"नवा बछर "
नवा बछर मं उठथे सबके,मन मं नवा उछांह।
मगन सब नाचव-गावव,जोरे बांह मं बांह।।
जोरे बांह मं बांह , रेंगव सुम्मत के रद्दा ।
मिलव सब मयारुक मन,बैर ल करव थू बद्दा।।
यही जिनगी के सार सिरतोन ,सुन ले बात हमर।
सिरतो मया रही अंतस म त ,रोजेच नवा बछर।।
-डा. अनिल भतपहरी९६१७७७७५१४
No comments:
Post a Comment