Monday, April 15, 2024

।।सतनाम ।।

भारतीय जनमानस में‌ सतनाम की सात तरह की विशिष्ठ ध्वनि है - सत्थनाम , सच्चनाम , सत्तनाम , सत्यनाम  सतिनाम  सतनाम और शतनाम । ऐसा जान पड़ता है कि   यह शब्द प्राचीन सिन्धु धाटी सभ्यता मे भी व्यवहृत होते रहे होन्गे। श्रमण और कृषि संस्कृति में  सतनाम साधक व सुमरन करने वाले समुदाय बेहद प्राचीन संस्कृति के लोग हैं। बुद्ध पूर्व 26 बुद्ध और हो चूके है । बुद्ध का आशय  बुद्धि या ज्ञान से है। जिन्हे मर्म का सत्य का ज्ञान हो चुका जो सब कुछ को समझ गया वही बुद्ध या ज्ञानी हैं।  राजकुमार सिद्धार्थ को सत्य का  बोध ( ज्ञान) हुआ तो वे ज्ञानी अर्थात् बुद्ध हुआ । 

  बहरहाल बुद्ध के अनेक नाम मे सच्चनाम भी एक नाम हैं।
यह नाम भावनात्मक रुप से है।
क्योकि वे राग द्वेष मोह से रहित होकर उनका चित्त मन हृदय सत मय हो गया था इसलिए  उसे  सच्चनाम कहे गये। आगे  वही क्रमिक विकास मे सत्तनाम हुआ।
सत्तनाम संत मत का लोकप्रिय शब्द है और यह कल्पित या मिथकीय  ईश्वर से अलग यथार्थ व ऐतिहासिक शब्द नाम हैं। सतपुरुष भी इसी तरह संत मत में ईश्वर के समनान्तर शब्द हैं।
     सतनाम पंथ में गुरुघासीदास को सतनाम बाबा  भी कहे जाते है ।इसका मतलब गुरु घासीदास सतनाम हो गया ऐसा नही हैं।
   सच्चनाम ठीक सतनाम बाबा जैसा संतो या अनुयाई द्वारा श्रद्धावश पुकारे गये नाम हैं।
    बहरहाल इतना तो अवश्य है कि  भारत वर्ष मे लगभग सवर्ण समुदाय  त्रिदेव सहित  राम कृष्ण को मानते है ।जबकि अवर्ण या अस्पृश्य धोषित कर दिए गये जनता जो कभी प्राचीन बौद्ध धर्म के महायानी हीनयानी और सहजयानी थे उन्ही वर्गो समुदायों मे संतो गुरुओ का आगमन हुआ और वही लोग सतनाम का अलख जगाए।
वर्तमान मे सिख सतनामी कबीरपंथी रैदासी वगैरह तमाम समुदायों मे केवल " सतनाम  "  के कारण परस्पर सौहार्द्र स्थापित होने लगे है। उपसना और कुछेक मान्यताओं मे अंतर हो सकते है पर सत ज्ञान और परस्पर सहयोग के मामले मे सभी सतनाम के अनुयाई  अपने अपने धर्म गुरुओ और प्रवर्तकों के संदेशों के अनुरुप समान ही हैं।
ढोंग पांखड और चमत्कार आदि के जगह कर्मवादी और पुरुषार्थ से भरा हुआ आदर्श समाज की संरचना गुरुओ के कारण हुआ हैं।
   वे लोग जाने अनजाने में छोटी मोटी संकीर्णताओं व मान्यताओ के आधार पर सतनाम के मार्ग से न भटके और  न  ही परस्पर प्रतिद्वंदिता रखें। क्योकि डिवाइड एंड रुल वाले आपको सदियों से बाट कर राज करते आ रहे है उनकी नीयत को समझिए और उनके षडयंत्र से बच कर रहें। 
    यह कैसी विडंबना है कि ये सतनाम उपासक  उंगली मे गिने जाने वाले ऐतिहासिक  8-10 संत/ गुरु को एक नही मान सकते और वे उधर मिथकीय  तैतीस कोटी को एक कर सबको उसी में बांध छांद कर रखे हुए हैं।

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