Friday, October 30, 2020

सतनाम महामंत्र

हंसा अकेला सतनाम- संकीर्तन में  

सतनाम-महामंत्र 

जो नर सुमरै नित सतनाम  
           जीयत पावै पद निरवान 
 जन्म धरै तो करो कर्म अच्छा 
      दु:ख न  पीरा हो जीवन सच्चा
खान-पान बेवहार हो पबरित
    अन खावै जल पीयय अमरित 
हिरदे सफ्फा मन रहे निश्चछल 
    तबहि पावै सुख सुन्दर सुफल 
सद्कर्म देव हिरदे मन धाम
        हिरदे भीतर बसै सतनाम
मान सम्मान सदा अजर-अमर 
       वंश विस्तार हो सेत -हरियर  
हंसा अकेला उड़ै सतलोक
    बहुरि न आवै कबहु मृतलोक 
जो नर सुमरै नित सतनाम 
     जीयत पावै पद निरवान ...

               - डां.अनिल भतपहरी

टीप - सतलोकी पिताश्री सुकालदास कृत पुनर्प्रकाशित सतनाम- संकीर्तन में संकलित स्वरचित  सतनाम महामंत्र जिसे नित्य आरती व  गुरुवंदना  में प्रस्तुत करते है।

Monday, October 26, 2020

कंठी तो फांसी भये ...

कंठी तो फांसी भये ,तिलक  भये  तलवार ।
  सतनाम महुरा भये ,जोत पीये चतुर सुजान‌।।

सतनाम पंथ में बहुप्रचलित  यह साखी उलट बांसी  हैं ।इनके अपने विशिष्ट अर्थ हैं। समय- समय पर साधक साधु संत व आचार्य गण इस संदर्भ में गहन मनन- चिंतन करते ही रहते हैं। सच कहे तो साधारण सा दिखने वाला कंठी तिलक कैसे फांसी और तलवार हो जाएगा और अमृतयमय सतनाम महुरा कैसे हो जाएगा ?यह गुढ़तम बातें उक्त उलटबांसी में अन्तर्ध्वनित हैं।
  सामान्यत:  गुरुमुखी जन साधारण  कनफुक्का गुरु से कान फूकाकर कंठी धारण करना और माथे पर चंदन तिलक लगाना  और नित्य सतनाम जपना इन लोगों के लिए  क्रमश: फांसी तलवार और महुरा यानि जहर की तरह हो जाते  है। सहजतापूर्वक मिथ्या व आडंबर से भरा संसार जीवन निर्वहन कठिन हो जाते हैं। इसलिए ऐसा कथ्य या मंतव्य चल पड़ा हैं।
   आधी -अधुरी जानकारियाँ और प्रतीकों के बिना सही उद्देश्य  जाने समझे  बगैर धारण करना मुस्किल ही नहीं संकट जन्य होते  हैं। 
यह संत और साधु वेष का प्रतीक हैं। इसे जल्दबाजी में या फैशन में  धारण कर लेने से  धारक के लिए फांसी तलवार व जहर की तरह कष्टदायक और हंसी के पात्र बन जाते हैं। जैसे लालची आमिष आहारी देखादेखी जोश में आकर सात्विक होने कंठी पहन लिए तो आमिष चीजों को देख ललचते रहेगा और पावन कंठी को फांसी समझ लेगा। तिलक उनके लिए तलवार सदृश्य हो जाएन्गे । इसी तरह झुठ फरेब से काम लेना वाला सत्यनिष्ठ होने की ढोंग करते ऊपर से ही  सतनाम सतनाम जपेगा उनके लिए वह विष की तरह हो जाएगा।
 
   चतुर सुजान तो वह है जो कंठी की फांसी (जैसे कि जन मानस कहते है ) तिलक की तलवार और सतनाम जो अमृत है (जन साधारण सच बोलके मरोगे क्या? कह) को  जहर कह लेते हैं, इसे बड़ी श्रद्धा व सहजता से धारण कर इनके जोत अर्थात् चमक/ तेज को पीकर बडे ही तेजस्वी हो जाते हैं।
जबकि कच्चे और अति साधरण लोग जल्दबाजी देखादेखी  या फैशन में पड़कर कठिनाई में फस जाते है ।उनके लिए कंठी , फांसी  तिलक तलवार,और सतनाम जो अमृत है वह जहर बन  जाते हैं।
     साधना और आचरण गत व्यवहार करके पहले काबिल बनना चाहिए ।संत वृत्ति व समदर्शी भाव जागृत होना चाहिए  तब इन प्रतीकों को धारण करे तभी इनकी महत्ता है । अन्यथा नादान और ना समझ के लिए यह क्रमशः फांसी तलवार और जहर ही है। इसलिए वे इनसे दूर रहते और भागते है।  
   यही इस उलटबासी साखी का असल भावार्थ हैं। 
     सतनाम
                     -डाॅ. अनिल भतपहरी

कंठी तो फांसी

कंठी तो फांसी भये ,तिलक  भये  तलवार ।
  सतनाम महुरा भये ,जोत पीये चतुर सुजान‌।।

सतनाम पंथ में बहुप्रचलित  साखी उलट बांसी  हैं इनके अपने विशिष्ट अर्थ हैं। 
  गुरु से कान फूकाकर कंठी धारण करना और माथे पर चंदन तिलक लगाना  और नित्य सतनाम जपना साधारण लोगों के लिए  क्रमश: फांसी तलवार और महुरा यानि जहर की तरह हो जाते  है। 
   आधी -अधुरी जानकारियाँ और प्रतीकों के बिना सही उद्देश्य  जाने समझे  बगैर धारण करना मुस्किल ही नहीं संकट जन्य होते  हैं। 
यह संत और साधु वेष का प्रतीक हैं। इसे जल्दबाजी में या फैशन में  धारण कर लेने से  धारक के लिए फांसी तलवार व जहर की तरह कष्टदायक और हंसी के पात्र बन जाते हैं। 
   चतुर सुजान तो वह है जो कंठी की फांसी (जैसे कि जन मानस कहते है ) तिलक की तलवार और सतनाम जो अमृत है (जन साधारण सच बोलके मरोगे क्या? कह) को  जहर कह लेते हैं, इसे बड़ी श्रद्धा व सहजता से धारण कर इनके जोत अर्थात् चमक/ तेज को पीकर बडे ही तेजस्वी हो जाते हैं।
जबकि कच्चे और अति साधरण लोग जल्दबाजी देखादेखी  या फैशन में पड़कर कठिनाई में फस जाते है ।उनके लिए कंठी , फांसी  तिलक तलवार,और सतनाम जो अमृत है  जहर बन  जाते हैं।
     साधना और आचरण गत व्यवहार करके पहले काबिल बनना चाहिए ।संत वृत्ति व समदर्शी भाव जागृत होना चाहिए  तब इन प्रतीकों को धारण करे तो महत्ता है । अन्यथा नादान और ना समझ के लिए यह क्रमशः फांसी तलवार और जहर ही है। इसलिए वे इनसे दूर रहते और भागते है।  
   यही इस उलटबासी साखी का असल भावार्थ हैं। 
     सतनाम
                     -डाॅ. अनिल भतपहरी

Saturday, October 24, 2020

तुरतुरिया

"बौद्ध तुरि साधना स्थली तुरतुरियां "

आध्यात्मिक साधना एंव योग सिद्धी मे" तुरि" अवस्था को अर्जित करने सुरम्य व एकांत वन प्रांतर अत्यंत उपयुक्त स्थल माने गये है। 
      इसलिए मध्य भारत में बौद्धमहानगरी सिरपुर के समीप तुरतुरिया नामक जगह में बौद्ध साधक तुरि साधना में लीन रहा करते थे। इसके कारण ही तुरतुरिया नाम पड़ा। 
 लोक मान्यता में  कलकल करती निर्झरणी भी प्रवाहित है जो तुर तुर की ध्वनि करती है इसलिए  तुरतुरिया कहते है। शाक्त मत में इन भिछुणियों की प्रतिमाओं को  देवी मानकर पूजने लगे है और मातागढ़ एक शक्तिपीठ के रुप में ख्यातिनाम है। वाल्मिकी आश्रम व लवकुश जन्म स्थल के नाम पर चर्चित पौष पूर्णिमा में यहां भव्य मेला लगता है।  
   बाहरहाल  यह सुखद संजोग है कि सतनाम धर्म संस्कृति में भी साधना और समाधि की संस्कृति प्रचलन में अब भी है।
एक  सतनाम साखी जो पंथी  मंगलभजन के पूर्व गाए जाते है  और वे छत्तीसगढ़ी में है उनमें ध्यान की इस तुरि अवस्था का जिक्र है - 
 लछ्य कोस म  गुरु बसे, सुरता दिहव पठाय।
  ग्यान तुरि असवार है,  छिन आवय पल जाय ।। 
                 विद्जन भावार्थ ग्रहण करे एंव सतनाम पंथ और बौद्ध धम्म में सहजयान की साधना पद्धति की साम्यता को समझे और आत्मसात करे।
 गिरौदपुरी  तुरतुरिया व सिरपुर एक ही परिछेत्र में महज २५-३० कि मी दायरे मे अवस्थित है ।
                    ।‌।सतनाम ।।
 चित्र - तुरतुरिया में स्थित बुद्ध व भिछुणियों की प्रतिमाएं जो यत्र तत्र बिखरे है में से कुछ  झोपड़ियों में शोभायमान‌ है।

Friday, October 16, 2020

जस गीत

मोर घर के अंगना मं फूले , रिगबिग चंदैनी गोंदा चुन चुन हार सिरजातेंव 
मइया के चरण मं सरधा के फूल चढा़तेंव ...
बड़ फजर सुत उठके करेंव नंदिया  असनांद 
करेंव नंदिया असनांद हो माया करेंव नंदिया असनांद 
धोवा के धोती सोनहर अलफी  चंदन सारेव माथ 
चंदन सारेंव माथ मं इया चंदन सारेंव 
झुमर झुमर तोर जस पचरा गातेंव ...

२ रतन पिंवरी चंपा चमेली फूल गोंदा छतनार ...
फूल गोंदा छतनार भवानी 

आमा अमली लिंबु माते , लटलट फरे अनार 
लटलट फरे अनार हो माया 
 टोर के फरहार करवातेंव ....
तोर नांव ले ले के मंइया, लहु  रकत बोहाथे 
मंद मउहा मं चुर अधरमी तोर अपजस  फैलाथे 
मयारुक ममता के दरसन करावातेंव ....

डाॅ. अनिल भतपहरी

मोती महल‌ गुरुद्वारा का निर्माण

#anilbtapahari 

।।सतनाम पंथ का विश्व प्रसिद्ध मोती महल गुरुद्वारा भंडारपुरी ।।

    इस भव्य स्मारक को गुरुघासीदास मंदिर के नाम से भी  जाने जाते हैं। इसे जीर्णोद्धार / नव निर्माण के नाम पर  तीन दशक पूर्व ढहा दिए गये हैं। वहाँ केवल ढाचा मात्र है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि  पुरी एक पीढ़ी इस गौरवशाली दृश्यांकन व दृष्टान्त से वंचित हैं । जब देश भर में महत्वपूर्ण स्मारकों का जीर्णोद्धार व अनेक नव आस्था के नवनिर्माण जारी हैं। तब इसके लिए 
 कुछ भी पहल या हलचल न होना बेहद चिन्तनीय हैं।  
    देश भर के लाखों- करोड़ों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र इस ऐतिहासिक ईमारत कब अपनी पूर्व स्वरुप में स्थापित होगा? इसका उत्तर संभवतः किसी के पास नहीं हैं। 
               ज्ञात हो कि इसका निर्माण १८२०-३० के बीच गुरुघासीदास के निर्देशन में राजा गुरुबालकदास ने एक दृष्टान्त के रुप में करवाया था ताकि इनके अवलोकन मात्र से सतनाम धर्म संस्कृति की जानकारी जन साधारण को हो सके।  यहाँ से ही पुरे छत्तीसगढ़ और उनके बाहर सतनाम पंथ का प्रचार -प्रसार हुआ। देश के कोने -कोने से श्रद्धालु यहाँ आते और मत्था टेक कर अपनी धार्मिक भावनाओं का इजहार करते थे ।अनुपम ज्ञान प्राप्त कर कृतार्थ होते थे। दूर से दर्शन मात्र से गुरु उपदेशना का भावबोध होता था।  शिखर के चारों कोने पर तीन बंदर और गरजते हुए शेर का शिल्पांकन से युक्त  चौखंडा महल का नीचे भाग तलघर था। संपूर्ण प्रखंड वास्तु व  काष्ठ कला की अनुपम कारीगरी रही हैं । यह मानव जीवन के चारो अवस्था का शानदार व्याख्या था।पुरातत्त्व की दृष्टिकोण से अतिशय महत्वपूर्ण इस ईमारत का राजनैतिक उठापटक ,शासन -प्रशासन की अनदेखी और उचित  प्रबंधन के अभाव में यह जमींदोज हो गया जो कि  अत्यन्त दयनीय व दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति हैं। 
           छत्तीसगढ़ी संस्कृति की अस्मिता और ‌पुरे विश्व के मानव समाज को मानवता का संदेश देने वाली इस भव्य ऐतिहासिक  ईमारत की हुबहु प्रतिरुप में निर्माण अत्यावश्यक है।   
                इस पावन कार्य हेतु  गुरुदर्शन मेला  मे लाखों दर्शनार्थियों की उपस्थिति में प्रबंधन मंडल की ओर से उचित व सार्थक पहल करते हुए नव निर्माण की घोषणा होनी चाहिए।  खास तौर पर अनेक सामाजिक व धार्मिक संगठन है जो सतनाम धर्म संस्कृति के पैरोकार समझते हैं उन्हे चाहिए कि केवल जनप्रतिनिधी एंव गुरुवंशज ही उनके लिए उत्तरदायी नहीं है बल्कि उनके साथ साथ जन समर्थन व सहयोग  कैसे एकजुट हो ? इन पर गंभीरतापूर्वक चिंतन मनन व सकरात्मक  कार्य करें।
         जय सतनाम 
               
          -डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Thursday, October 15, 2020

मय दानव का मायाजाल

मै की बिमारी फैले है
चारो तरफ चहुं ओर 
मै से हम हम से मै 
का हैं सब तरफ शोर 
आजकल का नहीं ,
यह रोग बहुत पुरानी हैं
मय दानव के मायाजाल से
भरी -पुरी कहानी हैं
मैं के कुनबे मिलकर
आपस में हम हुआ 
फिर जातिय संगठन
का उन्हे अहम हुआ 
मानवता पिसाती गई 
इनकी काली करतुत से 
तुष्ट भले वे हो अपनों में
पर मरते जन दारुण दु:ख से 
मैं के कारण ही सर्वत्र 
छल -छद्म  पलने लगा 
वर्ग संघर्ष शोषण दमन का
चक्र  चलने लगा 
उसी का विस्तार देखों
अब भी फल फूल रहा 
पर उपदेश कुशल बहुतेरे 
प्राय:इन के ही उसुल रहा ...
    -डॉ. अनिल भतपहरी

Tuesday, October 13, 2020

तीन कविताएँ काव्य मेराथन में ‌

#PeetMeMotLeave 

वैश्विक काव्य मेराथन में आज हमारा अंतिम ‌दिवस हैं। इन आठ दिनों में हमने अपनी कविताओं सहित कवि मित्रों / परिजनों में अनिल जांगडे, डां . हेमंतपाल धृतलहरे ,संदीप पांडे , कौतुक पटेल ,शशिबाला भतपहरी, संतोष कुर्रे , लोकेश कन्नौजे, और अजय खुंटे जी को सहभागी बनाए।
       कहे जा रहे हैं कि उक्त हैशटेग से सभी सहभागियों की कविता एकत्र की जाएगी ।फिर अल्मानक‌ नामक रुसी संस्था द्वारा चुनिंदे या सबकी एक एक उत्कृष्ट रचना प्रकाशित की जाएगी।
    बहरहाल वहाँ प्रकाशन हो न हो पर इस के माध्यम से अनगिनत कवियों और कविताएँ पढने समझने‌ का अवसर सोशल मीडिया से मिला ।जो कवि जुड़े उन्हे लगा कि एक अभियान के हिस्सेदारी निभाए यह सुखद एहसास रहा। हर बीता क्षण इतिहास हो जाते हैं। यह एक तरह का इतिहास ही बनाना हो रहे हैं।ऐसे में जब बेहद प्रतिस्पर्धा हो और दूर- दराज तक दृष्टि पड़ते हो उस दरम्यान ,अपने आसपास को भी देख समझ और जोड़ लेने की यह बेहद सरल सहज‌ माध्यम जान पड़ा । हम भी सुगमता से काव्य रुपी मशाल ले मेराथन में दौड़ पड़े ।इस यात्रा में जो मित्र हौसला अफजाई अपनी लाइक कमेन्ट्स के द्वारा करते रहे उनके प्रति आभार ।
       कहते हैं रचना चोरी हो जाएगी इसलिए यु ही सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। एक न एक दिन प्रकाशित होने पर वह सबके हो ही  जाते हैं इसलिए बिना नाम के मोह लिए रचना सचमुच में समाजोपयोगी हो ,तो  क्या हर्ज़  हैं? 
        बहरहाल बेफ़िक्र वैश्विक कल्याण की मंगलकामनाएं सहित आज ३ छोटी कविताएँ प्रस्तुत कर अपनी बारी का समापन कर रहे  हैं-
 ।।काव्यार्पण ।।

मेरी कलम की स्याही 
आँसू हैं जो टप-टप चू कर 
काग़ज में कविता बनती हैं
मानवता एंव सत्यता पर 
फिसलते ये कलम 
सिर्फ़ विचार प्रगट करते हैं
मार्क्सवादियों की तरह 
आज हर कवि/ रचनाकार 
सिर्फ़ भावनाओं से शोषित हैं
और जो वाकिय में शोषित हैं
वे लिख नहीं सकते 
गा -बोल नही सकते  
ले देकर जीते हैं
अंत में मर-खप जाते हैं
कार्ल मार्क्स और अंबेडकर की तरह 
ये कम्बख्त कविओं/ वक्ताओं
बहुत सम्मानित होते हैं
उनके वाणी 
महल ड्राइंगरुम में 
सरकारी सभागारों में 
कैद हो जाते हैं 
ठीक कीचड़ के कमल की तरह 
खूबसूरत मंदिर के 
खूबसूरत मूरत के 
खूबसूरत चरण में 
 - डॉ. अनिल भतपहरी 
।।सलाह ।।

सुविधाएँ भी 
उत्पन्न कराती हैं संकट
इसके पहले तो
थे नही कुछ झंझट 
हो गिरफ्त आदमी 
पराधीन हो गये 
सामर्थ्य होते भी 
बलहीन हो गये 
आत्मविश्वास भी 
छीना गया 
ये कैसा डर कर 
जीना हुआ 
एक पेट दो हाथ 
फिर काहे उदास 
अभावग्रस्त पुरखे 
सौ साल जीते थे 
कितने खुशहाल 
कष्टों को पीते थे 
उनके गीत संगीत 
उनकी कथा कहानी 
उनके शौर्य पराक्रम 
उनकी अमृत वाणी 
सोचों क्या ज़रा सा 
हमने ऐसा पाया 
संकट में धैर्य खोकर 
जार-जार आँसू बहाया 
उठो आगे बढ़ो 
करो प्रयाण हिम्मत से 
नायाब नया गढ़ो किस्मत से 
दास न बनो सुविधाओं  के 
बल्कि दास रखों सुविधाओं को‌
मनोरंजन समझना मत‌‌ प्यारे 
 मेरी इ‌न कविताओं को‌
      -डॉ अनिल भतपहरी
।।मज़ा और सज़ा ।।

कहते हैं वो कि उनकी ,मज़ा ही मज़ा हैं
पर सच कहे ज़िन्दगी, सज़ा ही सज़ा हैं

 दिखने  लगा  साफ़ सब, चढ़कर ऊँचाई 
हुए दूर खाली हाथ सब ,तन्हाई ही सज़ा हैं 

यकीन है दूर कर लेगें ,उनकी नाराज़गी 
हर अदा पर उनकी, दिल अपनी रज़ा हैं

उसे पता है कि ये ,आदमी है बेवकूफ़ 
पर न जाने क्युं, उनसे ही वफ़ा हैं

झुके थे सज़दे में तभी ख़बर आया 
आ रही ओ इस तरफ़ हो गई कज़ा हैं 

 जैसा भी है अब तो मस्ती में मलंग है 
आने से उनकी अब रंगीन ही फिज़ा हैं

  -डाॅ. अनिल भतपहरी/ 9617777514

सत श्री ऊंजियार - सदन अमलीडीह रायपुर छत्तीसगढ भारत

Sunday, October 11, 2020

गुरुगद्दी पूजा महोत्सव व गुरुदर्शन मेला

सतनाम धर्म -संस्कृति का मांगलिक अनुष्ठान
 
             *गुरुगद्दी पूजा व गुरुदर्शन मेला महोत्सव*
   
            सतनाम धर्म-संस्कृति में  क्वांर शुक्ल एकम से दसमी तक आयोजित "गुरुगद्दी पूजा महोत्सव और उनके समापन में भव्य शोभायत्रा जुलूस का आयोजन गुरुघासीदास के पुत्र  "राजा गुरु बालकदास " का राज्याभिषेक और उनकी शान में किए जाने वाले राज दशहरा पर्व की शोभायात्रा की मांगलिक अनुष्ठान हैं। 
       क्वांर शुक्ल  एकम से दसमी  तक यह आयोजन होते हैं। दसमी को सतघरा स्नान कर गुरुगद्दी व सतनाम ज्योत कलश को शोभायात्रा द्वारा  सतनाम भवन में स्थापित जोत में समाहित कर देते हैं। 
   दूसरे दिन पंथी नर्तक दल और आखाड़ा वाले क्वार एकादसी को  गुरु दर्शन मेला भंडारपुरी जाते हैं। वहाँ भव्यतम हाथी घोडे के जुलूस  निकाल अनेक करतब पंथी नृत्य ,अखाडा साजते हैं।
   कुछ विद्वान कहते हैं कि  यह परंपरा आशोक दशहरा हैं ।जो सतनाम संस्कृति में आंशिक संशोधन के बाद  १८२० के बाद प्रचलित हुआ।  तब साक्षात् गुरुघासीदास इस आयोजन के सूत्रधार थे।
         सन १८६० में राजा गुरु बालकदास की हत्या और उनके बाद समाज में नेतृत्व शून्यता भीषण अकाल एंव उनके गिरफ्त में जनमानस , बोड़सरा बाड़ा व तेलासी बाड़ा के महाजनों व अन्य के पास  हस्तगत हो जाने और अनेक सामाजिक उथल- पुथल से यह आयोजन स्थगित हो गया।
  केवल  राज दसहरा  गुरुदर्शन मेला के नाम पर भंडारपुरी में एक दिवसीय होते रहे। आसपास के लोग सम्मलित होते और यथा संभव पंथी ,अखाडा  आदि प्रदर्शन करते उसे पूर्ववत तेजस्वी स्वरुप देते नव कलेवर के साथ भंडारपुरी के समीपस्थ ग्राम जुनवानी में शिक्षक सुकालदास भतपहरी एंव मध्य बाल समाज व युवा जागृति मंच के संयुक्त तत्वावधान से १९८५ में दस दिवसीय आयोजन  किए गये‌ ।उसके बाद व्यवस्थित ढंग से गांव -गांव दसदिवसीय गुरुगद्दी पूजा महोत्सव आयोजन कर शौर्य -पराक्रम अर्जित करने  वाली उक्त महाआयोजन का पुनश्च आरंभ हुआ।यह सैकड़ों  ग्रामों /कस्बो में उत्साह पूर्वक मनाए जा रहे हैं।
   गुरुगद्दी पूजा महोत्सव ३५वां वर्ष का आयोजन  तो हमारे ग्राम जुनवानी में  इस वर्ष हो रहा हैं। 

" गुरुगद्दी पूजा समोखन "
   और दु:ख-दंश हरा परब

सतनाम धर्म के चारों शाखाओं और देश विदेश में निवासरत सतनामियों मे गुरुगद्दी पूजा विधान प्रचलित है।
  गुरुगद्दी सद्गुरु के आसन है जिसपर  आसनगत  होकर अपने सम्मुख उपस्थित अनुयायियों को धर्मोपदेश देते और उनके तमाम उलझनो परेशानियों और दसो तरह  दु:ख व्याधि के हरन का उपाय बताते इसलिए भी यह दु:ख दंशहरा परब है।
   क्वार शुक्ल एकम से  दशमी तक दस दिवसीय इस महापर्व का आयोजन होते है नित्य प्रात: शाम आरती पूजा के साथ साथ संत महंत गुरुओ द्वारा  ग्यान वर्धक व्यख्यान्न सत्संग प्रवचन गुरु ग्रंथ व चरित का पाठ एंव लोक कलाकारों द्वारा प्रेरक व मनोरंजक नाट्य मंचन गायन व नर्तन होते है।कही कही हर शाम सामूहिक भोग भंडारा होते है जिससे इस विकट समय टुटवारो के दिन में परस्पर मिलजुल कर सहभोज कर आत्मिक आनंदोत्सव मनाते है ।यह सब सद्गुरु के समछ  होते है।ताकि पुरी पवित्रता और महत्ता कायम रहे उनका सदैव आशीष मिलता रहे।इस कठिन वक्त जब फसलें खेत मे है और लगभग जन साधारण के अन्नागार कोठी खाली हो उस समय साधन सछम लोग जन कल्याणार्थ इस महा पर्व मे अन्नदान कर सामूहिक भोग भंडारा चलाते है ताकि गरीब गुरबा बडे बुजुर्ग महिलाओं  व बच्चो  को  गुरुप्रसादी के रुप मे भोजन मिल सके।और रात्रिकालीन होने वाले ग्यान वर्धक व मनोरंजक कार्यक्रमों का लाभ उठाकर सुखमय जीवन निर्वाहन कर सके।इसी  प्रयोजनार्थ  सतनाम संस्कृति मे यह महत्वपूर्ण आयोजन है।
    दसवें दिन "सदगुरुआसन" का  प्रात: शोभायात्रा निकाल ग्राम गलियों की परिक्रमा कराते है।और सदानीरा नदी सरोवर के समीप जल परछन कराकर वापस गुरुद्वारा या कोई श्रद्धालु अपने घर नित्य आगामी उत्सव तक पूजा अर्चन करने स्थापित करते है।
   शाम को तेलासी अमसेना खपरी बोडसरा ( वर्तमान मे स्थगित) खडुआ गुरु वंशजो के दर्शनार्थ जाते है शोभायात्रा और उनके सम्मुख श्री मुख से सद्गुरु की अमृतवाणी श्रवण करते कृतार्थ होते है।गुरु उपदेश सिद्धान्त रावटी महात्म से परिपूर्ण संत महंत की उपदेशना चौका आरती भजन पंथी एव ग्यान व मनोरंजन पूर्ण कार्यक्रम देख सुन कृतार्थ होते है।
    दूसरे दिन जग प्रसिद्ध भंडारपुरी गुरुदर्शन दशहरा पर्व का आयोजन हर्षोल्लास पूर्वक होते है।इस दिन हाथी घोडे ऊट पैदल चतुरंगी शोभायात्रा गुरु वंशजो व गुरुगद्दी नशीन धर्मगुरु का उपदेश व प्रवचन होते है।
   सतनामियो का यह सबसे बडा और प्राचीन महोत्सव है। जहां गुरुवंशज के घर से गुरु प्रसादी भोग भंडारा पाकर श्रद्धालु गण लोग धन्य-धन्य हो जाते है।
     छग मे स्थापित सतनामधर्म का यह उत्सव १८३०-४० जब मोती महल गुरुद्वारा का उद्धाटन हुआ और राजा धोषित होने बाद चतुरंगी सेना साजकर आम‌जन मानस को दर्शनार्थ सद्गुरु घासीदास के मंझले पूत्र राजा गुरु बालकदास  भाई आगरदास पुत्र साहेब दास हाथी मे संवार आमजनमानस के बीच आकर गुरु उपदेशना व पंथ संचालन हेतु आवश्यक दिशा निर्देशन किए।
  तब से यह विशिष्ट आयोजन परंपरागत आन बान से आयोजित किए जा रहे हैं। देश भर के लाखों श्रद्धालु गण एकत्र होते हैं जिसे गुरुगद्दी नशीन धर्म गुरु एंव अन्य  गुरु वंशज वर्ष भर के धार्मिक क्रिया कलापों की जानकारियों के साथ- साथ देते हुए सुखमय जीवन हेतु धार्मिक उपदेशना प्रदान करते हैं। संत महंत भी इस अवसर पर उपस्थित जन समूह को संबोधित करते हैं। 
      इस महाआयोजन से समाज सुसंगठित होते हैं। और उपस्थित गांवो के मुखिया /प्रतिनिधि गण  यहाँ से सीखे समझे बातों को अपने अपने ग्रामों जगहों पर संचालित करते हैं। इसलिए  सतनाम संस्कृति में "गुरु दर्शन मेला"  का अतिशय महत्व हैं। 

   गुरुगद्दी पूजा महोत्सव का आयोजन प्रत्येक सतनामी ग्रामों में होना चाहिए दस दिनो तक सामूहिक आयोजन होने से परस्पर लोग सामाजिक व धार्मिक कार्यों में प्रवृत्त होते हैं संगठित होते हैं और वर्ष भर की जाने अनजाने कटुताओं का समापन होते हैं। साथ ही न ई पीढ़ी के लोगों को अपनी समृद्धशाली संस्कृति का हस्तांतरण होते हैं। इस आयोजन का यही प्रमुख उद्देश्य हैं। 

     ।।जय सतनाम ।।

-डॉ. अनिल भतपहरी, 
    9617777514 
सतश्री ऊंजियार- सदन अमलीडीह रायपुर छग

चित्र- १मोतीमहल गुरुद्वारा भंडारपुरी स्वयं कैमरा से खीची ग ई फोटोग्राफ १९९३ 
२ गुरुघासीदास द्वारा धारण किए कंठी माला एंव चरणपादुका सहोद्रा माता की झांपी‌ डूम्हा भंडारपुरी

Saturday, October 10, 2020

गंवाए मछरी जांघ भर

कोठी मं लुकाए लइका,चिहुर परगे गांव भर 
कौव्वा लेगिस कान कुदावय मनखे गांव भर 
पाय मछरी बित्ता भर,गंवाए मछरी जांघ भर... 

कतकोन पय दोदे फेर एक दिन उफलथे 
0अलकर दु:ख  मनखे के मारे- मारे फिरथे 
उतरिस न बोझा मुड़ के लदकागे कांवर खांध भर ...

नानचुक जीव तोर अउ बोहे बोझा गरु 
सुघ्घर मीठ जिनगी मं घोरे  महुरा करु 
बिखहर बिताए दिन, फेर अमरित ले सांझ बर ...

हरहिंछा रहिबे तय, भज ले चरन गुरु 
सत मारग म चलबे तय ,पाबे शरन गुरु
करनी के फल जतका ,हवे तोर सांख भर ...
          -डाॅ. अनिल भतपहरी

सफ़ल वही जो

#PeetMeNotLeave
वैश्विक काव्य मेराथन में आज पंचम दिवस पर बहुमुखी प्रतिभाशाली  विधि स्नातक शिक्षिका  छोटी बहन श्रीमती शशिबाला सोनकेवरें ( भतपहरी ) को‌ आमंत्रित कर रहा हूँ । बाल्यावस्था से ही खेल -खेल में बच्चों के बीच   कविताएँ रचती जैसे-
नाक के अंदर
बड़ा समंदर 
झर -झर करते 
बहती झरना 
ठंडी में जम गये 
देखों न डरना 
उनकी इस प्रवृत्ति से उत्साहित ऋषि सम पिताश्री सतनाम संकीर्तनकार सतलोकी सुकालदास भतपहरी "गुरुजी "उन्हे  ननकुनियां "गार्गी" कहते थे। 

            उनकी समर्थ  हाथों में  काव्य मेराथन की मशाल सौंपते आश्वस्त हूँ । एक सप्ताह तक रोज अपनी एक   कविता और एक कवि मित्र जोड़कर कारवां आगे ले जाएंगी।
        तत्क्षण सेल्फी सहित स्वरचित कविता प्रस्तुत हैं- 

सफ़ल वही जो...

खाए -पीए, अघाए लोग  
बरजते हैं मत खाओ 
कुछ भी मत पीओ 
अपच से परेशान रहोगे 
हम जैसे बीमार पड़ोगे 
अनुभव के नाम पर रोकते हैं
मत जाओं उधर संकट हैं
रास्ते में रोड़े और कंटक हैं
चर्चित वरिष्ठ साहित्यकार 
देते हैं नसीहत अक्सर
मिटा दो छपास 
और मंच की भूख 
इसमें नहीं कोई सुख 
उधर सृजन नहीं 
मान सम्मान नहीं 
क्यों मरे जा रहे हो उद्यम में
उद्योगपति कहते हैं मंदी 
कर्ज में डूबकर शौक से 
कराने है ताले बंदी 
बैठे रहते लिए आरी 
 फूटकर,थोक व्यापारी 
बेरोजगार  नौकरी के लिए 
आवेदन गुपचुप भरते हैं 
क्या पता यही न छीन ले 
भीतर मन ही मन डरते है
सभी क्षेत्र में 
गलाकाट प्रतिस्पर्धा हैं
देखें तो सर्वत्र  
संकट और असुविधा हैं
ऐसे में कोई कैसे 
सहयोग की शुरुआत करे 
पहल करने 
कैसे किससे बात करे 
पर सच तो यह हैं
 मांजते रहो शस्त्र 
पढते रहो शास्त्र 
कोई न सुने 
सहयोग न करे 
निकल चले अकेले 
अपनी सामर्थ्य पर
रखो भरोसा 
करो उद्यम 
टूटे न आशा 
जलाओं तो सही 
एक  नन्हा दीया 
अंधेरे में घिरे लोग 
पाएन्गे एक ठीया 
क्योंकि अधिकतर 
अंधेरा कर 
सितारें हो गये 
तुम बनो तो सही 
एक अदद दीये
माना की उसके तले भी 
रहते हैं अँधेरा 
पर अभियान हो
ईमानदारी से मिटाने 
दीये तले का अँधेरा 
भूल न जाना  
बनना अपना ही दीया 
तप सा जीवन श्रमयुक्त 
सफल वही जो 
बुद्ध सा जीवन किया

-डॉ. अनिल भतपहरी /9617777514
सत श्री ऊंजियार सदन, अमलीडीह  रायपुर छ. ग. भारत. 

Thursday, October 8, 2020

ऋषियों का संधान

*इसे पढ़े और सेव कर सुरक्षित कर लेवे। वाट्सअप पर ऐसी पोस्ट बहोत कम ही आती है।👇*
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (प्रयागराज), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हैं ।
यह आपको पसंद आया हो तो इस महान भारतीय सनातन का ज्ञान भण्डार अपने बच्चों को समझाएं एंव अपने बन्धुओं को भी शेयर जरूर कर अनुग्रहित अवश्य करें यह संस्कार का कुछ हिस्सा हैं।
फिर देखो आनंद ही आनंद है।

Saturday, October 3, 2020

जात पात

#laghukatha21stcentury  लघु कथा मेराथन मे आज हमारा द्वितीय ‌दिवस है। प्रथम दिवस "आभास " पोष्ट कर ख्याति प्राप्त  लघु कथाकार किशन टंडन क्रांति जी उप संचालक महिला बाल विकास को जोड़ा। आज इस अभियान से जुड़ने सादर  आमंत्रित करते हैं- स्वनाम धन्य "श्री सतनाम  प्रभात सागर"  महाकाव्य  के रचयिता आद डॉ. मंगत रविन्द्र जी जो कि‌ बहुचर्चित कथाकार व व्याकरणाचार्य भी हैं। 
            आज इस महादेश की एक ऐसी कुप्रथा जाति जो कभी नहीं जाती को रेखांकित करते प्रस्तुत है हमारी एक लघु कथा-
         

।।जात- पात।। 

रविवार मुर्गे -बकरों की शामत का दिन है। आज शहर में बकरीद की मानिंद सैकड़ों बकरे व मुर्गे कटेन्गे, तकरीबन ८०-९०% घरों में पकेन्गे। और जब ये पकेन्गे तो इन्हे पचाने मदिरा तो आएन्गे ही आएन्गे ।
    बहरहाल इस आलम में जो अछूते हैं ,वही रियल में अछूत हैं। सरकारी नौकरी -चाकरी से लेकर दिहाड़ी करने वाले  कुली कबाडी तक "जश्न ए संडे " में डूब जाते हैं। क्या गजब का अंग्रेज़ी तिहार है ।
    सुबह -सुबह चर्च के प्रेयर से मुक्त होते माइकल  मुलायम बकरे की गोश्त  खरीदने के लिए साइकिलिंग करते शहर की पुरानी कसाई खाना गये। सोचा कुछ कीमा भी लेते आए अर्सा हो गये कबाब खाए? कोरोनाका के लाकडाउन में होटले/ बिरयानी सेंटर  बंद है तो घर में ही पका -खा ले ।  दूर से एक बंदा शायद  जासुस सा हाव भाव देखते समझ गया और जोर से आवाज दिए-" ओय सर जी ! यही मिलेगा शानदार मक्खन जैसा  "करीम का कीमा " 
      पास सायकल खड़ा करते पुछे -"क्या भाव ?" 
"सर जी !७०० रुपये १०० रुपये तो कुटने का लगा रहे हैं। मेहनत बहुत है सर जी !
    अरे लूट रहे हो जी उधर हमारे तरफ तो ६०० में गोश्त लो या कीमा सब समान रेट हैं।
    अरे जनाब !क्या कह रहे हैं कसाई कभी बेईमानी नहीं करता उधर गड़ेरिये और हिन्दुओं की दूकाने है। भला वे लोग हमसे बेहतर कटिंग्स क्या जाने ? यहाँ क्वालिटी और कटाई -चुनाई का महत्व है तभी तो जानकार टूट पड़ते हैं। 
    सच में खाल उतरे बकरे रस्सी से लटके करीने से सजे थे। उनमें मक्खियाँ भिनभिना रही थी ,उसे हांकते और उनकी तरफ दिखाते कहे -"ऐसा सफाई और चुनाई ओ कर दे तो ,कसम मौला की !धंधे छोड़ दे और बकरियाँ चराने गड़रिये बन जाय !"
   "अच्छा यह तो अच्छी बात है! कसाई से गड़रिये यह तो पुण्य का काम है । ये मारना - काटना छोड़ पालना शुरु कीजिए । मारने से बचाने व पालने वाला बड़ा होता हैं। 
   अरे साहब! काहे नीच नराधम बनाने की सोच रहे हैं। हमारे ही लहु सने दिए पैसों  से पलने वाले गड़रिये से हम ऊचे दर्जे का है। वे हमारे आगे गिड़गिड़ाते है हमसे छोटे हैं। बड़ा हमीं हैं और रहेन्गे सदा।
    माइकल सोच मे पड़ गये -"ये ऊंच -नीच  कहा कहां घुस गये हैं। उस दिन कबाड़ वाले देवार कह रहे थे कि हम नेताम आदिवासी देवार  सुअर पालने वाले शहरी  देवार से ऊंच है।  इसी तरह घसिया सूत सारथी सफाई करने वाले  भंगी मेहतर से स्वयं को  ऊंच  कहते हैं। और तो और  खाल छिलने वाले  मेहर  से खाल की जूते बनाने वाले मोची ऊंच बना बैठा है। मलनिया से अधिक प्रतिष्ठित सेलून में बाल काटने वाले नाई है। इसी तरह  बड़ी मच्छी मार नाविक- केवट से नीच छोटी मच्छी और उनकी सुक्सी बेचने वाले  ढीमर हैं। किसान के  बरदी चराने व गोबर बिनने वाले  राउत से बडा खुद के डेयरी चलाने , कचरा  खाद करने वाले यादव  बड़े बने हुए हैं। इधर किसानो में कुर्मी -तेली बड़हर व प्रतिष्ठित है और लोधी अघरिया हिनहर कैसे  गये हैं।शादी- ब्याह व सत्यनारायण  कथा करने  वाले ब्राह्मण अंत्येष्टि  करने/  पितर बरा भात  खाने वाले से ब्राह्मण से उच्च बना हुआ हैं।और पैदल सैनिक से बड़ा हाथी घोड़े वाले क्षत्रिय बड़ा  है।" छोटी किराना और बजरहा बनिए  से शहर में शो रुम खोले वैश्य  उच्च हैं। 
       विचित्र मान्यताओं व संस्कृति वाले अजायबघर देश में मांस ,मदिरा, खान -पान वाले आमिष आहारी और निरामिष के बीच  सडयंत्र कर परस्पर एक- दूसरे को लडाने वाले छुआ-छूत, जात- पात को बढावा देने  प्रभावशाली तथाकथित सात्विक आहारी -विहारी उनके शास्त्र आदि को  यही कीमियागिरी  लोग  पूज्यनीय बना रखे है! जिनकी गाढ़ी कमाई और श्रद्धा के वही लोग सौदागर बने मजे लूट रहे हैं।
    इधर कुछ जातिविहिन समानता वादी  सिख ,सतनामी कबीर पंथी , बौद्ध जैन  ईसाई भी केवल उत्सवी बन‌कर रह गये हैं। और उनमें इनके देखा -देखी अनेक धड़े, फिरके बनने लगे हैं। 
    बहरहाल  ठोस विचारों की किमागीरी करते अपने रास्ते पैडल मारते माइकल आए ..और हमें देख फूट पड़े  ओ लेखक महोदय ! कब इस देश से  जात -पात, ऊंच -नीच  भेदभाव जाएगा और  मानवता स्थापित होकर समानता का मार्ग प्रशस्त होन्गे ? उनके औचक प्रश्न व व्यवहार देख हम हतप्रभ सा रह गये।

    -डॉ. अनिल कुमार  भतपहरी 9617777514 , रायपुर छ ग भारत

ठोम्हा भर पसिया अउ मुठा भर भात

" ठोम्हा भर पसिया अउ  मुठा भर भात  "

    नाव भले सुधारन हे, फेर ओकर सब बिगड़े हवे। बुढ़तकाल म जब ओकर जांगर थकगे अउ सख नई चले लगिस, त गोठ चले ल धरलिस ।बड़ तो अतलंग करे रहिस ...अपन नांव के अभिमान म । मार जवानी के जोश म  भुकरत  जोन ल पाय तोन ल, बेरा देखे न कुबेरा कहय -
" मोर नांव नइ सुने अस का ? सुधार देहु "
 सुधारनसिंग ल न  कखरो डर ये न भरोसा।अपन भरोसा तीन परोसा ... कहत बानी वाला अपन बर बिहई ल   उही दिन डनिया के ,डेहरी निकाल दिस जोन दिन बिचारी अपन मुंह उबाइस !उहु बड़ दु:खियारिन हे नांव सुखिया हे त का भइस । 
        तकत्कहा और खरखर अपन जोड़ी के संग बने सुख से जिनगी पहावत रहीस ,एक दिन बने राहेरदार रखिया बरी रांधे जेवन परोसिस । सुधारन बिन बोले खाय अउ हाथेच के इशारा म पोरसौनी लेवय .. ते पाय के उन ल दुसर मन न इ परोसे खवाय  अउ एक एब रहिस, कंडील दीया भुता जय त सथरा छोड़ अचो दय। 
    अब अल्हन होनच बदे रहिस त, कोनो उपाय कर ले नई रुके, न थमे ,होइच के रथे। ओसनेहच होगे। दार म नुन जादा होगे रहय अउ बरी म डारे बर भुलागिस !कलेचुप गरवा बरोबर सुधारन   खाय लगिस ... फेर ये का  ठउके  लैन गोल होगे।बपुरी सुखिया आरती दीया बारेच रहीस  फेर निसाना म मढाय कि घुंका म बुझागिस ।खात घानी कुलुप , नुनछुर अउ सीठ्ठा दार- साग  के सेती  सुधारन अगिया बैताल होगे !  तरपंवरी के रीस माथ मं चढिगय  रीस म बदाबद सुखिया ल सुधारबन सुधारे धरलिस .चंउर कस छरत बपके  लगिस-" का समझत मय गाय- गरुवा अंव , बने जात के खवई न पीअई ।ये तोर माय- मइके नोहय, जिहां मइलोगन के हुकुम चलथे ।"
     बस इहीच बोली के चिबोली कि - "बात बात तंय माय मइके ल झन उटक " 
    लिख के लाख होगे राई के पहार सिरजगे ।सच कहे त लुक प पैरावट लेसागे !
     सुखिया लांघन सोपा परत  बिलखत ..सुसकत .दुरिहा के फुफु लागे तरिया पार मं बसे रहिस के घर आके रात पहाइस। इकरे जोरे ले  ए गांव मं बिहाय आए  रहिन फेर कुछेक साल बाद  ओकरों से अनबनता हो गय रहिन । ले दे बुढी फूफू ह अपन बेटा मन सो हाथ जोर रात पहाय बर डेहरी के फरिका उधारिस नही त सांय सांय खार के रतिहा में हुर्रा , गाहबर -साहबर के डर मं क इसे करतिस बौपरी हर।  संगे संग रोवत सुसकत फूफू कहिन - "नारी परानी के जीयत ले कोनो थेभा नहीं रहय, मरबे तभे सुख पाबे !"  आंखी -आंखी मं रतिहा बिताइस अउ  बड़े फजर कोन्हो झन देखे चुप्प निकल गिस ! 
          x.                    x.                    x

     समे कइसे पहाथे ओकर गम नी रहे फेर सुख के समे ल झन पुछ .... बांबी मछरी कस सलंग देथे ।
         मोटर म बिन टिकस के  चघे सुधारन ल कनडेक्टर ह धकियावत उतारे लगिस .-"अरे डोकरा जब हाथ मं  रकम नही त मोटर च ढे के सउक काबर मरथस ?
निकल इंहा ले ....उतर ... सीठी मारत डरेवल ल बस रोके कहिस ।
      पैलगी करत  हाथ जोड़त डोकरा  बोमियाय लगिस - " ददा मोला बलउदा जान दंव! उहा मंय रुपया देवा देहु!"  
  का उहा तोर बेटा साहेब दरोगा हे का?   
रोनहुत कहिस -" नही ददा !  बेटा -बहु  के दुख के सेती आज मोर ये दसा हवे।  ननपन ल कोरा छोडा के पोसे हंव ,बर -बिहाव करेव  उही मन ल मय मुरहा दाई -ददा मानेव।आजेच अपन सुवारी के भभकौनी मं  मोला चेचकार के मुहाटी ले फटिक दिन  कहत हे-' बड़ अइबी हस  जा जिहा चले जा । "
 मोटर हर खारे ल नहकत हे बीच मं एक दु झन दयालु सरीख मनखे मन कहिस अगला स्टेशन मं उतार देबे जी बीच खार मं झन उतारव ।
       
डोकरा के आंसु न इ थिरकत हे -"दाई ददा दुनो के दुलार देत पोसे रहेव ,फेर  अपन नवा बाई के रुप म मोकाय परबुधिया  गोसाइन के गुलाम .टुरा ह मोर घर निकाला कर दिस अब का करव  ? ददा हो बताव कहा जांव ...फेर ओकर गोठ ल कोनो सुनत हे कि नहीं कोजनी  सब अपन मं भुलागय !.. ये दे  भैंसा बस स्टेसन म कडेक्टर ह उन ल उतार दिस .!!  उतरत घानी रोनहुत सुधारन कहे लगिस ।आवत हंव "साहेब"  तोर सरन म "ठोम्हा भर पसिया  अउ एक मुठा भात " के असरा हवे !पा जातेंव ,त मोर सहिक अधर्मी चोला तर जतीस ! गुरुगद्दी खपरीडीह धाम म सुने रहीस उहां  सदाव्रत भंडारा चलथे अउ कत्कोन दु:खिया उंहा आके तरत हवे । दसकोसी  मनखे सकलाथे अउ मुक्तिदाससाहेब के जस -गुन देख हिरहंछा होथे । 

     दुःख म जिनगी पाहत  एक कौरा खात भाई भौज ई के गारी गल्ला सुनत सहत सुखिया तको बुढत काल मं  अपन माय मइके वाले मन संग बड़ दिन म गुरुद्वारा आय रहिस माथ नवाय । 
          संझाकन अटाटुट मनसे गुरुद्वारा के आघु मं बने जोड़ा जैतखाम चौरा म सकलाय हे ।तन -मन के पीरा ल हर लय साहेब कहिके हाथ म सरधा के फूल अउ फल -नरियर घरे साहेब अउ गुरुगद्दी भजे जात हवे ! 
     सुधारन लैन म खडे माइलोगिन म सुखिया ल ठाड़े देखिस अउ बोमफारे रोवन लगिस ! 
तरतर तरतर दुनो के आंसु बोहात हे 
    बीस सला टुटे -जरे- झुलसाय  रिस्ता हरियाय ल धरलिस .।
            सुधारनसिंग सच में आज सुधरगे ओकर रुवाप झरगे अउ चेथी डहन के आखी ल माथ डहन लहुट गे । तब ले उन  दुनो परानी गुरुद्वारा म सेवादार बनके चुल म हंडिया- हड़िया भात राधंत ,पतरी सिलत लंगहा -भुखहा ,पियसहा ल पानी पियावत -खवात अपन जिनगी पहात हवे।..बने मंगल  भजन अउ सतनाम संकीर्तन तको गाय बजाय ल सीख गे  हवे।  
               सुधारन सिंग ह  अब सुधारनदास बनके  गुरु अउ जन  सेवा म अपन जीवन ल समरपित कर दिस। 
      ×                     ×      ‌               ×

(अव इया जवइया मन कना कभु -कभु गोठिया परथे - 
" ठोम्हा भर  पसिया अउ मुठा भर  भात " अपन सिरहा डोली ले पाय के साध  बाचे हवय )

                        -डाॅ. अनिल भतपहरी ९६१७७७७५१४
                            जुनवानी ,अमलीडीह रायपुर

Thursday, October 1, 2020

हरि हरि

हरि हरि ...

परोसी घर चुरे 
अदौरी बरी 
फोरन माहके  
अंगना दुवारी 
खाथे ओमन 
तरि तरि 
ललचाथे अउ 
लुलवाथे बिचारी 
नोनी के दाई 
खावय खरी 
तब सुनावय 
खरी खरी
गोठ गज़ब   
फरी फरी 
फेर का करि 
उसरय नहीं
बनाय बर बरी 
जींव फंसे 
जस मछरी गरी 
उबुक- चुबुक 
उपलाएं फोही 
अकबकावत  
धंधाय भीतरी 
ओती सब बरी 
बोले हरि हरि 
सत्ता सेती पाए  
सुख सरी 
जेकर नहीं 
कटे दु:ख भरी 
करो उदिम 
पावो सत्ता सुन्दरी 
खावो मन पसंद 
रोज तरकारी 
मगन गावो नाचो 
पीटत जम्मों तारी 
हमला का हे 
काकर जरी 
करे कोन खरखरी 
त कोन ल   
धरे तरमरी 
काकर खौरे 
खावत खरतरी 
खोटबोन पर्रा भर 
हमन अदौरी बरी 
मानिस ले दे के सुवारी 
मगन अनिल भतपहरी 
गावै भजन  हरि हरि ...

-डॉ. अनिल भतपहरी