Saturday, April 10, 2021

सुरता डाॅ. नरेन्द्र देव वर्मा

#anilbtapahari
 सुरता 
          मोला गुरु बनई लेते / सुबह की तलाश 

        डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा

बड़ अजब संजोग हो जथे या जेहन मं रहे, बात हर कब क इसे उपला जथे? कहे नी जा सकय !
     बात  कोसरंगी हाई स्कूल में पढ़त घानी ८४-८५  के  आसपास कर आय २६ जनवरी के उपलक्ष्य मं दो दिन स्कूल मं उत्सव होवय बाबु जी के नवरंग नाट्यकला के बैनर मं हमन आनी -बानी के नाटक खेलन ...   मोला गुरु बनई लेते नाटक मं चेला के रोल करत रहेंव। बाद में गुरु ल कहिथंव चेला बनाय बर तोला उसरय नहीं अउ बड़ कठिन काम ये त मोला गुरु बना लेते ... ओला अइसे कहना रहिस कि पब्लिक ल हांसी आना रहिस १० वीं  पढ़त लयकुशहा म ओ फिलिंग आत न ई रहिस ... बाबु जी हर एक्टिंग के संगे संग डायलाग बोले तरिका अउ ऐसे शब्द ल उच्चारित करय कि रिहर्सल मं जतका रहेन अउ जगुरुजी  मन ब इठे सुनय त हर बेर  कठ्ठल  जय । गणित वाला  गुप्ता सर डरावन काबर ओला कभु हांसत न इ देखे रहेन ... ओ रिहर्सल देखे आय रहिस  भारी जुवर ले सुरता कर के हांसय । नाटक तो ज इसे त इसे खेलेन फेर ओकर डर सिरागय। अउ बाबु जी जोन सबकुछ ल इका मन संग मिलके लइका होके सिखावय तभो ले  ओकर डर हर बाढ़गे ।
    भारी अनुशासन प्रिय अउ सम्मानीय  प्रचार्य /शिक्षक रहिन । विद्यार्थी शिक्षक अउ गांव के पंच सरपंच सबो मान देवय ।
      १९८७ में  दुर्गा महाविद्यालय रायपुर में पढ़त, श्री राम पुस्तक प्रतिष्ठान सत्ती बाजार ले कापी अउ आधा कीमत में सेकेन्ड हेंड किताब लेवन । ओकर संचालक सियनहा बबा संग बनेच घुलमिल गे रहेन । साहित्य के प्रति अनुराग अउ कालेज मे हिन्दी साहित्य पढथे जान के  एक दिन बता- चिता मं बताइस कि छत्तीसगढ़ कालेज में ओकर सुपुत्र डाॅ नरेन्द्र देव वर्मा हिन्दी के प्रोफेसर रहिन ... ओकर लिखे  उपन्यास "सुबह की तलाश " के एक प्रति देवत कहिस येला आधा कीमत म लेजा पढबे । मय ओ  किताब ल पढेव त पढिते रहिंगेंव ... रायपुर के मुरमी भाठा खारुन नंदिया  अउ सरोना तरिया के महादेव  के बड़ सुघ्घर वर्णन... हमन ओती इतवार के किंदरे जान किताब मं वर्णित दृश्य डग डग ले दिखय ... पहली बेर किताब मं अपन आसपास संउहात बरबन पढ़के मन अघा गय ... सोचेव असनेच महु लिखहू। "कब होही बिहान"  जइसे शब्द   घेरी बेरी मन मथय ... बाद मं मोर ए शीर्षक के किताब छपिस ... आदरणीय केयुर भूषण हर ये शीर्षक के उछाहित होके अपन मन के सम्मति लिखिस अउ आद रामेश्वर वैष्णव जी ह वैभव प्रकाशन मं सुधीर भैया संग बैठ के फरमाइश करके दो चार कविता सस्वर सुनिस अउ शबासी दिस ... कब होही बिहान में लगथे "सुबह की तलाश"  की  ध्वनि अनुगुंजित हो रहे हो।
 ओ संग्रह ल बहुत सेहराय गिस ३-४ जगा समीक्षा छपिस सुधा दीदी ह "मन में गुथाय मोती कस गीत " कहिके साहित्याकाश में  कहां से कहां पहुंचा दिस अइसे मोला लगे धरिस ... मय बड़ भागमानी हव ये सेहरौनिक ज्ञानी गुणी मन सो मिलिस हिरदय से आभार ...ले देख बात कहां ले कहां फलंगे ...
     मय धनीराम बबा जी कना जाके कहेव सुबह की तलाश  बहुत सुन्दर उपन्यास हे त ओ बताइस ओहर बढिया नाटक तको लिखय बहुचर्चित नाटक "मोला गुरु बनई लेते "  नाम सुने है ?
   मय दंग रहिगेंव ... सच कहे त ये नाटक के चेला पात्र मय  बचपन में स्कूली जीवन में करे रहेव फेर हमन ओकर रचयिता ल जानत न इ रहेन न जाने के कोशिश करे रहेन ।  अरपा पैरी गीत के रचनाकार भी हरय ... अब तो ओकर स्मारिका निकले रहिस जेमा डॉ नरेन्द्र देव वर्मा के जीवन वृत्त अउ रचना कर्म ल संजोय रहिस ... श्री राम पुस्तकालय से ही पढे के मौका मिलिस अउ बहुत कुछ जानबा होईस।
     मोला गुरु ब नइ लेते ल पिता जी हर अइसे टच दे रहिस कि बिल्कुल गम्मत लगय  अउ अपन डहन ले तको संवाद जोड़ लेत रहेन  ज इसे  बिस अमृत, परीक्षा बुद्धुराम जइसे पारंपरिक प्रहसन मन मे   करन।
    
(बडे नाटक म चांदी के पहाड़, एक मुठा माटी के असर इया  , संगत राह के फूल जइसे बाबु के लिखे नाटक अउ चरनदास चोर के मंचन करन  जेमा ५-६ गीत रहय । हमर नवरंग नाट्यकला  मंच हर दरभंगा बिहार के  पैटर्न या प्रेरित १९७५- १९९३ तक चलिस अउ अबड़ मजा करेन । )
      त डाॅ नरेन्द्र वर्मा के अबड सुरता करय धनीराम बबा हर ओकर एक बेटा विवेकानन्द  आश्रम में रहय स्वामी आत्मानंद जेकर दरस अउ कभु कभु दुआ सलाम हो जय काबर हमन पेपर पत्रिका पढे अक्सर आश्रम जावन ... एक दू बेर  मंदिर में रामकृष्ण के प्रतीमा के आधु बुद्ध पुरुष समझ ध्यान तको करे के परयास करन ... खासकर मंदिर गुलाब जल अउ संगमरमर के ठंडाई तरपौरी में ले ये के सौक से जावन .. त स्वामी जी के दरस हो जय।
            सुबह की तलाश मोला गुरु बनइ लेते  अउ राज गीत अरपा पैरी के धार सब क्लासिक रचना होगे हवय।
   उकर छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के इतिहास अउ काल विभाजन जैसे अद्वितीय कार्य हर  रामचंद्र शुक्ल के " हिन्दी साहित्य का  इतिहास "  के बरोबर हवय ।
         अइसे स्वनाम धन्य वर्मा जी हर कम समय में भारतेन्दु सरीख हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ल समरिद्ध करिन ओकर  सेती उन सदैव ज्वाजल्यमान नक्षत्र सरीख छत्तीसगढ़ी साहित्याकाश मं जगमगात रही हमन सही पथिक मन ल दिशा बोध करात रही।
आज जयंती मं उन ल परनाम हे ।
      जय छत्तीसगढ़ 

डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

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