Sunday, January 13, 2019

बातें है बातों में‌ क्या ?

बातें है बातों में क्या ?

इसके बावजूद भी लोग बातों से ही परस्पर जुड़े  है और बात है तभी सब साथ है।बातें किसी से बंद कर देखे ... वह तो खार खाए बैठे है आपसे अनबोलना होने।
    लोग बात -बात पर ही बनते बिगड़ते है। और बातें ही है जो जोडते और तोड़ते है। इसलिए बातों को युं ही नजर अंदाज न करे  यह कहकर कि "बातों में क्या है?
     बातों में ही सबकूछ है ।वर्तमान  सरकार बातें न होने और मौन रहने के प्रतिरोध में बम्फर जीत से सत्तासीन हुई। इसलिए बातें करते रहने की अखिल भारतीय व्यवस्था किए है ।और हर हफ्ते मन की बातें "राष्ट्रीय प्रवचन " बन चूके है। राष्ट्रीय गान की जमाने लद गये अब हर तरफ राष्ट्रीय प्रवचन की धूम मची है।और जनता उसमें निमग्न है।
    कहते है पहले रामायण आते देश भर की सड़के कर्फ्यु लगने सा  वीरान हो जाते ,जहां से चोरी डकैती व स्मगलिंग की समाने आते- जाते । आजकल स्कूल पंचायत व सरकारी दफ्तरों में राष्ट्रीय प्रवचन श्रवण कराने रेडियों टी वी की व्यवस्था कराने और उन पर करोडो धपला करने का  प्रसार भारती का नायाब खेल हुआ।और इस तरह वे मरणासन्न अवस्था से उबरे ।फिर भी दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसे सफेद हाथी सैकडो चैनल व एफ एम के बीच कैसे जिन्दा है या जिन्दा रखे गये अन्वेषण का विषय हो सकते है।
     बाहरहाल बातों ही बातों मे बात चली तो बातें कहां से कहां पहुंच गई ।लोग कितने बातुनी होते है कि बातों की बतड़ग करने या फिर अपनी बातें मनवाकर ही दम लेते है।या फिर दम तोड़ देते है। दम तोड़ने वाले तो बहुधा कम ही होते है अक्सर  बतक्कड़  लोग हार नही मानते और मान भी लिए तो स्वीकारते नही। फिर भी लोग क्योकर यह कहते फिरते है कि सोनार की सौ और लोहार एक ।
कुछ अल्पभाषी बतक्कड़ो को अपनी एक बात  से लोहार जैसे बड़ा धन चलाकर सोनार की सौ टकटकी हथौड़ी की चोट से अधिक संधातक प्रहार कर लेते है।
    आजकल यही होने लगा है जो पछ में वह हजार जुबान चलाते सबको अपनी मनवाने बड़बड़ा रहे है और जो विपछ में है वह एक ही बाते कह रहा है हटाओं और बदलों ।
     सुनने में आया है कि अमेरिका में एक ही बात से परिवर्तन आया "वी केन चेंज "  यही सूत्र वाक्य की आजकल सबसे अधिक प्रभावशाली युवा वर्गों में है " हमें बदलाव चाहिए " यह वे चाहते है जो अपेछाकृत उपकृत नही है या एक सा रुटीन लाईफ से बोरिंग होने लगते है ।वही हवा पानी बदलने सैर सपाटे कर बदलाव चाहते है। जब आदमी हर दीपावली में घर की रंग रोगन बदलते है तब सरकारे कैसे नही बदलती यह जरुर विचारणीय है।हमारे लोग आस्थावान व रुढ़ीवादी होते है। किसी के त्याग बलिदान को किसी वैभव ऐश्वर्य को परंपरागत ढंग से ढ़ोते रहते है वे भला क्या बदलाव चाहेन्गे ये लोग यथास्थिति वादी होते है और कल्पित सुख की आस मे "जो रचि राखा राम जी" की धून में बिधुन दास मलूक की पंछी व  अजगर की तरह  मुफत की दार-भात खाते पड़े रहते है । वे सबके दाता राम कह मंजीरें बजाते संकीर्तन में मगन है ।ऐसे लोग
और ऐसी प्रवृत्तियां हर शासक वर्ग पैदा करते है। यही उनकी सत्ता में बने रहने का रामबाण अचुक औषधि है।
     अजकल  जनता  को सब्जबाग और सपने दिखाने की कवायद दोनो - तीनो तरफ है । आश्वासनों का दस्तावेजीकरण करने  संकल्प पत्र ,धोषणा पत्र दृष्टिपत्र ,शपथपत्रों की बाढ़ सी आई हुई है।आखिरकर ऐसा करके ही तो उनसे मत व समर्थन लिए जाते है ।
    बाहरहाल यह अमेरिका नही जहां द्विदलीय  प्रणाली हो यहां तो बहुदलीय और निर्दलीय है ऐसे बतक्कड़ो की बन आई है।फिर यह विशिष्ट अनुभव देशवासियों का है कि मौनीबाबा की तपस्या वही भंग कर सकता है जो जबर गोठकार हो ।जहां चुप-चुपाई हो वहां  चुटुर -पुटुर मनोरंजन का साधन हो जाते है।मौन से उबे जनता मन की प्रवचन से मगन हुए ।पर जल्द ही अब  प्रवचन की अतिरंजन  और उनके शासकीय प्रसारण ही जन के अवचेतन मन में परिवर्तन की पवन बहाने लगे है।  इस बात को बतक्कड़ लोग जगह -जगह बताने लगे है अब देखते है कि उनकी बातों का असर कितना असरदार होते है।
       वैसे एक पुरानी फिल्मी गीत ही सबके सपने चुर चुर करने में काफी है पता नही इसको लोग आजकल क्यो नही बजाते या सुनते ।मेरा तो मन करता है कि मै भी एक बड़ा सा डी. जे. सांउड सिस्टम लगाऊ और रफी साहब की दिलकश आवाज को लाऊड में बजाऊ .... कस्मे वादे प्यार वफा सब बातें है बातों में क्या ?
         पर भाई अनबोलना रहने और गूंगा होने से अच्छा है कि अच्छे दिन आने वाले वाले की सब्जबाग में ही टहले घूमें या खाली -पीली  टहल टुहुल करने और अतिरंजना पूर्ण कानफोडू प्रवचन से ऊबे लोगों को परिवर्तन के लिए प्रेरित करने वालों की सुने या फिर उन्हे चुने जो अबतक अपनी बारी के इंतजार में ऐसे सपने दिखाते रहे है जो कथित दोनो राष्ट्रीय दल न देख - दिखा सकते न कर सकते!
      तो बतक्कड़ों की बातों में फंसने  तैय्यार तो रहों कि क्या पता कौन सी बातें आपकी बातों से मेल खाते बातों ही बातों में बात बन जाए !!
    डा अनिल भतपहरी

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