।।सीख ।।
हदरते मन को दें दिलाशा ।
मिलेगी मंजिल टूटे न आशा ।।
लछ्य एक नही न राहें है एक।
पल- पल परिवर्तित राह अनेक ।।
हौंसला बस चलने का हो हरदम।
विफलताओं से कभी न हारे हम।।
करे चयन उसे जो रुचिकर हो आसान।
रहे उनपर भले थोड़ी -बहुत कमान।।
करते निरंतर अभ्यास लगे रहे सो जाने ।
पुरखों की यह सीख मन वचन कर्म से माने ।।
-डा. अनिल भतपहरी
चित्र- बुद्ध पूर्णिमा ललित शर्मा जी के वाल से
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