आपके वास्ते छकड़ी हमरी
सरल बातें समझते नही कोई इस जटिलता की दौर में।
डेढ़ होशियारी दिखाते फिरते चहुं ओर आज की दौर में।।
ऊपर चमक-दमक भरे है पर भीतर खोखले होते लोग ।
चहकते मिलते महफिलों में पर वे एकांत में शोक-रोग।।
उनकी न कोई पुछ-परख है जो है सहज- सरल व नेक ।।
कैसी दोमुंही हो चली जिन्दगी हैं बाहर- भीतर भरे भेद।।
कहें बिंदास -डा. अनिल भतपहरी
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