जोगनदी पलाशिनी
अमृत जल वाहिनी
है बहु व्याधि हरिणी
मन की विकार नाशिनी
इनकी तट पर पावन तपोभूमि
गिरौदपुरी सत्घाम है विराजती
धन्य वन प्रांतर हुआ महिमामय
घासीगुरु के तपबल से गरिमामय
लाखो नर- नारी कर स्नान
अर्जित करते पुण्य कर आचमन
प्रकृति से पल भर होते मिलाप
मिटते दु:ख सब क्लेश संताप
जीवन प्रवाह में द्वीप सा कठोर भार
विगलित करते सत्संग जड़ता विकार
जल मध्ये प्रकृतस्थ हस्ति प्रतिमा
मन मैगल प्रछालित चमके चंद्र पूर्णिमा
यहां केवल मेल मिलाप नही
हाट बाजार व्रत उपवास नही
होते यहां सभी जन सत साधक
बनकर आते वे सबके लायक
संत सेवक अरु सत्यानुरागी
संकल्पित मन में बनु सतगामी
पंगत संगत का अनुठा महा पर्व
तट पर सम्पन्न अनुष्ठान यह सर्व
भरते हृदय में उमंग अरु उत्साह
पावन सतनाम सरित प्रवाह
गाकर जस प्रफूल्लित हुआ अनिल
सुर मे ताल मिलाकर हर्षित इनकी सलिल ...
-डा. अनिल भतपहरी
Tuesday, October 23, 2018
"जोगनदी "
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