Monday, April 26, 2021

एक साहित्यिक चिंतन

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एक साहित्यिक चिंतन 

बोली ,भाषा /साहित्य  किसी की बपौती  नहीं हर मानव समुदाय के बोली /भाषा और उनकी साहित्य आदि   प्राय: समृद्ध ही  होते हैं। वे उतने पर ही जीवन निर्वाह कर सकते हैं। हां सत्ता पद प्रतिष्ठा के लिए इनका उपयोग औपनिवेशीकरण जैसा होता रहा हैं।
 बहरहाल  यह लिपिबद्ध हो या न हो यह अलग बात हैं। 
 पर कथित लिपिबद्ध वाले  या कहें अधिक प्रचारित -प्रसारित वाले  यह दंभ पालते हुए  मुगालते में रहते हैं कि उनकी ही श्रेष्ठतम हैं !
   चलिए श्रेष्ठतम होते होन्गे तो उनकी सामान्य  परीक्षण कर ही ले -   क्या वे मानवीय आवश्यकताओ ,दु:ख -दर्द से रहित हैं या हो जाते हैं?  उनके अराध्य या मत ,पंथ धर्मादि उन्हें सशरीर मोक्ष या मुक्ति प्रदान करते हैं या देते आ रहे हैं।
         प्राय: साहित्य दर्शन आदि खाए- पीए अघाए लोगो के लिए महज जुगाली जैसा है। कला के लिए कला की होड़ में लौकिक तत्व के स्थान पर अलौकिक व अप्रतिम की चाह में मृग -मरीचिका हैं। या कहे ऊँचाई पर पहुँच लोग  आक्सीजन (प्राण ) रहित या गुरुत्वाकर्षण के कमी से ऊपर ही लटक जाया करते हैं। धरती ( प्रकृति व लोक तत्व ) से कटकर असह्य वेदना के दंश झेलते कटी पंतग सा हो कर रह जाते हैं।परन्तु  क्षुधित हैं उनके लिए तो सारा जंगल पड़ा हैं।एक अदद कौर अर्जित करने के लिए वह सक्रिय  और जींवत हैं। उनके समक्ष सारा आकाश हैं उनके सक्षम लौकिक चीजें ,जिसे वह रोज -रोज अर्जित कर मगन भी रहते हैं। 
    जुगाली वाले आत्ममुग्ध है,उनकी यह  अवस्था भी सोया हुआ सा ही है  ।प्रयास तो उन्हे भी जागृत करने का है। सोये हुए को जगाना आसान है परन्तु इन्हे जगा पाना बेहद कठिन  हैं। सच तो यह है कि  मदमस्त लोग जागते कहां हैं ? और वे लोग किसी को जगाने भी नहीं  देते हैं।
असल समस्या तो यह है जिनके हल तलाशना शेष हैं।

                - डॉ॰ अनिल भतपहरी / 961777514

पंचक 11

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पंचक पाँच पंक्ति के  11

नीछन दे चिक्कन नरियर के बुच असन‌
निचोरन दे निच्चट लिमउ  के रस असन
चीरन दे कलिंदर के फाती- फाती असन 
चुनन दे  कुटी- कुटी साग-भाजी  असन
जरोवन दे  बैरी करोना ल फोरन  असन

       -डॉ॰ अनिल भतपहरी / 9617777514

पंचक 10

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पंचक- 10

अर्जित सब क्षरित छाने लगी है शून्यता 
दंभ दलित विगलित अब आत्म मुग्धता
निस्सार उपलब्धियाँ  रद्द सारी  मान्यता 
ढ़हने  लगी चहुँ ओर ये बनावटी भव्यता 
सूक्ष्म वायरस के समक्ष ये कैसी विवशता

डॉ॰अनिल भतपहरी /9617777514

पंचक ९

#anilbhatpahari

पंचक - 9

जो है और ज़रुरी हैं उनकी  बातें नहीं करेगें
जैसे हवा पानी धूप  संरक्षण  कर क्या करेगें 
छद्म छवि के वास्ते चलिए घर फूकियां बनेगें 
हम सुधरे न सुधरे पर  जग को सुधारने चलेंगें  
चाह दीया बनने की पर अपने तले अंधेरा रखेंगें

           -डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Friday, April 23, 2021

खाली दिमाग शैतान घर

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 वक्त निकाल कर पढें व प्रतिक्रिया दें- 

खाली दिमाग...( शैतान घर )

       मोबाईल है तो भले आदमी जो हो जाय पर खाली न होने से, शैतान हो ही नहीं सकते !अत: अब यह पारंपरिक मुहावरें तेजी से अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। किसी से पूछ लो खाली हो क्या ? तो बोलेन्गे मरने तक का समय नहीं है। तो मित्रों  ऐसे  बखत इस महादेश में  आ गये हैं। पता नहीं बिना काम सब व्यस्त क्यों हैं? ऐसा लगता है कि कुछ चीज पाने की चाह  नहीं हैं  बस डेटा और बैट्री चाहिए।  जैसे  गृहत्यागी  साधुओं को‌ चीलम और गांजे के सिवा सब तुच्छ और नश्वर नज़र आते हैं। 
     सच कहे  गांवों में हरियाणा -पंजाब से  ट्रेक्टर- हार्वेस्टर नहीं आएन्गे ,तो बिना बनिहार धान खेत में  नष्ट हो झड़ -सड़ जाएन्गे ! मजदूर ही नहीं है मानो सभी मंडल -गौटिया हो गये हैं। अधिकतर शहरों के चौड़ी मजदूर या बिल्डरों के यहाँ दहाड़ी कुली -कबाड़ी हो गये हैं। कोई -कोई सीखकर मिस्त्री बन गये तो बाकी रेजा- कुली करके शाम को पौव्वा -अधपौव्वा पी  मजे कर रहे हैं।
    नई पीढ़ी मोबाईल कुपोषित अस्थिबाधाग्रसित और तंत्रिकातंत्र व्याधिक हो रहे हैं। मनोरोग व नेत्ररोग तो इनके सहचरी हैं बावजूद दो दो सिम और अनलिमीटेड रिचार्ज लोगो के लिए कम पड़ रहे हैं। पूरा युथ वर्ल्ड  राइट -रांग चलते -चलते बीच में ही ठिठका हुआ  पोर्नोग्राफी में अटके- भटके हुए लगते हैं। या यूं समझे कि‌ यौवनिक मजे़ में आकंठ डूबे हुए हैं।  सबसे अधिक व्यापार शौक  खासकर फैशन, कास्मेटिक और मोबाईल का ही हैं। गोया यही जिन्दगी हैं। कपड़े ऐसे फटे -सटे पहने मिलेन्गे कि कोई बलात् संगत से भगते- भगाते लूटते -पिटते ,फटते -सटते व बचे -खुचे आए हुए हैं।

  बहरहाल पूरे एक सप्ताह बाद आवश्यक कार्यवश आज ऑफिस आना हुआ पर सर्वर डाऊन होने से काम- काज हो नहीं पा रहे हैं। मेन्यूअल होना नहीं और आन लाइन काम  सर्वर न होने से ठप्प हैं।  चंद दो- चार लोगों को छोड़कर पूरा परिसर में भूतिया सन्नाटा छाया हुआ हैं। हमीं दो -चार सरकटा भूत टाईप लिंक के प्रतीक्षा में बैठे हैं। 
             अत: यूं ही  पेन  निकाल दिल दिमाग दूरस्थ करने सोचे कि कहीं हम  बैकवर्ड न कहे जाय मार्डन लेखन हेतु मोबाईल की की बोर्ड में ऊंगली फेरने लगे। भला कागज पेन में भी लिखें जाते आजकल जैसे कोई मयुर पंख और भोजपत्र में नहीं लिखता । समय सब तकनीक बदल देते हैं। 
        बहरहाल पेन डायरी थैले रखकर भी पेपर लेस ठप्पा टाईप क्यु में एम. फिल. पीएच-डी. डिग्रियाँ के बाद भी आजकल अपना वही पुरातन अंगुठे काम आ रहे हैं। चाहे मोबाईल चलाओं लेपटाप या आफिस में सिस्टम चलाओ । अंगुठा  छाप होना अब गालियां नहीं बल्कि शान हो गया है। जो पाकेट में  पेन रखे वह जरुर  अब नालायक लगने लगा है। वैसे भी अब  शर्ट पाकेट लेस बन रहे हैं क्योंकि मोबाईल की रेडियेशन हार्ट  डेमडज करने लगे हैं। तो जब पाकेट नहीं तब पेन कहाँ रखे भला ?
 
  तो भैय्ये !बात यह कि अब कैसे वक्त जाया करे ? कोई ग्रुप -श्रुप  तो है कि समाज देश सुधार हेतु लफ्फाजियां करे या खाये -पीये लोगों जैसे जुगाली करे या माफ किजिए अधिकतर  महिलाओं और कमतर पुरुषों जैसे चुगली करे। कोई मित्ता- सित्ता भी नहीं  आटसाप -वाटसाप खेले या टिकटाक - लुडो पब्जी खेले । 
या फिर खोजी पत्रकारिता सरीख इधर -ऊधर की गंध सुंधते फिरे । इसलिये अपने ही वाट्साप में कुछ लिखने लगा क्योंकि लिखने से सोच और परिश्रम दोनो साथ- साथ चलते हैं और वक्त यूं निकल जाते हैं। खाली समय में व्यर्थ चिंता भय से बोनस स्वरुप अलग मुक्त रहते हैं। और न ही बुरे ख्याल या व्यसन की तलब जगते हैं। हां भई अब इसे ही व्यसन बना लिए समझो पर यह अलग बात है ।कुछ लिखकर यश -अपयश तक कमा लेते हैं,तो कुछ युं ही जमींदोंज हो जाते हैं।  मज़ा और सजा इन दोनो अवस्था में हैं इसलिए कम से कम जो‌ जान रहे हैं  वही खाली समय में करना चाहिए। हमारे छत्तीसगढ़ में ज्ञानी- गुनी पेड़  के नीचे या चौरा पर बैठ कथा कहनी ,गीत भजन में रम जाते थे, तो वही कही ढ़ेरा लेकर रस्सी आटने  कुछ लोग आ जाते थे।यह अड्डा बैठागुरों का रहा हैं। सच कहे तो इनके  अनुभव आदमी को  बेहतर करने में अपूर्व सहयोग करते आ रहे हैं। भले वह महत्वपूर्ण कार्य हो न हो ! प्रत्यक्ष लाभ मिले न मिले! पूंजीवादी व्यवस्था में यह वेस्ट हैं, जो केवल डस्टबीन के लायक हैं। अब इस तरह के बहुत तेजी से अपनी शाश्वत मूल्यों को खारिज करती हुई शीध्रता से पांव पसारते सुरसा को कैसे नियंत्रित करें? यह भी यक्ष प्रश्न हैं लोकतंत्र को  प्रभावित कर सीधे  सत्ता में हस्तक्षेप के कारण सक्षम नेतृत्व भी किंमकर्तव्यविमूंढम होते जा रहे हैं। जबकि सच तो यह है कि कोरोना के कारण  देश लाकडाउन हैं । महत्वपूर्ण केन्द्रीय कार्यालय और राजकीय कार्यालय खुले हुए हैं। इस महामारी से पूरा तंत्र सहित आम‌ जन भी बराबर संधर्षरत हैं।ऐसे में अति आवश्यक सेवाओं सहित महत्वपूर्ण शासकीय दायित्वों का निर्वहन जारी हैं। हमारे सरकारी अधिकारी - कर्मचारी चिकित्सीय अमले नगरी प्रशासन ,सफाई कर्मचारी सहित पुलिस प्रशासन प्रभावी व्यवस्था बनाने में सक्रिय हैं। पुरे परिदृश्य से गैर सरकारी महकमे व निजीकरण को बढावा देने वालें लोग गायब हैं। जबकि यही लोग सरकारी दफ्तर और कर्मचारियों को हिकारत या द्वेष भाव से देखते आ रहे थे। सरकारी ऑफिस,स्कूल और अस्पताल को केवल भ्रष्टाचार के अड्डे कह बदनाम करते नाक भौं सिकोड़ते ये मल्टीनेशनल कंपनी के रोबोट नुमा कामकाजी  कान्वेटी युथ और प्रंबधक इस महामारी के परिदृश्य से गधे की सींग मानिंद गायब हैं। 
         हमारे देश में शासकीय तंत्र नार्थ साउथ ब्लाक न ई दिल्ली से लेकर महानदी इंद्रावती होते    सुदूर गांव तक फैली हुई हैं।  सचिव से लेकर  कोटवार तक जांबाज योद्धा सदृश्य मोर्चे पर तैनात है फलस्वरुप  यहां की हालात मूलभूत सुविधाएं अपेक्षाकृत न्युनतम होने के बावजूद विकसित व पूँजीवादी देश से इस समय फिलहाल बेहतर हैं।
               आज हमे तेजी से बढ़ते यांत्रिक  दैत्याकार पूँजीवाद नहीं चाहिए जो एक नट बोल्ट के घिस जाने या कमजोर हो जाने पर भरभरा कर  कर ताश के पत्ते सरीख ढ़ह जाय । बल्कि हमें संतुलित विकास हेतु जैव विविधताओं को कायम रखते समृद्धशाली भारत गढ़ने होन्गे। जो कि हमारे वर्तमान संवैधानिक तंत्र से ही यह सब संभव हैं।  अन्य के लिए भी यह मार्गदर्शक है।  विश्व पृथ्वी दिवस पर हमें पृथ्वी की  संरक्षण उसी तरह करना है। जैसे अट्ठारहवीं सदीं में औद्योगीकरण के पूर्व थे। अपनी विलासिता के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और भावी पीढ़ियों के लिए कुड़ा कर्कट प्रदूषण व बिमारी छोड़कर जाना नहीं हैं। जैसै कुंभ मेले के बाद स्थानीय नागरिकों के लिए  दुर्गंध प्रदूषण और महामारी  छोड़  दिए जाते हैं। 
    समय है अब नीजिकरण को रोक कर सरकारी व सहकारिता को बढ़ावा देने का।ताकि तेजी से देश में बढ़ रहे अमीरी -गरीबी के खाई को पाटा जा सके। जिससे सबका विकास सब तरफ विकास का नव प्रभात आ सकें।
                कम को जादा समझना 

       -डा.अनिल भतपहरी/ 9617777514
 9077 सत श्री ऊंजियार सदन अमलीडीह रायपुर

Thursday, April 22, 2021

पंचक - 8

पंचक - 8

ज़िल्लत 

कष्टमय कोरोना काल में  किल्लत चहुँ ओर हैं
मातम में मुनाफ़ाखोरी की फ़ितरत चहुँ ओर हैं
फैलाते संक्रमण कई चलत- फिरत चहुँ ओर हैं
तबाही का दौर ये कैसा  ज़िल्लत चहुँ ओर हैं
आए कैसे पटरी पें जिंदगीं विचरत चहुँ ओर हैं
               -डाॅ. अनिल भतपहरी

जिनगी के न इया

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पंचक 

जिनगी के नइयां  

भरे झोला धर संझा आवय भइयां     
झुम्मर के भउजी हं लेयव बलइयां 
कोरा मं कुलकत हवय ननकुनियां   
आँगना मं चूँ- चूँ चहकय  चिरइयां
पनियर-पातर चले जिनगी के नइयां 
   - डाॅ. अनिल भतपहरी

बहकें इंसान

बहके इंसान हुआ 

ख़त  खुला छोड़ना  आसान  हुआ
गुलज़ार था गाँव जो श्मशान  हुआ 
फ़ैला  फ़साद  दोस्त इसी के वास्ते 
तार-तार  यहाँ उनकें  सम्मान हुआ  
लख्त-ए-ज़िगर बिरादरी का शान था 
प्रेम क्या की सबका  अपमा‌न हुआ
जात-पात,ऊँच-नीच ये फ़िरकापरस्त  
सूफ़ी संगत में बहकें हुए इंसान हुआ  
ढ़क लो उसे साफ़  कोई न पढ़ सके 
ये आयतें अब न खुला आसमान हुआ

   -डाॅ.अनिल भतपहरी

Monday, April 19, 2021

पंचक

पंचक -7

कैसा यह सामाजिक सरोकार 
व्यवसाय हो गया सेवा-सत्कार 
पद-प्रतिष्ठा भी  हुआ कारोबार 
बढ़ते प्रलोभन का सर्वत्र विस्तार 
ऐसे में रहें निर्लिप्त और निर्विकार

     -डाॅ. अनिल भतपहरी

Sunday, April 18, 2021

जीवन नैया

#anilbhatpahari 

पंचक 

जीवन-नैया 

भर थैला शाम घर आए भैया  
खुश हो भाभी  ने ली बलैयां 
मचली गोदी में नन्हीं मुनियां 
आँगन में चूँ चूँ चहकीं चिरैयां
इस तरह चलती  जीवन नैयां
   - डाॅ. अनिल भतपहरी

Saturday, April 17, 2021

बैरी कोरोना ल बनेच डर

लाकडाउन के पंचक‌

अब अतलंग तो  झन  कर 
भले भगवान ल  झन  डर 
फेर येती-ओती झन किंदर 
ये बैरी कोरोना ल बनेच डर 
अउ कलेचुप राह घर भीतर 

  - डाॅ. अनिल भतपहरी

Wednesday, April 14, 2021

दादी माँ सतवन्तीन

।।दादी माँ सतवन्तीन ।।

   हमारी प्यारी दादी माँ  सतवन्तीन जौजे रामचरण भतपहरी जो कि अपनी अदम्य साहस और दृढ़ इच्छा शक्ति से अपने दोनो सुपुत्र दुकालदास ( अकाल के कारण ) उर्फ ताराचंद  और सुकालदास  (सम्मत के कारण )उर्फ जीवनलाल को जो उनके बड़ी मां थी ने  सगी मां पीला बाई के  आकस्मिक निधन और उनके कुछ माह बाद पति रामचरण के मृत्योपरांत यत्नपूर्वक पाल पोसकर बड़े किए ।और समकालीन समय में सुदूर पहुँच व सुविधा विहिन गांव होने बावजूद बडे बेटे  दुकालदास को व्यवसायी /कृषक व छोटे बेटे सुकालदास  को  उच्च शिक्षा अर्जित करवाकर  शिक्षक बनवाकरव एक मिशाल पेश की।
जीते जी किंवदंती बनी माँ सतवन्तीन के जीवनी  ऊपर. उनके यशस्वी शिक्षक  पुत्र ने "एक मुठा माटी के असरइया"  नामक मार्मिक नाटक लिखकर उसे प्रेरक व अमर पात्र बना दिए ।जिनके अनेक जगहों पर मंचन किए गये।
      ज्ञात हो कि माँ सतवन्तीन की उम्र निधन  1980  के समय 90 से अधिक थी। इस आधार पर उनके जन्म वर्ष 1890 ठहरती हैं। ओ बताती थी कि उनके जन्म दसहरा - दीवाली के टूटवारों महिना  हररुना धान जिस दिन खलिहान में आई उसी दिन हुई इसलिये उनके नाम अन्नकुवांरी  सतवन्तीन रखे गये। उस वर्ष बहुत धन धान्य हुए।
    आगे विवाह उपरान्त अन्नकुवांरी विलुप्त होकर श्रीमती सतवन्तीन हो ग ई और वे सतवन्तीन के नाम पर जानी ग ई। 
यथा नाम यथा गुण वटगन के गौटिया के घर के बेटी बहुत लाड़- प्यार में पली- बढी!
कलान्तर में जुनवानी गांव के मालगुजार भट्टप्रहरी परिवार में सभादास कहत लागय के छोटे  बेटा कलावंत रामचरण के साथ ब्याही गई ।
परन्तु विवाह के पन्द्रह वर्षो तक धार्मिक प्रवृत्तियाँ के इस दंपति नि: संतान थे । वंशज आगे बढाने के लिए पुनर्विवाह करने का अनेक प्रस्ताव आते ही रहते स्वत: सतवन्तीन इनके लिए रामचरण को कहते पर वे एकनिष्ठ पत्नी व्रत सदाचारी पुरुष थे।
     एक बार दोनो धार्मिक पर्यटन हेतु किसी साधु महात्मा के सलाह पर जगन्नाथपुरी की यात्रा पर बैलगाड़ी में रसद सामग्री रखकर जगन्नथियों के संग पैदल  निकल पड़े।  क्योकि उस समय पदयात्रा कर दर्शन करने और पुण्यलाभ अर्जित करने की मान्यताएँ थी।
    परन्तु विधि का विधान एक वर्ष और बीत गये संतान आए नहीं अंततः निर्वंशी चोला न हो जाय कहकर माँ सतवन्तीन अपने पति रामचरण का दूसरा विवाह अपनी बेटी सदृश पीलाबाई से करवाई ।और उनके दोनो संतान दुकालदास और सुकालदास का ऐसी परिवरिश की आज यह परिवार  पलारी -आरंग सहित  बलौदाबाजार  रायपुर परिक्षेत्र में प्रतिष्ठित व ख्यातिनाम हैं। 
      वे सगर्व किसी नीति न्याव व परपंची होते देख पुरुषों को फटकारती या चुनौति देती कहती रहती - "मै चील गौटिया के बेटी देखत हव तुहर रकम ढकम ल ।" 
    अनेक सडयंत्री इनके निर्वंशी होने व मासुम बच्चों के कारण खेती भाटा भर्री हड़पने या कब्जाने के फिराक में रहते पर वह पुरी मुस्तैद से न केवल बेहतरीन परवरिश की सौजिया लगवाकर  पुरी खेती किसानी सम्हाली , पुश्तैनी पत्थर  खदान चलायी ।यहां तक उस जमाने में अपने बाप - भाई से  बटैत लेकर अपने दोनो पुत्रों के लिए जुनवानी गांव में बडे- बडे धनहा  खरीदी।
      कोरोना के चलते लाकडाउन की स्थिति  में के दूर दूर से  पैदल चलकर  आने की खबर से प्रेरित ६०० कि मी की जगन्नाथपुरी पैदल यात्रा की वृतांत दादी  माँ सतवन्तीन से सुनकर यहाँ उल्लेखित कर रहे हैं। यह यात्रा  १९२० के आसपास ही की ग ई होगी। (जब दादी माँ ३० वर्ष की रही होगी क्योंकि १५ साल में गवन आए और १५ साल तक उनके कोई बच्चे नहीं हुए तब धार्मिक यात्रा गई थीं।)
     दादा -दादी की 600 कि मी  पैदल यात्रा का यह शताब्‍दी वर्ष 2020 हैं । जब  कोरोना के चलते लाकडाउन के कारण सपरिवार 3-4-5  सौ कि मी की कष्टदायक यात्रा करने विवश हैं।
   बहरहाल शीध्र ही संकट दूर हो और हमारे दादा- दादी के शताब्दी यात्रा का पुण्य लाभ पुरी मानवता को प्रदत्त हो।
         जय सतवन्तीन -रामचरण 
                 ।। जय सतनाम ।

चित्र-  दादी मां सतवंतीन  की एक मात्र दुर्लभ चित्र 52 वर्ष पूर्व खल्लारी  मेले में लकड़ी की पर्दे वाली केमरा से उतारी ग ई। जब  मां व बुआ 16-13की थी, अब 68-65 की हैं।

भीम गीत

भीम गीत

बनाये कानुन भारत के अनमोल रतन ..
डाक्टर भीमराव अम्बेडकर तोर  पइय्या परन..

जनम लिए महुं गाँव , भीमा बाई के कोख  मे
रहिस पिता रामजी सकपाल  सुबेदार फौज मे
तेकरे सेती स्कूल पढे बर बढगे चरन ..

नान्हेपन म भोगे तय छुआछूत के पीरा।
बरनन करे म हो जाही हिदय के चीरा।
मुख ल निकले नही सिसकी न बोली बचन ...

हुशियार भीम ल मिलिस पढे बर वजिफा
विदेश म  जाके पाईस बैरिस्टरी  शिक्षा
कुलकत आइस भारत होके मगन...

पढलिख के बिदेश ल आये तय देश म
देख के रो डारे देश के भेस ल
एक तो देश रहय अन्गरेज के गुलाम
दलित के पुछइय्या नही गुलाम के गुलाम
बदला म लात मिले करे त परनाम
जीयत मनसे ल मुर्दा बनाये हाय रे हिन्दु धरम ...

नौकरी चाकरी छोड करे तय जनसेवा
सबकुछ गवाये बाबा हीरा कस गंगाधर बेटा
डिगे नही  बिपत म तय, करे अपन करम ..

संविधान रचके बाबा ,देहस मुल मंत्र
शिछित बनो संगठित होओ  करो संधर्ष
तोर सपना ल पुरा करबोन, लेवत हन परन ...
  "अम्बेडकर जयंती परब के बिक्कट  बधाई "
जय भीम जय भारत
💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐
- डा अनिल भतपहरी

उक्त गीत को श्रवण करने निम्न लिंक को‌ टच करे-
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1543335149154993&id=10000435567250ं

Monday, April 12, 2021

अभिनंदन कैसे करु

।।सृजन कैसे करुं ।।

हाहाकार चहुँओर ,भयभीत  है सभी 
कोरोनाकाल में अब, सृजन कैसे करुं ...

कोई‌ न जन सहयोग,संसाधन की कमी‌ 
दान पूजागृहों के लिए, प्रबंधन कैसे करुं ...

काम केवल  शासन -प्रशासन का नहीं ‌
मुश्किल घड़ी में सहमत,आमजन कैसे करुं ...

श्रद्धांजलि देते रोज लत ऐसी हैं लगीं
क्षरित संवेदनाएं अब ,मनन कैसे करुं ...

सड़क पे एम्बुलेंस अर्थियों की कतार लगीं  
घर आए कोई तो अभिनंदन कैसे करुं ...

चारों ओर चीत्कार सुन मौन हैं अनिल‌
संशय में जान अब ,क्रंदन कैसे करुं ...

       -डाॅ. अनिल भतपहरी/ 9617777514

कैसे अभिनंदन करुं‌

।।सृजन कैसे करुं ।।

हाहाकार चहुँओर ,भयभीत  है सभी 
कोरोनाकाल में अब, सृजन कैसे करुं ...

कोई‌ न जन सहयोग,संसाधन की कमी‌ 
दान मंदिरों के लिए, प्रबंधन कैसे करुं ...

काम केवल  शासन -प्रशासन का नहीं ‌
मुश्किल घड़ी में सहमत,आमजन कैसे करुं ...

श्रद्धांजलि देते रोज लत सा  लग गये 
क्षरित संवेदनाएं अब ,मनन कैसे करुं ...

चारों ओर चीत्कार सुन मौन हुआअनिल‌
संशय में जान अब ,क्रंदन कैसे करुं ...

सड़कों पर एम्बुलेंस और हैं अर्थियां 
घर आए कोई तो ,अभिनंदन कैसे करुं...

       -डाॅ. अनिल भतपहरी/ 9617777514

Saturday, April 10, 2021

सुरता डाॅ. नरेन्द्र देव वर्मा

#anilbtapahari
 सुरता 
          मोला गुरु बनई लेते / सुबह की तलाश 

        डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा

बड़ अजब संजोग हो जथे या जेहन मं रहे, बात हर कब क इसे उपला जथे? कहे नी जा सकय !
     बात  कोसरंगी हाई स्कूल में पढ़त घानी ८४-८५  के  आसपास कर आय २६ जनवरी के उपलक्ष्य मं दो दिन स्कूल मं उत्सव होवय बाबु जी के नवरंग नाट्यकला के बैनर मं हमन आनी -बानी के नाटक खेलन ...   मोला गुरु बनई लेते नाटक मं चेला के रोल करत रहेंव। बाद में गुरु ल कहिथंव चेला बनाय बर तोला उसरय नहीं अउ बड़ कठिन काम ये त मोला गुरु बना लेते ... ओला अइसे कहना रहिस कि पब्लिक ल हांसी आना रहिस १० वीं  पढ़त लयकुशहा म ओ फिलिंग आत न ई रहिस ... बाबु जी हर एक्टिंग के संगे संग डायलाग बोले तरिका अउ ऐसे शब्द ल उच्चारित करय कि रिहर्सल मं जतका रहेन अउ जगुरुजी  मन ब इठे सुनय त हर बेर  कठ्ठल  जय । गणित वाला  गुप्ता सर डरावन काबर ओला कभु हांसत न इ देखे रहेन ... ओ रिहर्सल देखे आय रहिस  भारी जुवर ले सुरता कर के हांसय । नाटक तो ज इसे त इसे खेलेन फेर ओकर डर सिरागय। अउ बाबु जी जोन सबकुछ ल इका मन संग मिलके लइका होके सिखावय तभो ले  ओकर डर हर बाढ़गे ।
    भारी अनुशासन प्रिय अउ सम्मानीय  प्रचार्य /शिक्षक रहिन । विद्यार्थी शिक्षक अउ गांव के पंच सरपंच सबो मान देवय ।
      १९८७ में  दुर्गा महाविद्यालय रायपुर में पढ़त, श्री राम पुस्तक प्रतिष्ठान सत्ती बाजार ले कापी अउ आधा कीमत में सेकेन्ड हेंड किताब लेवन । ओकर संचालक सियनहा बबा संग बनेच घुलमिल गे रहेन । साहित्य के प्रति अनुराग अउ कालेज मे हिन्दी साहित्य पढथे जान के  एक दिन बता- चिता मं बताइस कि छत्तीसगढ़ कालेज में ओकर सुपुत्र डाॅ नरेन्द्र देव वर्मा हिन्दी के प्रोफेसर रहिन ... ओकर लिखे  उपन्यास "सुबह की तलाश " के एक प्रति देवत कहिस येला आधा कीमत म लेजा पढबे । मय ओ  किताब ल पढेव त पढिते रहिंगेंव ... रायपुर के मुरमी भाठा खारुन नंदिया  अउ सरोना तरिया के महादेव  के बड़ सुघ्घर वर्णन... हमन ओती इतवार के किंदरे जान किताब मं वर्णित दृश्य डग डग ले दिखय ... पहली बेर किताब मं अपन आसपास संउहात बरबन पढ़के मन अघा गय ... सोचेव असनेच महु लिखहू। "कब होही बिहान"  जइसे शब्द   घेरी बेरी मन मथय ... बाद मं मोर ए शीर्षक के किताब छपिस ... आदरणीय केयुर भूषण हर ये शीर्षक के उछाहित होके अपन मन के सम्मति लिखिस अउ आद रामेश्वर वैष्णव जी ह वैभव प्रकाशन मं सुधीर भैया संग बैठ के फरमाइश करके दो चार कविता सस्वर सुनिस अउ शबासी दिस ... कब होही बिहान में लगथे "सुबह की तलाश"  की  ध्वनि अनुगुंजित हो रहे हो।
 ओ संग्रह ल बहुत सेहराय गिस ३-४ जगा समीक्षा छपिस सुधा दीदी ह "मन में गुथाय मोती कस गीत " कहिके साहित्याकाश में  कहां से कहां पहुंचा दिस अइसे मोला लगे धरिस ... मय बड़ भागमानी हव ये सेहरौनिक ज्ञानी गुणी मन सो मिलिस हिरदय से आभार ...ले देख बात कहां ले कहां फलंगे ...
     मय धनीराम बबा जी कना जाके कहेव सुबह की तलाश  बहुत सुन्दर उपन्यास हे त ओ बताइस ओहर बढिया नाटक तको लिखय बहुचर्चित नाटक "मोला गुरु बनई लेते "  नाम सुने है ?
   मय दंग रहिगेंव ... सच कहे त ये नाटक के चेला पात्र मय  बचपन में स्कूली जीवन में करे रहेव फेर हमन ओकर रचयिता ल जानत न इ रहेन न जाने के कोशिश करे रहेन ।  अरपा पैरी गीत के रचनाकार भी हरय ... अब तो ओकर स्मारिका निकले रहिस जेमा डॉ नरेन्द्र देव वर्मा के जीवन वृत्त अउ रचना कर्म ल संजोय रहिस ... श्री राम पुस्तकालय से ही पढे के मौका मिलिस अउ बहुत कुछ जानबा होईस।
     मोला गुरु ब नइ लेते ल पिता जी हर अइसे टच दे रहिस कि बिल्कुल गम्मत लगय  अउ अपन डहन ले तको संवाद जोड़ लेत रहेन  ज इसे  बिस अमृत, परीक्षा बुद्धुराम जइसे पारंपरिक प्रहसन मन मे   करन।
    
(बडे नाटक म चांदी के पहाड़, एक मुठा माटी के असर इया  , संगत राह के फूल जइसे बाबु के लिखे नाटक अउ चरनदास चोर के मंचन करन  जेमा ५-६ गीत रहय । हमर नवरंग नाट्यकला  मंच हर दरभंगा बिहार के  पैटर्न या प्रेरित १९७५- १९९३ तक चलिस अउ अबड़ मजा करेन । )
      त डाॅ नरेन्द्र वर्मा के अबड सुरता करय धनीराम बबा हर ओकर एक बेटा विवेकानन्द  आश्रम में रहय स्वामी आत्मानंद जेकर दरस अउ कभु कभु दुआ सलाम हो जय काबर हमन पेपर पत्रिका पढे अक्सर आश्रम जावन ... एक दू बेर  मंदिर में रामकृष्ण के प्रतीमा के आधु बुद्ध पुरुष समझ ध्यान तको करे के परयास करन ... खासकर मंदिर गुलाब जल अउ संगमरमर के ठंडाई तरपौरी में ले ये के सौक से जावन .. त स्वामी जी के दरस हो जय।
            सुबह की तलाश मोला गुरु बनइ लेते  अउ राज गीत अरपा पैरी के धार सब क्लासिक रचना होगे हवय।
   उकर छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के इतिहास अउ काल विभाजन जैसे अद्वितीय कार्य हर  रामचंद्र शुक्ल के " हिन्दी साहित्य का  इतिहास "  के बरोबर हवय ।
         अइसे स्वनाम धन्य वर्मा जी हर कम समय में भारतेन्दु सरीख हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ल समरिद्ध करिन ओकर  सेती उन सदैव ज्वाजल्यमान नक्षत्र सरीख छत्तीसगढ़ी साहित्याकाश मं जगमगात रही हमन सही पथिक मन ल दिशा बोध करात रही।
आज जयंती मं उन ल परनाम हे ।
      जय छत्तीसगढ़ 

डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

पंचक मज़लूम

पंचक 

मज़लूम 
दु:खी  यहाँ  जो भोले -भाले होते हैं
क्यों बेचारों के मुख पर ताले होते हैं
चप्पल के बावजुद पांव पर छाले होते हैं
जीते हैं पीकर ग़म ये बड़े मतवाले होते हैं
आकर खाली हाथ खाली जाने वाले होते हैं

पंचक

लाक डाउन में पाँच पंक्तियाँ की पंचक -

।।कलाकार ।।

जो निराकार को 
साकार करें,
वह कलाकार हैं
और कलाकार तो 
सृजनहार हैं!

   - डाॅ. अनिल भतपहरी

Friday, April 9, 2021

बोहार

।।बोहार ।।

ठेकवा धर मही‌ 
मांगे आ जही 
कत्कोन झन 
टपकावत लार 
सब लिही डोहार 
रांध-खा ले कलेचुप  
भाजी बोहार 
देखे बर नोहर 
गुणकारी जबर 
सिरा जथे कत्कोन
रोग राई अजार 
झन पार गोहार 
जय जोहार संगी 
जय जोहार अउ 
संगे संग जय बोहार 
  डाॅ. अनिल भतपहरी 9617777514

Thursday, April 8, 2021

तिरछट

कहानी - 3 

"तिरछट"  
          - डाॅअनिल भतपहरी  

  बइसाख के नहाकती अउ लगती जेठ जहर- महुरा खा लव फेर पथरा जुनवानी झन जाव।मार पलपला मं उसने कांदा सरीख उसना जाहूं उहा जायेब मं।काबर कि तरी पथरा उपर पथरा हवे पेपड़ा छवाय छानी के लक-लक ताप म मनसे कइसे गुजारा करथे ओला उही मन जानय।कइसे तुमन ल बकबकी छाय हे ? उँहचे सभा जुडत हे जाबोन कहत हव ! अपन गांव वाले मन दबकारत कहिस -" बैमार पारे बर  नेवता पठोत हवे  का अड़ताफ म अउ कोनो ठ उर न इ मिलिस‌? " 
   धजादास कहु कहे बर मुँह उलात रहिस कि फाकत फेर गौटिया बंबक गे -अरे भई ! सभा- सुसाटी जुड़ म नइ करके ,यहाँ तीपत भोभंरा म करे के काकर संउक चर्राय हवे...? 
   गौटिया आलमदास रखमखात बरवट के पाटा म धय उठत धय बइठत कहत हे।संदेसिया  धजादास कहिस- "गौटिया तोर कहना वाजिब हे ,फेर जोरइय्या मन जानही कि काबर ये कुबेरा म समाज ल जोरत हवे।"
अब खातुहा गाड़ी ल छाड़ सभा -सुसाटी म का कानहुन बधारेच जाबोन? गौटिया के दरोगा कह परिस।
   ओकरो ल फाकत गौटिया कथे -"अरे नेवता आय हे ,जाबोच फेर ओमन उहेंच काबर जोरत हे? "
  "हमर गाँव म काबर नही? अरे पल्टू ,धजा के संग तुमन  दु चार झन ल धर के जाव अउ कहव कि नंदिया ये पार पचरी के  जुड़हा अमइय्या  म सभा परही २ दिन के  पंगत- संगत  के खरचा अकेल्ला मय उचांहू ।"
रुवाप झाड़त  गौटिया कहे लगिस -"आती खानी सब्बो बजरहा गांव म कोतवाल मन सो हांका परवा देहु ।"
 अउ मेछा टेवत कहे लगिस ये दानी मंहु चुनई म खड़ होहु...देखत हंव महंत के महंती ल ...बड कान्हुन बघारत रहिथे।जनामना हमन के मुह म दुधफरा अरझे हे!  जम्मा कोन्दा ब उला हवे ! अउ उहीच ल गोठबात आथै! " एक सांस में कहिके गौटिया घर भीतरी चल दिस।  सकलाय जम्मा झन  अपन -अपन बुता मं लग गे।
      ×    ‌‌‌‌‌‌                  ×                       ×
     महंत लीम चउरा मं बैठे सकलाय मनसे ल कहत हे -संत समाज जय सतनाम !जय जोहार !जय राम ! सालपुट दुकाल परत हे, कभु पनिया अकाल त कभु सुख्खा अकाल‌।बने बने कोनो साल नाहक गे त लुवई मं कटुआ कीरा सचर  जाथे । माहुल- फाफा ल बचो डरे, त बरहा- बेंदरा मन सो ल कइसे बचाबोन ? "
"महानदी म धमतरी तीर बड़का बांधा बनत हवे  सुने में आत हवय का सिरतोन आय ममा ? "फत्ते पुछिस। 
"हां जी भांजा सहीच आय ,बडे़- बडे़ नहर  निकलत हवे, ओमा बड़े- बड़े धनागर डोली मन ओकर  चपेटा म आत हवय ।ओखरो बर सरकार ल दरखास देय ल परही ।
साटीदार कहिस दर्रा खार कोती बहकवा दव गा काबर कि ओ चक मं ओन्हारी - सियारी तो होबेच न इ करय।
  रबि के ओल नइ होवय।"
    महंत कहिस -"बुधवार के तहसीलदार पटवारी साहेब मन सो गुहार करे रहेन।ओमन कथे कलेक्टर सो मिले रायपुर जाय ल परही !इही पाय के बैठका मढाय हन।
त गिधपुरी वाले मन झगरही करे ल धरलिस।ओ  गाँव के मनसे के मति मर गे हवय लगथे !"
 सही तो आय इलाहाबाद ले  ओ पारा के मन नेवत के   पंडा लान के पूजा पाठ बिठा दिन  ।  गांव के  मंझोत म चतुर्भुजी  मंदिर के कुची  देवादिन अउ  बेगारी कर के गांव भर ओकर  बर किल्ला कस  बाड़ा  बना दिन  ओकरे  बहकावा में आके सब तिड़ी-बिड़ी छरियागे। देखते -देखत किसान मन के खेत खार हड़प के मालगुजार लहुट गय  । ओकर एकंगु  नर- नियाय ओकर पोथी पत्रा के  सेती एकमई  गांव मं दु -दु ,तीन -तीन पांघर  परगे ।फिरका -सिरका होगे जात -पात ऊँच- नीच  तको मेड़र्रियागे  ,भलुक भक्कम  भोगागे।  तेकरे सेती  नवा सरकार आए ले  उहा शांति बेवस्था बर पुलिस गाठ बैठारे हे।असनेच रही त  एक न एक दिन पुलिस चौकी खुल जाही। तहन देखेव  सबके थाना कछेरी के चक्कर  अदालत पेशी म कतकोन ढाभा उरक जाथे धनहा बिला जाथे। अब भुगतना भुगते परही  महंत गुनत कहिथे "अइसे लगथे कि अपेच हाथ मं धांव करे बर हमन सधाय रहिथन ? "
    असो बीजबौनी तिहार अक्ती के  पहिलिच सबो के सुन्ता मढ़ाय ल परही, तेन पाय के अव इय्या सम्मार   मउंहारी भाठा म गस्ती रुख तरी ब इठका मढात हन। कइसे भंडारी बने रही कि नही? भंडारी हर अपन बाप के बात ल फांक  देथय फेर महंत  के ल कभु न नुकुर नई कहे सकय । काबर कि महंत ह  कभु न -नुकुर कहे के गोठ गुठियाबे नइ करय।
     ये दे सब झन ल का का करना हवे कतका झन सकलाही ? उकर भोजन -भजन ,सुतन -बसन के बेवस्था करे ल परही।‌ रतिहा जैतखाम तीर तीन तरिया निरगुन  भजन बर  पं रामचरण ल नरियर  दे डरे हवय। तेलासी वाले मन के तको हरमुनिया वाले मंगल भजन होही।उकर तुरही हुडका  अउ हरमुनिया के बनेच सोर उडत हे।कलकत्ता ल बिसा के लाने हवय... लोगन टूट परथे कसना बाजथे... अउ क इसे चिकारा ल सफा एक एक बोल हुबहू उछरथे..भजनहा बड़  झुलपहा हे उझल- उझल के ऐसे हरमुनिया बजाथे  कि बिचारा हुड़क वाले बोकबाय हो जाथे ।ताल -तुल ल मिलात बेमझा जाथे तेन पाय के उनमन एक झन लोहार तबलची राखे हवे। भजनहा हर त भागवत करथे लील्ला करथे अउ सुने म आय हे रहस बेडा तको उचोथे‌,ते पाय के ओहर फुरसुद नही रहे कहु न कहु खंधेच रथे।आजकल चौका पोते ल तको घर ले हवय कबिरहा अउ  नवगढिया मन के संगत मं
     उहीच पाय के नंदिया ये पार के मन  उन देवताहा कहे ल घरलिस । अउ उन ल पुछे पाछे बर छोडे लगिस।महंत ये पाय के उहु ल नेवते हबे कि सब ल सकेलव कोनो ल झन छोडव।उनमन कहिथे - "सब पखरी आय सरग निसेनी चढना हवे त सबके जरुरत परथे।अब कोनो नाचे -हंसाये ,लील्ला  ,भागवत ,रहस  रमैन करत मनसे ल जोरत तो हवे? दु: ख पीरा हरे के येमन मंत्र अउ जंत्र ये भले भगवान मिले त झन मिले मन मं सुख शांति अउ  आनंद तो हमाथे उहीच तो भगवान मिलई ये गा । "
फेर एक बात हवय कि ये सब लाधन भुखन न इ होय सकय। ते पाय के  सब ल सावचेत रहना हे कि कोनो तुहर बाना झन मारय ।अपन खरही तिजोरी ल सम्हारना हवे।जोन नकसान होही ओकर भरपाई पाना हे तभेच अपन लोग लइका मुँह म पेज -पसिया डार सकबोन !
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     हव मालिक एक लाघन दू फरिहार होथे। ओकर बाल- बच्चा मन के  मुँह मं बने जात के पेज- पसिया नइ परत हे।बिचारा बोधना तनातना लुलवात हवे, जवानी म बड खरतरिहा रहीस अपन बांह म बल राखे पाँच खाड़ी के जोतनदार रहीस ।उही मंत्री- महंतेच के समाजिक परवरतन के चक्कर आज ओकर लरिका लुलवात हे। इलाहाबदिया हर ओकर बर  चक्रबुह रचके  धंधवा दे रहिस सबो खेत  खार पेशी अदालत मं बिलागे अउ ओहर आजकल अलाली- दलाली करके गुजारा करत हे‌।
अच्छा बने बतायेच कुलकत आलमदास कहिस महंत के महंती ल यहीच झुकोही तय जा अउ बोधना ल परघा के लान ओला खंधोना जरुरी हे।
     अपन ढेकी कुरिया म आजकल बोधना नागर बाँधे के कारज करथे।नंदिया पार जंगल ले लकडी लानथे ओकर सो औने- पौने म ले के छोल -चाच के बेच -बाच गुजारा करथे। उमर के बीते म नजर कमजोर हो गय फेर गोठ तो अइ से खर बान मारे कस जियानथे ।नागर जुडा़ ल छोलत तिरछटहा कर डरथे।तेन पाय के उन ल गाव के मनसे मन तिरछट नाव धरे रहय।फेर ओला आजो ले गम नई हे। 
हव ग कौव्वा कौव्वा ल बलाथे मंजुर त न इ बलाय पुलघाट म नहावत धजादास कहत रहीस तिरछटहा मन सकलात हे।पचरी के गौटिया कम तिरछट न इये बावन राजा के कान काटे बैठे हवय। उहचों पंचैती जुरत हे उधोदास मन के भाग खुलगे गौटिया के बियारा चुल चढे हे । सिरतोन आय ररुहा सपनाय दारभात  कस मार कोहनी के आत ले  दमोर के  दुधफरा मालपुआ बरा सोहारी  के संगेसग बफौरी कढ़ी   दारभात खात मगन बोधना हर सब ल मंदहा कस उछर- बकर दिस। कइसे महंत के लोगन ल बिल्होरे जाय? बुदुक बताये धरलिस ।भले उन खान- पान म सादा हे फेर गरीबी अउ शोषण के कुचक्र म पापी पेट अउ मानगुन पुछ- परख  के सेती कहु  -कहु बेनियत हो जाथे‌।बचपनेच ल सभा सुसाटी वाले आय ।भले  जवानी के आत ले सामाजिक काम म सब चीज-बस ल फूक डरिस ।आज बुढत काल म लुलवात फिरत हे मान- गौन  खोजत हवे।कगरेस म मिलत मान ल मुरख सवर्ण:मन  के गोड़ के राख -धुर्रा समझ के समता सैनिक दल के सीटी मास्टर बनगे। आज ओ पारटी के कोनो धरकन नइये ।ये जब -तब जय भीम जय भीम करत लुठुर-लुठुर किंदरत रहीथे।परन दिन ओखर धर बराड़ी  बैला फंदाय घांघड़ा साजे सवारी गाड़ी आइस त लोग‌न म देखनी परगे कहां के आय काखर घर उतरे हे। बोधना ओ दिन धोवा के धोती पहिन कोसा के कुरता पहिन मार अदब म गाड़ी बइठिस  त लगथे जनामना मंत्री साहेब आय। शपथ ले बे उन भोपाल जात हवे । कभु कभु त दिल्ली भोपाल नागपुर ले कमती उन गुठियाय तक नही।ते पाय क ई झन उन ल लपरहा तको कहे धरलिस‌।
     ×                   ×   ‌‌‌‌‌                     ×
लपर -लपर तो तही मारत हस महंत का हमन ल तय ओकवा- भोकवा  जोजवा समझत हस ? हमन कलेक्टर साहेब करा रायपुर ल मिलके आ गे हन पुछ ले बोधना ल।हम गोठियान नही बुता करके देखाथन‌।आलमदास हर गोठ म बेलाटी भौरा कस आलम झोकत कहिस। सकलाय मनसे मन तारी पिटे धर लिस जय कारा होय लगिस हमर नेता क इसा हो आलमदास जइसा हो । पुरा अड़ताफ म आलमदास के जयकारा होय धरलिस असो के चुन ई म आलमदास ल वोट देके मंत्री विघायक  बनाबोन ।महंत बिचारा हर कछु कहे न इ पाइस कहे धरिस ते बीच म ओकर गोठ ल तिरछटहा ‌ह फाक दिस-
 "भ इगे कका अब भाव भजन कर साहेब सुमर । इलहाबदिया के यज्ञ म संधर। "  
  
 सब झन मगन अउ बिधुन हे असो सम्मत रही  बिदेस ल बिग्यानिक आय हवे अउर महानदी म बैराज बनाय जाही। सहकारी खेती करे जाही ... जवाहिरलाल के हाथ ल मजबुत करव उनमन भिलाई म लोहा करखाना रसिया देस के सहयोग ले बनवात हवे‌।नवा तिरथ बनही! महानदी हर समुद्र असन  बनही । अउ गाँव - गाँव मं  खेत- खार मं महानदी खलबलात अवतरही ।
कलेचुप सुनत अउ मुडी हाथ धरे गुनत बुधेलाल कहिस सुनब म आत हे ४०-५० गाव उजरत हवे।ओमन कहा बसही दुसर जगा क इसे गुजारा करही खेती -खार घर- दुवार ,कोला -बारी ,गाय -गरु सब बिला जाही !मुवाजा रुपया झोकही त का ओतकेच म गुजारा नाहकही भला? अउ कभु जादा बरसगे मनसे के बनाय जिनिस ताय कहु फुट फाट गे त परलय आ जाही।छोटे छोटे बांध हर  १०-१२ गाव के मंझोत म नरवा मन ल बाध के  बनना चाही।एखर से सबके गुजारा होतिस। "
     "तही मंत्री बन जा बड आय हस ये होतिस ऐसे करतेन बोधना हर फांकत कहिस।सरकार जनता के भल ई चाहत हे ।देश सुतंतर होय हे अब धीरे -धीरे सबके भाग लहराही। "
   अरे का लहराही? अरे जोन राजा ,जमींदार  गौटिया रहीस  उंकर त रवती उखडत हे अउ यहाँ तरा परदेशिया मालगुजार बनत हे  अंत्री -मंत्री- संत्री बनत हे।
जेन मुँह तेन गोठ लीम चौरा म तरा तरा के गोठ चलत रहिथे।
  राज तो पढोइय्या मन के आय हवे । राज के बँटवारा पाहु त स्कुल खुलाव लरिका मन ल  पढाव- लिखाव ! हमर अम्बेडकर बबा के यही त बडका मंतर आय।
पुनु हर रटपटा के  खडे होके जयकारा लगाइस  अम्बेडकरबबा   के जै । त ओती गांधी बबा के जयकारा होय लगिस।   
  का के गोठ ल का कुती बेमझात हव जी ।हमला ये सोचना हे कि कइसे नहर म निकलत धनागर डोली मन ल बचाई ..महंत चुप करात कहे लगिस।
  फसल बीमा के कौनो बात निये बेफिकर किसानी करव ।अउ अपन सुघ्घर दिन  पहावव। सरकार हर जनता पोसही हमर नेतामन बिदेस ल चाउर -दार लानही।रुवाप झाडत आलमदास कहे लागिस ‌!अब बुढतकाल म महंत का गोठियाय? न वोला बोट से मतलब न नेतागिरी से।मतलब समाज के सुन्ता से हवे ।पद- परतिष्ठा पाये के सउक उन म कबहु नइ रहीस ,भलुक कतकोन झन ल अपने परतापे पद देवाय रहीस।  सक्कर बैमारी जनता के दु:ख- पीरा बर संसो कर कर के ये बैमारी उन ल संचरगे रहय‌।उ‌न मन कहिस -"भाई जोन अपन समझ अउ सख पुरतीन रहीस करेन ...अब नवा जमाना आत हे सोच समझ के सुन्ता  रहु ।हमन के का हे पाके डुमर तान कब टपक जाबोन ? कब साहेब के बलौव्वा आ जाही कहे नॊ जा सकय। शिक्षित  बनव संगठित होवव  अउ अपन हक सभीमान बर संघर्ष करव।पद पाके फुलव झन न परलोखिया मन के बात म आव। काबर ये समाज बड धोखा खाय समाज आय बाबा साहेब कहेच हे -" बड मुस्किल म  ये कारवां ल इहा तक लाय हन कोनो ये ल पाछु झन करहव । आघु नइ लेगे सकव ,त येला इही मेर छोड दव।"
  महंत गुनत  दु- चार झन संगवारी सहित अपन घर लहुट गय ।ओती बोधना हर दुमन आगर पंगत म अरसा परोसत हबे।उकरे घर तेलई  चढे रहिस। अब तो तिरहट मन के चलागन चलत हवय ।
    -डा अनिल भतपहरी 
सी -११ ऊंजियार- सदन सेंट जोसेफ टाउन अमलीडीह रायपुर छ ग 9617777514


 एक ठन हीरा    (कहानी संग्रह से )

Wednesday, April 7, 2021

नव दृष्टि -

श्रम की देवी करमसेनी संत  करमा माता जयंती की लख लख बधाई ।

श्रम की देवी करमसेनी करमा माता जयंती पर विशेष 

             श्रमण संस्कृति यानि परिश्रम से जीवन यापन करने वाले समुदाय का‌ धार्मिक / आध्यात्मिक प्रवृत्ति वाले संत महात्मा अपनी विशिष्ट धार्मिक  यात्रा हेतु  प्रायः जगन्नाथपुरी आते रहे हैं। इनका प्रमुख कारण हैं यहाँ भेदभाव से रहित सदाचार व्यवहार शायद इसलिए यह प्रसिद्ध कथन हैं - जगन्नाथ के भात को सबै पसारे हाथ ... 
सतनाम पंथ के जगजीवन साहेब , दूलनदास साहेब ,गुरुघासीदास साहेब ,कबीर पंथ के धरमदास साहेब , संत माता कर्मा आदि श्रमिक कृषक  लघु व्यवसायी समुदाय के संत महात्मा दर्शनार्थ व संत समागम करने गये और समुद्र तट पर आध्यात्मिक चिंतन मनन कर अपने -अपने मतो‌ ,सिद्धान्तो को सुदृढ़ व व्यवस्थित कर समाज में बेहतरीन कार्य किए। जबकि समकालीन समय में उन्हें अपने परिक्षेत्र के समुदाय में सामाजिक वर्जनाओं को  गहराई से सहन करना पड़ा था । वे लोग यहाँ की यात्रा कर के  ही युगान्तरकारी कार्य निष्पादन कर महान प्रवर्तन किया।
     टीप - बुद्ध का एक नाम जगन्नाथ भी हैं। यहाँ तीन प्रतीकात्मक प्रतिमाएँ  यक्ष स्वरुप में करुणा (कृष्ण भद्र ) प्रज्ञा (बलभद्र )व शील (सुभद्र ) का हैं। तीनो का एक साथ उपस्थिति से ही जगत का कल्याण संभव होता है। 
    इस गुढार्थ भाव को संत महात्मा भंलिभांति समझकर जग कल्याण के मार्ग पर प्रवृत्त होते हैं।
    बौद्ध धम्म में जगन्नाथ मंदिर को‌ प्राचीन बौद्ध विहार ही माना गया हैं।   अशोक के कलिंग विजय के बाद समस्त कलिंग या उत्कल प्रदेश बौद्ध एंव श्रमण संस्कृति का प्रमुख केन्द्र के रुप में विकसित हुआ ।
      श्रमण संस्कृति, संत मत और जगन्नाथ पर सम्यक् दृष्टिपात कर " सत संधान " की दिशा में गुणी जन विचार कर सकते हैं।

       कृष्ण भद्र (करुणा ) बलभद्र (प्रज्ञा ) सुभद्र ( शील‌)
    भवतु सब्ब मंगलम्

Monday, April 5, 2021

तुरते- ताही

"तुरते-ताही" 

बोहाय ल तर-तर आँसू 
अउ सुसके ल फुलुक-फुलुक   
कछुच बुता हर नइ बनय 
अब तो चढ़ के छाती मं 
बैरी के जीभ सुरर 
इही हर चोखा हरय 
करेन घाद चिरौरी 
अउ परघउनी  
बर-बिहाव कराएन 
देयेन नौकरी 
कराएन खेती-बारी 
फेर को जनी कइसे 
हिंसा थिरकत नइये 
महुरा घोरे मति के 
जहर उतरत नइये 
का तुम ल पाट जात्रा    
रिलो बार नइ सुहाय 
गोंचा तुपकी नाट भतरा 
दियारी तिहार नइ सुहाय 
घोटुल ले गमकत नांद कंठ 
लया चेलिक के हंसी
अउ उकर झुम्मर नचाई 
सरई छांव भरे बजार अउ 
उहां होवत मुर्गा लड़ाई 
अंगना के सल्फी अउ 
खार के मउंहा-ताड़ी 
गौंतरिहा संग भेट 
जोहार माखुर बीड़ी 
लगथे तुम माटी पूत होके 
बीरान के भभकौनी मं आके 
माटी किरिया खाके 
माटी पूत ल मारत हव 
देश के धन-दोगानी लूट के 
ननजतियां के दोंदर भरत हव 
भाई तुम बहके हव 
अवघट मं हपटे हव 
टेड़गा -बेड़गा  छोड़ 
सोझ्झ रद्दा मं चलव 
मया -पिरित जोड़ 
सुख मं जिनगी पहाव 
करोड़ों चलत हे 
तुम संसो झन करव 
ककरो कहे से 
झन बेमझियाव 
भूख लागत हे 
पीरा जियानत हे 
त अपन ल सोरियाय  
रो के बोंबियां के बिरान सो
उन ल परघा के झन बलाव 
दु:ख हरे के झुठा आस्वासन मं 
सुम्मत के खरही झन लेसव 
भलुक तीर -तखार मं दिखथे 
त जुरमिल तुरचेच खेदारव  
खुद चुने सरकार ल बताव  
सउक राज करे के हे 
आवव चुनाव लड़व  
अपन नर- नीति बर  
सदन मं गरजव 
दूध मुहां लरिका मन ल 
कलम छोड़ धरा के बंदूक 
छल से मार अपनेच भाई बंधु
का बहादुरी देखात हव 
नियम कानून  ल रउंद 
प्रेम अउ बिस्वास ल दउंच 
जननियाय कहि बेमझात हव 
‌एक तो उकरे सेती 
शरणार्थी पोसत हन 
 विचार धारा कहिके
चीनी माओ ल मानत हव 
अब तो बायोकैमिक युद्ध 
उहचे  ले थोपात हे 
कोरोना महामारी के लपट म 
इंसानियत झोपात हे 
हमर सगा उकर मोहरा ये 
भाई संग भाई जुझोवत हे 
ये कइसे धिनौनी चेहरा ये 
अब तो खुरखुंद लड़े ल परही 
उकर से अपन ल बचाय परही 
हमरे घर के छानी परवा 
हमरे घर के तुमा मखना 
हमरे चुल्हा हमरे भात के हाड़ी 
हमरे साग चुरय  हमरे कड़ाही  
फेन ननजतिया खवइया कोन 
जल जंगल जमीन लुटोइया कोन
आवव झन कखरो भभकौनी मं 
झूठ लबारी मनगंढत कथा कहानी मं 
ये धरती तोर तय बेटा येकर 
जोम जांगर बुधमान राजा जेकर 
परलोखिया बिदेसिया  मन के 
बहकावा म आवव झन 
छोड़ के हिंसा बिदेसी माओ वाद 
सत अहिंसा के पथ में आवव सब 
संत गुरु महात्मा के सिरजाय 
रद्दा ल भुलावव झन 
थोरिक तो चेतव भाई 
मंदहा -जकहा बने रहव झन 
अब तो खोजव अस्तिन के सांप
भीतरहुं दुश्मन ल चिन्हव 
भेस बदलत हे जेन छन छन 
उन ल उकरेच मांद मं 
घेर के अब तुरते-ताही मारव

- डाॅ. अनिल भतपहरी , 9617777515 
   सत श्री ऊंजियार सदन अमलीडीह रायपुर छ ग 

Thursday, April 1, 2021

सहोदरा माता

१०-११ मार्च 2020 दो दिवसीय सहोदरा माता झांपी दर्शन मेला के अवसर पर -

।।माता सहोदरा पचरा ।।

तोर जस  गावन सुघ्घर माता  सहोदरा 
पिता गुरु घासीदास अउ माता हे सफरा ...

दाई- ददा के दुलौरिन तहु सतधारी 
दुनो कूल उबारे माता शक्ति हस नारी 
दुमन आगर गावन तोरेच जस पचरा ...

ससुराल सुकली गांव  बुघु देवान घर 
बसाए कुट- कुट कुटेला गांव जबर 
हांका परगे दसकोसी मनखे होगे अचरा ...

जुलुम रोके खातिर  नारी जागरण चलाए  
होरी जलाई बंद कराके मंगल भजन चलाए 
 अड़ताफ होवन लागे तोरेच चरचा ...

बोड़सरा बाड़ा सिरजे अठगवां सुख धाम 
जिहां चले तोर हुकुम शोर उडे  सतनाम 
सोहदरा माता तोर महिमा हे अपरा ...

भागमानी सहोदरा दाई तोरेच महिमा अपार 
राखे संजो के गुरुबबा के खड़ाऊ कंठी  हार 
काचा कलस माटी के दीया मं करे ऊंजियरा...

      -डा. अनिल भतपहरी/ 9617777514