"पालो निसाना और जैतखाम "
सतनाम संस्कृति में धरो -घर लधु आकार का जैतखाम यानि कि" निसाना " का प्रचलन हैं जिसमे "पालो" यानि कि ध्वज चढता है। असल में आरंभ से यह चुल्हापाट में पुरी पावनता के साथ स्थापित रहा। वहाँ से" पालों" निशाना के नाम से आंगन तक आया। गुरु घासीदास बाबा ने उसे बीच गली तक लाए और विशाल २१ हाथ वाली जैतखाम के ऊपर फहराए ।तब से जैतखाम सतनाम संस्कृति का महत्वपूर्ण प्रतिमान बन गये। कहते है बाबा अपने हाथो ४ जैतखाम स्थापित किए १ सोनाखान में राजाराम के महल के समछ ।दूसरा दुलहरा तालाब पार रतनपुर में ।और जोडा जैतखाम चांद सुरुज नाम से मोतीमहल भंडारपुरी गुरुद्वारा प्रांगण में ।
तब तक सतनामियो के घर में चुल्हापाट में पालो और कही कही आगन में निसाना स्थापित होने लगे।
राजा गुरु बालकदास के समय वृहत्तर रुप से घर घर निसाना स्थापित हुआ और उनके जन्मदिन को उसमें पालो चढना आरंभ हुआ।यह सतनामी समाज का पहला महोत्सव हुआ।
कलान्तर में जब मंत्री नकूलदेव ढीढी द्वारा सार्वजनिक गुरुघासीदास जयंती का शरुआत १९३८ से हुआ तब गांव गांव में जैतखाम गडना आरंभ हुआ।जैतखाम में अब गुरुबाबा के जन्मदिन पर पालो चढने लगा।इस तरह सतनामियो में यह दूसरा बडा महोत्सव का शुभारंभ हुआ। इस तरह जैतखाम सर्वत्र स्थापित होने लगे।धर्मध्वज पालो अहिर्निश फहरने लगे।इससे एक विशिष्ट स्थिती और गरिमा समाज में आया।और अन्य लोग नोटिस करने लगे।
जैतखाम जहाँ है कहने की आवश्यकता नही उनके इर्दगिर्द सतनामी आबाद होन्गे।
एकल और जोडा जैतखाम दोनो की संस्कृति है। गिरौदपुरी भंडारपुरी बराडेरा चटुआ खडुआ खपरी आदि धार्मिक स्थलो में जोडा जैतखाम है। यह सर ई और साजा लकडी के शानदार गोलाई पंच गठान की बांस के डंडा जो तीन हुक में फसे हुए सवा गज के आयताकार सफेद ध्वज जिसे पालो कहते है फहरते है। इनके विशिष्ट सांकेतिक भावार्थ हैं।
अब तो गिरौदपुरी में एकल बडा स्वरुप में जैतखाम है उसे जोडा स्वरुप देने की आवश्यकता हैं।
वर्तमान समय प्रचार प्रसार और भव्यतम स्थापनाओ का हैं। जहाँ लाखों जनसमूह एकत्र होन्गे वहाँ आकर्षण और सबके ऊपर प्रभाव हो ऐसा विलछण प्रतिमान चाहिए। भंडारपुरी महल के कंगुरे पर इसीलिए ३ बंदरो का शिल्पांकन हुआ। जो बिन कुछ कहे जनमानस को सतनाम की अप्रतिम संदेश देते रहे।
आज हमे ऐसे ही भव्य निर्माण चाहिए जैसे समर्थवान होने पर ८४ हजार बौद्ध विहार अनेक स्तुप और गुफाओं मे बुद्ध चरित का चित्रांकन हुए ताकि आगामी पीढी भलीभाँति समझे।
अभी केवल जैतखाम की शरुआत हुई है। धीरे धीरे उन्हे आकर्षक व भव्यतम रुप देना हैं।
अनुयाईयों के समर्थ. होने पर धर्म कर्म. और. प्रतिष्ठान. भी भव्यतम होन्गे।सतनाम।
डा. अनिल भतपहरी
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