छायावाद और मुकुटधर पांडेय
हिन्दी साहित्य में छायावाद का कालखंड अतिशय महत्वपूर्ण हैं। बिन इनके साहित्य का अध्ययन अध्यापन या विचार विमर्श संभव नही है। सच कहे तो इस कालखंड मे हिन्दी जिसे खड़ी बोली कहे जाते है और काव्य के लिए अनुपयुक्त वह धारणा बदली और हिन्दी भाषा प्रांजल और काव्यमय हुई।
हालांकि कोमल कांत पदावलि और बढते संस्कृत निष्टता के चलते भाषा दुरुह जटिल हुई तथा कविता रहस्यमय होकर गुंफित भी हुई पर यह जटिलता ही भाषाई संरचना और भाव विन्यास को गहराई से समझने की व्यापाक दृष्टि भी प्रदान की।
छायावाद मे जो पश्चिम की मिस्टीसिज्म या रुमानियत और इस्लामिक सूफियाना फलसफा दिखता है उससे यह बेहद प्रभावी और वैश्विक स्तर पर चिन्हाकित भी की गई ।
इस छायावाद के प्रवर्तक कवियों मे छत्तीसगढ के रायगढ़ जिला के महानदी तटवर्ती बालपुर ग्रामवासी कविवर पं. मुकुटधर पांडे अग्रणी है। कुर्री के प्रति काव्यांश का यह भाव देखिए जिसमेञ छायावाद के विशेषताएं समाहित है-
शून्य गगन में कौन सुनेगा तेरा विपुल विलाप ?
बता कौन सी व्यथा तुझे है , है किसका परिताप ? (१ मुकुट धर पांडे व्यक्ति एंव रचना - संपा महावीर अग्रवाल पृ ४१०)
यह प्रश्न वियोगी कवि का प्रश्न है जिनकी उत्तर खोजा जाना शेष है।
कविवर पंत जो छायावाद के बड़ा नाम है वो तो स्पष्ट कहा है -
वियोगी होगा पहला कवि आह से ऊपजी होगी गान ।
नैनो से उमड़ कर चुपचाप बही होगी कविता अनजान ।। (२)
हालांकि छायावाद और उनके प्रवर्तक के नाम पर काफी प्रवाद है ।यह नाम साहित्य जगत चल पड़ा पर किसने सबसे पहले उपयोग किया इन पर भी बहसे आज तक की जाती हैं, फलस्वरुओ लोगों मतैक्य नहीं है।
सन १९२० में ' श्री शारदा ' पत्रिका जबलपुर से निकलती थी उसमें ' हिन्दी कविता में छायावाद शीर्षक से एक लेख माला पंं. मुकुटधर पांडेय की छपी। उसके माध्यम से पहली बार " छायावाद " शब्द और छायावादी काव्यान्दोलन को लेकर प्रमाणिक तौर पर विस्तृत रुप से सामाग्री सामने आई। " इसी तरह हितकारिणी पत्रिका मे -"हिन्दी कविता में छायावाद " निकली। ,( पृ3 वही पृ 438 )इस आधार पर उन्हे छायावाद नाम देने वाले कहे जा सकते है।
और तो कविवर पांडे जी उस अज्ञात सत्ता और शहर का श्रोता बनकर हमारे समक्ष सुनाने आ जाते है -
सुना , स्वर्णमय भूमि वहां की मणिमय है आकाश ।
वहां न तम का नाम कहीं है, रहता सदा प्रकाश ।। ( ४ वही पृ ४११)
बालपुर ग्राम मे निर्भय और निसंक निवासरत थे । भौतिक अभावों के बीच प्राकृतिक संशाधनों और आत्मीय संपदा के वे मालगुजार थे फलस्वरुप ग्राम वैभव उनकी कविता द्रष्ट्व्य है -
शांति पूर्ण लघु ग्राम बड़ा ही सुखमय होता भाई।
देखों नगरों से भी बढ़कर इनकी शोभा अधिकाई ।। ( ५ वही पृ ४१९ )
मुकट धर पांडे जी की मूल्याकंन बच्चू जांजगिरी ने की फलस्वरुप उनकी ख्याति चतुर्दिक फैली अन्यथा उनकी अवदान सुदूर छत्तीसगढ़ के होने के कारण विस्मृत कर दिए गये होते । बहरहाल यहां के साहित्यिकों का यह नैतिक दायित्व है कि यशस्वी रचनाकारों की ओर भी नजर इनायत कर लिया करें। पता नही हमारे बौद्धिकों / अध्येताओं, रचना धर्मियो यहां तक आध्यापकों को भी यह लगता है कि बड़ा फलक और रचनाकार केवल गंगा हिमालय के भूभाग मे गोया कि वही सौन्दर्य बिखरा हुआ है और कही नही फलस्वरुप वहां बडे और प्रवर्तक रचनाकार होन्गे। पं . मुकुटधर जी इस मिथक को तोड़ते है। और छोटे से ग्राम मे रहकर वे वैश्विक साहित्य रचते है -
दीन - हीन के अश्रु नीर में
पतितों की परिताप पीर में
संध्या के चंचल समीर में
करता था तू गान
देखा मैने यही मुक्ति थी
यही भोग था यही मुक्ति थी
घर मे ही सब योग - युक्ति थी
घर ही था निर्वाण । ६ वही , पृ ४१४
इस तरह देखे तो उनकी रचनाएं भाव प्रवण और भाषा बहुत ही उत्कृष्ट हैं। उनकी रचनाओं छायावाद और स्वच्छंदता स्पष्ट दृष्टिगोचर होते है
।
उनकी रचनाओं छत्तीसगढ़ी शब्द और यहां की साञस्कृतिक तत्व अनायस देखने मिल जाते है। उनकी चर्चित व प्रतिनिधी कविता कुर्री के प्रति एक तरह से प्रवासी पक्षी का समूह है जो दूर देश आते है। उनकी उच्चरित ध्वनि के कारण यहां उसे कुर्री कहते है को लक्ष्य कर उन्होने अप्रतिम काव्य रचना की और वह छायावाद की कविता के रुप में स्वीकृत की गई ।कुर्री कहने मात्र से ही छत्तीसगढ प्रदर्शित हो जाते है। महाकवि कालिदास कृत मेघदूत का छत्तीसगढ़ी अनुवाद दर्शनीय है। उनकी अनुवाद कला और छत्तीसगढ़ी शब्द संयोजन बेहद सटीक है। इस अनुवाद से सहज पता चलता है कि छत्तीसगढ़ी अनन्य भावों अभिव्यक्त कर सकने असीम क्षमता संस्कृत सदृश्य रखती है।
भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मनित पांडेय जी प्रदेश के गौरव है । वे आने वाली न ई पीढी के मार्ग दर्शक हैं।
उन्हे शत -शत नमन
डा. अनिल कुमार भतपहरी
( 9617777514)
सचिव
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर
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