" ठोम्हा भर पसिया अउ मुठा भर भात "
नाव भले सुधारन हे, फेर ओकर सब बिगड़े हवे। बुढ़तकाल म जब ओकर जांगर थकगे अउ सख नई चले लगिस, त गोठ चले ल धरलिस ।बड़ तो अतलंग करे रहिस ...अपन नांव के अभिमान म । मार जवानी के जोश म भुकरत जोन ल पाय तोन ल, बेरा देखे न कुबेरा कहय -
" मोर नांव नइ सुने अस का ? सुधार देहु "
सुधारनसिंग ल न कखरो डर ये न भरोसा।अपन भरोसा तीन परोसा ... कहत बानी वाला अपन बर बिहई ल उही दिन डनिया के ,डेहरी निकाल दिस जोन दिन बिचारी अपन मुंह उबाइस !उहु बड़ दु:खियारिन हे नांव सुखिया हे त का भइस ।
तकत्कहा और खरखर अपन जोड़ी के संग बने सुख से जिनगी पहावत रहीस ,एक दिन बने राहेरदार रखिया बरी रांधे जेवन परोसिस । सुधारन बिन बोले खाय अउ हाथेच के इशारा म पोरसौनी लेवय .. ते पाय के उन ल दुसर मन न इ परोसे खवाय अउ एक एब रहिस, कंडील दीया भुता जय त सथरा छोड़ अचो दय।
अब अल्हन होनच बदे रहिस त, कोनो उपाय कर ले नई रुके, न थमे ,होइच के रथे। ओसनेहच होगे। दार म नुन जादा होगे रहय अउ बरी म डारे बर भुलागिस !कलेचुप गरवा बरोबर सुधारन खाय लगिस ... फेर ये का ठउके लैन गोल होगे।बपुरी सुखिया आरती दीया बारेच रहीस फेर निसाना म मढाय कि घुंका म बुझागिस ।खात घानी कुलुप , नुनछुर अउ सीठ्ठा दार- साग के सेती सुधारन अगिया बैताल होगे ! तरपंवरी के रीस माथ मं चढिगय रीस म बदाबद सुखिया ल सुधारबन सुधारे धरलिस .चंउर कस छरत बपके लगिस-" का समझत मय गाय- गरुवा अंव , बने जात के खवई न पीअई ।ये तोर माय- मइके नोहय, जिहां मइलोगन के हुकुम चलथे ।"
बस इहीच बोली के चिबोली कि - "बात बात तंय माय मइके ल झन उटक "
लिख के लाख होगे राई के पहार सिरजगे ।सच कहे त लुक प पैरावट लेसागे !
सुखिया लांघन सोपा परत बिलखत ..सुसकत .दुरिहा के फुफु लागे तरिया पार मं बसे रहिस के घर आके रात पहाइस। इकरे जोरे ले ए गांव मं बिहाय आए रहिन फेर कुछेक साल बाद ओकरों से अनबनता हो गय रहिन । ले दे बुढी फूफू ह अपन बेटा मन सो हाथ जोर रात पहाय बर डेहरी के फरिका उधारिस नही त सांय सांय खार के रतिहा में हुर्रा , गाहबर -साहबर के डर मं क इसे करतिस बौपरी हर। संगे संग रोवत सुसकत फूफू कहिन - "नारी परानी के जीयत ले कोनो थेभा नहीं रहय, मरबे तभे सुख पाबे !" आंखी -आंखी मं रतिहा बिताइस अउ बड़े फजर कोन्हो झन देखे चुप्प निकल गिस !
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समे कइसे पहाथे ओकर गम नी रहे फेर सुख के समे ल झन पुछ .... बांबी मछरी कस सलंग देथे ।
मोटर म बिन टिकस के चघे सुधारन ल कनडेक्टर ह धकियावत उतारे लगिस .-"अरे डोकरा जब हाथ मं रकम नही त मोटर च ढे के सउक काबर मरथस ?
निकल इंहा ले ....उतर ... सीठी मारत डरेवल ल बस रोके कहिस ।
पैलगी करत हाथ जोड़त डोकरा बोमियाय लगिस - " ददा मोला बलउदा जान दंव! उहा मंय रुपया देवा देहु!"
का उहा तोर बेटा साहेब दरोगा हे का?
रोनहुत कहिस -" नही ददा ! बेटा -बहु के दुख के सेती आज मोर ये दसा हवे। ननपन ल कोरा छोडा के पोसे हंव ,बर -बिहाव करेव उही मन ल मय मुरहा दाई -ददा मानेव।आजेच अपन सुवारी के भभकौनी मं मोला चेचकार के मुहाटी ले फटिक दिन कहत हे-' बड़ अइबी हस जा जिहा चले जा । "
मोटर हर खारे ल नहकत हे बीच मं एक दु झन दयालु सरीख मनखे मन कहिस अगला स्टेशन मं उतार देबे जी बीच खार मं झन उतारव ।
डोकरा के आंसु न इ थिरकत हे -"दाई ददा दुनो के दुलार देत पोसे रहेव ,फेर अपन नवा बाई के रुप म मोकाय परबुधिया गोसाइन के गुलाम .टुरा ह मोर घर निकाला कर दिस अब का करव ? ददा हो बताव कहा जांव ...फेर ओकर गोठ ल कोनो सुनत हे कि नहीं कोजनी सब अपन मं भुलागय !.. ये दे भैंसा बस स्टेसन म कडेक्टर ह उन ल उतार दिस .!! उतरत घानी रोनहुत सुधारन कहे लगिस ।आवत हंव "साहेब" तोर सरन म "ठोम्हा भर पसिया अउ एक मुठा भात " के असरा हवे !पा जातेंव ,त मोर सहिक अधर्मी चोला तर जतीस ! गुरुगद्दी खपरीडीह धाम म सुने रहीस उहां सदाव्रत भंडारा चलथे अउ कत्कोन दु:खिया उंहा आके तरत हवे । दसकोसी मनखे सकलाथे अउ मुक्तिदाससाहेब के जस -गुन देख हिरहंछा होथे ।
दुःख म जिनगी पाहत एक कौरा खात भाई भौज ई के गारी गल्ला सुनत सहत सुखिया तको बुढत काल मं अपन माय मइके वाले मन संग बड़ दिन म गुरुद्वारा आय रहिस माथ नवाय ।
संझाकन अटाटुट मनसे गुरुद्वारा के आघु मं बने जोड़ा जैतखाम चौरा म सकलाय हे ।तन -मन के पीरा ल हर लय साहेब कहिके हाथ म सरधा के फूल अउ फल -नरियर घरे साहेब अउ गुरुगद्दी भजे जात हवे !
सुधारन लैन म खडे माइलोगिन म सुखिया ल ठाड़े देखिस अउ बोमफारे रोवन लगिस !
तरतर तरतर दुनो के आंसु बोहात हे
बीस सला टुटे -जरे- झुलसाय रिस्ता हरियाय ल धरलिस .।
सुधारनसिंग सच में आज सुधरगे ओकर रुवाप झरगे अउ चेथी डहन के आखी ल माथ डहन लहुट गे । तब ले उन दुनो परानी गुरुद्वारा म सेवादार बनके चुल म हंडिया- हड़िया भात राधंत ,पतरी सिलत लंगहा -भुखहा ,पियसहा ल पानी पियावत -खवात अपन जिनगी पहात हवे।..बने मंगल भजन अउ सतनाम संकीर्तन तको गाय बजाय ल सीख गे हवे।
सुधारन सिंग ह अब सुधारनदास बनके गुरु अउ जन सेवा म अपन जीवन ल समरपित कर दिस।
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(अव इया जवइया मन कना कभु -कभु गोठिया परथे -
" ठोम्हा भर पसिया अउ मुठा भर भात " अपन सिरहा डोली ले पाय के साध बाचे हवय )
-डाॅ. अनिल भतपहरी ९६१७७७७५१४
जुनवानी ,अमलीडीह रायपुर
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