Friday, June 28, 2024

जोंगनदी

जोंक महानदी के तट पर आबाद मानव सभ्यता एवं संस्कृति का केंद्र 

  नदियां मानव सभ्यता की जननी हैं या फिर हम ऐसा भी कह सकते हैं कि नदियों के तट पर ही मानव प्रजातियों का उद्गम और विकास हुआ हैं। आरम्भ से लेकर अब तक इनकी तट पर ही मानव बस्तियां पाई गई हैं। उनके घर खेती और व्यवसाय  स्थल रहा है और सदियों तक रहेगा। वें नदियों के गोद में ही अनेक उपलब्धियों को अर्जित करते यहां तक की यात्राएं तय कर सका हैं।
    हालांकि मानव निवास स्थल के अवशेष गुफाएं  आदि हमें पर्वत की ऊंचाई में भी मिलती है लेकिन वह सुरक्षागत कारणों से है। असल में जलश्रोत जहां रहा, वहा मानव की बसाहटे हुईं। भले निस्तार हेतु पानी उपर तक ले गए
पर मानव समुदाय  पर्वत के नीचे या समतल जगहों पर स्थित कुंड या प्रवाहित जलधार के पास आए।
  प्रायः पर्वत ही नदियों के जनक हैं पर समतल मैदान में भी पाताल फोड़ कुआं और जल स्त्रोत मिलती हैं ,जिसे छत्तीसगढ़ी मे "चितावर "और "चुहरी "कहते हैं वहा से भी नदियों का उद्गम होते हैं। इन्हें लेकर रचे गए लोकगीत दर्शनीय है  _
 
 चितावर में राम चिरई बोले 
तोला कोन बन में खोजंव 
मैना मंजूर जोही मोला तार लेबे रे दोस ...

 चितावर/ चुहरी के आसपास जरुर  पहाड़, पर्वत, पठार पाए जाते हैं  जिसके ऊंचाई या तराई भाग में जलकुंड होते हैं ।जहां से जल प्रवाहित हों नदी का स्वरुप ग्रहण कर लेती हैं। यह जल स्रोत सदनीरा या मौसमी भी होते हैं।
   भारत वर्ष में कुंड पोखर सरोवर जलस्रोत वंदनीय हैं तो वहा से प्रवाहित होती नदियां पूज्यनीय हैं। हमारे यहां गंगा, यमुना, नर्मदा चंबल ,बेतवा,गोदावरी, कावेरी महानदी, इंद्रावती ,सतलज, व्यास, रावी, गोमती ,तीस्ता ,सोन भद्र ,ब्रम्हपुत्र  आदि के तट पर ही नगरी और उन्नत सभ्यता का विकास हुआ हैं। देश के दो महत्वपूर्ण प्रदेश उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा कही जाने वाली महानदी प्राचीन काल में चित्रोत्पला गंगा के नाम से जानी जाती रही हैं और गंगा जैसी ही पावन मोक्षदायनी मानी गई हैं। क्योंकि इनकी उद्गम सिहावा पर्वत छत्तीसगढ़ से होकर बंगाल की खाड़ी में चिल्का झील बनाती ठीक गंगा की तरह हिमालय पर्वत से निकल कर सुंदरवन मे झील बनाती बंगाल की खाड़ी सागर में समाहित हो जाती हैं।
      अपने तट पर अनेक धार्मिक वाणिज्यिक और प्रदेश की राजधानी बनाती हुई लाखों हैक्टर कृषि भूमि को सिंचित करती करोड़ों जन जीवन के लिए अन्नोत्पादन कराती उनके पेयजल की भी आपूर्ति कराती हैं। इसलिए मानव समाज के लिए ये नदियां वरदान हैं।
  महानदी की सहायक नदी जोक नदी भी मानव सभ्यता के केंद्र रहें हैं। उड़ीसा सरकार द्वारा अनेक तरह से अनुसंधान इस संदर्भ में किए गए हैं और कार्य अनवरत जारी है हैं। लगभग 25000 साल पहले इनकी तट पर मानव इतिहास के अवशेष मिलती हैं। 
    उड़ीसा के नुआपाड़ा जिले के सुना बेरा पठार से निकलने वाली और महासमुंद जिले के बागबाहरा के छाती गांव में छत्तीसगढ़ प्रवेश करने वाली नदी के किनारे किए गए अन्वेषण में मानव इतिहास के पहले आरंभिक औजार निर्माता से लेकर आधुनिक काल तक के साक्षी मिलेंगे।  प्रागतिहैसिक औजारों की बड़ी संख्या में खोज से पता चलता है कि इस घाटी में 25000 साल पहले आदिमानव निवास करते थे।
 छत्तीसगढ़ सरकार के संस्कृति और पुरातत्व निदेशालय की टीम द्वारा किए गए सर्वेक्षण का नेतृत्व करने वाले गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय संबलपुर के इतिहास स्कूल के प्रमुख डॉक्टर अतुल कुमार प्रधान ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि जोंक नदी घाटी छत्तीसगढ़ में मानव इतिहास का उद्गम स्थल है। 
प्रागैतिहासिक औजारों में हजारों वर्षों के फ्लैग ब्लैक पॉइंट और कर शामिल है सेंड भट खुरमुरी डूंगरी पाली रीवा नीलेश्वर उधर लाल में परेशानी डूमरपाली बाल्डी दी कुर्मादी चंदन सरगांव पुष्कर निठुर से भी बड़ी संख्या में प्रागैतिहासिक स्थल खोजे गए हैं यह औजार 2500 से लेकर के  6000 साल पुराने जान पड़ते हैं ।अन्वेषण से कसडोल के अमोंदी  ग्राम में एक बड़ी प्रारंभिक ऐतिहासिक बस्ती भी प्राप्त हुई है अन्वेषण की कुछ प्रारंभिक स्थल बर्तनों के टुकड़े कटोरा बेसिन भंडारण कर मोटी काठी के बर्तन और भौतिक एवम संस्कृतिक वस्तुएं मिली है।
   जोंक नदी की सहायक नदियों में भंडार, कोलार ,मैच का चिराग बाग भैया भूसा का में लहर जैसे की छोटी बड़ी सहायक नदियां इसमें जाकर मिलती है। यह नदी उत्तर दिशा में बहती है और कल 215 किलोमीटर क्षेत्र को कर करती है छत्तीसगढ़ उड़ीसा के बीच एक अंतर राज्य सीमा बनाती है यह नदी कहानी छोटी बड़ी पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरती है  नुआपाडा पहाड़ी श्रृंखला के एक संकीर्ण चट्टानी चैनल से बहने के बाद श्री नारायण के पास महानदी में समागम हो जाती है  गिरौदपुरी सोनाखान रेंज की पहाड़ियों में स्वर्ण भंडारण प्राप्त हुई है इस क्षेत्र से नदी गुजरती है और मिट्टी और चट्टानों के कटाव के द्वारा अपने साथ सोने के बारीक कारण प्रवाहित करके महानदी की रेत में प्रवाहित करके ले जाती है। इसलिए महानदी की रेत में श्री नारायण से लेकर से लेकर के  हीराकूद बांध तक नदी के दोनों और सोनझरिया जनजाति निवास करती हैं। जो महानदी की रेत से पारंपरिक रुप से सदियों से स्वर्ण कण निकालते आ रहें हैं।

छत्तीसगढ महतारी के करधन 
जिसमे भरा हैं अपार स्वर्ण कण 

  यह स्वर्ण कण जोंक  नदी ही प्रवाहित कर महानदी में मिलती है इसलिए इस नदी का ऐतिहासिक आर्थिक सामाजिक धार्मिक रूप से  मध्य भारत में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान हैं । यह उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की सीमारेखा और जीवनरेखा भी हैं।

 यदि मानव बसाहट पहाड़ पर्वत पठार पर हो तो भी जल के लिए जलकुंड या  वहा से प्रवाहित जलधार क्षेत्र नदी के तट पर उनको आना ही होता है!  थे विश्वकी विश्व की अनेक बड़ी सभ्यताओं का विकास या बड़ी नगरों का विकास नदियों के तट पर ही हुआ है चाहे वह नील नदी हो अमेजॉन हो या ब्रह्मपुत्र हो गंगा हो गोदावरी हो या महानदी हो इन सभी नदियों में हमें मानव सभ्यता के विकास का चिन्ह दिखाई पड़ता है। 
    छत्तीसगढ़ राज्य के महासमुंद जिले और रायपुर जिले से होकरबहती हुई बहती हुई सोना बेड़ा पत्थर से शुरू होती है और
जोक नदी का प्रवाह क्षेत्र 2480 वर्ग मीटर है जिसमें विविध प्रकार के वनस्पतियां के नदी पर्वत वन पर्वत इत्यादि और विभिन्न पशु पक्षी आबाद है यह नदी दर्शनी और धार्मिक दृष्टिकोण से भी का तीसरा महत्व है गिरोधपुरी के समय यहां इसके तट पर लाखों लोग स्नान कर दर्शन कर पुण्य अर्जित करते है। अन्य नदियों की तरह इनपर भी अनेक काव्य और प्रेरक साहित्य रचे गए हो जो उनकी विशेषताओं को  प्रकट करती हैं।

" जोगनदी पलाशिनी "

जोगनदी पलाशिनी 
अमृत जल वाहिनी
है बहु व्याधि हरिणी 
मन की विकार नाशिनी 
इनकी तट पर पावन तपोभूमि 
गिरौदपुरी सत्घाम है विराजती 
धन्य वन प्रांतर हुआ महिमामय 
घासीगुरु के तपबल से गरिमामय 
 लाखो नर- नारी कर स्नान 
अर्जित करते  पुण्य कर आचमन 
प्रकृति से पल भर होते मिलाप 
 मिटते दु:ख सब क्लेश संताप
जीवन प्रवाह में द्वीप सा कठोर भार 
विगलित करते सत्संग जड़ता विकार 
जल मध्ये प्रकृतस्थ हस्ति प्रतिमा
मन मैगल प्रछालित चमके चंद्र पूर्णिमा 
यहां केवल मेल मिलाप नही 
हाट बाजार व्रत उपवास नही 
होते यहां सभी जन सत साधक 
 बनकर आते वे सबके लायक 
 संत सेवक अरु सत्यानुरागी 
संकल्पित मन में बनु सतगामी 
पंगत संगत का अनुठा महा पर्व 
तट पर सम्पन्न अनुष्ठान यह सर्व 
भरते हृदय में उमंग अरु उत्साह 
पावन सतनाम सरित प्रवाह 
गाकर जस प्रफूल्लित हुआ अनिल
सुर मे ताल मिलाकर हर्षित इनकी सलिल ...


 डॉ अनिल कुमार भतपहरी 
       सहा प्राध्यापक प्र श्रे 
    उच्च शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़

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