कविता अब गांव की ओर .
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जिनके लिए लिखी गई वह उसी के पास इस तरह पहुचने लगी जानकर अच्छा लगने लगा है। अन्यथा कविता और कवि कर्म बौद्धिक विलास की वस्तु हो ग ई थी।और न समझ आने वाले कवि अपनी दुरुहता के कारण बुद्धिजीवी मान लेने या स्वत: होने की मुगालते मे रहते आए जनमानस की समझ को कोसते व उपहास उड़ाते रहे है। फलस्वरुप कविताए पुस्तको या चंद अखबारों के पेंज मे सिमटने लगे थे।
भला हो उद्यमी आयोजकों को जो साहस पूर्वक नाच पेखन भजन कीर्तन के साथ साथ रचनाकारों को मंच उपलब्ध करा रहे है। कवि और कविता की इस साधारणीकरण की दौर स्वागतेय है।
बाहरहाल रायपुर बिलासपुर रेल्वे स्टेशन बिल्हा से महज २ किमी दूर ग्राम डोड़की में गुरुघासीदास जयंती महोत्सव पर दिनांक २९-१२-१८ को आयोजित भव्य कवि सम्मेलन स्मरणीय ही नही ऐतिहासिक रहा। रात्रि १० बजे से अल सुबह ४ बजे तक करीब ३० कवियों की श्रेष्ठतम चुनिन्दे १-२ रचना पाठ ग्रामीण श्रोता और कवियों को बांधे रहा ।अभूतपूर्व उत्साह और कड़कती ठंडी ही नही बल्कि भीषण शीतलहर में कविता के प्रति नई जगी मोह ग्रामीण जनता की बदलती प्रवृत्ति और तेजी से होते बौद्धिक क्रांति के साछी है यह आयोजन ।
आयोजकों अन्यय बधाई ....
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