"आभास "
अनगढता का भी
अपना अनुपम सौन्दर्य हैं
बेतरतीब ऊगे धांस
पेड-पौधे जंगल -झाड़ी
नदी- पहाड़, खेत- खलिहान
गाँव-गली ,कुंआ- बाड़ी
आकर्षित करते अपनी ओर
लगते मनोहारी
सुगढ़ता से भी एक दिन
होने लगता हैं उकताहट
और सुविधाएं ही
उत्पन्न कराते हैं संकट
शास्त्रीय से अधिक भावप्रवण
होते हैं लोक जीवन्त
पर जब थकोगे
किसी आश्रय या छाया ढूंढ़ोंगे
तो उसे अपने आस-पास पाओगे
कर्ता वही हैं
सुकर्ता वही हैं
आप हम या अन्य हैं माध्यम
उनके सृजन का
कहीं भी वह ऊगा सकते हैं
आस्था के फूल
सुछ्म या स्थूल
सुवास सा वास
वास सा सुवास
बिन मांगे दुआ
दु:ख मे भी
खुश रहे सदा
जो हैं वह जाएगा
और जो नहीं हैं
वह आएगा
पल- पल परिवर्तन
का हो आभास
सदैव प्रांसगिक
दिव्य नव कलेवर
प्रति उच्छवास !
-डा. अनिल भतपहरी
जुनवानी अमलीडीह रायपुर
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