ओ संगी रे ओ साथी रे
सांसों झन कर संगी रे
मुड़ी झन धर संगी रे
दुःख के दिन ह बहुरही
अऊ सुख के दिन आही...
कटही कुलुप हर साइता राख
ये दे सुकुआ उवत हे पहाही रात...
हमन के भाग खुलगे बनगे हमर सरकार
मिलही रोजी रोटी सबों ल चाऊर दार....
चलय नहीं कखरो अब तो जोर जुलुम
हमीं मन सेउक अन हमिच मन हुकुम...
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