Wednesday, October 17, 2018

सतनाम‌ एक गुरुमुखी परंपरा

आदिधर्म सतनाम श्रमण संस्कृति का अभिन्न श्रुति परंपरा  हैं। इनमें वक्ता "गुरु" और श्रोता शिष्य या अनुयाई हैं। यह गुरु चेला के मध्य वार्तालाप परीक्षण प्रसंस्करण द्वारा जनमानस में अजस्त्र प्रवाहमान हैं। इसलिए यहा गुरुमुखी संस्कृति का दिग्दर्शन होते हैं-

गुरुमुख गुरुमुख पार उतरगे नेगुरा ह गये भुंजाय
          जैसे साखी से यह प्रमाणित होते हैं। साधना सिद्धि कर कोई भी प्रग्यावान  सतनाम के स्वरुप को जान समझकर  गुरुत्व भार गुरुपद धारण करते है। तथा अपनी वाणी ध्यान स्पर्श व आशीर्वाद से शिष्य के अन्तर्मन को प्रकाशमान करता है। उनके अंदर की आत्महीनता तमस आलस्य प्रमाद को हटाकर उन्हे ओजस्वी तेजस्वी और विवेकी बनाते हैं।
        ऐसे ही समर्थवान शिष्य ही गुरु के निर्देशानुसार जनकल्याण के निमित्त अनेक रचनात्मक कार्य में प्रवृत्त होते हैं।
            मन वचन कर्म से यदि कोई व्यक्ति इन मह्ती कार्य को करे तो वह निर्मल यश के प्रतिभागी होकर जीते जी  परमपद व सतलोक प्राप्त करता हैं।
           यह सतनाम संस्कृति बौद्ध धम्म ,खालसा पंथ ,कबीर पंथ ,साध पंथ ,सतनामी पंथ, राधास्वामी  मानव धर्म, प्रेम पंथ,जैसे अनेक मत पंथ सम्प्रदाय में अस्तित्व मान होकर इसी श्रुति परंपरा संगत पंगत अंगत द्वारा वैश्विक विस्तार की ओर अग्रसर है।
             ।।सतनाम ।। 
      संसार सतनाम मय हो
             सतश्रीसतनाम

डा- अनिल भतपहरी
चित्र - सतनाम धाम नारनौल दोशी पहाड़ समीप नई दिल्ली  भारत

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