Thursday, October 13, 2022

गुरुघासीदास फिल्म स्क्रीप्ट ४

*गुरु घासीदास फिल्म पटकथा*

      भाग चार। (बाड़ी का दृश्य)

प्रसंग - बालक घासीदास एवं अन्य बालवृंद, बुधारू को जीवन दान, पक्षी को जीवन दान, किशोरावस्था में नागर महिमा।
पात्र - घासीदास, बुधारू, वीर सिंग, शुकलाल, विशाल, समारू, गोपाल मरार, एवं ग्रामीण महिला, पुरुष।
वेशभूषा - घासी, भाल में तिलक, घुंघराले बाल, स्वेत वस्त्र, अन्य बच्चे भी ग्रामीण परिवेश में।

     (घासीदास अपने बाल सखाओं के साथ खेल - खेल में उपदेशासत्मक बातें कहतें हैं, अन्य बाल सखा उनके (घासी) का मजाक उड़ाते हैं तो कभी साथ में नहीं खेलने की बात कहते हैं। कभी मित्र मंडली का नायक बनातें हैं। खेल में हाथी, घोड़ा, गुल्ली डंडा आदि  खेलते हुए एक बालक गन्ना तोड़ कर खाने की इच्छा व्यक्त करता है)

विशाल - मित्रों देखो उस बाड़ी में (बाड़ी की ओर उंगली दिखाकर) रसदार गन्ना लगा है हम सबको चलना चाहिए,   गन्ना तोड़ने में मजा आएगा।
समारू - मित्र का कथन उचित है, अवसर का लाभ लेना चाहिए। (जाने के उद्दत होते हैं)
घासीदास - सुनिए मित्र, यह काम मुझसे नही होगा, दूसरे का धन धुल के समान है।
बुधारू - नहीं हम लोग चोरी नहीं कर रहे हैं। बस गन्ना तोड़ कर खाएंगे।
घासी - दूसरे के धन या वस्तु पर लालच नहीं करना चाहिए।
सुकलाल - घासी हे मित्र, चलना है तो चलिए, हम लोग जा रहे हैं।
बुधारू - मित्रों, घासी तो महात्मा बने फिरता है।
विशाल - चलिए घासी, बाद में उपदेश देना।
सुखलाल - हमने एक दिन गन्ना मांगे तो, खानदान को गिनाने लग गया। मांगने पर नहीं देते। चलो अब - ( बालकों का दल गन्ना बाड़ी में घेरा तोड़कर प्रवेश करते हैं बाहर से घासी खड़े - खड़े सब उपद्रव देख रहा है)
वीर सिंग - ( घासी को दूर खड़ा देख कर गन्ना लाकर देता है) लो घासी गन्ना। (पकड़ा देते हैं)
बुधारू - (बाड़ी में मोटा गन्ना देखकर झुरमुट में पैर रखता है काला नाग पैर को डस देता है) ओह् बचाओ, स््स््सांप---! ( सभी मित्र बुधारू के पास आते हैं)
वीर सिंग - (बुधारू काफी डरा हुआ है, और पसीना - पसीना हो जाता है,  मित्रगण हवा देते हैं) डरो मत मित्र! अन्य मित्रों के सहयोग से बाड़ी से बाहर वृक्ष के नीचे लाकर लेटातें है)
घासी - ( बुधारू के पास आकर पूछने पर मित्र बताते हैं कि सांप डस दिया है बुधारू के सिर पर हाथ रख कर) डरना नहीं मित्र।
( चूंकि बालक घासी अपने दादा सगुन दास को उपचार करते देखा व समझा रहता है औषधियां और नाड़ी ज्ञान बाल अवस्था से रहता है उस ज्ञान परीक्षण का अवसर आ गया यह सोचकर औषधि से उपचार पर विचार करते हुए कुछ दूर झाड़ियों की ओर निकल जाते हैं)
विशाल - बुधारू-- बुधारू ( बेहोशी की स्थिति में, बुधारू को देख कर मित्रगण डर जातें हैं सर्प डसने की  घटना  सुन - सुनकर ग्रामीण आ रहे हैं अचेतना अवस्था में  बुधारू के मुख से झाग निकलता है)
      (किसान गोपाल मरार बाड़ी से गन्ना उजाड़ने की बात सुनकर आवेश में बड़बड़ाते आते हैं)
गोपाल किसान - (भीड़ को देखकर नजदीक पहुंच कर मूर्छित पड़े बुधारू को देखते ही तमतमाए चेहरा, उतर जाता है) क्या हुआ है ?
ग्रामीण - यह बुधराम का लड़का बुधारू है। इसे सर्प डस दिया है।
गोपाल किसान - (बुधारू के नाड़ी टटोलते हैं) लगता है इनकी सांस थम चुका है!
(भीड़ बुधारू को करूण निगाह से देख रहे हैं, संबंधी सिसकने लगतें हैं। भीड़ को चीरते हुए  बालक घासीदास, बुधारू के निकट  पहुंचते हैं।
घासी दास - ( बुधारू के नाड़ी छूते व  नेत्रों को खोलकर देखते हैं समझ गया जहर का प्रभाव इन्द्री तक होने से शरीर शून्य पड़ा है ) सत्पुरुष को स्मरण कर ढूंढ कर लाए औषधि से उपचार करते विष नाशक औषधि के रस को मुंह में डालते हैं, और जल के बूंदें डाल  कर शेष जल को शरीर में छिड़कते हैं जड़ी को पत्थर से कुचकर डसे जगह पर बांध देते हैं  थोड़ी देर में बुधारू के शरीर में हलचल होता है आंखे खुल जाती है फिर उठ बैठता है)
ग्रामीण  - देखकर सभी चकित रह जाते हैं कोई अवतारी पुरुष कहता है, कोई धन्यवाद दें रहा हैं, धन्य हो लाल कहते गोपाल मरार घासी को गले लगा लेता है)

खेत का दृश्य, नागर महिमा - 
(आषाढ़ मास की प्रारंभिक तिथि में वर्षा होते ही बीज, हल, बैल लेकर, गोपाल मरार अपने खेतीहर मजदूरों के साथ खेत की ओर प्रस्थान करते हैं। साथ में पूजा की सामग्री खेत में बली देने एक बकरा  बांध रखें हैं। मजदूरों के समुह में युवा घासी दास भी है )
गोपाल मरार - (अपने एक नौकर से)  चलिए पूजा, एवं बली देने की तैयारी करो। 
नौकर - हां ठीक है मालिक।
गोपाल मरार - जल्दी करो पूजा के बाद बकरे की बली चढ़ानी है।
घासी - (गोपाल मंडल से पूछते हैं)  बली  न देने पर क्या होता है?
गोपाल मरार - प्रथम बोंवाई और हल चलाने  पर बली देते हैं घासी, जिससे कोई अनहोनी न हो।
घासी - पहले कभी घटना घटी है?
गोपाल मरार - नहीं, परंतु परंपरा पूर्वजों से चली आ रही है।
घासी - कोई भी परंपरा को आंख बंद कर नहीं मानना चाहिए।
गोपाल मरार - पीढ़ी से चली आ रही परंपरा को छोड़ नहीं सकते।
घासी -  किन्तु गौंटिया, जीव हत्या करना पाप है।
गोपाल मरार  - बलि देने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। 
घासी - गौंटिया! विचार कीजिए, धरती का स्वाभाव है, बादल बरसते वनस्पतियां उग आती है।
गोपाल मरार - ( गोपाल को बात जंची नहीं )  हमारे कुलईष्ट को मनाना पड़ता है घासी! (नौकर से पूजा प्रारंभ करने का इशारा करते)
घासी - मेरी प्रार्थना है, मूक पशु पर दया कीजिए।
गोपाल - ठीक है, बलि नहीं दूंगा, अनहोनी पर जिम्मेदारी कौन होगा।
घासी - (आंतरिक मन से खुशी व्यक्त करते) मन से अनावश्यक भय निकाल दीजिए।
गोपाल - अच्छा फिर  पहले स्वयं बोंवाई करो।
घासी - आपका जो आदेश मंडल! (घासी! बोरा से एक टोकरी धान निकाल कर पांच एकड़ बाहरा डोली सींचते हैं जो पूरा होने के बाद टोकरी में बच भी जाता है। संदेह वश खेत के चारों ओर घूम कर देखते हैं सभी दिशा बीज बिखरा मिला। विस्मित भाव से अपने आप से कह रहा है  यह कैसे संभव है!)
नौकर - ( हल चलाना शुरू करते हैं) अर, अर - तता त।
( अड़ियल बैल चलने के बजाय बैठ जाता है नौकर  बैल को डंडे से मारता है फिर भी नहीं चलता)
गोपाल - अब देखो घासी, बलि देने से मना किया उसका परिणाम। रूठे ईष्ट देव बैल को चलने नहीं दे रहा है।
नौकर - ( उठाकर चलाने की कोशिश करता है और बैल को फिर मारता है ) उठ, तता, त, तता, त। (बैल नहीं उठा)

घासी - मत, मारो मत, मारो किसी भी  प्राणी को मारना पाप है।
नौकर - ( आक्रोशित होते ) अच्छा, फिर खेत पर हल चलाओ, उपदेश देते फिरते हो।
घासी - दीजिए, मुझे ( नथे हुए बैलों की दिशा बदल कर फ़िर नथता है, स्नेह से  सेवा, कर्म पूरा करो, मार क्यों खा रहे हो? कहते बैलों के पीठ सहलाते हैं  और हल का मुठ  पकड़ कर हांकने है) तता त, अर अर, अर ( दोनों बैल फर्राटा चलने लगा)
गोपाल मरार -  गोपाल मरार घासी को कोई अवतारी पुरुष मानकर मन ही मन नमन् करते हैं (सब आश्चर्य से देख रहे हैं,  यह चमत्कार कैसे हो रहा है? एक टोकरी धान, पांच एकड़ बाहरा डोली में बोना, अड़ियल बैल से हल चलाना, बुधारू का जीवन दान कहते, आपस में कानाफूसी हो रहें हैं) धन्य हो घासी! कोई लीला तो नहीं दिखा रहें हैं?

                     अनिल जांगड़े 'गौंतरिहा'

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