पितृ दिवस की हार्दिक बधाई ...
इस पावन अवसर पर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हमारे शिछक पिता व साहित्यकार सतलोकी सुकालदास भतपहरी (१९४८-२०००) को सादर काव्यांजलि समर्पित है-
" बाबू जी "
अन्त: करण में उठ रहे भाव को कैसे करे काबू जी
याद आ रहा है बाबू जी याद आ रहा है बाबू जी
समर्पित करते श्रद्धांजलि हसरते उठते बेकाबू जी
उंगली थाम कुछ डग भरे ऊंची-नीची राहे
मुझे बढ़ते देख खिल जाते उनकी बांछे
किये सदा सामंजस्य कर्तव्य और घर -परिवार
सादा जीवन उच्च विचार आपके जीवन का सार
विराट व्यक्तित्व आपका पर सहजता से भरा हुआ
गीत संगीत अभिनय हर रंग से रंगा व सजा हुआ
बहुतों को देखा प्रफुल्लित आपके शरण में
झुकता मस्तिष्क बडा बडा आपके श्रीचरण में
विकास की सपने संयोये सफर छोटे गांव से
भ्रमण कर देश भर बसे रहे जुनवानी गांव में
विषमताओ के मध्य जीवन उज्जवल तेरा
संधर्ष आपका ही रहा सदैव संबल मेरा
जनक ही नही गुरु है मेरा दिया अप्रतिम ग्यान मुझे
ऊऋण होंउ तो होऊ कैसे इनका नही है भान मुझें
ग्यान ही शक्ति है कह कहते अर्जित करो उनकी भक्ति
सद्गुण और सद्व्यवहार है सफलता उनकी है सूक्ति
प्रशस्ति गान आपके करु तो करु कैसे
जतन कर ओढी चदरिया जस की तस धर दीनी जैसे
महकता रहे स्नेह पिता का श्री सुकालदास
फूल मुरझा जाते है बाकी रह जाते है सुवास
(रचनाकाल २००१ )
- डा.अनिल भतपहरी
सहा प्राध्यापक
शा बृ ल व महाविद्यालय पलारी
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