Monday, December 3, 2018

सरई पाली बसना देख ताक के फसना

‌"सरईपाली बसना देख ताक के फंसना "

      उड़ीसा सीमावर्ती फूलझर राज का यह लरिया छेत्र अपनी सांस्कृतिक उत्सवधर्मिता और सगा मनई  बर एक मन आगर बडे सरल- सहज जीवन शैली के लिए विख्यात है। जगन्नाथ के प्रति समर्पित जनमानस गुरुघासीदास के प्रति आस्थावान है।यह वह परिछेत्र हैं। जहां महानदी -जोगनदी धाटी और नरसिंग नाथ  सिरपुर तुरतुरिया बार गिरौदपुरी  जैसे पावन तीर्थ है ।प्रकृति ने इस अंचल को अपने हाथों सजाए .।इस परिछेत्र एन एच ६ गुजरते है जिनके दोनो ओर विकास की अजस्त्र धाराएं भी जोक महानदी के साथ साथ प्रवाहमान है।विगत ३५ - ४० वर्षो का हम चश्मदीद गवाह है ।क्या थे और अब क्या है ....
           बाहरहाल वर्षो बाद उच्च शिक्षा विभाग रासेयो द्वारा  युनीसेफ के तत्वावधान में संभाग स्तरीय कार्यशाला........महासमुन्द जिला के सरायपाली बसना में सम्मलित होने जा रहे हैं।
आरंग पार करते तुमगांव कौआझर के पास वन प्रांतर को देख मन प्रफुल्लित हो उठा और बचपन की  स्मृतियाँ ताजी हो ग ई। यह वही तुमगांव है जहां के भव्य रावण प्रतिमा के समछ हमलोग बस की प्रतीछा करते खेलते रहते .... इस प्रतिमा की चर्चा सुन कभी सत्यजीत रे यहाँ आकर अपना बहुचर्चित फिल्म सद्गति बनाए जिसमें स्मिता पाटिल और ओमपुरी जैसे अमर कलाकारों ने उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर  कला जगत में जीवंत कर दिए .. ऐसे ही अमत्व को प्राप्त लोक कलाकार दानी दरुवन अपनी नाचा गम्मत में जब हजारों दर्शकों की उपस्थिति में यह संवाद बोलते तो एक साथ हास्य और नैतिक सीख का संचरण जनमानस में  हो जाते -"सरईपाली बसना देख ताक के फंसना"
    सफर के दर्म्यान दानी दरुवन याद आने लगे उनकी विशिष्ट नाच शैली पैर में ५-५ किलो धुंधरु बांधे जब थिरकते तो लोग सांस थामे देख इहलोक की संताप बिसरकर किसी अन्य लोक की सुखद गलियों में विचरण करने चले जाते ... छण भर में सारी दु:ख पीड़ा से निवृत आनंद में निमग्न हो जाते।
    
    गांव में वोट डालने लाइन में खड़े इंदरुत ( अनिरुद्ध दयाल ) भैय्या ने मुझे देख   कह उठे ... एके झन आय हस गो ?... पैलगी करते कहा -हां भैय्या जी !अभीच बलौदाबाजार जाना हे,चुनाव डिप्टी मं  । तेन पाय के आय हव बेर होत हे .... ओहर मोला आधु करिस त आधु म जतका कका  भाई भतीजा भांजा खडे रहिस सब मोला अगवा दिस ....बाएं हाथ की तर्जनी में लगे अमिट स्याही मिटी ही नहीं हैं ।उसे देख स्मृत हुआ यह अंगुली कभी इंदरुत भैय्या संग कैसे हारमोनियम व बेन्जो के संग खेलते मधुर धुन निकालते  पिता जी घर के आंगन में बांसुरी के संग उनमें अमृत घोलते ... तब लगता  चंदा हमर अंगना मं उतर तारी बजाते  और चंदौनी गण सुआ नाचने लगती।
      कभी गांव और सुदुर बुन्देली सेवाती में गुरुघासीदास जंयती परब में इन्दरु भैय्या संग नाचा धुन बजाते दानी -दरुवन को भी बिधुन नचाने का भाग मिला हैं। वे सब मंजर चलचित्र की भांति जेहन में उभरने लगे ...तब इन लोककलाकारों का मान कितना होता था देखकर आज भी अचरज होता हैं ....दानी दरुवन का घर घर में मांग होता चाय नास्ता का ... किसी के पताल चटनी के संग नवा दूबराज के चाउर के गमकत चीला त कोनो घर कराही म चुरे  चिरपुर चाय कांस के  माली या थारी सिप करतपियई .. झन फुछ उंकर सुवाद ! जोने पीही तौने जानही ।कत्कोन तो गरम उतारे मौहा के  मंद ल तको चाय सरीख पिये ... नचकारीन और बजकरी मन । दानी बबा उन ल बरजय । आजेच फलाना गांव जाना हवे ... मुड़ पेट देख के खांव .... त मज्जाक करत  पि यिय्या मन कहे कहय.... सीजन भर तोर अउ जनता  किरपा  के छाहित हवे ग चिन्ता झनकर .....
सही कहत हन जीप मेटाडोर म बिदा करत गांव वाला मन रोनहुत हो जय ..... बड़ मया दुलार पावय । उनकी लोकप्रियता देख हमें भी तब कलाकार बनने का शौक चर्राने लगा।
    तब हम कालेज पढने रायपुर में आए थे और बचपन में संगीत के प्रति लगाव के चलते कमलादेवी संगीत महाविद्यालय में रात्रिकालीन  गायन में पढने जाते।
    दीवाली के बाद मेला- मड़ई जंयती परब में लोककलाकारों के लिए  कला प्रदर्शन हेतु सीजन होते ।तब रायपुर बलौदाबाजार मार्ग पर स्थित  खरोरा नाचा की राजधानी होते । और यहां अनेक मंडली अभ्यास करते ... हम भी नवां किरण आर्केस्ट्रा में हारमोनियम बजाने और गीत ट्यनिंग करते रायपुर से शनिवार को आते और अल सुबह सोमवार कालेज चले जाते।तब हाई स्कूल कोसरंगी में पिताजी के सानिध्य में रहकर पढ़े और सीखे वहाँ हमारे सहपाठी  गण और पवन सूर्याम आदि मिलकर लोककला मंच बनाए .तब सुप्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी लोक गायक गोरेलाल बर्मन जी तक हमारे संगत के साथी रहे .अभी वे राष्ट्रीय पार्टी से चुनाव लड़े हैं और मित्र के नाते जीतने की उन्हे मंगलकामनाएं देते हैं ..हमने उसी समय. "मनमोहिनी "नामक लोकमंच का गठन किया और उनकी संयुक्त प्रस्तुतियां आसपास  वर्षों देते रहे .... पिताजी को पता चला तो उनकी पढाई में होते नागा के चलते  डांटे पड़ती और तब इस तरफ से झुकांव कम होने लगा ...यह अलग बात है कि जर्वे ग्राम में नवाकिरन की प्रस्तुति में वे और उनके अभिन्न मित्र मढ़रिया सर ( नाटको में साथ अभिनय करते वे  चरणदास चोर बनते तो वे पुलिस ।साथ बेंजो व बासुरी के संगत करते) दोनो हमारे शिछक थे ने आकर मंच में रात भर हमारे  हारमोनियम व गायन में संगत किए ...पंथी. करमा  ददरिया व  भुइय्या के गीत उनलोगो के समछ लजाते शरमाते गाये भी । बाकी पवन भाई  सम्हाले .... कुछ भावपछ के कलाकार कहे .... आज बड़ कनौर लगत रहीस भाई  .... जब गुरुजी मन २ धन्टा बाद गिस तभे ‌नचई-गवई म मजा आइस ।
       बाहरहाल बचपन में  महानदी पार कर सिरपुर में बस पकड़ते और महासमुन्द या पिथौरा होकर बुन्देली जाते और यह  राष्ट्रीय मार्ग क्रम ६ पर कुहरी पड़ाव जहां कोडार बांध और खल्लारी माता के मंदिर हैं के पास वन परिछेत्र में इतराते बंदरों के झुंड को देख मजा करते तथा चिकनी डामर रोड देख किनारे किनारे पल्ला एकाद किलोमीटर तक छोटे  सुनील के संग दौड़ते। साथ गवतरिहा लोग कहते रोड बड़ चिक्कन  अउ सफा हे ग । बिन परती बिछाय  भात खवंऊ  हवे ।उनकी बातें आज भी जेहन में है वह सब स्मृत होने लगा .यहां एक प्याउ था और की एक मंजर व घटना सुन हमने उसी समय
परछाइंय्या कविता लिखी जो हमारे साहित्यिक मित्रों द्वारा प्रसंशित है ...तुमगांव  झलप पटेवा कोडार बांध और मन प्रसन्न करता शानदार रोड और द्रुतगति से भागते वाहन ... वन का कर्रा हर्रा और सागौन  महुए की वृछ अपनी ओर बुलाते लगते .... पर रुक कैसे सकते हैं समय पर बसना पहुचना हैं..... ताकि वहां लेट पहुचकर मुसीबत में न फंस जाय।क्योकि सरकारी काम है और अधिकारी तो अधिकारी है। मातहतों को न डाटे डपकारे तो इन के पेट की पानी न पचे । तो भैय्ये मुझे दानी अउ दरवन  बबा के गोठ अउ बरजे ह आज बड़ निक लागत हे .... सरईपाली बसना देख ताक के फंसना ।
     अरे बस रुक गई .... बसना पहुंच गये ।लो देख लो अभी तक बस कंडक्टर पैसे वापस नहीं किए हैं। रायपुर से बसना की  १३० रुपये किराया हैं और हम  ५०० का नोट कंडक्टर को  दिए हैं  चिल्हर नहीं है कह वे टिकट के पीछे ३७०  लिख दिए है। उतरने के पूर्व पांकेट में  टिकट ढूंढ़ने लगा ...कि बसना में आके फंसना झन हो जाय !....जय हो दानी दरुवन  बबा ।

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