बौद्ध धम्म के महायान का महापर्व श्रेय:श्रेया: पर्व जिसे छत्तीसगढ़ ई में "छेरछेरा" कहते हैं। राजकुमार सिद्धार्थ बुद्धत्व प्राप्ति( वैसाख पूर्णिमा) के बाद पौष पूर्णिमा को भिछाटन करते दान लिए और दाता को श्रेय: श्रेय: कह उनकी मंगलकामनाएं की।उन्हे स्मृत करने यह महापर्व का आयोजन विगत ढाई हजार वर्षों से अनवरत चला आ रहा हैं। इस पर्व में सभी दान लेने और देने वाले हो परस्पर एक दूसरे का मंगल कामनाएं करते है। यह समानता स्थापित करने तथा जाने अनजाने में अभिमान / दर्प हरण का महापर्व है।
दछिण कौशल की राजधानी सिरपुर महायान शाखा के प्रमुख केन्द्र थे यहाँ उनके प्रवर्तक नागार्जुन व आनंद प्रभु द्वारा संचालित विश्वविद्यालय से प्रतिवर्ष प्रबुद्ध वर्ग निकल कर समाज को संचालित किया करते थे।
आज भी सिरपुर के इर्दगिर्द बसे जनमानस छेरछेरा के दिन सिरपुर जाकर उन आश्रय चैत्य विहार मठ मंदिरों के प्रस्तर प्रतिमाओं में कच्चा चावल समर्पित कर अपनी दानवृत्ति को प्रदर्शित करते श्रेयवान हो कृतार्थ होते है।
मानव जीवन के लिए अत्यावश्यक अन्नदान का यह पर्व सतनाम संस्कृति में गुरु अम्मरदास का समाधिस्थ होकर जनमानस के कल्याण हेतु आत्मसमर्पण का भी महोत्सव हैं।जिनके स्मृति में समाधि स्थल शिवनाथ नदी के तट सिमगा के समीप चटुआधाट एंव रायपुर के समीप बराडेरा धाम में प्रतिवर्ष भव्य मेला लगते हैं। जहाँ लाखों श्रद्धालू गण आकर श्रेयवान होते हैं।
भारत में डा अम्बेडकर के पुरुषार्थ व सद्प्रयास से पुनश्च बौद्ध ( सत्व ) धम्म का प्रवर्तन हुआ। और इसी सत्व ( बौद्ध ) धम्म से ही विकसित अनेक ग्यान व निर्गुण संत मत पंथ के अनुयाई अपनी खोई हुई वैभव मान प्रतिष्ठा अर्जित करने प्रयासरत हैं। इसी कडी में बौद्ध नगरी में अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध ( सत्व) महोत्सव का आयोजन स्तुत्य प्रयास है।
।।सच्चनाम सतनाम सत्यनाम सतिनाम सत्तनाम शतनाम सत श्री सतनाम ।।
No comments:
Post a Comment