Wednesday, May 29, 2019

लीम चंउरा

"लीम चंउरा के पथरा"

लीम चंउरा के पथरा अबड़ चिक्कन
ओ तो जानत हवय सबके अन्तरमन ....

पंच अउ पटइल बइठ नियाव करिस
ये दे सुन्ता -सुम्मत के  नवा रद्दा सिरजिस .....

उधो अउ माधो के भाग खुलिस
सरकारी योजना म साहेब दुनो के नाव लिखिस ...

बिहने ले सांझ होथे गजब तमासा
कहुं भौंरा बाटी बिल्लस तास तिरी पासा...

मंगलू बुधयारिन के भांवर परिस
इही मेर दुनो झन के पिरित सिरजिस...

अनगंइहा मन आके इंहचे थिराथे
अपन सगा सोदर के पता ठिकाना पाथे ....

रतिहा पुनुराम दसना डिसाथे
घर के कलर कइय्या ल बाहिर फूरसुदहा सोथे ...

गांव भर के मनखे ल कोरा मं बिठाथे
सबके करु कसा ल अंतस म पचाथे ...

चढ़ावव चंदन अउ बुकव बंदन...
लीम चंउरा के पथरा अबड़ चिक्कन ...
  
-डा.अनिल भतपहरी
     अध्यक्छ
   राजभासा छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति
चित्र - ऐतिहासिक ग्राम जुनवानी के सुप्रसिद्ध लीम चउरा  युवा सरपंच सुनील भतपहरी द्वारा भव्यतम निर्माण जो परिछेत्र में दर्शनीय है।

सुमंगल प्रथाएं

आपके वास्ते छकड़ी हमरी
      ।। सुमंगल प्रथाएं।।

रास्ते में होते ही  है कई मोड़
      
चलते जाना है पदचिन्ह छोड़

ताकि न भटके  कोई पथिक

सहजता से उन्हें मिले मंजिल

हो चाह  और हो सद्कामनाएं

तभी चलती रहेगी  सुमंगल प्रथाएं
 
बिंदास कहें डा. अनिल भतपहरी

सुमंगल प्रथाएं

आपके वास्ते छकड़ी हमरी
      ।। सुमंगल प्रथाएं।।

रास्ते में होते ही  है कई मोड़
      
चलते जाना है पदचिन्ह छोड़

ताकि न भटके  कोई पथिक

सहजता से उन्हें मिले मंजिल

हो चाह  और हो सद्कामनाएं

तभी चलती रहेगी  सुमंगल प्रथाएं
 
बिंदास कहें डा. अनिल भतपहरी

Monday, May 27, 2019

सतनाम क्या ईश्वर है?

क्या सतनाम ईश्वर हैं ?
सत्नाम प्रसाद संभु अबिनासी।साजु अमंगल मंगल रासी।
सुक सनकादि सिद्धमुनि जोगी।सत्नाम प्रसाद ब्रम्हसुख भोगी।।
तुलसी कृत यह चौपाई का आरंभ नाम से हैं - यथा नाम प्रसाद संभु अबिनासी .... हमें लगता हैं कि यह केवल नाम नही होगा। यदि नाम हैं तो वह क्या और किसकी नाम होन्गे?
सिव किस नाम का जाप किए ? और पार्वती को अमर कथा सुनाए वह किस नाम से आरंभ हुआ होगा? प्रायः अधिकतर विद्वान  उसे ( शिव को )  सत्य स्वरुप कहते यानि की वह सत्य के अराधक थे ।शैव मत के नाथ और सतनाम संस्कृति में सिद्ध सहजयोगियो ने  सतपुरुष या  निरंजन या काल निरंजन के आराधक बताते हैं ।यह बात तुलसी के पूर्व से ही प्रचलन में रहा और वे इस तथ्य या सतनाम  से भलीभांति परिचित भी रहे। फिर सीधा सीधा रामचरितमानस की इस चौपाई में सतनाम क्यों नहीं लिख सके? या लिखना मुनासिब नहीं समझा? यह जरुर विचारणीय है।
   हमें लगता हैं कि यह दो कारणो से हुआ होगा।पहला कि सतनाम के आराधक निर्गुण मत वाले सिद्ध नाथ  संत कवि उनके परवर्ती बुद्ध  सहरपा गोरखनाथ मत्सेन्द्रनाथ कबीर रैदास इत्यादि  थे और वे  सतनाम के साधक और प्रचारक थे उनमे अधिकतर अवतार वाद  वेद शास्त्र आदि के प्रतिरोधी थे।अत: वे सीधा सीधा उनके द्वारा व्यहृत  सतनाम का उल्लेख नहीं किया।दूसरा कि सत्नाम प्रसाद..लिखते तो चौपाई की मात्रा १६ से १८ हो जाते और काव्य शिल्प से बाहर हो जाते ।
    अत: वे नाम लिखकर काम चलाये।परन्तु व्याख्या करने पर यह नाम रामनाम तो हो ही नही सकते क्योंकि तब शिव कैसे रामनाम जपते?जबकि राम का जन्म नही हुआ था। हरिनाम भी नही क्योंकि यह उनके भाई विष्णु के लिए प्रयुक्त होते।वे सतनाम के उपासक थे।
   बाहरहाल यह नाम केवल सतनाम ही हैं जिसके आराधक बडे-बडे संत गुरु महात्मा सिद्ध- मुनी योगी  तपस्वी थे और उनकी साधना से वे समर्थवान हुए। सतनाम की राह पर चलने से साधक को एक अप्रतिम सुखानुभूति होते हैं। उसे तुलसी ने ब्रह्मसुख कहे हैं। मतलब सतनाम ब्रम्हसुख प्रदान करने वाले कारक हैं ।इस तरह वे नाम या सतनाम  को सीधा सीधा ईश्वरीय तत्व से जोडे।  जैसा कि संतो गुरुओ सिद्धो नाथो ने सतनाम को ही ईश्वर खुदा करतार मालिक सतपुरुष  स्वरुप में मानकर ही सिद्धियाँ प्राप्त की  अपनी बाते जनमानस के बीच लाए।
सत्य ही ईश्वर हैं आजकल यह श्लोगन बहुत ही लोकप्रिय हो गये हैं।
  इस तरह हम देखते है कि प्राचीन काल से ही सतनाम सत्यनाम सचुनाम सच्चनाम सतिनाम सत्तनाम शतनाम की सुमिरन जाप और साधना पद्धतियां रही है।
पर क्या सतनाम ईश्वर हैं सवाल यह हैं? ...यदि नही तब वह क्या है?और उनकी साधनाए प्रचार प्रसार बुद्ध से लेकर गुरु घासी बाबा तक किसलिए आम जनमानस के बीच किए गये... और वे किसे प्राप्त करने  पथ प्रदर्शक हुए।सतनाम की प्रसाद या कृपा से  ब्रम्हसुख मिलते हैं,जिसे परमानंद मानते हैं।मतलब ब्रम्ह या ईश्वर से अप्रतिम व श्रेष्ठ है।
     सतनाम
डा. अनिल भतपहरी
हंसा अकेला सतनाम - संकीर्तन जुनवानी

लीम चउरा

सच में

"सच में"

सच में आजकल
आजकल सच में
झूठ को सच बनाकर
प्रस्तुत किए जाते हैं
और सच को
झूठ बनाने के लिए
बिना जिक्र किए
कोई फिक्र किए
अवहेलना पूर्वक
तिरस्कृत करके
बहिष्कृत कर दिए जाते हैं
फिर  सत्य
जमींदोज हो जाते हैं
कोई नहीं
जो करे उसे पुनर्स्थापित 
क्योकि
आजकल मिथकों में ही
सब कुछ हैं संस्थापित
सच में यहां
मिथक ही हैं महिमामंडित
और सच हैं अभिशापित फि

र शैन: शैन: जेहन से 

लोगों के विस्मृत कर दिये जाते हैं 

डा. अनिल भतपहरी

Tuesday, May 21, 2019

सीख

।।सीख ।।
हदरते मन को दें दिलाशा ।
मिलेगी मंजिल टूटे न आशा ।।
लछ्य एक नही न राहें है एक।
पल- पल परिवर्तित राह अनेक ।।
हौंसला बस चलने का हो हरदम।
विफलताओं से कभी न हारे हम।।
करे चयन उसे जो रुचिकर हो आसान।
रहे उनपर भले थोड़ी -बहुत कमान।।
करते निरंतर अभ्यास लगे रहे सो जाने ।
पुरखों की यह सीख मन वचन कर्म से माने ।।
        -डा. अनिल भतपहरी
चित्र- बुद्ध पूर्णिमा ललित शर्मा जी के वाल से

Monday, May 20, 2019

ऐतिहासिक ग्राम जुनवानी के भतपहरी वंश

" ऐतिहासिक ग्राम जुनवानी के भतपहरी वंश और उनके सामाजिक दायित्व "

           आजादी के पूर्व यहां तक गुरुघासीदास बाबा जी के संग मिलकर समाज सेवा में भतपहरी परिवार अग्रणी रहा है। एक पिता के चार बेटे  ललवा ,नोहरा, भारत और  बंशी नामक चार भाईयों के परिवार से गुलजार जुनवानी के यह चार भाई ही कुलदेवता की तरह यहां पूज्यनीय  है। इनके नाम से हुमन -धूपन देकर विध्नबाधाओं से मुक्ति की प्रार्थाना की जाती है।
      सतनामी राज्य की नव नियुक्त राजा  गुरुबालकदास के सिपहसलार व  सच्चा सिपाही यहां के समकालीन युवक रहे। फलस्वरुप उनके और उनके मित्र राजा वीर नरायणसिंह का आगमन हुआ है।
       स्वतंत्रता आन्दोलन में भी यहा के लोग सम्मलित रहे । प्यारी बबा को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पेंशन मिलते रहा थे।
    मंत्री नकूल ढ़ीढ़ी जी उनके बहनोई महंत नंदूनारायण भतपहरी (हमारे छोटे दादाजी ) के अभियान में  पूरा गांव  साथ रहा .. फलस्वरुप यहां की प्रभाव आसपास पड़ा ।
ब्रीटिश जमाने से साछर आज इस ऐतिहासिक ग्राम की अपनी विशिष्टता है। यहां की प्रतिभावान लोगों में छत्तीसगढ़ के अंबेडकर के नाम से ख्याति लब्ध परिछेत्र का प्रथम हाई कोर्ट एड मनोहरलाल भतपहरी आर पी आई के रायपुर लोकसभा के  उम्मीदार  के  रुप बड़ा लीडर रहा है। साहित्यिक व सांस्कृतिक प्रतिभा सम्पन्न बहुमुखी प्रतिभाशाली  प्रप्राचार्य सुकालदास भतपहरी थे। व बिहारी जांगडे विकास अधिकारी  जोहन किसन पृथक छत्तीसगढ़ आन्दोलन के जेलयात्री नकूल ढीढी के साथ  चंद्रबलि भतपहरी व उनके मित्र थे।  फत्ते, मनराखन  ,चैतू  मनी राधे जमुना प्रेमदास जनप्रतिनिधी    शासन - प्रशासन में प्रभावशाली पदों पर रहे । मं प्र अनु जाति आयोग पूर्व  अध्यछ एड  भुवललाल भतपहरी स्वस्थ व  सक्रिय है।
       महज एक परिवार और उनके कुछ बेटी  दमाद परिवार  से आबाद  छोटे से गांव में अन्यत्र शोषण दमन से मुक्त समानता और एकता  का बेमिशाल आदर्श ग्राम है  जिनकी ख्याति दूर दूर तक है।जहां  सेवानिवृत और वर्तमान में ४० -४५ से ऊपर अधिकारी कर्मचारी  डा  प्रोफेसर  शिक्छक वकील  जज इंजी  तथा अपनी  निष्ठायुक्त जीवट कार्यछमताएं/ नेतृत्व से शासन-प्रशासन में  छाप छोड़ रहे है। यहां प्रदेश के सभी बडे राजनेताओं का आगमन जयंती समारोह में   होते रहा है।
       पत्थर खदान और कृषि  वहां  कठोर परिश्रम का प्रतिफल  संधर्ष पूर्ण पुरुषार्थ भरा जीवन सफलता अर्जित करने के प्रेरक तत्व रहा है। इसी बहाने थोड़ी सी पारिवारिक पृष्ठभूमि बताकर हमें हर बार की तरह गर्वानुभूति होते है कि इस वंश के हम वारिश है।
बहरहाल पूर्वजों  गुरुबाबा एंव समाज का  आशीष मिलते रहे ताकि समाज सापेक्छ  बेहतरीन कार्य कर अपने जीवन को ये नव समाज सेविकाएं  सफल कर सके...परिवार के उत्तराधिकारी  होने के नाते हमारा भी समर्थन व अपेछित सहयोग है।
       -डा. अनिल भतपहरी

Thursday, May 9, 2019

अब का होही

लघु-कथा

"अब का होही"

     गाँव के छोटे -बड़े  सब्बों किसान -बनिहार मन के  घर- दुवार, बारी -बखरी,बियारा- सियारा ( खेत- खलिहान) के चउक- चाकर रक्बा ल देख परप्रान्तिक मन जर भुन जथे! भले घर खदर -खपरा के छानही आय फेर लगथे कि यहू झन रहय। उनमन ल परपरी घर ले हे ।रकम- रकम के उदिम करत हे इनकर भुंइय्या नगाय के।  इकर अनाप -सनाप संउक चढ़ा के भले ओमन  बिसा लेवय । जुआ -मंद ,नाचा -पेखन, दान -दछिणा के ओड़हर करके या लाटरी रकम दुगुना करे के लालच ये बीमा -सीमा चिटफड कंपनी देखाथे। जबर  जाल फैलाके उखर  ठग फुसारी करके छत्तीसगढ़िया मन लूटत हवे।ओ दिन के बात आय समारु बतात रहिस-
    एक झन नवा  बड़े  बंगला बनाय  परप्रान्तिक ह जोन उकरे जगा ल बिसाके बसे रहिस, तेने हर कहे लगिस-  लाखों रुपये लगाकर यह जमीन खरीदे और उधर देखे गाँव -गाँव मे अतिक्रमण है। और तो और  ये लोग शहरों मे झोपड़ी बनाकर बेजा कब्जा कर रखे है। अतिक्रमण करना क्या इनके जन्मसिद्ध अधिकार है? शासन-प्रशासन नाम की चीज है भला? गाँवो मे इनके पास कितनी जमीने है ये लोग एकड़  मे नापते है । एक हमलोग है जिनके पास फीट मे जमीन है।वह भी जी तोड़ मेहनत कर। बिना सांस टोरे कहिते गिस...
    हुकारु देत समारु कहिस - "संगी‌ पुरखौती जमीन जायदाद आय खेती बारी करके जीयत खात हवन।"
भले ५- १० एकड़ हे फेर बपुरामन न मन के खा सके न पहिन ओढ़ सके।सरग भरोसा जीयत हे।कोनो -कोनो ह भागमानी हे जेकर नहर -नाली हवे। तभो ले  कर्जा म बुड़े पातर -पनियर ,अम्मट -बिच्छल समे नाहकत हे।कत्कोन अइसे हे जोन गाय -गरु बुढ़ात दाई -ददा अउ ये माटी के मोह छाड कहु कमाय- खाय तको नी जा सके।भूमिहीन बनिहार हाथ -गोड़ के भरोसा कतकोन ठउर- ठीहा किन्दर आथे! फेर ये किसान भाईमन त अपन तहसील जिला तक नइ देख सके। बैमारी सैमारी म भले अस्पताल म भरती होय शहर पहर देखे संउक पुरा होथय।
     लघु /सीमान्त ,किसान मन के मरना हे न मरे न मुटाय।उन्खर अनदेखनई झन करो।उकर पुरखौती जिनिस म नजर -ढीठ त झन लगाव।
   दबकावत ओहर कहिस-  अरे ऐसे कैसे चलेगा ? सब नपेन्गे सभी का अट्टे- पट्टे बनेन्गे !और तमाम अतिक्रमण हटेन्गे !जो है उनपर टैक्स लगेन्गे! आखिर नियम- कानून जैसे कोई चीज भी इस देश में ?
   बख खाय सुनत समारु  कहे लगिस-  "बात तो सोरा आना सच हवय  कि  नियम कानून ल त  सब ल समान मानना चाही? ओ सबो बर हे,फेर पुरखौती ...
  अरे  का पुरखौती ? क्या कोई बिना पुरखे के है? सबके अपने पूर्वज है और सबको उन पर नाज है। अब तो समान कानून- व्यवस्था पर नाज होना चाही।
   समारु के बक्का नइ फुटिस का गोठियातिस ।ओकर बोली के का चिबोली देतीस ।कठुवाय परे हे ..भंजावत .हे मनेमन . ..अब का होही?
     डा. अनिल भतपहरी, ९६१७७७७५१४
      सी - ११ ऊंजियार -सदन  आदर्श नगर सेंट जोसेफ स्कूल के पास अमलीडीह रायपुर छ

Wednesday, May 8, 2019

"वन और वन्यप्राणी के विनाश का कारक सगौन रोपण "

"वन और वन्यप्राणी के विनाश का कारक सगौन रोपण "

       सगौन वृक्षों में सोना हैं और मानव सोना के लिए कुछ भी कर सकता हैं। हालांकि सोना की अधिकाई से  ही लोग बौराते आ रहे हैं। पर सोना के लिए दिवानगी को विकास का पैमाना मान लिए गये हैं। जिनके पास यह अधिक वही सफल। स्वर्ण भंडारण से व्यक्ति समाज और देश समृद्ध व विकसित समझे जाते है।वर्तमान में वन और वन्यप्राणीयों की विलुप्ति का कारक यही सोना रुपी सगौन हैं। जिनके अंधाधुंध रोपण के कारण विभिन्न प्रजातियों के स्थानीय  पेड़ -पौधों का बलिदान दिया गया।
   सागवान या सगौन के रोपण कार्य अंग्रेज काल में हो गये थे ।प्राकृतिक रुप से ऊपजे स्थानीय पेड़- पौधो को‌ इनके लिए शहादत देने पड़े तब जाकर यह यत्नपूर्वक उगाए गये।आज भी छोटे जंगल उजाडे जाते हैं। और उनके बाद इसे रोपे जाते हैं ।इनके नीचे घांस तक नहीं ऊगते फलस्वरूप घांस चरने वाले शाकाहारी जानवर को भोजन नहीं मिले और वे सघन वन की ओर या आबादी की ओर प्रस्थान किए फलस्वरूप हिंसक पशु और मानव के शिकार हो गये। सगौन लग जाने से तेंदू चार महुए का कोआ वानर के भोजन थे विलुप्त हो गये वानर वन छोड़ कर गांव कस्बा शहर में डेरे डाल लिए और बाडी खेत को उजाड़ने लगे।वनारों की आतंक से कृषक दलहन तिलहन व सब्जियां उगाना बंद कर दिए।
     फलदार पौधे एंव वृक्ष के उजड़ने से वानर आदि  और  घांस भूमि पर सगौन रोपण से हिरन मृग खरगोश नील गाय सांभर आदि आबादी छेत्र में आने से अवैध शिकार हो गये। वन में शाकाहारी पशुओं की कमी से शेर -चीते बाध भालू  आदि मांसाहारी जीव भुखे मरने लगे।कुल मिलाकर ‌‌ एक सगौन  पुरा "वन्य जीवन चक्र "को बर्बाद कर दिया बावजूद यह आम जनता के खरीद व पहुँच से कोसों दूर हैं।
   वन्य प्राणियों से मूक्त वन्य प्रांतर भूमाफियाओं के अधीन हो गये।आयातित पर प्रांतिक मालगुजारों मंडल गौटियायों जैसे भू माफिया के अधीन मानव प्रजाति व   वन्य भूमि होते चले गये। जिनकी लाठी उनकी भैंस सदृश भू कब्जा होते गये ।फलस्वरुप कुछ चालक व  ताकतवर लोग बड़े रक्बा धारी भूस्वामी बनते गये।सजह सरल लोग आज भी कम में गुजारा करते वनोपज पर आश्रित हैं। आज वही गरीब हैं और आवश्यक चीजों से वंचित भी। 
      वन के असल संरक्षक  शेर बाघ भालू वनभैसों की विलुप्ति से वनों में मनुष्यों का भय मुक्त आम दरफ्त हो गये  अंधाधुंध कटाई से सघन वन परिक्षेत्र सिमटते गये । उत्खनन और औद्योगीकरण के नाम पर भी  जैव विविधता से युक्त जंगल उजाड़ दिए गये।शहर कस्बा बसाए और क्रांक्रिट जंगल उगने लगे। सर्प पक्षी व अनेक तरह जीव जन्तु धीरे धीरे विलुप्त हो रहे हैं। और मानव आबादी अनवरत बढ़ते जा रहे हैं।
सघन वन में स्वच्छंद विचरण करने वाले  हाथी मैदानी  गांव कस्बो में विचरण करने लगे हैं। इस तरह वर्तमान स्थिति भयावह होते जा रहे हैं ।वन घटने से वर्षा थमने लगी हमारी सदानीरा नदियां व जलस्त्रोत सुखने लगी ।जलस्तर नीचे चले गये। जीवन के आवश्यक घटक जल आज इस महादेश में बिकने लगे जहां प्यासे को पानी निशुल्क देना पुण्य का काम था ।आज श्रेष्ठ व्यवसाय बन चुके हैं।
इन्हें देख किशोर वय में लिखी हमारी यह कविता की प्रासंगिकता आज प्रबलतम रुप से जेहन में कौंधने लगे -
ऐसा लगता हैं कि २१ सदी में
हम फिर भिल्ल होन्गे !
आधुनिकता से चमक दमक रहे शहर
ईंट क्रांक्रिट का कट कट जंगल होन्गे!

      तेजी से पतन की ओर बढते मानव समुदाय जिसे वह विकास कह रहे हैं। उनके समक्ष जीवन मूल्यों और सांस्कृतिक अवयवों की कमियां होगी। फलस्वरूप संसाधनों से लैश व्यक्ति आनंद व सुख से वंचित रहेन्गे को पुनश्च  अपनी जड़ो की ओर लौटने होन्गे। उपलब्धियों की आसमान में उड़ते थक हार कर जमीन में आने ही होन्गे ।इनके लिए बेहतर उपाय हमें करने पड़ेन्गे क्योकि -

उड़त घुमत आगास ले भुंइय्या मं आयेच ल परथे।
दु:ख पीरा जनाथे त दाई ददा ल सोरियाच ल परथे।।

   जो ऐसा नहीं करेगा वह कटी पतंग की तरह हैं। जिनकी कोई ठौंर ठिकाना नहीं । जिनकी ठौर- ठिकाना नहीं उनकी कोई अस्मिताए व प्राथमिकताएं नहीं । गीत संगीत कला संस्कृति नहीं मन रंजित करती कोई कृति नहीं  बिन इनके सब शून्य हैं। कितनी धन वैभव संपदा व्यर्थ हैं।
     फिर ऐसी अजीबोगरीब  स्थिति भी आएगी -
बेफिक्र राजा को भूख नहीं प्यास नहीं
उनके कोई पुण्य नहीं तो कोई पाप नहीं
भूख न लगने चाह न जगने  और न जीने और न मरने की अजीब बिमारियों से धिरी मनुष्य अपने कुकृत्यों के कारण हैरान व व्याकूल खुशी व शांति तलाशने अश्वस्थामा की भांति  विकास रुपी मृग मरीचिका की अंधी दौड़ में भटकेन्गे ।
      इसलिए हमें अपनी कल्पित  दीवाली में कृत्रिम  ऊजाले लाने  लिखे लाखों दीप जलाने की आवश्यकता नहीं अपितु  मन की एक दीप को प्रज्ज्वलित करना चाहिए।  ताकि सर्वत्र उजालें हो -
कटय नहीं अंधियार चाहे लाख दीया ल बार
होही जग-जग ले अंजोर मन के एक दीया ल बार
   इस तरह जब मानव अपने भीतर से  रौशन होन्गे तब कही जाकर सुखद परिस्थितियों का निर्माण अपने इर्द गिर्द कर पाएन्गे फिर
       "हम चेतन चेतावन जग ल काबर करन- सहन अत्याचार "  की उक्ति को आंचल में गठियाने ही नहीं अपने जीवन में उतारने होन्गे।और एकतरफा व त्वरित  विकास के जगह सर्वांगीण व  संतुलित विकास  को अपनाने होन्गे। सगौन रोपण करे पर इर्दगिर्द स्थानीय पेड़ पौधे रहने दे  या नही है तो उनका  भी रोपण ‌करे ताकि जीव जन्तुओं को  भोजन उपलब्ध हो और वही वह स्वच्छंद विचरण करे।
       अन्यथा सिन्धु सभ्यता का अंत हमारे समक्ष हैं। इस पर  आधारित "मोहनजोदड़ो " फिल्म में  व्यापारी प्रधान की "सोन " की लालसा कैसी तांडव लाकर विनाश रचती हैं। नमुनार्थ और उदाहरणार्थ ऋतिक रौशन अभिनीत उक्त फिल्म देखी जा सकती हैं। उनसे प्रेरणा ली जा सकती हैं।

     डा. अनिल भतपहरी

Monday, May 6, 2019

नमामि माटी पुत्र बस्तर

नमामि‌ माटी‌ पुत्र बस्तर

बस्तर के काष्ठ शिल्पी
के स्पर्श से बोलती 
ये बेजान लकड़ी
सागौन खम्हार
की रेशे से फूटती
काव्य निर्झरणी
पर वे मजदूर
हैं बेचारे...
रोजी रोटी के लिए
खाते फटकार
तरसते सुनने 
कोई कहे
भूल से कलाकार
तो भूल सभी संताप
त्वरित लग जाते
तराशने काष्ठाकार
खाकर मड़िया की भात
फूड़हर की जड़ में
उकेर दे गणेश
या बना दे बेलबुटे
चित्र सविशेष
बाजार या वन से
घर लौटती वनबाला की
अल्हड़ सौन्दर्य
तीर कमान युक्त माड़िया
लटकाएं काधें पर कुल्हाड़ियां 
रचते दृश्य लगाए घात
समझाते आखेट का मर्म 
निकला है अभी वन से बाहर
अपनी समझ से रचता संसार
उनके कला पर सम्मोहित शहर
मालामाल होते सेठ-साहूकार 
रत अपने प्रिय कर्म पर
होकर निश्चिंत  बेखबर
नमामि माटी पुत्र बस्तर
  -डा. अनिल भतपहरी

Saturday, May 4, 2019

भारतीय समाज की वर्तमान अवस्था

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में औद्योगिकी करण से आए आर्थिक क्रांति और उनसे संयुक्त परिवार में आते बिखराव तथा कामकाज में लैंगिक असमानताएं की टूटन से  विकसित स्वच्छंद व  तेज रफ्तार जिन्दगी । नई पीढ़ी  व कामकाजी लोगो के लिए  
आने जाने के लिए तेज रफ्तार व्हीकल हो चौक चराहे पर  एटीम लगा हो  हाथ में मोबाइल और दुनिया से कनेक्टीविटी हो , इ मेल हवाट्साप और फेशबुक जैसी त्वरित सुविधाएं हो ।तब धैर्य किस चिड़िया का नाम हैं। बटन दबाव और बल्फ जले तो ठीक अन्यथा रिफ्लेस करो नया खरीदो।
      यह जामाना आ रहा है।
   कपडे  की तरह  लाइफ पाटनर बदलने का दौर हैं। जो ऐसा नहीं करेगा वह अनटरियर होन्गे ।उन्हे मानसिक रुप से पिछड़े और पुरातन पंथी समझे जाएन्गे।
    आजकल पानी नहीं एक्वा और बीयर पी रहे हैं।  विदेशियों से नव धनाड्यों  तक फिर वहां से मध्यम. वर्गो के  लाइफ स्टाइल में धीरे धीरे यह सब होने लगा है।
    यह सच है या गलत इनके पचड़े में न पड़ो बल्कि अपनी जीवन को जो एक बार मिला है। उसे बेहतर  जीयों ।यह नये अंदाज का दर्शन हैं।
       बड़े- बुजुर्ग दरवाजे में लटके ताले की तरह हो गये हैं। उनके बोल -बरजना सुहावन नहीं बल्कि नजर अंदाजन हो गये।उन्हें दवाई की पन्नी की जगह डाट और अधिक हुआ तो ओल्ड हाउस भेजने की धौंक से बेचारों की  कलेजे मुँह में आ रहे हैं। फलस्वरूप जो है सो चलने दे की स्थिति निर्मित होने लगे हैं। शाम की भोजन भी  अब किचन में भी यदा -कदा बनते हैं। रोज बाई बर्तन माजेंगी तो वे टिक नहीं पाएगी सो हप्ता में ३-४ दिन रेस्टोंरेंट से खाना और बुजुर्गो के लिए पैकिंग में आने लगे है या वे ही चावल दाल बनाकर आचार से खा लेते है।फिर स्वीजी , जमाटो एस के एफ जैसे घर पहुँच एंजेसी हाथ मुंह -धोकर डायनिंग टेबल में बैठने तक पहुँचा देन्गे। फलस्वरूप होटल रेस्त्रां पान ठेले टाइप गली कुंचे पर ऊग आए हैं। और इसी तरह ब्युटी पार्लर स्पा सेंटर और जिमों की बाहर हैं।
    भारतीय समाज के नगरीय मध्यमवर्गीय परिवार  में व्याप्त  ऐसी परिस्थितियों के ऊपर विमर्श करना तथा इन पर  प्रेरणीय सार्थक लेखन की आज सर्वाधिक प्रासंगिकता हैं। परन्तु इन सबसे बेखबर लोग सत्ता पद प्रभाव को अर्जित कर इसी कल्पित सुख की संधान में लगे हुए हैं। हमारे विचारक और मार्गदर्शक भी इस महारास में निमग्न दिखाई पड़ते हैं।
    किशोर अवस्था में हमने महानगरीय जीवन को देख  एक कविता लिखे थे -

यह नगर जो आधुनिकता से चमक दमक रहा है ईंट- कांक्रीट का कट कट जंगल होन्गे।
इक्कीसवीं सदी में शुटेट-बुटेट हम फिर आदिम  भिल्ल होन्गे ।
 
जो अवचेतन मन  में वह भाव रहे आज अपनी शहर में वह चीजें होते देख अपनी सच्ची  भविष्यवाणी के लिए हम मित्रों के मध्य  नास्त्रेदसम कहलाने लगे हैं।
    बहरहाल इन पर गहिर गुनान विद्वानों में होना चाहिए। हम अब भी धर्म जाति संप्रदाय में उलझे और अनेक तरह के विचार धाराओं में बहते अपने इर्दगिर्द मानवीय प्रवृत्तियों में  होते   बदलाव को नजर अंदाज किए हुए एक दूसरे को कोसने में, बड़े दिखने व होने की ऐब में हैं।स्वयं का  घर - परिवार बिखर रहे हैं पर  दूसरे की आंगन और न दिखने वाले रहस्यमय कमरें को झांक रहे हैं। चाहे वह कालोनियों के घर हो या मुहल्ले की या कबुतर खाने फैल्ट्स ही क्यों न हो?

Friday, May 3, 2019

सहोद्रा माता झांपी दर्शन मेला डूम्हा

[5/2, 23:14] Dr anilbhatpahari: सहोद्रा माता की झांपी दर्शन मेला डुम्हा भंडारपुरी
                  २१ मार्च २०१९

   गुरुघासीदास की सुपुत्री सहोद्रामाता की झांपी जो (उनके गृहग्राम कुटेला बाद मे डूम्हा मे )उनके परिजन दीवान परिवार के पास संरछित है। उसमे गुरु घासीदास द्वारा व्यवहृत की ग ई सामाग्री संचित है जिसमे चरणपादुका , कंठी और सोटा सम्मलित है।ध्यान दे उनमे जनेऊ आदि नही है। उसे प्रत्येक वर्ष होली के दिन विधिवत पूजा अर्चना कर सफेद वस्त्र से बांधकर पलटे जाते है। जैसे गद्दी व नाडियल पलटते है।
      इसे देखने दूर दूर से कुछ विशिष्ट श्रद्धालू आते है।खासकर बोडसरा परिछेत्र जो सहोद्रामाता की ससुराल परिछेत्र है ,उधर के लोग अधिकतर आते है।
        आने वाला समय मे डुम्हा ग्राम मेले  के रुप मे परिणित हो सकते है ,जहां बडी संख्या मे लोग बाबा जी की  उक्त पवित्र अवशेष के दर्शनार्थ आयेन्गे।
            हमारी तो यह दि‌ली चाह है कि डुम्हा मे गद्दी सोटा और कंठी माला के लिए भव्य स्मारक बने और दीवान परिवार उनके संरछक सेवादार रहे।
    साथ ही साथ गुरु बाबा घासी दास द्वारा  सतनाम धर्म प्रचार हेतु  लगाए गये ९ रावटी स्थल - चिर ई पहर ,दंतेवाडा , कांकेर ,पानाबरस , डोंगरगढ ,भंवरदाह ,भोरमदेव ,रतनपुर और दल्हा पहाड मे भी स्मारक बने एंव कंठी माला के एक एक मनके को रजत या स्वर्ण मंजुषा मे रखकर स्थापित व  संरछित करे।
  यह धार्मिक योजना बडी ही महत्वाकांछी योजना है। इनके लिए समाज के सभी वर्ग खासकर गुरु परिवार दीवान परिवार साधु संत महंत भंडारी साटीदार अधिकारी कर्मचारी गण से प्रतिनिधी मंडल बनावे एंव उक्त निर्माण एंव संबंधित जगहो के विकास व वहां मेले संगत पंगत अंगत की सतनामी सांस्कृतिक अनुष्ठान आरंभ करावे।

तब जाकर सतनाम धर्म के मार्ग प्रशस्त होन्गे।
    धर्म और धार्मिक आयोजन ही जनमानस मे सांस्कृति एकता स्थापित कर सकते है।और परस्पर मेलजोल से संगठन और संगठन से ही शक्ति ।शक्ति से हस्ती और हस्ती से युक्ति युक्ति से मुक्ति......!.
धार्मिक आयोजन ही मुक्ति के प्रथम सोपान है। दुर्भाग्यवश समाज मे सिवाय जंयती और मेले के अतिरिक्त कुछ हुआ ही नही न ढंग से कुछ हो पा रहे है...... इस दिशा मे प्रग्यावानों को गंभीरता पूर्वक विचार विमर्श करना चाहिए ।

      इस फागुन पूर्णिमा को इच्छुक श्रद्धालू गण डुम्हा भंडारपुरी जाकर माता सहोद्रा की झांपी में यत्नपूर्वक रखे  सद्गुरु घासीदास की सोंटा चरण पादुका कंठीमाला एंव अंग वस्त्र का पावन दर्शन लाभ कर सकते है।

गांव वालों सहित समस्त  संत महंत दीवान परिवार के साथ मेला लगाने की गुरुवंशजो की मार्गदर्शन लेकर  सार्थक पहल कर सकते है‌। सतनाम धर्म- संस्कृति में यह मेला अभिनव पहल होगा। इससे जनमानस का  नैतिक उत्थान सहित सर्वांगीण विकास के मार्ग प्रशस्त होन्गे।
        सतनाम
डा अनिल भतपहरी
[5/2, 23:14] Dr anilbhatpahari: हमारी तो यह दि‌ली चाह है कि डुम्हा मे गद्दी सोटा और कंठी माला के लिए भव्य स्मारक बने और दीवान परिवार उनके संरछक सेवादार रहे।
    साथ ही साथ गुरु बाबा घासी दास द्वारा  सतनाम धर्म प्रचार हेतु  लगाए गये ९ रावटी स्थल - चिर ई पहर ,दंतेवाडा , कांकेर ,पानाबरस , डोंगरगढ ,भंवरदाह ,भोरमदेव ,रतनपुर और दल्हा पहाड मे भी स्मारक बने एंव कंठी माला के एक एक मनके को रजत या स्वर्ण मंजुषा मे रखकर स्थापित व  संरछित करे।
  यह धार्मिक योजना बडी ही महत्वाकांछी योजना है। इनके लिए समाज के सभी वर्ग खासकर गुरु परिवार दीवान परिवार साधु संत महंत भंडारी साटीदार अधिकारी कर्मचारी गण से प्रतिनिधी मंडल बनावे एंव उक्त निर्माण एंव संबंधित जगहो के विकास व वहां मेले संगत पंगत अंगत की सतनामी सांस्कृतिक अनुष्ठान आरंभ करावे।

तब जाकर सतनाम धर्म के मार्ग प्रशस्त होन्गे।
    धर्म और धार्मिक आयोजन ही जनमानस मे सांस्कृति एकता स्थापित कर सकते है।और परस्पर मेलजोल से संगठन और संगठन से ही शक्ति ।शक्ति से हस्ती और हस्ती से युक्ति युक्ति से मुक्ति......!.
धार्मिक आयोजन ही मुक्ति के प्रथम सोपान है। दुर्भाग्यवश समाज मे सिवाय जंयती और मेले के अतिरिक्त कुछ हुआ ही नही न ढंग से कुछ हो पा रहे है...... इस दिशा मे प्रग्यावानों को गंभीरता पूर्वक विचार विमर्श करना चाहिए ।

      इस फागुन पूर्णिमा को इच्छुक श्रद्धालू गण डुम्हा भंडारपुरी जाकर माता सहोद्रा की झांपी में यत्नपूर्वक रखे  सद्गुरु घासीदास की सोंटा चरण पादुका कंठीमाला एंव अंग वस्त्र का पावन दर्शन लाभ कर सकते है।

गांव वालों सहित समस्त  संत महंत दीवान परिवार के साथ मेला लगाने की गुरुवंशजो की मार्गदर्शन लेकर  सार्थक पहल कर सकते है‌। सतनाम धर्म- संस्कृति में यह मेला अभिनव पहल होगा। इससे जनमानस का  नैतिक उत्थान सहित सर्वांगीण विकास के मार्ग प्रशस्त होन्गे।
        सतनाम
डा अनिल भतपहरी