"सुकुआ उवे न मंदरस झरे"
जेन ह घाद सरु हे
तेकरेच्च जिनगी ह
निच्चट करु हे
कब मीठ होही संगी
चिटको गम नइये
साल पूट अकाल
तभो ले बांधे आस
फेर कभु सम्मत नइये
निटोरत अगास
गुनथन कइसे
जिनगी पहाही ...
घपटे कुलुप म
दीया बरबेच नइ करय
अंधियारी रात म
सुकुआ उवेच नइ करय
हमला लगथे
कोनो सुकुवा ल चोरा ले हवे
अउ अपन तिजोरी म
बिज्जक मार छपक ले हवे
ओकरेच अंजोर म उन
छाहित हवे
उही मन बड़
उछाहित हवे
उंकरेच जिनगी
बड़ मीठ हवे
कउनो ओखरेच
सेती उनमन
मिठलबरा तो नइ लहुटगे होही
जोन कहत रहिथे
संसो झन कर हमर राहत ले
सब बनेच हो जाही
हमला जिताव
अगवान करव
तहां देखव अंजोर...
मंदरस म देबोन चिभोर ..
लगथे छपके धांधे सुकुवा ल
उन मन ढील देही ...
त घर छप्पर फोर के
अंजोर छरयाही
करु कसा नंदाही
सुख-सुम्मत मं जिनगी पहाही
फेर हर बेर ठगा जथन
हर झन सो ठगा जथन
न सुकुआ उवे न मंदरस झराय
अंधियार अउ करु नइ सिराय
तभो ले मनखे के मंइता नइ भोगाय
आसरा म जीयत सपना म मोकाय
का एमन संत संग संतेच लहुट जाथे
कत्कोन दु:ख ल सोझ्झे बिसरा जाथे
ये तरा सरी जिनगी सिरा जाथे
तिही पाय के
रोय के सेती मंद पी पी के
रीलो बार पंथी तको नाच लेथन
करमा ददरिया सुवा संग
भरथरी पंडवानी गा लेथन....
देवधामी मान लेथन
जुच्छा मड़ई मातर मेला तको किंदर लेथन
कभु तो बिन सुकुआ बेरा पंगपगाही
कुलुप कटही अउ नवा अंजोर बगरही ...
-डा.अनिल भतपहरी
( जुनवानी, महानदी खड़ सिरपुर तीर )
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