हरि हरि ...
परोसी घर चुरे
अदौरी बरी
फोरन माहके
अंगना दुवारी
खाथे ओमन
तरी- तरी
ललचाथे अउ
लुलवाथे बिचारी
नोनी के दाई
खावय खरी
तब सुनावय
खरी खरी
गोठ गज़ब
6फरी फरी
फेर का करि
उसरय नहीं
बनाय बर बरी
जींव फंसे
जस मछरी गरी
उबुक- चुबुक
उपलाएं फोही
अकबकावत
धंधाय भीतरी
ओती सब बरी
बोले हरि हरि
सत्ता सेती पाए
सुख सरी
जेकर नहीं
कटे दु:ख भरी
करो उदिम
पावो सत्ता सुन्दरी
खावो मन पसंद
रोज तरकारी
मगन गावो नाचो
पीटत जम्मों तारी
हमला का हे
काकर जरी
करे कोन खरखरी
त कोन ल
धरे तरमरी
काकर खौरे
खावत खरतरी
खोटबोन पर्रा भर
हमन अदौरी बरी
मानिस ले दे के सुवारी
मगन अनिल भतपहरी
गावै भजन हरि हरि ...
-डॉ. अनिल भतपहरी
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