Wednesday, March 13, 2019

मिनीमाता जयंति तिथी

मिनीमाता जी की जन्म तिथि में विभिन्नताएं है। १३-१५-२२ मार्च जैसी तिथियां भी प्रचलन में है।
वैसे उनकी जन्म होलिका दहन की मध्यरात्रि के बाद हैं। अत: होली के दिन माता जी की जयंती मनाना अधिक समीचीन और व्यवहारिक तथा समाज सापेछ है।
    क्योकि होली की रात्रि  जन्म वाली बात सर्वाधिक प्रमाणिक है। जन्म स्कूल सर्टीफिकेट संदिग्ध क्योकि उस समय कद काठी के हिसाब से लसमस उम्र तय कर सुविधानुसार मास्टर जी जन्मतिथि लिख दिए है।और वही शास रिकार्ड में आ गये ।ऐसा अधिकांश के साथ धटा है।
     बाहरहाल होली के दिन समाज अन्य समाज के अनुकरण कर मांस मदिरा में उन्मत्त होकर अनेक तरह के झगड़े फसाद में फंस कर उम्र भर कोर्ट कचहरी के चक्कर में बर्बाद होते रहा है।और नैतिक पतन अलग से। इन सभी कुरीतियों से बचने माता जी की अवतरण सतनामी ही नही सर्व मानव समाज के लिए कल्याण कारक है।
     इस दिन माता जी जयंती उत्सव एक नैतिक संबल प्रदान करेगा और लोग धार्मिक व आध्यात्मिक प्रभाव और कुछ हद तक  दबाव मे आकार सात्विक होन्गे। फिजुल खर्ची से बचकर अनेक संकट से उबरेन्गे।
   यह विचार कर ही बड़े पैमाने पर मिनीमाता की जयंती मनाने की शुरुआत किए गये ।अनेक जगहों बड़ी श्रद्धा भक्ति से मनाए जाने भी लगे।
     रहा सवाल होली मनाने का यह रंग पर्व पुरी शिद्दत से प्रात: से दोपहर तक  हर्ष उल्लास से मनावे और शाम माता जी भव्य जंयती मनाए भोग भंडारा लगाए तस्म ई चीला सोहारी पुड़ी खिलाए ।यह सतनाम धर्म सञस्कृति के लिए अप्रतिम पर्व होगा जिसमे सर्व समाज की भागीदारी मानव समाज को उत्कर्ष की ओर ले जाएगी ।और जाने अनजाने में होली की फूहड़ताए और मांस मदिरा की प्रचलन में प्रभावी नियंत्रण होगा।
    वैसे सतनामियों प्रथम शाखा नारनौल में फागुन पूर्णिमा को ३ दिन की सामूहिक ध्यान उपसाना सतनाम चौकी में परंपरागत ढंग  से विगत ४-५ सौ वर्षो  जारी है।
    केवल दो पर्व परस्पर टकरा रहे है ऐसे में इस टकराहट को टालने के लिए समझौता करना जैसे एक तरफा अवधारणा या पूर्वाग्रह अपना कर ऐसा नही करना चाहिए।
   कुछ लोगो की यह तर्क कि गुरु घासीदास की जंयती १८ दिसंबर क्यो? अध्धन पूर्णिमा क्यो नही?  उनसे विनम्र निवेदन है कि १८ दिसंबर अघ्घन मे आते थे और शुरुआत हुई तब अघ्घन पुर्णिमा ही था। पर यह तिथि रुढ हो ग ई जबकि जनश्रुति मे अघ्घन पुन्नी सोमवार ही है। और पुरे पछ भर यह उत्सव हर्षोल्लास से मनाए जाते है। आगे अनेक पर्व आएन्गे तो आयोजन दो चार दीन तक सिमट जाएन्गे ।यह होने लगा भी है। इसी तरह गुरु अम्मरदास जंयती अषाढ़ पुन्नी समाधि पौष पुन्नी और गुरुबालकदास की भादो अष्टमी यहां तक गिरौदपुरी मेला फागुन पंचमी छट सप्तमी और भंडार दसहरा  क्वार शुक्ल विजया एकादशी हिन्दी महिनानुसार  को ।तब माता जी जंयती अंग्रेजी महिनानुसार क्यो ? इसलिए कि होली छककर मनावे मांस मदिरा डुबे रहे लडे झगड़े और गाढी कमाई थाना कोर्ट कचहरी में फूके परस्पर बैर भाव पाले? नही यह सब बंद हो और होली में शाम मंगल भजन गुंजे भोग भंडारा और पंथी चौका  आरती हो।
       बाहरहाल  किसी पर्व का प्रवर्तन और उनकी प्रवृत्तियां समाज में क्या प्रभाव डालती है और आगे उनका क्या व्यापक असर होगा यह निर्णय कर दूरदृष्टि अपनाकर ही आयोजन करना उचित होना चाहिए।

   इन पर गंभीरतापूर्वक विचार करे कि क्या चीज हमे प्रगति और सर्वांगीण विकास  की ओर प्रशस्त करेन्गे! 
       ।‌ सतनाम ।।

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