#anilbhattcg
गर गंगरेल न होते तो?
सार्वजनिक उपक्रम चाहें उद्योग हों, बांध हों या अन्य बड़ी योजनाएं उनके चलते ही देश में समृद्धि आई। परन्तु 4_ 5 दशक बीती नहीं बड़ी तेज़ी से इन सब चीजों का निजीकरण इसलिए हो रहें हैं प्रबंधन की लापरवाही और भ्रटाचार से वे घाटे में चलते बीमार हो रहें या बंद होने के कगार पर हैं। कैसी कुतर्क हैं? यदि ऐसा हैं तो सरकारी तंत्र को ही निजीकरण कर दिया जाय ताकि फायदे ही फायदे हों कल्याण का कोई कार्य ही न हों। जहां प्रबंधन के लोग दोषी हो उन्हें कठोर सजा दे और भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगावे ना कि किसी व्यक्ति या संस्थान को चलाने सौप दे?
इस भीषण गर्मी में देश की नवरत्न मे एक भिलाई स्टील प्लांट के लिए महानदी मे निर्मित गंगरेल बांध विकास के आधार लौह उत्पादन के अतिरिक्त लाखों मानव के प्यास बुझा रहें हैं यह वरदान नही तो क्या हैं?
कल्पना कीजिए यदि भिलाई स्टील प्लांट अन्य राज्य या जगह पर बने होते तो रायपुर सहित दुर्ग भिलाई महासमुंद धमतरी बलौदा बाजार जिलों के लाखों कृषक के लाखों एकड़ खेती उनके निस्तरी के लिए तालाब और पीने के पानी हेतु कुआ नलकूप आदि सुख गए होते।
गावों में भीषण महामारी और पानी के लिए हाहाकार मच गए होते।
मुझे स्मृत हैं जब तीन दशक पूर्व निस्तारी हेतु नहरों में पानी आते तब महानदी तटवर्ती सहित पूरा ग्रामीण अंचल पानी के लिए रतजगा करते थे। हैंडपंप और कुवे से पेयजल खींचते आज कंधे की हड्डी खिसक गए और हमारी श्रीमती जी के हाथ से कोई वजनी समान और कुछेक समय के लिए आवश्यक कार्य तक नहीं होते।
पेयजल के लिए जो संघर्ष स्वयं के घर और 400 फीट गहरे बोर नहीं करा लिए तब तक कैसे कैसे पापड़ बेले हैं। गांवों में गर्मी के दिनों दूषित जल से फैलने वाली चेचक का प्रकोप झेले हैं। पर दैवीय कृपा मान झून झने और कतार हो शीतला देवी की कृपा पाने जस भक्ति करते निरीह जनमानस को देखते ही बड़े हुए हैं। हैजा, डायरिया फैले तो धूकी दाई और देवी का प्रकोप मान पूजा पाठ कर मनौती मांगने बदना/ बलि देने लग जाए।
बहरहाल मानव को सहज अन्न जल और स्वास्थ चाहिए। यदि इनके लिए एक गंगरेल वरदान हैं तो क्या हम सभी जल स्त्रोत/ वाहक नदियों में बड़ा न सही प्रत्येक 5_10 km में स्टाप डेम बनाकर कृषि और निस्तारी के लिए जल प्रबंधन कर सकें। क्योंकि जब आधार ही बेहतर और ठोस नही होगा राष्ट्र और जन जीवन कैसे उन्नत होंगे।
चंद उद्योगपतियों को राष्ट्र की अमूल्य धरोहरों को ना सौपे और ना ही जनता द्वारा चुनी हुई सरकार और उनके लोग धनपतियों के इशारे पर कार्य करने विवश हों।
सरकारी उपक्रम ACC सीमेंट उद्योग
मानढर जिसके sift incharg हमारे ससुर जी थे और वहां कार्यरत हजारों श्रमिको को निष्ठापूर्वक कार्य करते देखे खुशहाल जनता देखे वहा ताला लगाकर निजी सीमेंट फैक्ट्री का जाल यहां फैलाए गए।50 से 70 रु मे उच्च क्वालिटी की सीमेंट के जगह आज 300 रु की सीमेंट मे बने घर सड़क पुल को महज 5_10 में टूटते देख रहें हैं। देश को 21 वी सदी में पहुंचने वाले BSNL आज मरणासन्न हैं jio,adia,tata docomo के चलते। जब इनकी तिजोरिया भर रही तो यह कैसे मर खप रहें हैं? इस दशा में पहुंचाए कौन?
ये हैं वर्तमान निजीकरण और लाभ के लिए या कहें शोषण के लिए नया उपक्रम। कथित विकास हेतु जैव विविधता को नष्ट करना वन उजाड़ना और बेतरतीब उत्खनन कर औद्योगीकारण के नाम पर जीवनाधार कृषि और उत्तम स्वस्थ हेतु औषधि युक्त आबोहवा के श्रोत वन ( वर्तमान में हसदेव आदि)का विनाश करना।
इन धनपतियों को वैभव प्रदर्शन ,वैश्विक पर्यटन और विदेशी स्थायी संपदा के लिए देश का अकूत संपदा ही चाहिए। जो उनके हित/ चाह की सरकार बनेगी उनके हित और चाह के कार्य करेगी। वोट के स्वामी जनता केवल कथित धर्म संस्कृति और ढोल मजीरे कथा कहिनी में ही मोकाए रहेंगे। यह है शातिर और धूर्तो की महत्वाकांक्षी परियोजनाये...
जरा सोचिए अच्छा लगे तो जनजागरण के निमित्त शेयर कीजिए।
_ डा अनिल कुमार भतपहारी/ 9617777514
No comments:
Post a Comment