बहके इंसान हुआ
ख़त खुला छोड़ना आसान हुआ
गुलज़ार था गाँव जो श्मशान हुआ
फ़ैला फ़साद दोस्त इसी के वास्ते
तार-तार यहाँ उनकें सम्मान हुआ
लख्त-ए-ज़िगर बिरादरी का शान था
प्रेम क्या की सबका अपमान हुआ
जात-पात,ऊँच-नीच ये फ़िरकापरस्त
सूफ़ी संगत में बहकें हुए इंसान हुआ
ढ़क लो उसे साफ़ कोई न पढ़ सके
ये आयतें अब न खुला आसमान हुआ
-डाॅ.अनिल भतपहरी
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