Monday, June 17, 2024

ससों झन कर

ओ संगी रे ओ साथी रे 
सांसों झन कर संगी रे 
मुड़ी झन धर संगी  रे 
दुःख के दिन ह बहुरही 
अऊ सुख के दिन आही...

कटही कुलुप हर साइता राख 
ये दे सुकुआ उवत हे पहाही रात...

हमन के भाग खुलगे बनगे हमर सरकार 
मिलही रोजी रोटी सबों ल चाऊर दार....

चलय नहीं कखरो अब तो जोर जुलुम 
हमीं मन सेउक अन हमिच मन हुकुम...

No comments:

Post a Comment