#anilbhattcg #satshrisatnam
बदलाव
देखते ही देखते
देखो बदल गया
खुश होते रहें
देख बदलाव
दु:ख भी हुआ
जैसे बिदाई से
देख बदलाव
सुख और दुःख
हैं अभिन्न अंग
हंसते रोते बिताए
जीवन इनके संग
वन,खेत कारखाना
गांव शहर में आबूदाना
पाकर खुशहाल इंसान
भरते मन में सुख भाव
शहर बनते गांव
विकास तो यही हैं
कोई सुविधाए भोगे
तो क्यों किसी को
होते रहें अभाव
उड़ते विमान नभ में
देखने उमड़ते गांव
देवता होते सवार
पाकर उनके मत
बनाते रहें सरकार
ऐसा बना रहा सद्भाव
जारी हैं उद्यम
उड़ने के लिए
हतप्रभ और चमत्कृत
करने के लिए
चलने लगा दांव
रौपे दिए जायेंगे
कालोनी के गमलों में
उजड़ते जंगल
क्यों हाय तौबा
होते क्यों बेकल
क्यों करते कांव कांव
उजड़े तो बसे भी हैं
अनेक गांव शहर
रेल पुल सड़कें
कब तक रहें
लगोटी तीर कमान में
भूखे प्यासे टूटी मचान में
बेबस हताश
बनाकर अजायबघर
मानव जीवन को
घोर आदिम कर
कब तक दिखाते रहें
हमें नुमाइश बनाकर
क्या हमे नहीं चहिए बदलाव
तुम छूकर आसमान
घूम फिर कर देश जहान
कह रहें हो सब हैं व्यर्थ
अन्न जल हवा ही सार
मरणासन्न हुए तब जाकर
करने लगे यह चीत्कार
यह कैसा मनोभाव
सब भोग चूके तुम
कुछ तो भोगने दो
सोच रहें हो तुम
कुछ हमे भी सोचने दो
मन में हो सुंदरम आविर्भाव
हमने भी विकास का
पैमाना तय किया हैं
संतुलित और सहज होते
सुखमय किया है
भागमभाग जीवन में
कुछ तो हों ठहराव
उजड़े सर के बाल
उम्र की अवस्था है
ठीक उजड़ रहें वन
सरकारी व्यवस्था हैं
कैसे रहेगा यथावत
स्वीकारे अपेक्षित बदलाव
डा अनिल भतपहारी/ 9617777514
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