गांधीजी जी के पुण्यतिथि के बहाने सतनामियों की स्थिति पर विमर्श "
गांधी जी छत्तीसगढ १९२१-२५ के बीच ३ बार आए ! वे रायपुर स्थित सतनाम पंथ की ३ बाड़ा गुढियारी ,मांगडा बाडा जवाहरनगर और पंडरी बाडा जहा से नेहरु के सचिव बाबा रामचंद्र रहकर स्वतंत्रता आन्दोलन को गतिमान करते रहे की जानकारी लेते रहे।
तब सामाजिक रुप से सतनामी छत्तीसगढ मे प्रभावी थे भले उनसे सामूहिक रुप से सवर्ण तबका अस्पृश्य भाव रखते पर ग्रामीण जन्य मे ओबीसी समाज के समकछ है।और परस्पर एक दूसरे से गोत्र फिरके आदि चलते भी इन सबमे भेदभाव व ऊचनीच व संग साथ भोजन शादी ब्याह तक नही थे।
वे बलौबाजार गये तो भंडारपुरी खपरी सतनाम तीर्थ के मध्य भैसा बस स्टेण्ड से गुजरे ।उनके स्वागतार्थ सतनामी समुदाय पलक पांवडे बिछाए । जो बेहद सात्विक व संत प्रकृति जे श्वेत वसन धारी समूह थे।और उनसे अस्पृश्यता का व्यवहार होते रहे। वे लोग मिलकर यह सब अवगत भी कराए ।
भंडारपुरी मोती महल गुरुद्वारा जिसकी निर्माण १८३० के आसपास है के शिखर मे तीन बंदर है से प्रेरित हुए।संभवत: बिना कुछ कहे इनसे सत्य की संदेश सहज रुप से देने की कला से अवगत हुए हो।संभवत: इसलिए ही वे यहां से जाने बाद वे अपने साथ तीन बंदर रखना आरंभ किए । साथ ही आगे चलकर उसी सतनाम की महत्ता से अभीभूत सत्याग्रह चलाए। क्योकि सतनाम मर्मांतक पीड़ा को सहने की नैतिक साहस प्रदान करते है।और यह सब तथ्य सतनामियों और उनके गुरुओ से मिलकर वे भलिभांति जाने समझे।
गांधी जी स्वयं लखनऊ अधिवेशन मे सतनामियों को आमंत्रित किए ।वे ७२ सतनामी संत गुरु महंत के प्रतिनिधी मंडल से मिले मध्यस्थ थे पंडित सुन्दरलाल शर्मा जी जो १९०७-८ मे ही गुरुघासीदास व सतनाम की महत्ता को समझकर सतनामी पुराण नामक काव्य रचना कर चुके थे।
बाहरहाल आजादी के आन्दोलन मे सर्वाधिक सक्रिय सतनामी ही रहे और अनगिनत लोग जेल गये यातनाएं सहे।आज भी किसी समुदाय मे सबसे अधिक सतनामियो का ही रिकार्ड स्वतंत्रता संग्राम मे अंकित है।
गांधी व कांग्रेस के जुडे रहे इसी दरम्यान आजादी के आसपास मोहभंग की अवस्था डा अम्बेडकर की सक्रियता और उनके प्रभाव मे शेड्युलकास्ट व आर पी आई से भी कुछ लोग जुडे ।
यह १९२०-५६ तक ३६ वर्ष का कालखंड सतनामियों की राजनैतिक सूझबुझ और सामाजिक क्रांति के लिए किए गये कार्य का बेहतरीन कालखंड है जब भारतीय राजनीति के दो धारा एक जो गांधीवाद था और दूसरा अंबेडकरवाद था के मध्य संयोजन संतुलन व समन्वय का रहा।
आज उस समय के इतनी समझ और प्रखरता से जुडे यह समुदाय आज भी हाशिए पर है और संधर्षरत है ।आज भी कोई बडा और सर्व स्वीकृत नाम नही है जो प्रदेश व देश मे चर्चित नही तब वाकिय मे हमारी राजनैतिक प्रतिबद्धता और योगदान के ऊपर हमे गहराई से विचार करने होन्गे ऐसा क्यो हुआ?
क्या सबसे बडा समुदाय जो गुरुबाबा जी नाम पर एक है छग मे ५० सीट पर हस्तछेप रखते है तब क्यो कर लोग उपेछित करते रहे है? जबकि एकता और संधर्ष के लिए अन्य समाज सतनामी के उदाहरण देकर आज उनसे ही अधिक ताकतवर होते जा रहे है।
क्या भटकाव के लिए यह विचारधाराए है जिन्हे धारण कर सतनामी लगातार भटकते आ रहे है? इन प्रश्न के उत्तर तलाशने होन्गे ?
तो क्या गांधी अंबेडकर हमारे लिए अभिशप्त सा रहा कि हेडगेवार वाली विचार धारा के चंगुल मे कुछ लोग विगत १०-१५ वर्षो से जकडे कथित सनातन व हिन्दुत्व से जकडे रहे। जिन्हे तिलांजलि देकर गुरुघासीदास ने सतनाम का प्रवर्तन किया। या डा अम्बेडकर के उस ग्यानवादी बौद्ध धम्म को समझ न पाने या अपनी संस्कृति के विरुद्ध जान उनसे समन्वय नही कर सके।
बाहरहाल हमे ऐसा लगता है कि गांधीवाद जिनके धूर विरोधी अंबेडकर वाद रहे है और तो और हेडगेवारवाद जो गाधी के बधिक भी रहे है (दोष लगा है कि वे इस्लाम व पाक समर्थक थे ! क्या यह सच है कि अस्पृश्य समुदाय को जागृत कर उनसे समभाव पैदा करनर से नराजगी का दुर्दान्त प्रभाव था )। केवल राजनैतिक वाद है और समाज या धर्म से इन वादो का कोई लेना देना नही है।
अत: जिस दिन वोट डालना और सरकारे बनाना हो तब इनका मतलब है बाकि सभी अपनी धर्म व मान्यताओं मे ही उलझे रहो । यथास्थिति वाद को बनाए रखो और जो है उसमे संतुष्ट रहो।
पर यह भी नही इन तीनो वाद से भिन्न अंबेडकर वाद है पर कथित अंबेडकरवादी उसे उसे सत्ता की चाबी पाने की तरह इस्तेमाल करने लगे है। इसलिए आजकल इन सारे विपरित धाराओ मे सत्ता सुख हेतु गठजोड जारी है।जो सछम होन्गे उन्हे उखाडने बाकी दो धाराए युति करते रहेन्गे । पर सवाल यह है कि राजनैतिक रुप से सक्रिय इन धाराओ से बचकर कैसे धर्म धम्म पंथ की महत्ता कायम रखे ? आज यही महत्वपूर्ण है।हालांकि कुछ लोग धर्म को गौण व अस्तित्व विहिन मानने लगे है।पर भारत मे यह सब होने मे सदियां लग जाएगी ऐसा हमे लगता है।
शायद इसलिए गांधी अंबेडकर व हेडगेवार धार्मिक अधिक लगते है अपेछाकृत राजनीतिग्य के। इसलिए एक बौद्ध धम्म के हो गये और वे दोनो विपरित विचार के बावजूद सनातनी होकर रह गये । क्या बौद्ध सतनामी और तमाम ग्यान संत गुरु मुखी समाज जो उसी सनातनता से उत्पिडित है जो ईश्वरान्मुख न होकर गुरुमुख समुदाय है। जो बुद्ध कबीर नानक रैदास गुरुघासीदास के अनुयाई व सतनाम के अनुगामी है ।परस्पर मिलकर उस सनातन के समछ मजबूती खडा नही हो सकते ।केवल सामाजिक रुप से ही नही बल्कि राजनैतिक व आर्थिक रुप से भी।
हमे इन सब पर गंभीरतापूर्वक विचार करने होन्गे। क्योकि आप टुकडो मे बटे रहकर कुछ नही कर सकते । क्योकि वे आपके विचार दर्शन और आइडिया लेकर आपको ही अपने फांस कर उलझा सकते है और उलझते ही आ रहे है।
Aapka Bahut Bahut Dhanyawad
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