कहें बिंदास अनिल भतपहरी
आपके वास्ते छकड़ी हमरी
खाकर ठोकर सम्हलते है गिरने से लोग।
इसके पूर्व बहुत इतराते हैं कितने ही लोग।।
है कितने ही लोग,जो जीते रहे मुगालते में।
लगे रहते है छद्म,रुप धन बल की गफलत में।।
मिलें मंजिल सदभाव से,सद्मार्ग में ही जाकर।
कोई नहीं सम्हलते,बिना कोई ठोकर खाकर।।
-डा. अनिल भतपहरी
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