Monday, April 29, 2024

बसुन्दरा मन के न उ सियानी

#anilbhattcg
 
  छकड़ी : बसुंदरा मन के नऊ सियानी

इसगा-चारी म बुड़े अपनेच म लड़त कटत मरत हे
मार चिखला  म सनाय  गोल्लर  सरिख भुकरत हे
मंद - मंउहा म चुर कुकरी  बोकरा खा के उछरत हे
तेही पाय के दु कुरिया के मन नऊ सियानी करत हे
घर भीतरी ढे़ढ़ा कस तरी-तरी बरी मुनगा चुचरत हे
तुहरे सेती ये बसुंदरा मन हर  पागा पारे  किंदरत हे

                 - डा. अनिल भतपहरी /9617777514

Thursday, April 25, 2024

खार अउ कछार के उजार

||खार अउ कछार के उजार || 

    हमर गांव  जुनवानी ह सिरपुर  अउ भंडारपुरी के मंझोत महानंदी अउ पतालु  नरवा  म खड़ बसे हे । जेकर चारों खुट मधुवन अउ रम्य जंगल रहिस ।बनसुंघुल अउ कोरिया रवार के कारन कहर- महर महकय। असनेच  कत्कोन गांव के रम्य  जंगल अउ नंदी -नरवा ,के  कछार म उपजे /जनमे बनसपति अउ पशु- पंछी मन खार अउ कछार के उजार होय ले नंदाते गय।
       अब कहां के  पाबोन तेंदू ,चार ,डुमर ,बन सुखड़ी ,  अमुर्री, मोकैया ,बंझोरी  बोईर,दहिंगला  त कसही  बेल , धनबहर , कोसम, घठोल , चिरई जाम , आमा अमली  गंगा , डुमर , गस्ती , कया कोइचला ,हर्रा बहेरा अंवरा  मौहा तेंदू चार जइसन  फलदार और औषधीय पेड़  । 
    कर्रा  सेनहा , सलिहा ,  सेम्हरा ,  चिकनी  ,फरहद  जैसन इमारती उपयोगी जलऊ   पेड़ रहय त  कोलिहा केकरी, चिरपोटी , मुंगेसा तुरते उरर तोड़ के खाय के जिनिस रहय। ,फुटू खेकसी ,लेवना भाजी ,बोहार , उरला , कोइलार जैसन  भाजी  ले भरे रहय।  कोरिया, लता , गोटी फूल  बेला ,  छैबुंदिया , धनबहेर, परसा, मौहा  ,गोंदला, झगराहा अउ आनी -बानी के फूल  ले  बारहो महिना कहर- महर महकत आबोहवा वाले गांव सिरतो सरग सरीख लागय। भले सांप -बिछी के डर रहय फेर जानती म कुछेक नुकसान के ये मन अउ मनखे  सुंतितर हरहिंछा संघरा  रहय।
       अब सब वन विभाग के  करस्तानी कि इन नरवा, नंदिया कछार , दादर अउ  पड़ती खार में प्राकृतिक रुप ले ऊपजे  रम्य जंगल ल  उजार के उहा  सागौन अउ  बांस रोपत जात हवय । दादर  जंगल उजरे ले  जैव विविधता से युक्त पशु -पंछी ,औषधीय गुण केवदसमुड़ कांदा , जंगली गोंदली, बगडोल ,गोमची ,छेरी चुची, कत्कोन रुख के बांदा  , फर - फूल ,लता -कुंज  झांड़ी  पेड़ आदि के उजार हो  गय!   पहली कत्कोन बैदराज मन आयव अउ चरिहा  बोरा म जड़ी बुड़ी खन के लेगय । 
    सरकारी  रोपनी  के खाल्हे  न बंगलसुंघुल मिरगा घास न कांदी  , शंखपुष्पी ,कौआकेनी के घांस जेला चर के अमरित कस गोरस गाय / भंइस मन  देवय।  ऊपर ले ये रोपनी मन म  तार घेरा के लगे ले  चरागन खतम अउ  गाय - भंइस , छेरी -भेड़ी अमरित सरीख   दूध घी ह तको खतम। 
       अब तो गुरेचन वाली गाय कहु देखे सुने म नइ आय । बचपन में  हमारे घर गुरेचन वाली सादा अउ कसाय रंग के गाय रहिस जेला दादी ह "सुरहीन  गाय कहय । बाखा भर पानी म उतर के पानी पियय ते पाय ओहर चिन्हऊ रहिस ओकर दूध हर बड़ मीठ  एक अलग सुंगध रहय।ओकर घी बड़ ममहाय । ओकरे  दूध पी के   बछरु मन संग  ब्यारा- बारी में गाज खेलत  बाढ़े हवन । हमर  गांव ले  लगे  चातर राज वाले  मन के मारे  हमर  खेत -खार  के साजा पेड़ बाचे नही। पहली गांव म रखवार लगय ,अब तो सब नंदा  गय। जलाऊ लकड़ी सेती जम्मा रुख राई मन कटा गय । पहली सीजन म चरौटा ,उलहवा, कोसम , बोहार भाजी ,टोरे घरो -घर सगा उतरय। कत्कोन झीक- पुदक के तको ले जय।
            फेर इकर ले जादा  वन विभाग के मनमानी अउ केवल सागौन बांस उपजाय के सेती अमुल्य जड़ी बुटी अउ प्राकृतिक रुप ले उपजे  रुख राई अउ  इहचें जनमे पशु पंछी जेमा  भठेलिया बनबिलवा  , घुस मुसवा ,  चीटरा , गोइहा  सांप नेवला , कोलिहा, खेखर्री रहय । कभु -कभु महानदी ओ पार सिरपुर बार जंगल ले गाहबर , हुर्रा , बरहा ,  हिरना -मिरगा   अउ कभु -कभु बुंदिया बाघ आ जय । गांव म बेंदरा न इ आत रहिस ।ओमन ल इही जंगल म फर फरहरी खाय मिलय । चिर ई चुरगुन म तीतुर , बटेर , पड़की ,  सोलहई ,  हारिल , खेलवार , फूल चुहकी , मैना , कोयल ,कौवा , टेहर्रा , नाकर , कोआ जल कौवा , त नरवा नंदिया पड़हीना , भुंडा ,बांबर टेगना डेमचुल , सरागी ,खेगदा , मोंगरी , ढेसरा ,कोतरी चिंगरी मन गजगजात रहय जेला खाना थोरिक नंदिया नरवा के सरार म बुड़ अउ टमड़ के साग हो जय।
   ए सब के उजरे ल  बेंदरा , बरहा अउ हाथी मन के आंतक ले वन गांव मन  के उजार होय घर लिस। मनखे मन शहर म रोजी- मजुरी करे बर पलायन करे धरलिस ।
कहे के मतलब एक सइगोना जउन बिरिछ म सोना समझे जाथे ।ओकर उपजाय के जोखा ले ,लोगन के जनजीवन ले जुडे हीरा -मोती, रतन -पदारथ  सरीख अमूल्य प्राकृतिक अउ जैव संपदा के बिनास हो गय। धनी -मानी मन के सेज -सुपेती ,खोरसी -टेबल अउ दरवाजा - खिड़की बनाय के सइगोना बैरी हर अजगर सरीख सब ल लील डरिस । आज तक ये सइगोना हर आम आदमी के पहुंच ले दुरिहा हवे ।
   सच कहे त गरीब ल भुंइया बाटे के योजना  सिलिंग हर दादर अउ चरागन   खार ल खेत बनाय बर जरमुर सहित इहा  रम्य जंगल उजरिस । तेकर पाछु सगौन रोपनी योजना हर पुरा बरबाद कर दिस । अब तो दतवन करे के कोनो रुखेच न इहे । गांव भीतर के बारी बियारा म  मनसे के खुदे लगाय आमा ,अमली  लीम , तरिया अउ खरिखा डाड़ के बर ,पीपर बस बाचे हे बाकी सब खतम । 
    केवल चालिस बछर में ये दुरदसा देख मन बड़ दु:खित  होथे। कोनो तो समझाव कि निस्तारी बर अउ स्वास्थ्य   बर शुद्ध हवा अउ जरी-बुटी मिंझरे  चरागन गांव म होना कतेक जरुरी हवय ,जेन ल चर के गाय / भंइस हर अमरित सरीख दूध देथे। ए डहन हमर शासन -प्रशासन के धियान काबर नइहे? 

               -डा. अनिल भतपहरी / 9617777514
                       सचिव छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग 
  सेंट जोसेफ टाउन अमलीडीह रायपुर छग

Monday, April 15, 2024

तुरते ताही


।।तुरते ताही करय कारवाही ।।

गरब करन कि सरम काही सुझत नइये 
मनीपुर के   धधकत आगी बुझत नइये
नान  चुक राज  के  जबर हवय  बिपत 
दू समुदाय के मांझ खुरखूंद झगरा बिकट  

एकेच भुइंया एकेच नदियां एकेच जंगल पहार   
एकेच गांव म बसेरा सब के एकेच खेत- खार 
बसय तीर -तखार सबो के एकेच डीह -डोंगर 
मीत -मितानी  सगा पहुनाई रहय सांगर- मोंगर

कुकी अउ मैतई मन ल काय होगे हवय 
लगथे उन मन ल कोनो बेमझाय हवय 
धरम- करम   ल राजनीति   म साट के 
दुनो झन  ल   परलोखिया  मन बाट के 
 
राज करत  अप‌न तिजौरी  ल भरत हे 
उचका के एमन ल चाउर कस छरत हे 
माईलोगन के मान मेटा के काय कर लीही 
हाय लगही एकर कतेक ल ओमन तपही 

करतुत छलियन के करम अब जग भर बगरही 
अपनेच ढीले दांवा म भंग-भंग ले ओहूमन जरही 
ज इसन  करही  तइसन फल  तो  पाबेच करही 
बोही  बंबरी के  बीजा त निपोर ले आमा   फरही 

फेर संसो कि ये संकट के अब तक उबार नइहे 
लगथे उहा अब कोनो जवाबदार  सरकार नइहे 
राज शासन सके नही त केन्द्र करवाही  करय 
धधकत  मनीपुर  ल अब  तुरते ताही बचावय 

नइते   जंगल   कस आगी   बबलतेच   जाही 
तीर-तखार के पाना -पतई मन त लेसातेच जाही  
देखे बर हरियाली सबन  आखी हर तरसही 
चारो मुड़ा लेसाय जराय धुंगियाय रंग रही जाही .

जोन समृद्ध खुशहाल राष्ट्र के सपना देखे हन 
राज पा के राज करे के सपना सजाये हन 
अपन कला संस्कृति धर्म -कर्म के गुन गाये हन 
सब बिला जाही जतनो एला ,मुस्कुल से राष्ट्र पाये हन  

         - डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

।।सतनाम ।।

भारतीय जनमानस में‌ सतनाम की सात तरह की विशिष्ठ ध्वनि है - सत्थनाम , सच्चनाम , सत्तनाम , सत्यनाम  सतिनाम  सतनाम और शतनाम । ऐसा जान पड़ता है कि   यह शब्द प्राचीन सिन्धु धाटी सभ्यता मे भी व्यवहृत होते रहे होन्गे। श्रमण और कृषि संस्कृति में  सतनाम साधक व सुमरन करने वाले समुदाय बेहद प्राचीन संस्कृति के लोग हैं। बुद्ध पूर्व 26 बुद्ध और हो चूके है । बुद्ध का आशय  बुद्धि या ज्ञान से है। जिन्हे मर्म का सत्य का ज्ञान हो चुका जो सब कुछ को समझ गया वही बुद्ध या ज्ञानी हैं।  राजकुमार सिद्धार्थ को सत्य का  बोध ( ज्ञान) हुआ तो वे ज्ञानी अर्थात् बुद्ध हुआ । 

  बहरहाल बुद्ध के अनेक नाम मे सच्चनाम भी एक नाम हैं।
यह नाम भावनात्मक रुप से है।
क्योकि वे राग द्वेष मोह से रहित होकर उनका चित्त मन हृदय सत मय हो गया था इसलिए  उसे  सच्चनाम कहे गये। आगे  वही क्रमिक विकास मे सत्तनाम हुआ।
सत्तनाम संत मत का लोकप्रिय शब्द है और यह कल्पित या मिथकीय  ईश्वर से अलग यथार्थ व ऐतिहासिक शब्द नाम हैं। सतपुरुष भी इसी तरह संत मत में ईश्वर के समनान्तर शब्द हैं।
     सतनाम पंथ में गुरुघासीदास को सतनाम बाबा  भी कहे जाते है ।इसका मतलब गुरु घासीदास सतनाम हो गया ऐसा नही हैं।
   सच्चनाम ठीक सतनाम बाबा जैसा संतो या अनुयाई द्वारा श्रद्धावश पुकारे गये नाम हैं।
    बहरहाल इतना तो अवश्य है कि  भारत वर्ष मे लगभग सवर्ण समुदाय  त्रिदेव सहित  राम कृष्ण को मानते है ।जबकि अवर्ण या अस्पृश्य धोषित कर दिए गये जनता जो कभी प्राचीन बौद्ध धर्म के महायानी हीनयानी और सहजयानी थे उन्ही वर्गो समुदायों मे संतो गुरुओ का आगमन हुआ और वही लोग सतनाम का अलख जगाए।
वर्तमान मे सिख सतनामी कबीरपंथी रैदासी वगैरह तमाम समुदायों मे केवल " सतनाम  "  के कारण परस्पर सौहार्द्र स्थापित होने लगे है। उपसना और कुछेक मान्यताओं मे अंतर हो सकते है पर सत ज्ञान और परस्पर सहयोग के मामले मे सभी सतनाम के अनुयाई  अपने अपने धर्म गुरुओ और प्रवर्तकों के संदेशों के अनुरुप समान ही हैं।
ढोंग पांखड और चमत्कार आदि के जगह कर्मवादी और पुरुषार्थ से भरा हुआ आदर्श समाज की संरचना गुरुओ के कारण हुआ हैं।
   वे लोग जाने अनजाने में छोटी मोटी संकीर्णताओं व मान्यताओ के आधार पर सतनाम के मार्ग से न भटके और  न  ही परस्पर प्रतिद्वंदिता रखें। क्योकि डिवाइड एंड रुल वाले आपको सदियों से बाट कर राज करते आ रहे है उनकी नीयत को समझिए और उनके षडयंत्र से बच कर रहें। 
    यह कैसी विडंबना है कि ये सतनाम उपासक  उंगली मे गिने जाने वाले ऐतिहासिक  8-10 संत/ गुरु को एक नही मान सकते और वे उधर मिथकीय  तैतीस कोटी को एक कर सबको उसी में बांध छांद कर रखे हुए हैं।

Friday, April 12, 2024

बागी

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सफदर हाशमी के नुक्कड़ नाटक और उनकी प्रभावशाली प्रस्तुतियां मजलुम और जरुरतमंद  व्यक्ति की पीड़ा की अभिव्यक्ति रही हैं।
व्यक्ति स्वतंत्रता और स्वाभिमान की दास्तान राजा गुरुबालकदास और उनके अभिन्न मित्र शहीद वीर नारायण सिंह की दास्तान से जुड़ जाती हैं।जिसे साम्राज्यवादियों ने निर्मम हत्या कर कुचलने का असफल प्रयास किये।
   

श्रद्धांजलि -

कट जाए आन में सर 
तो गम नही 
कहते हैं वो नर 
नर नही 
जो गाहे बगाहे 
सर झुकाता है 
लाल सलाम हाशमी तुम्हे
एक बागी कवि कहता हैं
           
      
         घटनोपरांत  हाशमी के ऊपर  पोष्टर कविताएं भी  लिखा तब कालेज में पढ़ थे ... कुछ पंक्तियां स्मृत होने लगा - आज उनकी जन्मदिन पर उन्हे सादर श्रद्धांजलि
           
                        डा. अनिल भतपहरी

Wednesday, April 10, 2024

कलाकार ,निराकार को साकार करता है

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"कलाकार निराकार को साकार करता हैं।"



साहित्यकार एक तरह से  कलाकार  हैं और इनसें अपूर्व सृजन होते हैं । दोनों मिलकर ऐसा रचते है कि दुनियां सम्मोहित और चमत्कृत हो जाते हैं। इनकी बनिस्पत  तख्तो- ताज व सत्ताएं तक मिलती हैं। अनेक तरह की इबारते लिखी व मिटाई जाती हैं।
    सच कहे तो रचयिताओं ने इतिहास भूगोल सब कुछ बदल कर रख देते हैं। दिखते वह अदना सा पर कमायत लाने की माद्दा रखता हैं। भले जीते जी  उपेक्षित रहे और अपने व परिजनों के लिए कुछ कर न सके पर कलान्तर में यही लोग प्रवर्तक के रुप में जाने - माने जाते हैं। कुछेक तो सौभाग्यशाली होते है कि छप कर ख्याति पाते है और यदा -कदा चहेतों में सम्मानित हो पूज लिए जाते हैं। 
   पर इस महादेश की संस्कृति में दुर्जन  मरकर सज्जन ही क्यो  देवता तक  हो जाते है ।तब यह लोग  जनमानस में अमरत्व भाव पा जाते हैं ।
  एक उक्ति है-" चंद्रगुप्त  विक्रमादित्य सम्राट था और कालिदास  कवि है ।
  
बहरहाल साहित्यकार  अक्षरों व शब्दों को तराशकर जोड़कर वाक्य संरचना कर  निराकार (अमूर्त) भाव को साकार ( मूर्तमान) करता हैं।
    कलाकार शब्द प्राय: चित्रकार,  मूर्तिकार ,कारीगर ,संगीतकार ,नर्तक ,अभिनेता आदि के लिए रुढ़ हो गये हैं।और कवि,गीतकार ,कथाकार नाटककार ,व्यंग्यकार निबंधकार आदि साहित्यकार मान लिए हैं।
 जबकि यह वर्ग भी कलाकार की श्रेणी में ही हैं। तो दोनो कलाकार ही हुये ।
   कबीर ,जायसी ,सूर, तुलसी , रैदास ,रसखान  केशव घनानंद के दोहे ,सवैये कवित्त  में शब्दों को नगीने की तरह जोड़कर कलात्मक रुप में गढ़े गये  प्रतीत होते हैं। एक शब्द भी इधर -उधर कर के देखिए लगता है कि किसी अन्य कारीगर से पूर्व बने  हार या कंगन में हुए टूट - फूट को पुन:  रसवाए या जोड़े गये हैं । इसी तरह मूल रचना में छेड़छाड़ किये गये है यह स्पष्ट: झलकता हैं। अभी भी कुछेक नई रचना में कलात्मक और अपूर्व भाव दिख जाते हैं।
  इस तरह देखे तो "साहित्यकार और कलाकार का काम अव्यक्त को व्यक्त करना हैं। यानि निराकार भाव को शब्दों / रेखाओं -रंगों / सुरों- तालों /अभिनयादि   द्वारा साकार करना हैं।"

उक्त कथ्य  को सुक्तबद्ध करे तो -

 कलाकार निराकार को साकार करता हैं।

Tuesday, April 9, 2024

नववर्ष में नवदर्शन

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नववर्ष मे नवदर्शन 

प्रश्न यक्ष सा
हर बार क्यों
इसका ,उसका 
आपका हमारा  
मेरा - तुम्हरा 
नहीं हो सकता 
चल रहा देश
संविधान से  
कि भगवान से 
यदि एक से 
तब दो की 
जरुरत क्यों

*       *     *
इहलोक को 
सुधारेगा संविधान 
परलोक को 
सुधारेगा भगवान 
यह साधारण सा 
उत्तर नही चाहिये 
क्योकि लोग 
 इहलोक की 
चिन्ता करते कहां है 
उसे तो परलोक की 
चिन्ता खाए जाती है 
इसलिए भाड़़ मे जाए 
इहलोक और संविधान 
कृपा कर सलामत रहे  
परलोक और भगवान 

*          *          *

इसलिए तो 
आजकल के  
असाधारण लोग 
सुधारने में लगे है परलोक 
मनाने में लगे है भगवान 
वाह रे! कद्रदान 
तुने ताक पे रखा है 
देश और संविधान 
पर बताओं तो सही 
ऐसे में  कहां कैसे 
रहेगा इंसान 
कोई जाएगा भाड़ में 
ऐसा कह बच नहीं सकते 
समेट बोड़िया- बिस्तर 
करके तीतर -बीतर 
झाड़कर पल्ला 
उठाकर झोला 
कहीं जा नहीं सकते 
सब कुछ साफ़ साफ़ 
भले हमारा न सही 
यक्ष प्रश्न के उत्तर 
बताना पड़ेगा 
नहीं तो तेरा 
कोई गति नहीं 
सच कोई सद्गति नहीं 
ॐॐ
     - डा. अनिल भतपहरी / 9617777514
      
             #anilbhatpahari #satshrimusic

Friday, April 5, 2024

करमा माता

श्रम की देवी करमसेनी संत  करमा माता जयंती की लख लख बधाई ।

श्रम की देवी करमसेनी करमा माता जयंती पर विशेष 

             श्रमण संस्कृति यानि परिश्रम से जीवन यापन करने वाले समुदाय का‌ धार्मिक / आध्यात्मिक प्रवृत्ति वाले संत महात्मा अपनी विशिष्ट धार्मिक  यात्रा हेतु  प्रायः जगन्नाथपुरी आते रहे हैं। इनका प्रमुख कारण हैं यहाँ भेदभाव से रहित सदाचार व्यवहार शायद इसलिए यह प्रसिद्ध कथन हैं - जगन्नाथ के भात को सबै पसारे हाथ ... 
सतनाम पंथ के जगजीवन साहेब , दूलनदास साहेब ,गुरुघासीदास साहेब ,कबीर पंथ के धरमदास साहेब , संत माता कर्मा आदि श्रमिक कृषक  लघु व्यवसायी समुदाय के संत महात्मा दर्शनार्थ व संत समागम करने गये और समुद्र तट पर आध्यात्मिक चिंतन मनन कर अपने -अपने मतो‌ ,सिद्धान्तो को सुदृढ़ व व्यवस्थित कर समाज में बेहतरीन कार्य किए। जबकि समकालीन समय में उन्हें अपने परिक्षेत्र के समुदाय में सामाजिक वर्जनाओं को  गहराई से सहन करना पड़ा था । वे लोग यहाँ की यात्रा कर के  ही युगान्तरकारी कार्य निष्पादन कर महान प्रवर्तन किया।
     टीप - बुद्ध का एक नाम जगन्नाथ भी हैं। यहाँ तीन प्रतीकात्मक प्रतिमाएँ  यक्ष स्वरुप में करुणा (कृष्ण भद्र ) प्रज्ञा (बलभद्र )व शील (सुभद्र ) का हैं। तीनो का एक साथ उपस्थिति से ही जगत का कल्याण संभव होता है। 
    इस गुढार्थ भाव को संत महात्मा भंलिभांति समझकर जग कल्याण के मार्ग पर प्रवृत्त होते हैं।
    बौद्ध धम्म में जगन्नाथ मंदिर को‌ प्राचीन बौद्ध विहार ही माना गया हैं।   अशोक के कलिंग विजय के बाद समस्त कलिंग या उत्कल प्रदेश बौद्ध एंव श्रमण संस्कृति का प्रमुख केन्द्र के रुप में विकसित हुआ ।
      श्रमण संस्कृति, संत मत और जगन्नाथ पर सम्यक् दृष्टिपात कर " सत संधान " की दिशा में गुणी जन विचार कर सकते हैं।

       कृष्ण भद्र (करुणा ) बलभद्र (प्रज्ञा ) सुभद्र ( शील‌)
    भवतु सब्ब मंगलम्

करमसेनी एंव करमा माता जयंती

श्रम की देवी करमसेनी संत  करमा माता जयंती की लख लख बधाई ।

श्रम की देवी करमसेनी करमा माता जयंती पर विशेष 

             श्रमण संस्कृति यानि परिश्रम से जीवन यापन करने वाले समुदाय का‌ धार्मिक / आध्यात्मिक प्रवृत्ति वाले संत महात्मा अपनी विशिष्ट धार्मिक  यात्रा हेतु  प्रायः जगन्नाथपुरी आते रहे हैं। इनका प्रमुख कारण हैं यहाँ भेदभाव से रहित सदाचार व्यवहार शायद इसलिए यह प्रसिद्ध कथन हैं - जगन्नाथ के भात को सबै पसारे हाथ ... 
सतनाम पंथ के जगजीवन साहेब , दूलनदास साहेब ,गुरुघासीदास साहेब ,कबीर पंथ के धरमदास साहेब , संत माता कर्मा आदि श्रमिक कृषक  लघु व्यवसायी समुदाय के संत महात्मा दर्शनार्थ व संत समागम करने गये और समुद्र तट पर आध्यात्मिक चिंतन मनन कर अपने -अपने मतो‌ ,सिद्धान्तो को सुदृढ़ व व्यवस्थित कर समाज में बेहतरीन कार्य किए। जबकि समकालीन समय में उन्हें अपने परिक्षेत्र के समुदाय में सामाजिक वर्जनाओं को  गहराई से सहन करना पड़ा था । वे लोग यहाँ की यात्रा कर के  ही युगान्तरकारी कार्य निष्पादन कर महान प्रवर्तन किया।
     टीप - बुद्ध का एक नाम जगन्नाथ भी हैं। यहाँ तीन प्रतीकात्मक प्रतिमाएँ  यक्ष स्वरुप में करुणा (कृष्ण भद्र ) प्रज्ञा (बलभद्र )व शील (सुभद्र ) का हैं। तीनो का एक साथ उपस्थिति से ही जगत का कल्याण संभव होता है। 
    इस गुढार्थ भाव को संत महात्मा भंलिभांति समझकर जग कल्याण के मार्ग पर प्रवृत्त होते हैं।
    बौद्ध धम्म में जगन्नाथ मंदिर को‌ प्राचीन बौद्ध विहार ही माना गया हैं।   अशोक के कलिंग विजय के बाद समस्त कलिंग या उत्कल प्रदेश बौद्ध एंव श्रमण संस्कृति का प्रमुख केन्द्र के रुप में विकसित हुआ ।
      श्रमण संस्कृति, संत मत और जगन्नाथ पर सम्यक् दृष्टिपात कर " सत संधान " की दिशा में गुणी जन विचार कर सकते हैं।

       कृष्ण भद्र (करुणा ) बलभद्र (प्रज्ञा ) सुभद्र ( शील‌)
    भवतु सब्ब मंगलम्

Thursday, April 4, 2024

खतरे में हैं

#anilbhattcg  #satshrimusic 

इसने  कहा   धर्म  खतरे  में  हैं 
        उसने कहा  संविधान खतरे में हैं 
                किसी ने कहा लोकतंत्र खतरे में है 
                      पर कोई नही कहता इंसान खतरे में हैं‌

                    
                       - डा. अनिल भतपहरी

Monday, April 1, 2024

मतावर के मजा

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मतावर के मज़ा 

छत्तीसगढ़ म तको मतावार उत्सव मनाए जाथे
बचपन में हमर ममा गांव बुड़ेरा के मतावार म होय एक घटना के रोचक आंखिन देखी वृतांत सुनव-
  गरमी छुट्टी म ममा गांव जाय के रिवाज हवे । गरमी छुट्टी म जब बुन्देली ( पिथौरा ) ल अपन गांव जुनवानी आन त पथरा के घर म हमन ल  बिकट दंदियाय अउ  कुहरय मार चरचर ले घुम्मरी तको उबक जाय। चुहरी चितावर म बुड़े राहन। बिजली तको गांव म न इ लगे रहिस ।  1981 म बिजली आइस  । ओती बुन्देली म बिजली के चिभुक लगे राहय त गाव ह हम  ल इका मन ल झुंझुर -झइंहा  लागय।  

 वैशाख पुन्नी के तस्मई चीला अउ नवा किसिम के डालडा डारे खस्ता /कार्टुन  जोन महासमुन्द के बस स्टेण्ड  के होटल म बेचाय  ले के बिकट खान।  ओसनेहे करायत अउ तिली मिझार मां घर म  बनावय  उहु ल झोला -झोला धर के  ममा गांव बुड़ेरा के माटी अउ पटउहा वाला धर म ससन भर राहन  उहा के बडे बडे तरिया बुड़े राहन ...
  हमन ममा मौरा मन के बेटा बेटी माने अपन भाई -बहिनी मन ल "  मर्रा तरिया म बुड़े रा " या केवल बुड़े रा कहिके अबड़ कुड़कावन । 

     हमर ममा मन के आमा बगिचा  घुघवाडीह ( केंवराडीह )बांधा के खाल्हे म हवे । उहा कुंआ बारी तको रहय अउ एक अकड़ खेत म ककड़ी कलिंदर साग- भाजी बोवय। बांधा के खाल्हे होय ल गरमी म तको पानी पझरय अउ बिकट साग भाजी उपजय । ममा मन के 27 पेड़ आमा  अभी तक हवय। सब पेड़ के नाम तको धराय हे। गरती कोलपद्दा खोलहा लोढ़ा आमा के रुख म चढ़ डंडा पंचरंगा तको खेलन अउ केकरी फूट अउ  नवरंगी  खावन। कलिंदर जादा नई होय।  कुंआ के कंछ बरोबर पानी पीयन बांधा मेड़ के बेल तोरन अउ गुर मिंझार शरबत पीयन 
      हावा बडोरा म आमा मन टूट के झर जाय त सकेल के बैलागाड़ी म खरोरा बजार  ममा/ नाना  संग  बेचे तको जावन। बुड़ेरा म ही सबसे पहिली टेलीबीजन म सनीमा देखेन । उहा स्कूल म लगे राहय अउ हर इतवार फिलिम आवय । दुश्मन फिलिम अउ ओकर गीत आजो ले मन बसे हवय ... देखो देखो बाइसकोप देखो अउ दुश्मन दुश्मन दोस्तों से भी प्यारा हैं।
         त ओ दिन के बात आय जब मै पांचवी पास हो गे रहेव अउ पुरा महासमुन्द शिक्षा जिला म दूसरा आय रहेंव 
पहला मोहित नायक नाव के लड़का आय रहिस । बचपन  ले  उतअइल रहेव फेर थोरिक  हुसियार होय के सेती गांव पारा लेके नता - गोता तको मन मोला बने मान दय । ममा मामी मन तो चरन पखारख अउ मोर भात छोड़े रवा प्रसाद खाय । रोजेच गंज के एक थारी भात परोस देय अउ हेरवाय म हेरय तको नही , मोला भात छोड़े म कन उर लगाय काबर कि बुन्देली के जे घर म राहन उहा बाबु मितान बदे राहय त उहा के सियनहा बसुदेव  बबा कड़क राहय ओहर भात थारी म छोडे ले सख्त नराज हो जय। त  ओकर प्रभाव रहय । मै उपराहा खा डरव तेकरे सेती बचपना ले मोट डाट दोहरी बदन के होगेव लगथे । ममा मामी मन रवा प्रसाद पाय बर जी ओड़हरे ब ईठे राहय।
   का मान गौन आदर सेवा सत्कार गा सिरतोन ममा गांव सरग सरीख लगय अउ मै सिरतोन गुरु अउ देवता बन जाव ! 
हमन ममा के मंडल आन ... पांच ममा रायपुर  के ,तीन ममा घुघवाडीह के  अउ बड़ मयारुक ममा रामनाथ बुड़ेरा ओकर संगे संग गांव भर ममा ।

 मा के मायका तीन गांव म हवे।  नाना गौटिया  बिशालदास कहत लागय तोरला नवा रायपुर अउ चटौद दो गांव के किसानी । ओकर पांच बेटा म अकलौती मोर मां। ओमन रायपुर के लेंडी तालाब पार म राहय अउ किसानी कम करय छुटपुट व्यवसाय करय अउ गौटियाई के मंजा उड़ाय। 
बुड़ेरा ह  मा के ममा गांव आय, ओकर तीन ममा म  सबसे बडे ममा के बेटी नही एकेझन बेटा रामनाथ सोनवानी कहत लागय। ओ जमाना म फोर्ड टेक्टर ,  किलोस्कर पानी पंप ,12 ठन साईकिल  किराया चलय अउ सांउड सिस्टम । उहचे तावा म लक्ष्मण मस्तुरिया , लक्ष्मी बंजारे , बैतलराम साहू के गीत सुनन अउ बजावन । नागिन , पाकीजा , शोले क्रांति नदिया के पार , सिलौरी बिन चटनी कैसी बनी जैसे गीत के तको डिमांड रहय । मय कभु कभु छठ्ठी बिहाव म ममा संग माईक फिट करे तीर- तखार के गांव संग म चल देव । मा के लालन पोषण पढाई लिखाई  बर बिहाव सब बुड़ेरा म होइस ते पाय के प्रमुख माइके अउ ममा गांव बुड़ेरा आय।
   तीसरा घुघवाडीह ह नानी के गांव राहय पुरा गांव उकरे राहय अउ गांव भर के हमन तीनो भाई भांचा राहन ।  तीनो जगा एक महिना के गरमी सीज़न काटन । तहा गांव म धान बोनी करवा के बुन्देली चले जान ।
  हर बेर दादी सतवंतीन रोवत बिदा करय ... नान्हे नान्हे छौना धर के तुमन महुरा झन खाव चले जा बुन्देली कथे उहचे जावत हव । बदली काबर न इ करवास कहिके बाबु संग बिकट झगरा तको होवय न दाई के सगा न ददा के उहचे मगन हव का मोहिनी खावाए हे ... बड़ बबकय अउ  दबकारय तको । 

   सिरतोन तो आय बुन्देली म मया मोहिनी खवा के हमन ल जतने रहिन उहो के दादा दादी अउ कका काकी मन ।
  हमर जनम स्थान जुनवानी भले आय फेर गोकुल वृंदाबन तो बुन्देली आय  । बाबु जी ह  सोनवानी परिवार संग मीतान बद के पुरा गांव के लागमानी होगे । मोर  बाल्यावस्था प्रायमरी शिक्षा मोहक वन प्रांतर चारो खुट पहाड़ ले घिरे  रम्य जगा  म होइस । 
  
  त बुड़ेरा म हमर ममा घर तीर के डबरी म मतावर तिहार मनाय जात रहिस ।गांव भर लोगन उमिहाय रहिन । केवट ढ़ीमर  झन सौखी ,  चोरिया ,पेलना ढुटी धरे राहय।
मार माई पिला बाल बच्चा सहित मछरी झोलत टमड़त राहय । पुरा चिखला माते रहय । तरिया के पानी अट गे रहय अउ लद्दी म सब सनाय रहय अउ सब झन मोला जवारा बिसर्जन के भैंसा सुर असन लगय।
    हमन ममा संग साईकिल म तरिया पार पहुचेन । मै आगु डंडी म बैठे राहव अउ उकर हो हल्ला अउ चिखला म सनाय उडंत घोडंत अपन चिन्हार संगी साथी ल देखत मंजा लेत टिंड़िग टिडिंग घंटी बजाय धर लेंव ।
     ममा ह एक गोड़ म टेकाय खड़े राहय ... ओ दिन मय सफेद बनियान पहिने रहेंव , सब संगी मन मोला बलाय खेले बर चिखला म घोलंडी मारे बर । मोर मन होगे राहय काबर इकर संग बियारा म हमन कब्बडी खेलत दिन पहावन । 
   ममा रोकिस तय इही मेर खडे  राह भांचा मै एक झन से मिलके आत हव ... तुलमुलहा तो रहव दादी के कहे अनुसार बरजे बात नइ मानव...  महु ह  पार ल उतर अउटे पानी तीर जाके  पथरा म खड़ा होगेंव!  तभेच एक झन ह अपन संगी जोन टुकना धरे ओकर फेकत मछरी ल बिनय अय धरय । तेन ल  मछरी टमड़त निहरे कहिस - जबर बाबर धराय ले बने धरबे  कहिके फेकिंस ओकर जोर से चिचियाई ल सुन के मछु सावधान हो देखे लगेंव ... ओकर बेला कमतीआगे अउ ओकर फेके मछरी ह रटाक ले मोर पेट म परिस ..अउ खाल्हे जमीन म गिर गिस । मोर बनियान पुरा सना गे ... अउ लोगन के एती  चिहुर परगे ... सांप सांप भागो -भागो ... उहु ल भीड़ ह सलमलात बांबर समझ  डंडा म पीट डरिस ।
   सिरतोन ओहर जल डोमी राहय कि ढोढिया अब तक पता नही फेर मय सुकुड़दुम हो गेंव। भारी डर लगाय ... ममा ओला बड़ खिसयाइस अउ ओहर दुसर डहर भाग गे।
     थोरिक देर बाद मोला समझा बुझा के जहुरियां टूरा मन मोला लेगे अउ घोंडा तक दिस फेर ओदिन मोला सिरतोन कहत हव मज़ा नइ आइस ।भलुक डरडरावन लगिस,फेर लोगन  बहुत ही आनंदित रहिस । अइसन  सार्वजनिक आन्दोत्सव मतावर के  मज़ा अउ सजा मय ए उमर म अउ कहु नई देखेंव न पाएव ।
   जय जोहार