को रंजित करता हैं । पर भीड़ संक्रमित करने के कारण अब जमवाड़ा को विसर्जित करने होन्गे क्योंकि मनोरंजन से अधिक महत्वपूर्ण जीवन हैं। जीवन के मनोरंजन हेतु  नये विकल्प तलाशने होन्गे  सार्वजनिक सभा जुलुश यात्रा आदि अब सुखद नहीं दुखद और संकटग्रस्त हैं। यह देर सबेर सबको समझना ही होगा। क्योंकि केवल एक कोरोना नहीं है इनके पीछे  उनके अनेक कुनबा हैं । अति सर्वत्र वर्ज्येत या मध्यम मार्ग ही संत का सच्चा मार्ग हैं। यही सतपंथ हैं। सस्टनेलेबल डेवलपमेंट  कहे या संतुलित विकास या जीयो और जीने दो कह ले। हमे वर्चस्व वादी मनोविकार पर प्रभावी नियंत्रण करना ही होना यही असली वैक्सीन है जो दुनियां को केवल  बचाएगी ही नहीं बल्कि और भी खूबसूरत करेगी। 
             हमारी छत्तीसगढ़ी में एक हाना है "एक से एक्काइ हो" एक्काइस मतलब इक्कीस मतलब "एक आगर एक कोरी" इसका अर्थ हैं बरकत/ उन्नति होना ।हमसबके जीवन में  आशा की न ई किरण लाए सबकी उन्नति हो इनके  लिए मंगलकारी  मंगलकामनाओं के साथ नव वर्ष इक्कीस की  मंगलमय बधाई ।
   जय जय ...वंदे भारत !

डॉ॰ अनिल भतपहरी 
9617777514

एक से अक्काईस

विचार विन्यास 

       नववर्ष की प्रथम सप्ताह में ‌भोजनोपरांत गुनगुनी धूप में  जुगाली करते यह विचार अक्समात जे़हन में कौंधा कि नववर्ष की स्वर्णिम किरणें  कोरोना से  मुक्ति के पट खोल रहें हैं यह अभिनंदनीय हैं। पहले दिन से ही रोज नई -नई वैक्सीन और उनके माक ड्रील/  ट्रायल का खबर से समाचार गुलज़ार हो रहे हैं। नित नये सकरात्मक समाचार से आमजन में तो नही कह सकते पर अपने में आत्मविश्वास व आत्मबल भी तेजी से बढ़ने लगा है ।हालाँकि अन्नदाता  किसान आन्दोलित हैं ,उन्हे तारिख उपर तारिख मिल रहे हैं। किसान होने के कारण थोड़ी नैराश्य भाव है कि कब इनके दिन बहुरेन्गे ? क्योंकि आजादी के बाद बेचारे अब भी अपनी उत्पाद की कीमत लगाने या बेचने की स्वतंत्रता नहीं पा सके है।
       बहरहाल बात  एक विचार के जे़हन में कौधने से आरंभ हुआ और वह बात -चित में कही ओझल होने को तत्पर हैं। अनगिनत विचार आते हैं और युं ही चले जाते हैं। कुछ व्यक्त होते हैं कुछ अभिव्यक्त  ,कुछ दफ्न हो जाते हैं। कुछ तो मनो -मतिष्क को  मथते रहते हैं।
    यह विचार व्यक्त नहीं हो पा रहा है न दफ़्न ! अपितु मथे जा रहे हैं  कि अब कोरोना काल के बाद आर्थिक विकास की दर क्या होगी?  धर्म -अध्यात्म का क्या हाल- चाल रहेगा ?  इनके आड़ में दान दक्षिणा से  पलने वाले वर्ग का क्या होगा ?  हमारे करुणा के स्त्रोत तलाशने व उद्गारने वाले कवि  लेखक कलाकार  उनका सार्वजनिक प्रदर्शन तथा उनसे उनकी रोजी- रोजगार  कैसे पटरी पर आएन्गे? और तो और हमारी शिक्षा पर्यटन तीर्थ मेले का क्या होगा ?  सरकारी कर्मचारी तो अपने बिना महंगाई भत्ते इंक्रीमेंट व एरियर वाली  वेतन में जी खा रहे  है।पर नीजि जगत में मंदी के चलते रोजगार विहिन लोग और इन उद्योगों में खप रहे मजदूर जो अपने गांव चले चले वे कब लौटेन्गे ? लाकडाउन में थमे जन जीवन गतिमान कैसे होन्गे ?
       सच कहे यह वर्ष संताप का रहा  बीस वाकिय में मानवता के लिए विष सदृश्य हो गये थे। सही प्रबंधन और व्यवस्थाओं के चलते  हालाँकि उबरे पर लोमहर्षक मंजर रोगटे खडे होने वाला भी रहा । जातिय व धार्मिक उपद्रव भी छिटपुट रहा है। राजनैतिक उठा पटक और रस्साकशी अपेक्षाकृत कमतर रहा पर शह मात का गेम बदस्तूर चल ही रहा है। 
    आम जन जीवन ठहरा सा हैं और उनमें हलचल जारी हैं। बहुत कुछ नई धारणाओं का  विकास हुआ है। खान -पान, रहन -सहन में तेजी से  बदलाव आया और लोगों में लापरवाही या बेफिक्री कम हुई हैं।
   एक बात स्पष्टतः दृढ़ हुई कि जीना महत्वपूर्ण है कैसे जीए यह महत्वपूर्ण नहीं हैं। फलस्वरुप फैशन और दिखावे की जगह अब स्वस्थ जीवन शैली विकसित होने लगा है। सेहत की चिन्ता अब सर्वोपरि हो गये हैं। शिक्षा आन लाइन होकर व्यक्तिक हो गये । सरकारी नौकरियां ही अब प्रथम प्राथमिकता नहीं रहा न मेरिट बल्कि इल्म हुनर और स्वरोजगार व नीजि संस्थान की ओर आकर्षण बढने लगा है हालाँकि यह प्रक्रिया एक दशक से जारी है पर कोरोना काल ने इसे बहुत अच्छी तरह प्रतिस्थापित किया है। 
     रचनाधर्मी लोग बाहर नहीं तो अपने मोबाईल के माध्यम से कक्ष के भीतर और चलते फिरते धुमते सक्रिय हो गये हैं। मोबाईल इस दारुण समय में पथ प्रदर्शक की ही तरह नहीं अपितु अभिन्न मित्र की तरह लोगों के जीवन में स्थान बना लिए हैं। इनके द्वारा वे हर तरह से अपडेट हो रहे हैं। और सतर्क भी।
     विचारों का  विन्यास इसी तरह फैलती जाती हैं भले उनपर अमल हो न हो ।मानव मन विचारों के अजायबघर हैं जहाँ मूर्त -अमूर्त  विचार सागर की  लहरों के मानिंद उठते हैं। झझकोरते हैं अशांत उद्विग्न होकर  उद्वेलित  करते हैं तो यदा कदा  शांत धीर गंभीर भी करते हैं । संतुष्ट असंतुष्ट भाव भी विचार प्रवाह में किसी कश्ती के मानिंद हिचकोलें खाते हैं।
   बहरहाल जो विचार कौंधा वह यह है कि "  अच्छे दिन आएन्गे या युं ही संधर्ष चलता रहेगा । संधर्ष से हार -जीत  मिलती हैं। पर सभी जीत से सुख शांति समृद्धि  मिले यह नहीं कह सकते ।अशोक कलिंग जीत कर अशांत हो गये ! और शांति के लिए सत्य या  बुद्ध के मार्ग का अनुशरण किया। उसी तरह कोरोना को जीत कर क्या व्यक्ति  सुखी होन्गे? हमें ऐसा नहीं लगता हां संकट से राहत जरुर मिलेगी । शांति तो उन्हे  प्राकृतस्थ जीवन यापन करने या सत्य या बुद्ध के मार्ग का अनुशरण से ही संभाव्य हैं। दावा नहीं ।अत एव   यह यक्ष प्रश्न  अनुत्तरित बचा रहेगा। 
     कुछ बचा रहता हैं तभी चक्र चलता हैं।  यह समय चक्र ऐसा ही हैं। उत्थान- पतन ,हार -जीत और  पाना- खोना यह नियति हैं। यह स्वभाविक भी इसलिए निरंतर श्रमण अवस्था में गतिमान रहे हमारी यात्रा गुफा कंदरा से  सैंधव काल की भव्यतम जीवन स्तर से अब पांच सितारा लाईफ तक आ चुके हैं। मैट्रोपोलिश सिटिज़ में सेवन स्टार कल्चर डेवलप हो चुके हैं। अनंत भोग और उनके अनंत आनंद के  पारावर  छलक रहे हैं।  बावजूद एक अतृप्त मन व्याकूल क्यो और किसलिए  हैं? 
           बहिर्यात्रा और अन्तर्यात्रा भी जारी हैं अनगिनत पथिक चल रहे हैं। एक ऐसी मंजिल की ओर जहाँ कुछ भी नहीं हैं। शुन्य गगन बीच बासा हो जहाँ सतनाम प्रकाशा हो कह कर हमारे संतों गुरुओं ने मार्ग निर्दिष्ट किया पर सवाल यह है कि वे लोग भी वहाँ पहुँच सकें ? वे बताए चेताए इसलिये बड़े बुजुर्ग की तरह अपनत्व भाव लिए पूज्यनीय हैं। उन्हे मिथकीय पात्र न बनावें। ताकि उनकी अमृतवाणी सागर मंथन में अमृत की मानिंद सुर- असुर की  झप्पटे और महामोहिनी की नर्तन आदाओं वाली बंटवारे में कही छलक या गिर न जाय ... फिर जुटते रहना तलाशने !  संगमों  के इर्द-गिर्द उन्मत्त । 
        भीड़ मन को रंजित करता हैं । पर भीड़ संक्रमित करने के कारण अब जमवाड़ा को विसर्जित करने होन्गे क्योंकि मनोरंजन से अधिक महत्वपूर्ण जीवन हैं। जीवन के मनोरंजन हेतु  नये विकल्प तलाशने होन्गे  सार्वजनिक सभा जुलुश यात्रा आदि अब सुखद नहीं दुखद और संकटग्रस्त हैं। यह देर सबेर सबको समझना ही होगा। क्योंकि केवल एक कोरोना नहीं है इनके पीछे  उनके अनेक कुनबा हैं । अति सर्वत्र वर्ज्येत या मध्यम मार्ग ही संत का सच्चा मार्ग हैं। यही सतपंथ हैं। सस्टनेलेबल डेवलपमेंट  कहे या संतुलित विकास या जीयो और जीने दो कह ले। हमे वर्चस्व वादी मनोविकार पर प्रभावी नियंत्रण करना ही होना यही असली वैक्सीन है जो दुनियां को केवल  बचाएगी ही नहीं बल्कि और भी खूबसूरत करेगी। 
             हमारी छत्तीसगढ़ी में एक हाना है "एक से एक्काइ हो" एक्काइस मतलब इक्कीस मतलब "एक आगर एक कोरी" इसका अर्थ हैं बरकत/ उन्नति होना ।हमसबके जीवन में  आशा की न ई किरण लाए सबकी उन्नति हो इनके  लिए मंगलकारी  मंगलकामनाओं के साथ नव वर्ष इक्कीस की  मंगलमय बधाई ।
   जय जय ...वंदे भारत !

डॉ॰ अनिल भतपहरी 
9617777514

Tuesday, March 19, 2024

शक्ति m।।। m । ।।

#anilbhattcg 

।।शक्ति ।।

शक्ति  पाने  की  युक्ति 
चल  रही हैं  नूरा कुश्ति 

जिनसें  मिलती  हैं शक्ति 
उनमें ही व्याप्त हैं अशक्ति 

पाकर देखो jहोतें वे मदमस्त 
फिर स nkभी को ब nदेते शिकस्त 
 H
दाताओं को  ही कर के अशक्तn  n।m
बन गया याचक/प्रबंधक सशक्त
में। 
यहj   uकैसी हैं उनकी   प्रवृत्ति 
हर त nरफ फैली आसुरी शक्ति 

कैसे पाए  हम  इनसे  मुक्ति 
कोई तो सुझा ए प्रभावी युक्ति
  U
हे , जीबी 
   N h nuu।  Nमां  भारती  इन्हे दें कुछ सद्बुद्धि 
समता न्याय मिले कटे कुलुप कुप्रवृत्ति 
हु hu
स्थापित हो सौहार्द्र करे देश प्रगति 
अनुपमेय राष्ट्र  में हो समृद्धि व शांति यूज

  - डा. 7अनिल भतपहरी / 9617777514
      रयपुर छत्तीसगढ़ भारत

19-3-24 मंगलवार प्रात : 10। -30 बजे h?