Saturday, October 3, 2020

ठोम्हा भर पसिया अउ मुठा भर भात

" ठोम्हा भर पसिया अउ  मुठा भर भात  "

    नाव भले सुधारन हे, फेर ओकर सब बिगड़े हवे। बुढ़तकाल म जब ओकर जांगर थकगे अउ सख नई चले लगिस, त गोठ चले ल धरलिस ।बड़ तो अतलंग करे रहिस ...अपन नांव के अभिमान म । मार जवानी के जोश म  भुकरत  जोन ल पाय तोन ल, बेरा देखे न कुबेरा कहय -
" मोर नांव नइ सुने अस का ? सुधार देहु "
 सुधारनसिंग ल न  कखरो डर ये न भरोसा।अपन भरोसा तीन परोसा ... कहत बानी वाला अपन बर बिहई ल   उही दिन डनिया के ,डेहरी निकाल दिस जोन दिन बिचारी अपन मुंह उबाइस !उहु बड़ दु:खियारिन हे नांव सुखिया हे त का भइस । 
        तकत्कहा और खरखर अपन जोड़ी के संग बने सुख से जिनगी पहावत रहीस ,एक दिन बने राहेरदार रखिया बरी रांधे जेवन परोसिस । सुधारन बिन बोले खाय अउ हाथेच के इशारा म पोरसौनी लेवय .. ते पाय के उन ल दुसर मन न इ परोसे खवाय  अउ एक एब रहिस, कंडील दीया भुता जय त सथरा छोड़ अचो दय। 
    अब अल्हन होनच बदे रहिस त, कोनो उपाय कर ले नई रुके, न थमे ,होइच के रथे। ओसनेहच होगे। दार म नुन जादा होगे रहय अउ बरी म डारे बर भुलागिस !कलेचुप गरवा बरोबर सुधारन   खाय लगिस ... फेर ये का  ठउके  लैन गोल होगे।बपुरी सुखिया आरती दीया बारेच रहीस  फेर निसाना म मढाय कि घुंका म बुझागिस ।खात घानी कुलुप , नुनछुर अउ सीठ्ठा दार- साग  के सेती  सुधारन अगिया बैताल होगे !  तरपंवरी के रीस माथ मं चढिगय  रीस म बदाबद सुखिया ल सुधारबन सुधारे धरलिस .चंउर कस छरत बपके  लगिस-" का समझत मय गाय- गरुवा अंव , बने जात के खवई न पीअई ।ये तोर माय- मइके नोहय, जिहां मइलोगन के हुकुम चलथे ।"
     बस इहीच बोली के चिबोली कि - "बात बात तंय माय मइके ल झन उटक " 
    लिख के लाख होगे राई के पहार सिरजगे ।सच कहे त लुक प पैरावट लेसागे !
     सुखिया लांघन सोपा परत  बिलखत ..सुसकत .दुरिहा के फुफु लागे तरिया पार मं बसे रहिस के घर आके रात पहाइस। इकरे जोरे ले  ए गांव मं बिहाय आए  रहिन फेर कुछेक साल बाद  ओकरों से अनबनता हो गय रहिन । ले दे बुढी फूफू ह अपन बेटा मन सो हाथ जोर रात पहाय बर डेहरी के फरिका उधारिस नही त सांय सांय खार के रतिहा में हुर्रा , गाहबर -साहबर के डर मं क इसे करतिस बौपरी हर।  संगे संग रोवत सुसकत फूफू कहिन - "नारी परानी के जीयत ले कोनो थेभा नहीं रहय, मरबे तभे सुख पाबे !"  आंखी -आंखी मं रतिहा बिताइस अउ  बड़े फजर कोन्हो झन देखे चुप्प निकल गिस ! 
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     समे कइसे पहाथे ओकर गम नी रहे फेर सुख के समे ल झन पुछ .... बांबी मछरी कस सलंग देथे ।
         मोटर म बिन टिकस के  चघे सुधारन ल कनडेक्टर ह धकियावत उतारे लगिस .-"अरे डोकरा जब हाथ मं  रकम नही त मोटर च ढे के सउक काबर मरथस ?
निकल इंहा ले ....उतर ... सीठी मारत डरेवल ल बस रोके कहिस ।
      पैलगी करत  हाथ जोड़त डोकरा  बोमियाय लगिस - " ददा मोला बलउदा जान दंव! उहा मंय रुपया देवा देहु!"  
  का उहा तोर बेटा साहेब दरोगा हे का?   
रोनहुत कहिस -" नही ददा !  बेटा -बहु  के दुख के सेती आज मोर ये दसा हवे।  ननपन ल कोरा छोडा के पोसे हंव ,बर -बिहाव करेव  उही मन ल मय मुरहा दाई -ददा मानेव।आजेच अपन सुवारी के भभकौनी मं  मोला चेचकार के मुहाटी ले फटिक दिन  कहत हे-' बड़ अइबी हस  जा जिहा चले जा । "
 मोटर हर खारे ल नहकत हे बीच मं एक दु झन दयालु सरीख मनखे मन कहिस अगला स्टेशन मं उतार देबे जी बीच खार मं झन उतारव ।
       
डोकरा के आंसु न इ थिरकत हे -"दाई ददा दुनो के दुलार देत पोसे रहेव ,फेर  अपन नवा बाई के रुप म मोकाय परबुधिया  गोसाइन के गुलाम .टुरा ह मोर घर निकाला कर दिस अब का करव  ? ददा हो बताव कहा जांव ...फेर ओकर गोठ ल कोनो सुनत हे कि नहीं कोजनी  सब अपन मं भुलागय !.. ये दे  भैंसा बस स्टेसन म कडेक्टर ह उन ल उतार दिस .!!  उतरत घानी रोनहुत सुधारन कहे लगिस ।आवत हंव "साहेब"  तोर सरन म "ठोम्हा भर पसिया  अउ एक मुठा भात " के असरा हवे !पा जातेंव ,त मोर सहिक अधर्मी चोला तर जतीस ! गुरुगद्दी खपरीडीह धाम म सुने रहीस उहां  सदाव्रत भंडारा चलथे अउ कत्कोन दु:खिया उंहा आके तरत हवे । दसकोसी  मनखे सकलाथे अउ मुक्तिदाससाहेब के जस -गुन देख हिरहंछा होथे । 

     दुःख म जिनगी पाहत  एक कौरा खात भाई भौज ई के गारी गल्ला सुनत सहत सुखिया तको बुढत काल मं  अपन माय मइके वाले मन संग बड़ दिन म गुरुद्वारा आय रहिस माथ नवाय । 
          संझाकन अटाटुट मनसे गुरुद्वारा के आघु मं बने जोड़ा जैतखाम चौरा म सकलाय हे ।तन -मन के पीरा ल हर लय साहेब कहिके हाथ म सरधा के फूल अउ फल -नरियर घरे साहेब अउ गुरुगद्दी भजे जात हवे ! 
     सुधारन लैन म खडे माइलोगिन म सुखिया ल ठाड़े देखिस अउ बोमफारे रोवन लगिस ! 
तरतर तरतर दुनो के आंसु बोहात हे 
    बीस सला टुटे -जरे- झुलसाय  रिस्ता हरियाय ल धरलिस .।
            सुधारनसिंग सच में आज सुधरगे ओकर रुवाप झरगे अउ चेथी डहन के आखी ल माथ डहन लहुट गे । तब ले उन  दुनो परानी गुरुद्वारा म सेवादार बनके चुल म हंडिया- हड़िया भात राधंत ,पतरी सिलत लंगहा -भुखहा ,पियसहा ल पानी पियावत -खवात अपन जिनगी पहात हवे।..बने मंगल  भजन अउ सतनाम संकीर्तन तको गाय बजाय ल सीख गे  हवे।  
               सुधारन सिंग ह  अब सुधारनदास बनके  गुरु अउ जन  सेवा म अपन जीवन ल समरपित कर दिस। 
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(अव इया जवइया मन कना कभु -कभु गोठिया परथे - 
" ठोम्हा भर  पसिया अउ मुठा भर  भात " अपन सिरहा डोली ले पाय के साध  बाचे हवय )

                        -डाॅ. अनिल भतपहरी ९६१७७७७५१४
                            जुनवानी ,अमलीडीह रायपुर

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