श्रम की देवी करमसेनी संत करमा माता जयंती की लख लख बधाई ।
श्रम की देवी करमसेनी करमा माता जयंती पर विशेष
श्रमण संस्कृति यानि परिश्रम से जीवन यापन करने वाले समुदाय का धार्मिक / आध्यात्मिक प्रवृत्ति वाले संत महात्मा अपनी विशिष्ट धार्मिक यात्रा हेतु प्रायः जगन्नाथपुरी आते रहे हैं। इनका प्रमुख कारण हैं यहाँ भेदभाव से रहित सदाचार व्यवहार शायद इसलिए यह प्रसिद्ध कथन हैं - जगन्नाथ के भात को सबै पसारे हाथ ...
सतनाम पंथ के जगजीवन साहेब , दूलनदास साहेब ,गुरुघासीदास साहेब ,कबीर पंथ के धरमदास साहेब , संत माता कर्मा आदि श्रमिक कृषक लघु व्यवसायी समुदाय के संत महात्मा दर्शनार्थ व संत समागम करने गये और समुद्र तट पर आध्यात्मिक चिंतन मनन कर अपने -अपने मतो ,सिद्धान्तो को सुदृढ़ व व्यवस्थित कर समाज में बेहतरीन कार्य किए। जबकि समकालीन समय में उन्हें अपने परिक्षेत्र के समुदाय में सामाजिक वर्जनाओं को गहराई से सहन करना पड़ा था । वे लोग यहाँ की यात्रा कर के ही युगान्तरकारी कार्य निष्पादन कर महान प्रवर्तन किया।
टीप - बुद्ध का एक नाम जगन्नाथ भी हैं। यहाँ तीन प्रतीकात्मक प्रतिमाएँ यक्ष स्वरुप में करुणा (कृष्ण भद्र ) प्रज्ञा (बलभद्र )व शील (सुभद्र ) का हैं। तीनो का एक साथ उपस्थिति से ही जगत का कल्याण संभव होता है।
इस गुढार्थ भाव को संत महात्मा भंलिभांति समझकर जग कल्याण के मार्ग पर प्रवृत्त होते हैं।
बौद्ध धम्म में जगन्नाथ मंदिर को प्राचीन बौद्ध विहार ही माना गया हैं। अशोक के कलिंग विजय के बाद समस्त कलिंग या उत्कल प्रदेश बौद्ध एंव श्रमण संस्कृति का प्रमुख केन्द्र के रुप में विकसित हुआ ।
श्रमण संस्कृति, संत मत और जगन्नाथ पर सम्यक् दृष्टिपात कर " सत संधान " की दिशा में गुणी जन विचार कर सकते हैं।
कृष्ण भद्र (करुणा ) बलभद्र (प्रज्ञा ) सुभद्र ( शील)
भवतु सब्ब मंगलम्
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