Thursday, April 8, 2021

तिरछट

कहानी - 3 

"तिरछट"  
          - डाॅअनिल भतपहरी  

  बइसाख के नहाकती अउ लगती जेठ जहर- महुरा खा लव फेर पथरा जुनवानी झन जाव।मार पलपला मं उसने कांदा सरीख उसना जाहूं उहा जायेब मं।काबर कि तरी पथरा उपर पथरा हवे पेपड़ा छवाय छानी के लक-लक ताप म मनसे कइसे गुजारा करथे ओला उही मन जानय।कइसे तुमन ल बकबकी छाय हे ? उँहचे सभा जुडत हे जाबोन कहत हव ! अपन गांव वाले मन दबकारत कहिस -" बैमार पारे बर  नेवता पठोत हवे  का अड़ताफ म अउ कोनो ठ उर न इ मिलिस‌? " 
   धजादास कहु कहे बर मुँह उलात रहिस कि फाकत फेर गौटिया बंबक गे -अरे भई ! सभा- सुसाटी जुड़ म नइ करके ,यहाँ तीपत भोभंरा म करे के काकर संउक चर्राय हवे...? 
   गौटिया आलमदास रखमखात बरवट के पाटा म धय उठत धय बइठत कहत हे।संदेसिया  धजादास कहिस- "गौटिया तोर कहना वाजिब हे ,फेर जोरइय्या मन जानही कि काबर ये कुबेरा म समाज ल जोरत हवे।"
अब खातुहा गाड़ी ल छाड़ सभा -सुसाटी म का कानहुन बधारेच जाबोन? गौटिया के दरोगा कह परिस।
   ओकरो ल फाकत गौटिया कथे -"अरे नेवता आय हे ,जाबोच फेर ओमन उहेंच काबर जोरत हे? "
  "हमर गाँव म काबर नही? अरे पल्टू ,धजा के संग तुमन  दु चार झन ल धर के जाव अउ कहव कि नंदिया ये पार पचरी के  जुड़हा अमइय्या  म सभा परही २ दिन के  पंगत- संगत  के खरचा अकेल्ला मय उचांहू ।"
रुवाप झाड़त  गौटिया कहे लगिस -"आती खानी सब्बो बजरहा गांव म कोतवाल मन सो हांका परवा देहु ।"
 अउ मेछा टेवत कहे लगिस ये दानी मंहु चुनई म खड़ होहु...देखत हंव महंत के महंती ल ...बड कान्हुन बघारत रहिथे।जनामना हमन के मुह म दुधफरा अरझे हे!  जम्मा कोन्दा ब उला हवे ! अउ उहीच ल गोठबात आथै! " एक सांस में कहिके गौटिया घर भीतरी चल दिस।  सकलाय जम्मा झन  अपन -अपन बुता मं लग गे।
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     महंत लीम चउरा मं बैठे सकलाय मनसे ल कहत हे -संत समाज जय सतनाम !जय जोहार !जय राम ! सालपुट दुकाल परत हे, कभु पनिया अकाल त कभु सुख्खा अकाल‌।बने बने कोनो साल नाहक गे त लुवई मं कटुआ कीरा सचर  जाथे । माहुल- फाफा ल बचो डरे, त बरहा- बेंदरा मन सो ल कइसे बचाबोन ? "
"महानदी म धमतरी तीर बड़का बांधा बनत हवे  सुने में आत हवय का सिरतोन आय ममा ? "फत्ते पुछिस। 
"हां जी भांजा सहीच आय ,बडे़- बडे़ नहर  निकलत हवे, ओमा बड़े- बड़े धनागर डोली मन ओकर  चपेटा म आत हवय ।ओखरो बर सरकार ल दरखास देय ल परही ।
साटीदार कहिस दर्रा खार कोती बहकवा दव गा काबर कि ओ चक मं ओन्हारी - सियारी तो होबेच न इ करय।
  रबि के ओल नइ होवय।"
    महंत कहिस -"बुधवार के तहसीलदार पटवारी साहेब मन सो गुहार करे रहेन।ओमन कथे कलेक्टर सो मिले रायपुर जाय ल परही !इही पाय के बैठका मढाय हन।
त गिधपुरी वाले मन झगरही करे ल धरलिस।ओ  गाँव के मनसे के मति मर गे हवय लगथे !"
 सही तो आय इलाहाबाद ले  ओ पारा के मन नेवत के   पंडा लान के पूजा पाठ बिठा दिन  ।  गांव के  मंझोत म चतुर्भुजी  मंदिर के कुची  देवादिन अउ  बेगारी कर के गांव भर ओकर  बर किल्ला कस  बाड़ा  बना दिन  ओकरे  बहकावा में आके सब तिड़ी-बिड़ी छरियागे। देखते -देखत किसान मन के खेत खार हड़प के मालगुजार लहुट गय  । ओकर एकंगु  नर- नियाय ओकर पोथी पत्रा के  सेती एकमई  गांव मं दु -दु ,तीन -तीन पांघर  परगे ।फिरका -सिरका होगे जात -पात ऊँच- नीच  तको मेड़र्रियागे  ,भलुक भक्कम  भोगागे।  तेकरे सेती  नवा सरकार आए ले  उहा शांति बेवस्था बर पुलिस गाठ बैठारे हे।असनेच रही त  एक न एक दिन पुलिस चौकी खुल जाही। तहन देखेव  सबके थाना कछेरी के चक्कर  अदालत पेशी म कतकोन ढाभा उरक जाथे धनहा बिला जाथे। अब भुगतना भुगते परही  महंत गुनत कहिथे "अइसे लगथे कि अपेच हाथ मं धांव करे बर हमन सधाय रहिथन ? "
    असो बीजबौनी तिहार अक्ती के  पहिलिच सबो के सुन्ता मढ़ाय ल परही, तेन पाय के अव इय्या सम्मार   मउंहारी भाठा म गस्ती रुख तरी ब इठका मढात हन। कइसे भंडारी बने रही कि नही? भंडारी हर अपन बाप के बात ल फांक  देथय फेर महंत  के ल कभु न नुकुर नई कहे सकय । काबर कि महंत ह  कभु न -नुकुर कहे के गोठ गुठियाबे नइ करय।
     ये दे सब झन ल का का करना हवे कतका झन सकलाही ? उकर भोजन -भजन ,सुतन -बसन के बेवस्था करे ल परही।‌ रतिहा जैतखाम तीर तीन तरिया निरगुन  भजन बर  पं रामचरण ल नरियर  दे डरे हवय। तेलासी वाले मन के तको हरमुनिया वाले मंगल भजन होही।उकर तुरही हुडका  अउ हरमुनिया के बनेच सोर उडत हे।कलकत्ता ल बिसा के लाने हवय... लोगन टूट परथे कसना बाजथे... अउ क इसे चिकारा ल सफा एक एक बोल हुबहू उछरथे..भजनहा बड़  झुलपहा हे उझल- उझल के ऐसे हरमुनिया बजाथे  कि बिचारा हुड़क वाले बोकबाय हो जाथे ।ताल -तुल ल मिलात बेमझा जाथे तेन पाय के उनमन एक झन लोहार तबलची राखे हवे। भजनहा हर त भागवत करथे लील्ला करथे अउ सुने म आय हे रहस बेडा तको उचोथे‌,ते पाय के ओहर फुरसुद नही रहे कहु न कहु खंधेच रथे।आजकल चौका पोते ल तको घर ले हवय कबिरहा अउ  नवगढिया मन के संगत मं
     उहीच पाय के नंदिया ये पार के मन  उन देवताहा कहे ल घरलिस । अउ उन ल पुछे पाछे बर छोडे लगिस।महंत ये पाय के उहु ल नेवते हबे कि सब ल सकेलव कोनो ल झन छोडव।उनमन कहिथे - "सब पखरी आय सरग निसेनी चढना हवे त सबके जरुरत परथे।अब कोनो नाचे -हंसाये ,लील्ला  ,भागवत ,रहस  रमैन करत मनसे ल जोरत तो हवे? दु: ख पीरा हरे के येमन मंत्र अउ जंत्र ये भले भगवान मिले त झन मिले मन मं सुख शांति अउ  आनंद तो हमाथे उहीच तो भगवान मिलई ये गा । "
फेर एक बात हवय कि ये सब लाधन भुखन न इ होय सकय। ते पाय के  सब ल सावचेत रहना हे कि कोनो तुहर बाना झन मारय ।अपन खरही तिजोरी ल सम्हारना हवे।जोन नकसान होही ओकर भरपाई पाना हे तभेच अपन लोग लइका मुँह म पेज -पसिया डार सकबोन !
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     हव मालिक एक लाघन दू फरिहार होथे। ओकर बाल- बच्चा मन के  मुँह मं बने जात के पेज- पसिया नइ परत हे।बिचारा बोधना तनातना लुलवात हवे, जवानी म बड खरतरिहा रहीस अपन बांह म बल राखे पाँच खाड़ी के जोतनदार रहीस ।उही मंत्री- महंतेच के समाजिक परवरतन के चक्कर आज ओकर लरिका लुलवात हे। इलाहाबदिया हर ओकर बर  चक्रबुह रचके  धंधवा दे रहिस सबो खेत  खार पेशी अदालत मं बिलागे अउ ओहर आजकल अलाली- दलाली करके गुजारा करत हे‌।
अच्छा बने बतायेच कुलकत आलमदास कहिस महंत के महंती ल यहीच झुकोही तय जा अउ बोधना ल परघा के लान ओला खंधोना जरुरी हे।
     अपन ढेकी कुरिया म आजकल बोधना नागर बाँधे के कारज करथे।नंदिया पार जंगल ले लकडी लानथे ओकर सो औने- पौने म ले के छोल -चाच के बेच -बाच गुजारा करथे। उमर के बीते म नजर कमजोर हो गय फेर गोठ तो अइ से खर बान मारे कस जियानथे ।नागर जुडा़ ल छोलत तिरछटहा कर डरथे।तेन पाय के उन ल गाव के मनसे मन तिरछट नाव धरे रहय।फेर ओला आजो ले गम नई हे। 
हव ग कौव्वा कौव्वा ल बलाथे मंजुर त न इ बलाय पुलघाट म नहावत धजादास कहत रहीस तिरछटहा मन सकलात हे।पचरी के गौटिया कम तिरछट न इये बावन राजा के कान काटे बैठे हवय। उहचों पंचैती जुरत हे उधोदास मन के भाग खुलगे गौटिया के बियारा चुल चढे हे । सिरतोन आय ररुहा सपनाय दारभात  कस मार कोहनी के आत ले  दमोर के  दुधफरा मालपुआ बरा सोहारी  के संगेसग बफौरी कढ़ी   दारभात खात मगन बोधना हर सब ल मंदहा कस उछर- बकर दिस। कइसे महंत के लोगन ल बिल्होरे जाय? बुदुक बताये धरलिस ।भले उन खान- पान म सादा हे फेर गरीबी अउ शोषण के कुचक्र म पापी पेट अउ मानगुन पुछ- परख  के सेती कहु  -कहु बेनियत हो जाथे‌।बचपनेच ल सभा सुसाटी वाले आय ।भले  जवानी के आत ले सामाजिक काम म सब चीज-बस ल फूक डरिस ।आज बुढत काल म लुलवात फिरत हे मान- गौन  खोजत हवे।कगरेस म मिलत मान ल मुरख सवर्ण:मन  के गोड़ के राख -धुर्रा समझ के समता सैनिक दल के सीटी मास्टर बनगे। आज ओ पारटी के कोनो धरकन नइये ।ये जब -तब जय भीम जय भीम करत लुठुर-लुठुर किंदरत रहीथे।परन दिन ओखर धर बराड़ी  बैला फंदाय घांघड़ा साजे सवारी गाड़ी आइस त लोग‌न म देखनी परगे कहां के आय काखर घर उतरे हे। बोधना ओ दिन धोवा के धोती पहिन कोसा के कुरता पहिन मार अदब म गाड़ी बइठिस  त लगथे जनामना मंत्री साहेब आय। शपथ ले बे उन भोपाल जात हवे । कभु कभु त दिल्ली भोपाल नागपुर ले कमती उन गुठियाय तक नही।ते पाय क ई झन उन ल लपरहा तको कहे धरलिस‌।
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लपर -लपर तो तही मारत हस महंत का हमन ल तय ओकवा- भोकवा  जोजवा समझत हस ? हमन कलेक्टर साहेब करा रायपुर ल मिलके आ गे हन पुछ ले बोधना ल।हम गोठियान नही बुता करके देखाथन‌।आलमदास हर गोठ म बेलाटी भौरा कस आलम झोकत कहिस। सकलाय मनसे मन तारी पिटे धर लिस जय कारा होय लगिस हमर नेता क इसा हो आलमदास जइसा हो । पुरा अड़ताफ म आलमदास के जयकारा होय धरलिस असो के चुन ई म आलमदास ल वोट देके मंत्री विघायक  बनाबोन ।महंत बिचारा हर कछु कहे न इ पाइस कहे धरिस ते बीच म ओकर गोठ ल तिरछटहा ‌ह फाक दिस-
 "भ इगे कका अब भाव भजन कर साहेब सुमर । इलहाबदिया के यज्ञ म संधर। "  
  
 सब झन मगन अउ बिधुन हे असो सम्मत रही  बिदेस ल बिग्यानिक आय हवे अउर महानदी म बैराज बनाय जाही। सहकारी खेती करे जाही ... जवाहिरलाल के हाथ ल मजबुत करव उनमन भिलाई म लोहा करखाना रसिया देस के सहयोग ले बनवात हवे‌।नवा तिरथ बनही! महानदी हर समुद्र असन  बनही । अउ गाँव - गाँव मं  खेत- खार मं महानदी खलबलात अवतरही ।
कलेचुप सुनत अउ मुडी हाथ धरे गुनत बुधेलाल कहिस सुनब म आत हे ४०-५० गाव उजरत हवे।ओमन कहा बसही दुसर जगा क इसे गुजारा करही खेती -खार घर- दुवार ,कोला -बारी ,गाय -गरु सब बिला जाही !मुवाजा रुपया झोकही त का ओतकेच म गुजारा नाहकही भला? अउ कभु जादा बरसगे मनसे के बनाय जिनिस ताय कहु फुट फाट गे त परलय आ जाही।छोटे छोटे बांध हर  १०-१२ गाव के मंझोत म नरवा मन ल बाध के  बनना चाही।एखर से सबके गुजारा होतिस। "
     "तही मंत्री बन जा बड आय हस ये होतिस ऐसे करतेन बोधना हर फांकत कहिस।सरकार जनता के भल ई चाहत हे ।देश सुतंतर होय हे अब धीरे -धीरे सबके भाग लहराही। "
   अरे का लहराही? अरे जोन राजा ,जमींदार  गौटिया रहीस  उंकर त रवती उखडत हे अउ यहाँ तरा परदेशिया मालगुजार बनत हे  अंत्री -मंत्री- संत्री बनत हे।
जेन मुँह तेन गोठ लीम चौरा म तरा तरा के गोठ चलत रहिथे।
  राज तो पढोइय्या मन के आय हवे । राज के बँटवारा पाहु त स्कुल खुलाव लरिका मन ल  पढाव- लिखाव ! हमर अम्बेडकर बबा के यही त बडका मंतर आय।
पुनु हर रटपटा के  खडे होके जयकारा लगाइस  अम्बेडकरबबा   के जै । त ओती गांधी बबा के जयकारा होय लगिस।   
  का के गोठ ल का कुती बेमझात हव जी ।हमला ये सोचना हे कि कइसे नहर म निकलत धनागर डोली मन ल बचाई ..महंत चुप करात कहे लगिस।
  फसल बीमा के कौनो बात निये बेफिकर किसानी करव ।अउ अपन सुघ्घर दिन  पहावव। सरकार हर जनता पोसही हमर नेतामन बिदेस ल चाउर -दार लानही।रुवाप झाडत आलमदास कहे लागिस ‌!अब बुढतकाल म महंत का गोठियाय? न वोला बोट से मतलब न नेतागिरी से।मतलब समाज के सुन्ता से हवे ।पद- परतिष्ठा पाये के सउक उन म कबहु नइ रहीस ,भलुक कतकोन झन ल अपने परतापे पद देवाय रहीस।  सक्कर बैमारी जनता के दु:ख- पीरा बर संसो कर कर के ये बैमारी उन ल संचरगे रहय‌।उ‌न मन कहिस -"भाई जोन अपन समझ अउ सख पुरतीन रहीस करेन ...अब नवा जमाना आत हे सोच समझ के सुन्ता  रहु ।हमन के का हे पाके डुमर तान कब टपक जाबोन ? कब साहेब के बलौव्वा आ जाही कहे नॊ जा सकय। शिक्षित  बनव संगठित होवव  अउ अपन हक सभीमान बर संघर्ष करव।पद पाके फुलव झन न परलोखिया मन के बात म आव। काबर ये समाज बड धोखा खाय समाज आय बाबा साहेब कहेच हे -" बड मुस्किल म  ये कारवां ल इहा तक लाय हन कोनो ये ल पाछु झन करहव । आघु नइ लेगे सकव ,त येला इही मेर छोड दव।"
  महंत गुनत  दु- चार झन संगवारी सहित अपन घर लहुट गय ।ओती बोधना हर दुमन आगर पंगत म अरसा परोसत हबे।उकरे घर तेलई  चढे रहिस। अब तो तिरहट मन के चलागन चलत हवय ।
    -डा अनिल भतपहरी 
सी -११ ऊंजियार- सदन सेंट जोसेफ टाउन अमलीडीह रायपुर छ ग 9617777514


 एक ठन हीरा    (कहानी संग्रह से )

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