"खाली "
लोग उनसे बचना चाहते है पर उनकी निगाह मोटे चश्में पहनने के बावजूद इतनी पैनी है कि शायद कोई बच पाए ! आजकल वे खाली जरुर है पर अपने वृहत्तर अनुभव से चारों ओर खलभली मचा रहे है।
वे अपनी इस नई भूमिका से संतुष्ट है। आखिर शस्त्र और शास्त्र कभी भोथरे थोड़े होते है।
उनका काम है लछ्य भेदना ...बस उनके चालक चालाक व दछ हो! सच कहे तो वे सदा यही करते आए हैं।
पर क्या है कि इतनी पैनापन लिए भी उनके हर तीर उन्ही के समान खाली जाने लगा है ।तब वह अक्सर परेशान सा कह उठते है ... जब से यह मोबाइल व सोशल मीडिया आया लोग अनशोसलिस्ट होने लगा है ।भ्रामक और उद्वेलित करने वाली चीजों से सब अटा पड़ा है ।हमारे संस्कृति व अराध्यों व नायकों स्थापत्यों स्थापनाओं के ऊपर हस्तछेप होने लगा है।जो हमारे गौरव व वैभव थे और जो सुविधाए हमने अथक परिश्रम से अर्जित किए उनके विरुद्ध अभियान जारी है।बड़ी अराजकता है । यह सब विदेशी ताकत व माध्यम से होने लगा है ।इन सब पर प्रतिबंध लगना चाहिए । वे उत्साह से जोर देते अपनी बातें मीडिया जगत में अक्सर कहते .श्रोता / पाठक वाह ! वाह ! कह उठते ..
पर अब न ई पीढ़ी जो एड्रायंड धारी है तथा उन्ही खोए उलझे हुए है उनपर उनकी बातों का कोई असर नही ।बल्कि नक्कार खाने में तुती की तरह उनकी बातें विलिन होने लगी है ... इसलिए वे अब जाके खालीपन से भरने लगा है ।
पश्चापात सा उच्छवास भरते मन ही मन बुदबुदाते आखिर सबके अपने समय है ...
तभी एफ एम रेडियों से एक पुरानी गीत गुंजने लगा ।
उत्ती डहन ले जरत आही ,बुड़ती म जाके भुताही
आस हवय हमला कि घुरुवा के दिन बहुराही....
ध्यान से सुनने पर स्मृत हुआ कि कभी इस गीत के गीतकार को अपने संचालन मे हो रहे कवि सम्मेलन से कैसे रोकने में सफल हुए थे। यह जानकर वह सचमूच भीतर से पुरी तरह खाली होने लगे ।
डा. अनिल भतपहरी
9617777514
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