Wednesday, June 26, 2019

सतनामी समाज की दशा

मनुष्य एक समझदार  प्राणी तो  है।पर अक्सर बहुतों में यह  भ्रम रहते है कि उनके जैसा कोई नही।
यह सच भी है कि हर आदमी दूसरे से भिन्न है पर समझ को लेकर अक्सर मुगालते मे रहने वाले कि हमसे अधिक कोई नही यह उनका मिथ्या गर्व है इसलिए वह असमाजिक व अव्यवहारिक हो जाते है ।और छोटे छोटे समुदाय में विभक्त भी ।तब वह न किसी का सुनता है न सुनना चाहता है।  ऐसे लोग या तो जानकर होते है पर गर्व भाव के कारण अग्राह्य हो जाते है या आधे आधुरे जानकारी रखते बे वजह अधजल गगरी छलकाते हस्यास्पद हो समुदाय से खारिज हो जाते है या चंद लोगों के बीच अंधों मे काना राजा जैसा धौंस जमाते फिरते है।
     कुछ साधारण ग्यान  अल्प व मृदुभाषी होते है  जिन्हे अपेछित सम्मान उक्त वर्ग नही देते बल्कि महत्वहीन समझ नजर अंदाज करते है ।
   बाकी यथास्थिति और जिधर बम उधर हम वाले होते है ।
     बहुत ही कम होते है जिनके दखल हर तरफ होते है यह बहु मुखी व्यक्तित्व के जुनूनी और यश अपयश से परे होते है जो वाकिय में हर चीज का युक्तियुक्त समन्वय करता है।
            समाज मे अभी इन सबका युक्तियुक्त समन्वय कर सार्थक नेतृत्व चाहे धार्मिक सामाजिक व राजैतिक रुप से हो आना बाकी है। क्योकि यह संक्रमणकाल है अभी पूर्णत: न शिछित है न उच्च जीवन  स्तर न ही सु सभ्य है।
      फलस्वरुप जो जिस अवस्था से गुजर रहे है वे उतने तक ही समझ रखता है। प्राचीन परंपरा मान्यताओं  और आधुनिकता मे कैसे सांस्कृतिक तथ्यों का निर्धारण कर जीवन निर्वहन करे और कैसे सार्थक संधर्ष  करे यह सही ढंग रेखांकित नही हो पाते ।इसलिए हम राजनैतिक प्रतिबद्धता हेतु उधार के विचार पर आश्रित है।क्योकि हमने अभी अपनी साञस्कृतिक तथ्य के अनुरुप राजनैतिक जागरुकता विकसित नही किए है। राजकीय व  राष्ट्रीय स्तर पर भी हमारी कोई लोकप्रिय चेहरे नही जिनकी हम समवेत रुप से सुन व समझ सके।प्राय: हर समझदार उच्च शिछित और थोडा साधन सछम लोग परस्पर प्रतिद्वंद्वी है। प्रभाव पद प्रतिष्ठा उन्हे एक समान सोचने और एक जगह बैठने नही दे पा रहे है।यह नेतृत्व वर्ग चाहे गुरु संत महञत राजनेता या सछम मंडल. गौटिया या अधिकारी कर्मचारी हो  सभी अपने अपने मात हतो के अधीन है।
    इन वर्गों को गुरुघासीदास के उपदेशना सतनाम सिद्धान्त और संविधान मे निहित अधिकार और कर्तव्य के प्रति निष्ठावान होकर सामाजिक दायित्व के ईमानदारी से निर्वहन मे साथ होना चाहिए ।पर दूर्भाग्यवश "राजनैतिक चेतना " जिससे पद प्रतिष्ठा अर्जित कर यश और धन  कमाए जाते है वह सबको प्रतिद्वंद्वी बनाकर रखे हुए है।आदमी आरंभ से लड़ते आ रहे है सञधर्ष ही उनकी जीजिविषा है
      छोटीसे  छोटी और बडी से  बडी बातों मे हम  परस्पर लडते है पर किससे ,कैसे और  क्यो लड़ते है  यह अब तक साफ- साफ पता नही।
     जिस दिन कुछ को  पता होता है वेव गल्तियां सुधार विकास की ओर अग्रसर होते है। और बहुतो तो  केवल  पश्चाताप करता है  तब उनके पास न धन न बल न यौवन होता है।
     दुर्भाग्य वश समाज में अधिकतर यही हो रहा है-
सतनामी मरगे पेशी मे गोड़ मरगे देशी में जैसे कहावत यु नही है।
  फिर आजकल समाज में तेजी से मदिरा व नशापान बढ रहे है यह हाताश और कुठां के चलते हो रहे है।   

इन सबसे बाहर आने नव  सांस्कृतिक आन्दोलन की जरुरत है जिससे समाज मे संस्कार आए बिना इनके शिछा पद प्रतिष्ठा नौकरी चाकरी और नेतागिरी चंद व्यापारी केवल  व्यक्तिक सफलता मात्र है  ।समाजिक नही।
   जिस दिन व्यक्तिक सफलता सामाजिक रुप से प्रतिष्ठित होन्गे उस दिन  समाज  का प्रभाव अन्य   समाज  प्रदेश व देश  को पता चलेगा ।
         ।‌। सतनाम ।।

Thursday, June 20, 2019

मां महानदी

मां महानदी

चित्रोत्पल्ला गंगा मां महानदी
देती जीवन आनंद अरु सदगति
ज‌न जन के लिए वात्सल्यमयी स्नेह हो ...

अरबो झांहू की लताए
झूम रही अंग में लिपटाए
मानो इनके केश हो .. .

तटपर लाखों तरु सैनिक
हैं भट्टप्रहरी जो अहर्निश
दे रहे हैं पहरा
मानो हथियारों से लैश हो...

धान कटोरा छत्तीसगढ़ की करधन
जिसमें जडा स्वर्ण रजत व रतन
नीर धारा रेश हो...

श्रीपुर राजिम गिरौद शिवरीनारायण 
तट पर बसे तीर्थ है पतित पावन 
पाकर आशीष नवोन्मेष हो

इनकी सलिल है निर्मल
तन मन को करते है विमल
अत्यन्त पारदृश्य हो...
   - डा अनिल भतपहरी
(रचनाकाल ७-८-१९८५ प्रात: महानदी तट )
छत्तीसगढ़- उडीसा की जीवन रेखा महानदी की संरछण और उन्हे सदानीरा करने की सार्थक पहल हो।नर्मदा और गंगा की तरह महानदी के लिए दोनो प्रान्त मिलकर महाअभियान चलाए।
  ।।नमामि मां महानदी ।।

Monday, June 17, 2019

घासी मुख निकले बानी

सुघ्घर
मनगंढत कथा कहानी
पोथी पत्रा के भभकौनी
पंडा पुजरी के लुढ़राई
आनी बानी खाजा खवई
आनंद बाजार मं मजा मराई
मंदिर के चारो मुड़ा किंदरई
देवदासी मन के  नचई -गंवई 
जनता  के लुटई उकर करलाई  
देख घासी के मुख निकले अमृतबानी
मंदिरवा मं का करे जाबो भाई
चलव अपन  घट के देव ल मनाई ..

Sunday, June 16, 2019

देवी शक्तिपीठों में सतनाम जागरण

"देवी शक्तिपीठो मे गुरुघासीदास का सतनाम जागरण "
       सत्रहवी सदी मे  समकालीन छत्तीसगढ  विभिन्न मत मतान्तरो के मध्य समन्वय और एक दूसरे की अच्छाई -बुराई को ग्राह्य- अग्राह्य के रुप मे भी जाने जाते है।
   धर्म कर्म मे व्याप्त अराजकता और मराठा भोसले व पिडारियो और अंग्रेजो के दमन शोषण और लूटपाट से भी बचने और उनके प्रभावी प्रतिकार के लिए संधर्ष का  ऐतिहासिक कालखंड रहा है।
समाज मे  धार्मिक राजनैतिक व आर्थिक चेतना लगभग मिली‌जुली रुप मे हर पल साथ साथ चलते है।
   और हर समय लोग  धर्मनिष्ठ  प्रभावशाली  और वैभवशाली होने के लिए प्रयत्न करते रहते है।
धर्म निष्ठता  उनकी आस्था व भक्ति भाव से आते है।अराध्य जो भी हो उनके प्रति निष्ठा और समर्पण होते है।तथा मन वचन कर्म से उन्हे मानते है।
   दूसरा प्रभाव के लिए व्यक्ति  राजनीति मे संलग्न होकर इसे प्राप्त करते है यथा राजतंत्र होने से उनके अंग मंडल गौटिया मालगुजार जमीन्दार व राजा जैसे पद को पाने प्रयत्न करते है। अब लोकतंत्र मे मतदान प्रक्रिया से पंच सरपंच विधायक संसद चुन मंत्री आदि बनते है।
    तीसरा आर्थिक चेतना है जो व्यक्ति को   वैभवशाली व ऐश्वर्यवान करते है इसके लिए कृषि व्यापार नौकरी आदि है।
   इन तीनो अवस्थाओ को पाने कठोर परिश्रम करने होते है। और उसी आधारपर या कही संयोगवश इन्हे अर्जित करते है।
     इन तीनो को साधने से व्यक्ति समृद्ध सुखी व कीर्तिवान होते है।
        बाहरहाल समकालीन छत्तीसगढ मे राजतंत्र था और राजा अपनी वंशपरंपरा और वैभव एंव ऐश्वर्य को कायम रखने धर्म तंत्र और आर्थिक तंत्र को अपने हाथो मे थामकर  जनमानस को नियंत्रण मे रखे थे और उनके ऊपर राज करते आ रहे थे। उनके अपने अपने आराध्य देवी देव थे और वहा पर विचित्र कर्मकांड रचे गये थे अनेक पुरोहित व सामंत उन कर्मकांड को करते जनता के ऊपर हुकुमत करते ईश्वरीय विधान या दैवीकृपा के रुप मे प्रचारित करते काव्य महाकाव्य लोक गाथा वृतांत गीत भजन गल्प या दंत  कथाओ को जनमानस मे योजना बद्ध तरीके से प्रचारित करवा कर रखे गये।ताकि जन आस्था उन पर गहरी रहे और वे राज व्यवस्था के ऊपर कोई हस्तछेप न कर पाए कोई परिवर्तन  नवजागरण या आन्दोलन आदि न  छेड पाए ।
           परन्तु जब किसी  क्रिया के अनवरत होते रहने या कर्मकांड के निरंतरता से कही न कही उनमे आशिंक या अमूलचूल परिवर्तन हेतु स्वस्फूर्त कही न कही से कलान्तर मे अभियान नवजागरण या आन्दोलन आदि होकर रहते है।चाहे वह प्रखर व उग्र रुप मे या धीरे धीरे जन मन मे विचार ,मत  या दर्शन के रुप मे हो। छत्तीसगढ मे ऐसे ही जनमानस के हृदय और अन्तर्मन मे अपेछित परिवर्तन हेतु सतनाम संस्कृति का प्रवर्तन समर्थगुरु घासीदास के अभियान से प्रारंभ हुआ। और धीरे धीरे यह युगान्तरकारी महाप्रवर्तन मे परीणित हो गये!
     समकालीन छत्तीसगढ मे चारो दिशाओं मे ४ शक्तिपीठ स्थापित थे और इन स्थलों मे राजा सांमत  पुरोहितों  और समर्थ जनो  द्वारा विशिष्ट प्रकार से उनकी अपनी हैसियत के अनुरुप बलिप्रथा ( छै दत्ता यानि कि युवा पाडा बकरे मुर्गे इत्यादी पशु पछी इत्यादि ) का निम्न जगहो पर  प्रचलन मे  थे।
    पूर्व दिशा मे चन्दरसेनी देवी  ( चंद्रहासिनी चंद्रपुर  )
     पश्चिम बम्बलाई ( बंमलेश्वरी डोंगरगढ)
उत्तर महामई  ( महामाया रतनपुर )
  दछिण मे दंतेसरी ( दंतेश्वरी दंतेवाडा )
    गुरु घासीदास का इन्ही जगहो पर  रावटी लगाकर सतनाम  जागरण हुआ और निरन्तर उपदेशना करते जनमानस मे धर्म कर्म मे सुचिता लाने  हेतु सत्य और  अहिंसा का प्रचार प्रसार किया।  क्योकि जहा बलि होते वहा मांसाहार स्वभाविक है ।मांस है तो मदिरा है और जहा मांस मदिरा है वहा मैथुन और मुद्रा नाच पेखन मेले ठले खेल  तमाशे होन्गे।  इन पंचमकार की विकृत साधना और यौनाचार के विरुद्ध गुरु घासीदास का सतनाम जागरण आरंभ हुआ।उनके सप्त सिद्धान्त मे सत्याचरण के पश्चात  मांस मदिरा और स्त्री सम्मान प्रमुख उपदेश है। इन उपदेशो और निन्तर उनके प्रचार प्रसार से समाज मे  परस्पर सामाजिक सौहार्द्र स्थापित करने का महाअभियान चला। महाप्रसाद भोजली जवारा मितान गंगाजल  जैसे मैत्री भाव स्थापित करने  वाली प्रथाओ का सूत्रपात भी हुआ। फलस्वरुप संपूर्ण छत्तीसगढ मे एक सामजस्यपूर्ण वातावरण का निर्माण हुआ जो शेष भारत से अलग से रेखांकित होते है।शांति की टापू एंव सौख्य की भूमि के नाम से यह छत्तीसगढ विभूषित हुई ।परिश्रम युक्त श्रमण सतनाम संस्कृति के चलते वन भूमि कृषि भूमि मे परिणित होकर  "धान का  कटोरा " के नाम से ख्यातिनाम हुआ।
    हर समाज जो जाति गोत्र फिरका मे बटे नव चुल्हो वाली संस्कृति मे विभ . क्त परस्पर एक दूसरे का छुआ और पक्की भोजन नही करते वहा चुल खनन करवाकर भोजन पकवाकर एक बर्तन मे परोस कर पान प्रसाद बनवाने के लिए 

चुल्हापाट मे पालो नाडियल रखकर सांझा चुल्हा पंगत प्रथा चला। और पंगत उपरान्त संगत एंव संगत के उपरान्त स्वैच्छिक रुप से अंतिम सोपान अंगत रुप मे इच्छूक जातियों के जाति को विलिन करते सत के अराधक अनुयाई को  सतनामी बनाये जाते।दीछा व नाम पान दिए जाते।गुरुघासीदास एंव उनके सुपुत्रों द्वारा यह अभियान १७९५ - १८५० तक लगभग ५५ वर्षों तक निरन्तर चला। १८५० मे सद्गुरु घासीदास के बाद इस अभियान को तीव्र गतिमान करने लाने और बाबा जी के स्वप्न को शीध्र पूर्ण करने राजा बन चुके गुरुबालकदास ने सतनाम जन जागरण को सतनाम आन्दोलन के रुप मे परीणित किया।वे तेजी से इसे जनमानस मे विस्तारित करने लगे।
    परन्तु यथास्थिति वादियो और सुविधाभोगियों ने इस  आन्दोलन को थामने  १८६० गुरु पुत्र राजा गुरु बालकदास के सडयंत्र पूर्वक हत्या कर दिए गये।उनके बाद आन्दोलन थम सा गया सतनाम जागरण  मे ठहराव आ आया।
     और जो सतनामी बन चुके थे उन्हे शुद्धिकरण कर पुनश्च अपनी अपनी जातियों मिलाने भी लग गये।
       पुनश्च बलिप्रथा धार्मिक कर्मकांड आरंभ हुआ। सतनामी  के जगह रामनामी  और सूर्यनामी या सुर्यवंशी जातिगत समुदाय का गठन होने लगे....
   इस तरह गुरुघासी दास और  सतनाम जागरण कुछ विद्वान उसे आन्दोलन भी कहते  का छत्तीसगढ मे व्यापक असर हुआ और उनके अनुयाई लाखो मे पहुच गये।
        आज चैत शुक्ल पछ एकम से नवम तक छत्तीसगढ मे जोत जवारा पछ है इनका शुभारंभ गुरुघासीदास ने डोगरगढ रावटी द्वारा आरंभ किए।वर्तमान मे  दैवी अराधना या शक्तिपूजा मे जो सात्विकता और पावनता दिग्दर्शन होते है वह संत संस्कृति के कारण संभाव्य हुआ ।
जय सतनाम - जय अम्बे
     " सतनाम "
डा. अनिल भतपहरी

बाबू जी

पितृ दिवस की हार्दिक बधाई ...

इस पावन अवसर पर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हमारे शिछक पिता व साहित्यकार सतलोकी सुकालदास भतपहरी (१९४८-२०००) को सादर काव्यांजलि समर्पित है-   
       " बाबू जी "
अन्त: करण में उठ रहे भाव को कैसे करे काबू जी
याद आ रहा है बाबू जी याद आ रहा है बाबू जी
समर्पित करते श्रद्धांजलि हसरते उठते बेकाबू जी
उंगली थाम कुछ डग भरे  ऊंची-नीची राहे
मुझे बढ़ते देख खिल जाते उनकी बांछे
किये सदा सामंजस्य कर्तव्य और घर -परिवार
सादा जीवन उच्च विचार आपके जीवन का सार
विराट व्यक्तित्व आपका पर सहजता से भरा हुआ
गीत संगीत अभिनय हर रंग से रंगा व सजा हुआ
बहुतों को देखा प्रफुल्लित आपके शरण में
झुकता मस्तिष्क बडा बडा आपके श्रीचरण में
विकास की सपने संयोये सफर  छोटे गांव से
भ्रमण कर देश भर बसे रहे जुनवानी गांव में 
विषमताओ के मध्य जीवन उज्जवल तेरा
संधर्ष आपका ही रहा सदैव संबल मेरा
जनक ही नही गुरु है मेरा दिया अप्रतिम ग्यान मुझे
ऊऋण होंउ तो होऊ कैसे इनका नही है भान मुझें
ग्यान ही शक्ति है कह कहते अर्जित करो उनकी भक्ति
सद्गुण और सद्व्यवहार है सफलता  उनकी है सूक्ति
प्रशस्ति गान आपके करु तो करु कैसे
जतन कर ओढी चदरिया जस की तस धर दीनी जैसे
महकता रहे स्नेह पिता का श्री सुकालदास
फूल मुरझा जाते है बाकी रह जाते है सुवास
                              (रचनाकाल  २००१ )

       - डा.अनिल भतपहरी
              सहा प्राध्यापक
       शा बृ ल व महाविद्यालय पलारी

Friday, June 14, 2019

जीने का मजा

" जीने का मजा"
  हर किसी को जीने की स्वतंत्रता और जीने की  मजे लेने का नैसर्गिक  अधिकार है ।  इसलिए व्यक्ति समाज और देश सभ्य सुखी व समृद्ध है। जहां ऐसा न हो वह जो हो पर सभ्य कतई  नही ।
      देश की संप्रभूताओं का  असमान वितरण और भौतिक संशाधन का असमान उपभोग भी कही -कही हस्यापद या व्यंग्यार्थ लगते है।शायद इसलिए "अरहर‌ की टट्टी  गुजराती ताला" या "रेशमी कालीन में  में टाट के पैबंद  अशोभनीय होते है जैसे  मुहावरे  गढ़ लिए  गये‌ जो सच जैसा  लगने लगे  है।
               पक्के और  छत वाले घरों में  एसी लगे ऐसी  मनोधारणा को  बदलने होन्गे। और शूट- बूट वाले ही कार और प्लेन में यात्राएं करेन्गे ऐसी मिथकों भ्रमों का रुढताओं को ध्वस्त करने होन्गे। शुक्र है उक्त चित्र में  अग्यात गृह स्वामी एसी लगाकर यह कार्य आरंभ तो किया यह स्वागतेय है। शासन प्रशासन को चाहिए की जरुरत मंदो के लिए इस भीषण गर्मी से निजात देने पंखे कुलर एसी आसान किस्त या अनुदान से उपलब्ध कराने चाहिए। आखिर सुख -सुविधा  किसी की बपौती नही है।और इन्हे अर्जित करना सबके अधिकार छेत्र मे होना चाहिए। अन्यथा यह कैसी बर्बर असभ्य व फूहड़पना‌ रहा  है कि कोई किसी के घर से बड़ा घर न बना सके। किसी के आगे छतरी जूते चप्पल न पहन सके।और तो और घोड़ी पालकी से अपनी  दुल्हन न ला सके।कितनी वर्जनाओं विभीत्साओं और दारुण दु:खो को झेलते अभाव ग्रस्त जन जीवन रहा है। क्या उनके जीवन में उजाले न आए ... या उनके सूखी होने मात्र से ही देश या यहां की समाज की अधोपतन हो जाए या वज्राधात हो जाय!!
   
      खैर अपेछित परिवर्तन होने से अब  जाकर कही कही "  लोगन मन  सउक से झोपड़ी अउ काटेज मं रहे लगे हे प्रकृति के संग ! भलुक अमीरी- गरीबी के खाई साधन अउ सुविधा के विभेद ल पाटा जाय ।नही त मनखे मनखेच ल खाही अउ सरग असन धरती ल नरक कर देही ।
                 नव सांस्कृतिक जागरण का आगाज हो चूका है और प्रग्यावान लोग समानता की बाते हर तरफ करने लगे है। वैसे भी बोधिसत्व सदृश्य फैशन ही सही
  अमीरी से उबे हुए पश्चिम जगत के लोग शौक से गरीबी को अपनाने लगे है,और जीवन का लुत्फ उठा रहे है। नव धनाड्य भारतीयों को उनसे प्रेरणा लेना चाहिए ।फैशन मे फटे -पुराने जींस चलन में है‌।और मोटे -सोटे लोग रुखी- सुखी खाने लगे है ।डायटिंग के नाम पर अल्पाहारी हो रहे है। भले कबख्त मर्सडीज व  फरारी में घूमे । खैर  गरीबी और अभाव में इंटरटेनिक मजा लेने के लिए अनेक एजेंसियां उद्यम कर  मौका क्रियेट भी कर रहे है।जैसे कोई निर्जन द्वीप या जंगल के सेफ जोन में रसद पानी ले  जाकर  लडक़ी एकत्र कर चूल्हे से या पत्थर के तीन टुकडे मे लकडी जला कर खाना बना खा कर महीनो किसी भी कनेक्टीवीटी से  कटकर, यहा तक बिना मोबाइल ,फोन, टीवी -रेडियो, समाचार पत्र के बि‌ना   प्रकृतिस्थ  जीवन जीने लगे है। यह अनोखा पर्यटन पालिसी  के रुप में प्रचलन होने लगा है।
    बहरहाल कुछ लोग  शौक से कैशलेश होकर मगन है।
    मै भी सोचता हू कभी- कभी ऐसे ही  जनजीवन व लोगों से महीनों कटकर किसी सागर तट या पहाड़ जंगल में डेरा डाल लू ।
    पर साहस नही न इतनी लंबी छुट्टी नही .पर हां जब भी गांव जाता हूं  और घूमने निकलता हूं तो पाकेट में बिना पैसा डाले तब कुछ बाल मित्रों का उपहास भी सुनकर आनंदित  होते है (बड़ कंजूस हस भाई ) और जिद करते तब किसी दूकान वाले से उधारी कर शाम या अगले दिन चूका देते है। यह अलग बात है गांव निकासी और ग्राम प्रवेश के टेक्स पटाने की मीठी धमकी बालमित्रों / रिश्तों
..नीम या बबूल के दातुन घीसते  स्नानादि हेतु महानदी  जाना और काली मिट्टी लेप कर या रेत से रगड़ कर -नहाकर वापस तीव्र भूख सहते  आकर  हबर- हबर खाने और तृप्त होने का  सुकून पाते है। सच कहे तो कुछ दिन ही सही गांव जुनवानी जाने और" प्रकृतितस्थ जीवन जीने का  मजा आ जाता है। "हालांकि  गांव में शहर  की सारी सुविधाओं फैशन और पारंपरिक मंद नशा जुआ चालबाजी  रुपी  बिमारी सचर गये है। और पढे लिखे नौकरिहा सहित १०-१५ एकड़ जोतनदार मन एकाद दू एकड़ निकाल तीर तखार के शहर धरे के जोखा लगाय कहते फिरते है कि अब गांव नरक होत हे रहे के मन नई करत हे। 
     अब वाकिय में हम जैसे खोजने  वाले कहां - कैसे सरग ढूंढे?   सुख शांति सुकून तलाशे ?कोई तो गुरुमंतर बतावें!  सूत्र दें... !

    -डा. अनिल भतपहरी

जीने का मजा

Wednesday, June 12, 2019

फ़कत

आपके वास्ते छकड़ी हमरी
        "फ़कत"
खेल रेखाओं का नही
और न तक़दीर का है
भाग्य,भगवान-खुदा
न कोई पीर-फ़कीर का है
ये तो फ़कत आपके चुनाव
और उनकी ज़मीर का है...

बिंदास कहें- डा.अनिल भतपहरी

फकत

आपके वास्ते छकड़ी हमरी
        "फ़कत"
खेल रेखाओं की नही
और न तकदीर की है
भाग्य,भगवान-खुदा
न कोई पीर-फ़कीर की है
ये तो फ़कत आपके चुनाव
और उनकें ज़मीर की है

बिंदास कहें- डा.अनिल भतपहरी

Monday, June 10, 2019

असमिया सतनामी सम्मान समारोह

भीषण छप्पन के अकाल और उसके बाद अनेक छत्तीसगढी परिवार ब्रिटिश काल में एग्रीमेन्ट लेवर यानि कि गिरमिटिया मजदूर के नाम से असम प्रान्त के बीहड जंगल और पर्वतीय छेत्र में स्थित चाय बगान विकसित करने गये और वही न आ सकने की मजबुरी में आबाद हो गये। इन परिवारों की जनसंख्या लगभग १६ लाख हैं। श्री रामेश्वर तेली सांसद हैं। एंव अनेक लोग सम्मानित जनप्रतिनिधी बगान मालिक संपन्न कृषक शासकीय सेवक और व्यवसायी बन गये हैं।
    बगान श्रमिक जिसे बगनियां कहे जाते थे वे छत्तीसगढी मूल के लोग अपनी परिश्रम व लगन से अब बगान से उतर कर मैदानी और बसाहट वाले छेत्रों में आबाद छत्तीसगढी मूल के रुप में सम्मानित असमिया हो गये हैं। सभी वहां ओबीसी वर्ग में सम्मलित हैं। और परस्पर मेलजोल यदाकदा बिना द्वंद के वर वधु के पसंद से अन्तरजातिय विवाह भी प्रचलन में हैं। वहा छत्तीसगढ जैसे जात पात अपेछाकृत कमतर हैं ।तथा भाषा संस्कृति और संरछण  के नाम पर संगठित हैं। यह प्रवासी समुदाय की उदात्य सांझा  संस्कृति  छत्तीसगढ के गांवो में व्याप्त जात पात छुआछूत की नारकीय दशा को प्रभावित कर एक मनव समाज एक भाषाई व संस्कृति वाली शानदार प्रदेश बना सकते हैं। जो संपूर्ण देश को न ई रौशनी दे सकते हैं। और वर्तमान परिदृश्य में यह नितांत आवश्यक भी हैं।
    असम से आये पाच सतनामी पहुना कल गुरुघासीदास सांस्कृतिक भवन में अत्यंत भावविभोर होकर अपने पूर्वजों की पीडा संधर्ष और वहां आबाद होने की दास्तान असमिस उच्चारण मिश्रित प्राचीनतम छत्तीसगढी भाषा जैसे झुंझकुर ,भाटों ,मया महतारी ,संत गुरु बबा , संसो ,  रद्दा ,असीस जैसे छत्तीसगढ में विलुप्त प्रायः शब्दों का अनुप्रयोग वहां से आए युवा पहुना कहे तो मुझ भासा और संस्कृति प्रेमी को बेहद अल्हादित किया।मंत्रमुग्ध उन सभी के प्रेरक बातों को श्रवण करते रहा।
    प्रगतिशील छग सतनामी समाज द्वारा शहीद स्मारक भवन में ११०० पंथी नर्तको साहित्यकारों के सम्मान के अवसर  २०१७ पर मुख्यमंत्री द्वारा उद्धोषित कि छत्तीसगढी संस्कृति की संरछण हेतु पहल की जाएगी उनके  आधार पर   संस्कृति विभाग के अशोक तिवारी जी की कठिन परिश्रम से सांस्कृतिक आदान प्रदान का सिलसिला आरम्भ हुआ। यह सुखद संयोग हैं कि असम मे निवासरत  १६ लाख छत्तीसगढी भाषियों में ३ लाख से अधिक सतनामी परिवार है। और सभी वहां समरस हैं। हम सौभाग्यशाली हैं कि मुख्यमंत्री जी  के धोषणा और उनके कुछ माह  बाद असम से सर्व समाज के प्रतिनिधि मंडल ३० सदस्यों का प्रथम आगमन१७ में  और  ५ अप्रेल १८ को वहां से ५ सतनामियो के आगमन उनकी आपबीति को श्रवण व  वार्तालाप करने  का अवसर मिला।
     गुरुअगमदास मिनीमाता के उपरान्त वर्तमान गुरुवंशज गुरु सतखोजनदास साहेब (उनकी धर्मपत्नी गुरुमाता असम से आई हुई हैं।)  के गरिमामय उपस्थिति व प्रबोधन आशीष वचनों से यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
    आगे यह सांस्कृतिक मेलजोल और आवागमन सिलसिला चल पडेगा और सुदुर २ हाजार कि मी दुर में आत्मीय जनो से छत्तीसगढी जनता का सीधा संपर्क होगा।
प्रथम सांसद गुरुमाता मिनीमाता ही दोनो प्रांतो को जोडने वाली कडी है। अत एव उनके नाम पर रायपुर से डिब्रू गढ   तक ३ करोड जनता को जोडने रेल मंत्रालय भारत सरकार मिनीमाता एक्सप्रेस चलाया जाय।व उनकी जन्म स्थान को तीर्थ स्थल के रुप में विकसित किया।
        कार्यक्रम में प्रवासी पहुना मदन जांगडे ,हिरामन सतनामी बिमल सतनामी मिलन सतनामी  ,.ज्युगेश्वर सतनामी.सहित के पी खांडे   डा जे आर सोनी एल एल कोशले पी आर गहिने सुन्दरलाल लहरे सुन्दर जोगी ऊषा गेन्दले उमा भतपहरी शकुन्तला डेहरे  मीना बंजारे डा करुणा कुर्रे ,एम आर. बधमार ओगरे साहब चेतन चंदेल डा अनिल भतपहरी सहित अनेक गणमान्य लोगों की गरिमामय उपस्थिति रही।
                  जय छत्तीसगढ जय सतनाम