#anilbhatpahari
वक्त निकाल कर पढें व प्रतिक्रिया दें-
खाली दिमाग...( शैतान घर )
मोबाईल है तो भले आदमी जो हो जाय पर खाली न होने से, शैतान हो ही नहीं सकते !अत: अब यह पारंपरिक मुहावरें तेजी से अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। किसी से पूछ लो खाली हो क्या ? तो बोलेन्गे मरने तक का समय नहीं है। तो मित्रों ऐसे बखत इस महादेश में आ गये हैं। पता नहीं बिना काम सब व्यस्त क्यों हैं? ऐसा लगता है कि कुछ चीज पाने की चाह नहीं हैं बस डेटा और बैट्री चाहिए। जैसे गृहत्यागी साधुओं को चीलम और गांजे के सिवा सब तुच्छ और नश्वर नज़र आते हैं।
सच कहे गांवों में हरियाणा -पंजाब से ट्रेक्टर- हार्वेस्टर नहीं आएन्गे ,तो बिना बनिहार धान खेत में नष्ट हो झड़ -सड़ जाएन्गे ! मजदूर ही नहीं है मानो सभी मंडल -गौटिया हो गये हैं। अधिकतर शहरों के चौड़ी मजदूर या बिल्डरों के यहाँ दहाड़ी कुली -कबाड़ी हो गये हैं। कोई -कोई सीखकर मिस्त्री बन गये तो बाकी रेजा- कुली करके शाम को पौव्वा -अधपौव्वा पी मजे कर रहे हैं।
नई पीढ़ी मोबाईल कुपोषित अस्थिबाधाग्रसित और तंत्रिकातंत्र व्याधिक हो रहे हैं। मनोरोग व नेत्ररोग तो इनके सहचरी हैं बावजूद दो दो सिम और अनलिमीटेड रिचार्ज लोगो के लिए कम पड़ रहे हैं। पूरा युथ वर्ल्ड राइट -रांग चलते -चलते बीच में ही ठिठका हुआ पोर्नोग्राफी में अटके- भटके हुए लगते हैं। या यूं समझे कि यौवनिक मजे़ में आकंठ डूबे हुए हैं। सबसे अधिक व्यापार शौक खासकर फैशन, कास्मेटिक और मोबाईल का ही हैं। गोया यही जिन्दगी हैं। कपड़े ऐसे फटे -सटे पहने मिलेन्गे कि कोई बलात् संगत से भगते- भगाते लूटते -पिटते ,फटते -सटते व बचे -खुचे आए हुए हैं।
बहरहाल पूरे एक सप्ताह बाद आवश्यक कार्यवश आज ऑफिस आना हुआ पर सर्वर डाऊन होने से काम- काज हो नहीं पा रहे हैं। मेन्यूअल होना नहीं और आन लाइन काम सर्वर न होने से ठप्प हैं। चंद दो- चार लोगों को छोड़कर पूरा परिसर में भूतिया सन्नाटा छाया हुआ हैं। हमीं दो -चार सरकटा भूत टाईप लिंक के प्रतीक्षा में बैठे हैं।
अत: यूं ही पेन निकाल दिल दिमाग दूरस्थ करने सोचे कि कहीं हम बैकवर्ड न कहे जाय मार्डन लेखन हेतु मोबाईल की की बोर्ड में ऊंगली फेरने लगे। भला कागज पेन में भी लिखें जाते आजकल जैसे कोई मयुर पंख और भोजपत्र में नहीं लिखता । समय सब तकनीक बदल देते हैं।
बहरहाल पेन डायरी थैले रखकर भी पेपर लेस ठप्पा टाईप क्यु में एम. फिल. पीएच-डी. डिग्रियाँ के बाद भी आजकल अपना वही पुरातन अंगुठे काम आ रहे हैं। चाहे मोबाईल चलाओं लेपटाप या आफिस में सिस्टम चलाओ । अंगुठा छाप होना अब गालियां नहीं बल्कि शान हो गया है। जो पाकेट में पेन रखे वह जरुर अब नालायक लगने लगा है। वैसे भी अब शर्ट पाकेट लेस बन रहे हैं क्योंकि मोबाईल की रेडियेशन हार्ट डेमडज करने लगे हैं। तो जब पाकेट नहीं तब पेन कहाँ रखे भला ?
तो भैय्ये !बात यह कि अब कैसे वक्त जाया करे ? कोई ग्रुप -श्रुप तो है कि समाज देश सुधार हेतु लफ्फाजियां करे या खाये -पीये लोगों जैसे जुगाली करे या माफ किजिए अधिकतर महिलाओं और कमतर पुरुषों जैसे चुगली करे। कोई मित्ता- सित्ता भी नहीं आटसाप -वाटसाप खेले या टिकटाक - लुडो पब्जी खेले ।
या फिर खोजी पत्रकारिता सरीख इधर -ऊधर की गंध सुंधते फिरे । इसलिये अपने ही वाट्साप में कुछ लिखने लगा क्योंकि लिखने से सोच और परिश्रम दोनो साथ- साथ चलते हैं और वक्त यूं निकल जाते हैं। खाली समय में व्यर्थ चिंता भय से बोनस स्वरुप अलग मुक्त रहते हैं। और न ही बुरे ख्याल या व्यसन की तलब जगते हैं। हां भई अब इसे ही व्यसन बना लिए समझो पर यह अलग बात है ।कुछ लिखकर यश -अपयश तक कमा लेते हैं,तो कुछ युं ही जमींदोंज हो जाते हैं। मज़ा और सजा इन दोनो अवस्था में हैं इसलिए कम से कम जो जान रहे हैं वही खाली समय में करना चाहिए। हमारे छत्तीसगढ़ में ज्ञानी- गुनी पेड़ के नीचे या चौरा पर बैठ कथा कहनी ,गीत भजन में रम जाते थे, तो वही कही ढ़ेरा लेकर रस्सी आटने कुछ लोग आ जाते थे।यह अड्डा बैठागुरों का रहा हैं। सच कहे तो इनके अनुभव आदमी को बेहतर करने में अपूर्व सहयोग करते आ रहे हैं। भले वह महत्वपूर्ण कार्य हो न हो ! प्रत्यक्ष लाभ मिले न मिले! पूंजीवादी व्यवस्था में यह वेस्ट हैं, जो केवल डस्टबीन के लायक हैं। अब इस तरह के बहुत तेजी से अपनी शाश्वत मूल्यों को खारिज करती हुई शीध्रता से पांव पसारते सुरसा को कैसे नियंत्रित करें? यह भी यक्ष प्रश्न हैं लोकतंत्र को प्रभावित कर सीधे सत्ता में हस्तक्षेप के कारण सक्षम नेतृत्व भी किंमकर्तव्यविमूंढम होते जा रहे हैं। जबकि सच तो यह है कि कोरोना के कारण देश लाकडाउन हैं । महत्वपूर्ण केन्द्रीय कार्यालय और राजकीय कार्यालय खुले हुए हैं। इस महामारी से पूरा तंत्र सहित आम जन भी बराबर संधर्षरत हैं।ऐसे में अति आवश्यक सेवाओं सहित महत्वपूर्ण शासकीय दायित्वों का निर्वहन जारी हैं। हमारे सरकारी अधिकारी - कर्मचारी चिकित्सीय अमले नगरी प्रशासन ,सफाई कर्मचारी सहित पुलिस प्रशासन प्रभावी व्यवस्था बनाने में सक्रिय हैं। पुरे परिदृश्य से गैर सरकारी महकमे व निजीकरण को बढावा देने वालें लोग गायब हैं। जबकि यही लोग सरकारी दफ्तर और कर्मचारियों को हिकारत या द्वेष भाव से देखते आ रहे थे। सरकारी ऑफिस,स्कूल और अस्पताल को केवल भ्रष्टाचार के अड्डे कह बदनाम करते नाक भौं सिकोड़ते ये मल्टीनेशनल कंपनी के रोबोट नुमा कामकाजी कान्वेटी युथ और प्रंबधक इस महामारी के परिदृश्य से गधे की सींग मानिंद गायब हैं।
हमारे देश में शासकीय तंत्र नार्थ साउथ ब्लाक न ई दिल्ली से लेकर महानदी इंद्रावती होते सुदूर गांव तक फैली हुई हैं। सचिव से लेकर कोटवार तक जांबाज योद्धा सदृश्य मोर्चे पर तैनात है फलस्वरुप यहां की हालात मूलभूत सुविधाएं अपेक्षाकृत न्युनतम होने के बावजूद विकसित व पूँजीवादी देश से इस समय फिलहाल बेहतर हैं।
आज हमे तेजी से बढ़ते यांत्रिक दैत्याकार पूँजीवाद नहीं चाहिए जो एक नट बोल्ट के घिस जाने या कमजोर हो जाने पर भरभरा कर कर ताश के पत्ते सरीख ढ़ह जाय । बल्कि हमें संतुलित विकास हेतु जैव विविधताओं को कायम रखते समृद्धशाली भारत गढ़ने होन्गे। जो कि हमारे वर्तमान संवैधानिक तंत्र से ही यह सब संभव हैं। अन्य के लिए भी यह मार्गदर्शक है। विश्व पृथ्वी दिवस पर हमें पृथ्वी की संरक्षण उसी तरह करना है। जैसे अट्ठारहवीं सदीं में औद्योगीकरण के पूर्व थे। अपनी विलासिता के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और भावी पीढ़ियों के लिए कुड़ा कर्कट प्रदूषण व बिमारी छोड़कर जाना नहीं हैं। जैसै कुंभ मेले के बाद स्थानीय नागरिकों के लिए दुर्गंध प्रदूषण और महामारी छोड़ दिए जाते हैं।
समय है अब नीजिकरण को रोक कर सरकारी व सहकारिता को बढ़ावा देने का।ताकि तेजी से देश में बढ़ रहे अमीरी -गरीबी के खाई को पाटा जा सके। जिससे सबका विकास सब तरफ विकास का नव प्रभात आ सकें।
कम को जादा समझना
-डा.अनिल भतपहरी/ 9617777514
9077 सत श्री ऊंजियार सदन अमलीडीह रायपुर
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