Thursday, March 28, 2019

ममा - भांचा

"ममा -भांचा"

छत्तीसगढ़ म ममा -भांचा बड़ पावन रिस्ता आय । बुढ़वा ममा अपन दुधमुहां भाजा के तको पांव छु के  अपन ल धन्य मानथे। बहिनी के बेटा -बेटी ल भांचा -भांची कहे जाथे ।रिस्ता नता मं ये भगवान गुरु के बाद तीसर स्थान म रखे गय हे। जेन ल दान दछिणा  दे  के पुन सकेले जाथे। छत्तीसगढियां  मन ल कोनो ममा तो कहि दय - ओखर ऊपर  सबकूछ निछावर कर देथे ! अइसे अवधट  दानी छत्तीसगढिया ममा मन होथे।  मथुरा के कंश -कृष्ण वाले उत्तर भारतीय  संस्कृति के इहा कोन्हो प्रचलन नइये ।
    तेहि पाय के कत्कोन चालाक पर प्रांतिक मनसे मन छत्तीसगढ़ियां मन ल बड़ मगन मामू बना के ओखर सरी जिनिस ल नंगा के नंगरा कर दय हवे। ते पाय एखर  रवती उखड़ गय हे ।
   जेकर डेरौठी मं आसरा मांग के रहिन ..कोचियाई करिन एती ओती तीन पाच करके सेठ साहूकार लहुटगिन ।
    आजकल जेन डहन देख  नंगरा मन पागा बांधे हवे अउ धोतीवाला मन मुड़ उघरा किंजरत हे । ये कइसे अर्थव्यवस्था हवे ? का खेती के ये अवगुन हे कि कभु खेतीहर किसान के दिन न इ बहुरय? एखर बर बड़ जोखा मढ़ाय ल परही।
       खैर कहे जाथे कि ये छत्तीसगढ़ ह जुन्ना समे म दछिणापथ के नांव ले जाने जाय। आर्य अउ द्रविड़ संस्कृति के समागम भुंइय्या आय। कोसल के राजा कौशल्य के बेटी कौशल्या संग रघुवंशी राजा के बेटा दसरथ के संग बिहाव होईस ओकर बेटा परतापी रामचंद्र होईस । यही रामचंद्र ल ओकर मोसी दाई कैकेयी हर अपन बेटा भरत ल राजा बनवाय के सेती वनवास निकलवा देथे ।त रामचंद्र ल गंगा नहाक के अपन ममा गांव म आके रहे लगथे। ओकर संग वोकर महतारी कौशिल्या काबर न ई आइस जरुर ये गुनान के गोठ हो सकते । फेर राम लछिमन अउ सीता तीनो परानी इहा ग्यारह साल रहिथे ... सीता ल रावन हर के ले जथे राम अपन ममा मन ल सकेल ऐताचारी रावन ल मार सीता ल मुक्ताथे अउ जनमानस म रच बस के राजा से भगवान बन जाथे ।
ए तरा से  भगवान के  भांचा होव ई  के वृतांत बड़ सुहावन हे।राम नता म भांचा होइस ते पाय के भांचा के नता ह छत्तीसगढ म  भगवान सरीख माने गउने जाथे।
      आज मोटर म चढेव त दु बुढ़वा संग भेट होइस । दुनो ममा भांचा आय ।दुनो के ऊपर ७०-८० ले कमती न इ रहिस।
   ममा ह अपन भांचा के भरे बस म  दुनो पांव ल पखारत पैलगी करिस अपन पंछा म पाव पोछिस ।उकर ये करतब- भाव ल देख हमरो मन मगन अउ पावन होगे ।
     कतेक आत्मीय व मयारुक नता ये । बात चले लगिस ... ममा कहिस तोर हाथ पच अमरित पी लेते भांचा . त मोर साध के सधौरा पुर जतिस ... ये अस्पताल म भर्ती रहेव थोरिक बने लागिस त छुट्टी कराके घर जात हंव ....
          भांजा थोरिक टन्नक रहिस कथे - ले अभी ल तय मरना सोरियात हवस ।नाती नतुरा के बर बिहाव तो कर ले छंती देख तोपाबे कहिके कठ्ठल के हांस लगिस ... ओहर मोला बड़ मजकहा लगिस .... दुनो खुल खुल हांसे लगिस अउ बस म चढ़े दैनिक यात्री जेमा सरकारी कर्मचारी सर मैडम जो अलग अलग स्कूल आफिस म बुता करथे दुनो के निश्छल बेवहार व बताचिता देख अपन अपन मोबाइल डहन ले थोरिक अनचेतहा होगिस .... मय तो मोकाय दुनो ल देखते रहिगेंव । बिमार ममा के चेहरा म ओ जीये के उजास बगरत देख अस्सी साल के  बैमारी से उठे सियान के मुख मंडल मं सुख भाव बगरगिस .... बड़ उछाहित उन मन गोठियात जात हवे ..अउ.. मोर छत्तीसगढी सबद के कोठी ल भरत जात हवय ....
       -डा. अनिल भतपहरी

Wednesday, March 27, 2019

हड्डी की जीभ नहीं कि न फिसलें

कहें बिंदास अनिल भतपहरी
         आपके वास्ते छकड़ी हमरी..
मित्रों जितनी मुंह हैं उतनी  हैं‌ बातें।
हड्डी की जीभ नहीं कि न फिसलें।।
फिर भी सबकी है अपनी दृढ़ दावें।
कुछ पल  बाद वे भले हो खोखलें ।।
बंद मुठ्ठी तक तो भैय्ये गाले‌‌ हंस ले।
खुलेगी तब जो होगें वे सभी देख ले।।
  - डा. अनिल भतपहरी

Monday, March 25, 2019

सावधान पथिक

सावधान पथिक !

जब तक थको नही
चलते रहों
अब चलने मे भी
थकना क्या ?
दौड़ तो नहीं रहे हो
सदियों से पथिक हो
पहुंचे हुए पहुना नही
कि कोई तुम्हे परघाएं
बिठाकर तखत में 
खिलाए छप्पन भोग
दे मान- सम्मान रोज
सौप दे राज -पाट
दे अपनी ठाट-बाट
अरे भाई! 
हमे कोई चाह नही
बस राह कटीली न हो
और कोस दो कोस में
छांह मिल जाय
पानी की परवाह नही
वह भरा हुआ हैं
हममें लबालब
इसलिए तो चल रहे हैं
और लड़ रहे हैं
ताकि कोई पहुंचा हुआ
रच न सके  सडयंत्र
छीन न ले अभिनव मंत्र
बमुश्किल सिरजे हैं पंथ
चलने लगा हैं तन-मन
तब किसी के कहने
चंद सुविधा पाने
भभकाने से 
जो पगडंडी है
उसे भी वे न उजाड़ दे
जो कुछ बना है
उसे न बिगाड़ दे
इसलिए चलते रहो
हरदम हरतरफ 
देखते है दम
कि वे कितनी 
पगडंडियां उजाड़ते हैं
कितने को बिगाड़  पाते हैं
यदि वे ठान ही लिया बिगाड़ना
तो याद रखना
तुम कभी न जुड़ना
तुम्हारे उनसे जुड़ने
तुमसे उनके जुड़ने
सच ! इसी से
टंगली की बेंठ सें
जंगल उजाड़ते हैं
और उजड़ते  ही
पगडंडी विलिन हो जाते हैं ...
तब होगा कैसा निर्वाह तेरा
पगडंडी रहा तो
सबकूछ रहेगा
राजपथ के लोभ में
जो है उस से भी
बेदखल हो जाओगे
सच में !
हाथ मलते रह जाओगे!
सावधान पथिक
छले जाओगे!!

डा. अनिल भतपहरी,रायपुर

आत्ममुग्ध

"आत्मुग्ध "

सामाजिक सम्मेलनो बैठको संगोष्ठियों  मे कुछ पढे़-लिखे लोग अपनी संधर्ष की दुहाई देते कहते है कि हमने विपरीत परिस्थितियों मे और वह भी संवैधानिक प्रावधान आदि  के चलते यहाँ तक आए ....अन्यथा हम कितने विवश गुलाम और मुलभूत जीवन निर्वाह के चीजों से वंचित थे।
      पर अनेक लोग भी ऐसे है जो अपनी पूर्वजों के गुणगान करते थकते नही और पूर्व वैभव की दास्तान सुनाते अघाते नही।
    मतलब समाज मे मंडल गौटिया मालगुजार जमीन्दार थे तो दूसरी तरफ सौंजिया खेतीहर मजदूर भी।
    दोनो स्थितिया प्रेरक चीजे है वर्तमान और भविष्य को संवारने और गढ़ने।  वैभव के गुणगान करते उसे पुन: अर्जित करे या  मुफलिसी से बचने कठोर परिश्रम कर आगे बढे।
  बाहरहाल  आत्ममुग्ध भी न रहे न आत्महीनता पाले ।
     परन्तु  एक बात सत्य है कि आत्ममुग्धता आत्महीनता से सदैव श्रेष्ठतम होते है। लोग उपलब्धियां अर्जित कर खुश ही नही आत्ममुग्ध भी होते है।यह एक सकरात्मक मनोविकार है।

Saturday, March 23, 2019

तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम में प्रगतिशील सतनामी समाज का भव्य आयोजन

तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम मेला में प्रछस( pcss ) का   त्रिदिवसीय आयोजन ...

गिरौदपुरी - सतनाम धर्म की धर्म नगरी तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम  मेला में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी फागुन शु पंचमी ११-३-२०१९  से लेकर फागुन शु सप्तमी १३-३-२०१९ तक प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज के विशालकाय पंडाल में गुरुघासीदास चरित एंव सतनाम धर्म- संस्कृति पर आधारित विविध आयोजन विशाल श्रोता समुह के अवलोकानार्थ किए गये।जिसमें बड़े ही उत्साह से देशभर से आए  सुप्रसिद्ध विचारक लेखक कवि कलाकार साधु संत- महंत व सतनाम सहज योग साधक साधिकाएं  अपनी सहभागिता प्रदान की ।
   प्रथम दिवस विधिवत मंच का उद्धाटन गुरुघासीदास के छाया चित्र की पूजा अर्चना कर प्रदेशाध्यक्ष एल एल कोशले अश्विन बबलू त्रिवेंद्र पुराणिक चेलक संतोषकुर्रे ,योगसाधक व प्रशिक्षक वेदानंद दिव्य सहित समाज के संत महंत एंव उपस्थित जन समुदाय के हर्ष ध्वनि के मध्य किए गये  इस अवसर पर अनेक जगहों से आए वक्तागण गुरुघासीदास चरित एंव सतनाम धर्म संस्कृति पर सारगर्भित संबोधन दिए तथा इन्हे श्रवण करने जन जन में प्रचारित प्रसारित करने आव्हान किए गये।।रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रम मंगल भजन संकीर्तन  पंथी आदि चलते रहा।
     प्रात: सतनाम सहज योग शिविर का संचालन दिव्य जी एंव संतोष कुर्रे के निर्देशन में हुआ।जहां पर अनेक तरह से आसन का प्रदर्शन एंव उनके मानव तन मन पर पड़ते प्रभाव का सुन्दर विश्लेषण किए गये।
       भोजनोपरान्त दोपहर को व्याख्यान माला का आयोजन हुआ।एंव शाम भगवती टांडेश्वरी का भजन प्रस्तावित रहा।
   तत्पश्चात् गुरुवंदना केन्द्र भिलाई सतनाम भवन सेक्टर ६ से पधारे संत समाज एंव गुरु वंदना परिवार के सदस्यों द्वारा भव्य जयकारे एंव. सामुहिक वंदना की ग ई । यह कार्यक्रम जनमानस में आध्यात्मिक  चेतना को प्रसारित करने अत्यन्त प्रेरणीय रहा।
    भोजनोपरान्त रात्रि ९ बजे बहुप्रतछीत विराट कवि सम्मेल का आयोजन डा अनिल भतपहरी के संयोजन में आरंभ हुआ। इसमे देश भर से ३२ कवियों की गरिमामय उपस्थिति व प्रस्तुतीकरण हुआ। कार्यक्रम में
      १सर्व श्री मीर अली मीर ने चिर परिचित अंदाज मे अपनी सुप्रसिद्ध गीत नंदा जाही का रे की प्रस्तुति देकर मंच को गरिमाम मय ऊंचाई प्रदान की।

२डा रामकुमार साहू ने .... गुरुघासीदास व गिरौदपुरी की महिमा का सुन्दर गान किए ...
३ बंशीलाल कुर्रे -

४ मोहिनीदास बधेल
५    विजय डहरिया

अतनु जोगी
७संतोष कुर्रे...
८ सुखदेव अहिलेश्वर  .......


कवि सम्मेलन का संचालन डा अनिल भतपहरी व विजय डहरिया ने किया।

मंचस्थ कविगण  पुरी रात बाबा जी गुणगान करते रहे ।
   डा एफ आर निराला जी ने समाज सापेक्ष एंव स्वस्थ्य जीवन शैली टीप देते सतनाम के मार्ग पर चलने की आव्हान किए ।
   तृतीय दिवस सतनाम- सहज योग की अभ्यास करते  सामान्यतः  व्याख्यान माला व संत समागम चलते रहा ।
    सभी प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मनित किए गये।तथा आने वाले वर्षों मे इन आयोजन में सम्मलित होने आमंत्रण दिए गये

    सप्तमी के शाम मुख्यमंदिर में पालो चढने के उपरान्त मेला समापन की धोषणा तक  मंच पर विविध रचनात्मक गतिविधियां चलते रहा।
   उक्त महत्वपूर्ण विजनरी कार्यक्रम के लिए प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष सहयोग के लिए सहयोगियों एंव कार्यक्रम में सहभागिता प्रदान किए कवि कलाकारों रचनाकारो विचारको और प्रबुद्ध दर्शक व श्रद्धालु भक्तगणों के प्रति आभार प्रदर्शन किए गये।

    सतनाम

डा- अनिलकुमार भतपहरी
            सचिव
       सतनाम साहित्य प्रकोष्ठ
प्रगतिशील  छग सतनामी समाज ,रायपुर छग

Wednesday, March 13, 2019

मिनीमाता जयंति तिथी

मिनीमाता जी की जन्म तिथि में विभिन्नताएं है। १३-१५-२२ मार्च जैसी तिथियां भी प्रचलन में है।
वैसे उनकी जन्म होलिका दहन की मध्यरात्रि के बाद हैं। अत: होली के दिन माता जी की जयंती मनाना अधिक समीचीन और व्यवहारिक तथा समाज सापेछ है।
    क्योकि होली की रात्रि  जन्म वाली बात सर्वाधिक प्रमाणिक है। जन्म स्कूल सर्टीफिकेट संदिग्ध क्योकि उस समय कद काठी के हिसाब से लसमस उम्र तय कर सुविधानुसार मास्टर जी जन्मतिथि लिख दिए है।और वही शास रिकार्ड में आ गये ।ऐसा अधिकांश के साथ धटा है।
     बाहरहाल होली के दिन समाज अन्य समाज के अनुकरण कर मांस मदिरा में उन्मत्त होकर अनेक तरह के झगड़े फसाद में फंस कर उम्र भर कोर्ट कचहरी के चक्कर में बर्बाद होते रहा है।और नैतिक पतन अलग से। इन सभी कुरीतियों से बचने माता जी की अवतरण सतनामी ही नही सर्व मानव समाज के लिए कल्याण कारक है।
     इस दिन माता जी जयंती उत्सव एक नैतिक संबल प्रदान करेगा और लोग धार्मिक व आध्यात्मिक प्रभाव और कुछ हद तक  दबाव मे आकार सात्विक होन्गे। फिजुल खर्ची से बचकर अनेक संकट से उबरेन्गे।
   यह विचार कर ही बड़े पैमाने पर मिनीमाता की जयंती मनाने की शुरुआत किए गये ।अनेक जगहों बड़ी श्रद्धा भक्ति से मनाए जाने भी लगे।
     रहा सवाल होली मनाने का यह रंग पर्व पुरी शिद्दत से प्रात: से दोपहर तक  हर्ष उल्लास से मनावे और शाम माता जी भव्य जंयती मनाए भोग भंडारा लगाए तस्म ई चीला सोहारी पुड़ी खिलाए ।यह सतनाम धर्म सञस्कृति के लिए अप्रतिम पर्व होगा जिसमे सर्व समाज की भागीदारी मानव समाज को उत्कर्ष की ओर ले जाएगी ।और जाने अनजाने में होली की फूहड़ताए और मांस मदिरा की प्रचलन में प्रभावी नियंत्रण होगा।
    वैसे सतनामियों प्रथम शाखा नारनौल में फागुन पूर्णिमा को ३ दिन की सामूहिक ध्यान उपसाना सतनाम चौकी में परंपरागत ढंग  से विगत ४-५ सौ वर्षो  जारी है।
    केवल दो पर्व परस्पर टकरा रहे है ऐसे में इस टकराहट को टालने के लिए समझौता करना जैसे एक तरफा अवधारणा या पूर्वाग्रह अपना कर ऐसा नही करना चाहिए।
   कुछ लोगो की यह तर्क कि गुरु घासीदास की जंयती १८ दिसंबर क्यो? अध्धन पूर्णिमा क्यो नही?  उनसे विनम्र निवेदन है कि १८ दिसंबर अघ्घन मे आते थे और शुरुआत हुई तब अघ्घन पुर्णिमा ही था। पर यह तिथि रुढ हो ग ई जबकि जनश्रुति मे अघ्घन पुन्नी सोमवार ही है। और पुरे पछ भर यह उत्सव हर्षोल्लास से मनाए जाते है। आगे अनेक पर्व आएन्गे तो आयोजन दो चार दीन तक सिमट जाएन्गे ।यह होने लगा भी है। इसी तरह गुरु अम्मरदास जंयती अषाढ़ पुन्नी समाधि पौष पुन्नी और गुरुबालकदास की भादो अष्टमी यहां तक गिरौदपुरी मेला फागुन पंचमी छट सप्तमी और भंडार दसहरा  क्वार शुक्ल विजया एकादशी हिन्दी महिनानुसार  को ।तब माता जी जंयती अंग्रेजी महिनानुसार क्यो ? इसलिए कि होली छककर मनावे मांस मदिरा डुबे रहे लडे झगड़े और गाढी कमाई थाना कोर्ट कचहरी में फूके परस्पर बैर भाव पाले? नही यह सब बंद हो और होली में शाम मंगल भजन गुंजे भोग भंडारा और पंथी चौका  आरती हो।
       बाहरहाल  किसी पर्व का प्रवर्तन और उनकी प्रवृत्तियां समाज में क्या प्रभाव डालती है और आगे उनका क्या व्यापक असर होगा यह निर्णय कर दूरदृष्टि अपनाकर ही आयोजन करना उचित होना चाहिए।

   इन पर गंभीरतापूर्वक विचार करे कि क्या चीज हमे प्रगति और सर्वांगीण विकास  की ओर प्रशस्त करेन्गे! 
       ।‌ सतनाम ।।

Monday, March 11, 2019

भोजन भट्ट नही ग्यान भट्ट बने - अनिल भट्ट



।।भोजन भंडारा ही नही ग्यान भंडारा भी हो।।

    भोजन के बिन भजन नही और भजन के बिन मनन नही  । अर्थात् मनन करने के पूर्व भोजन अतिआवश्यक है।संसार में मानव  की यात्रा भोजन के नाम पर ही हुआ है।समस्त प्राणी जगत भोजन के लिए ही सक्रिय है।तत्पर व क्रियाशील है।यदि इनकी आवश्यकता न हो तो यह दुनिया जैसा है संभवत: ऐसा न होता।

      सभी अपनी भूख मिटाने में लगे है। यह भूख आमतौर पर दो तरह के है ।

पहला पेट की भूख 

दूसरा मन मतिष्क की भूख 

पेट की भूख - खाद्य  समाग्री  से मिटाई जाती है ।जबकि मन और मतिष्क की भूख  ललित कलाओं  और प्रेरक व रचनात्मक  विचारों से मिटाई जा सकती है।

 जिस व्यक्ति या समाज  के  पेट का भूख मिट गया हो या उनकी अपेछाकृत कम चिन्ता हो वह समाज या व्यक्ति  मन मतिष्क का भूख मिटाने में संलग्न होकर सभ्यता के सोपान तय करते है। उनकी मन मतिष्क से ऊपजे चीजे ही उसे उन्नत व सुसभ्य करते है। 

     गुरुघासीदास जैसे समर्थ गुरु ने अपने अनुयाईयों की इसी मन मस्तिष्क की भूख मिटाने हेतु बिन आगी पानी से सतनाम दर्शन और  विचार रुपी स्वादिष्ट भोजन पका कर अप्रतिम कार्य किया ।उनकी प्रशस्ति में यह पंथी गीत विगत २०० वर्षों से दिग् दिगंत में परिव्याप्त है- 

तय तो रांधि डारे भोजन हो आगी के बिना ।

आगि के बिना हो साहेब पानी के बिना ....

चित कर चुल्हा हिय कर हड़िया 

भाव के भात साहेब दया कर दाल 

प्रेम भाव से परोसत हे हमर गुरु रोइय्या हो ... देखो अजब रसोइय्या हो गुरु ....

   आजकल  हमने मन मतिष्क की भूख मिटाने   गुरु उपदेश और उनके सद विचारो  और सतनाम दर्शन रुपी अप्रतिम  सामाग्री के जगह पापी पेट के भूख मिटाने दाल चांवल सब्जी जुगाड़ने और उन्हे स्वादिष्ट कर खाने पीने में उन्मत्त होते जा रहे है।

     भोजन की मजा में लगा समाज भजन चिन्तन मनन से कोसो दूर छिटकते जा रहे है।और जिव्हा के स्वाद के लिए रात दिन लगा हुआ है। यह इन्द्रिय आग्रह  छणिक  सुख है। इन्द्रिय निग्रह सदा के लिए सुख  नही ।

सतनाम धर्म सुख शांति और आत्मोत्सर्ग का महा धर्म और उनके प्रदाता सुधढ़ पंथ है न कि छद्म छणिक सुख के लिए यह गढ़ा गया है। हां गुरु उपदेश जरुर है कि "तय बारा महिना के खर्चा जोड़ ले तब भजन कर न इये झन कर ।" 

       अब सवाल यह है कि क्या हम बारहों माह इसी में उलझे नही रहते ? ३६५ दिन खाने पीने में नही लगे रहते ? तब विचार चिन्तन मनन और हक अधिकार 

।।भोजन भंडारा ही नही ग्यान भंडारा भी हो।।
    भोजन के बिन भजन नही और भजन के बिन मनन नही  । अर्थात् मनन करने के पूर्व भोजन अतिआवश्यक है।संसार में मानव  की यात्रा भोजन के नाम पर ही हुआ है।समस्त प्राणी जगत भोजन के लिए ही सक्रिय है।तत्पर व क्रियाशील है।यदि इनकी आवश्यकता न हो तो यह दुनिया जैसा है संभवत: ऐसा न होता।
      सभी अपनी भूख मिटाने में लगे है। यह भूख आमतौर पर दो तरह के है ।
पहला पेट की भूख 
दूसरा मन मतिष्क की भूख 
पेट की भूख - खाद्य  समाग्री  से मिटाई जाती है ।जबकि मन और मतिष्क की भूख  ललित कलाओं  और प्रेरक व रचनात्मक  विचारों से मिटाई जा सकती है।
 जिस व्यक्ति या समाज  के  पेट का भूख मिट गया हो या उनकी अपेछाकृत कम चिन्ता हो वह समाज या व्यक्ति  मन मतिष्क का भूख मिटाने में संलग्न होकर सभ्यता के सोपान तय करते है। उनकी मन मतिष्क से ऊपजे चीजे ही उसे उन्नत व सुसभ्य करते है। 
     गुरुघासीदास जैसे समर्थ गुरु ने अपने अनुयाईयों की इसी मन मस्तिष्क की भूख मिटाने हेतु बिन आगी पानी से सतनाम दर्शन और  विचार रुपी स्वादिष्ट भोजन पका कर अप्रतिम कार्य किया ।उनकी प्रशस्ति में यह पंथी गीत विगत २०० वर्षों से दिग् दिगंत में परिव्याप्त है- 
तय तो रांधि डारे भोजन हो आगी के बिना ।
आगि के बिना हो साहेब पानी के बिना ....
चित कर चुल्हा हिय कर हड़िया 
भाव के भात साहेब दया कर दाल 
प्रेम भाव से परोसत हे हमर गुरु रोइय्या हो ... देखो अजब रसोइय्या हो गुरु ....

   आजकल  हमने मन मतिष्क की भूख मिटाने   गुरु उपदेश और उनके सद विचारो  और सतनाम दर्शन रुपी अप्रतिम  सामाग्री के जगह पापी पेट के भूख मिटाने दाल चांवल सब्जी जुगाड़ने और उन्हे स्वादिष्ट कर खाने पीने में उन्मत्त होते जा रहे है।
     भोजन की मजा में लगा समाज भजन चिन्तन मनन से कोसो दूर छिटकते जा रहे है।और जिव्हा के स्वाद के लिए रात दिन लगा हुआ है। यह इन्द्रिय आग्रह  छणिक  सुख है। इन्द्रिय निग्रह सदा के लिए सुख  नही ।
सतनाम धर्म सुख शांति और आत्मोत्सर्ग का महा धर्म और उनके प्रदाता सुधढ़ पंथ है न कि छद्म छणिक सुख के लिए यह गढ़ा गया है। हां गुरु उपदेश जरुर है कि "तय बारा महिना के खर्चा जोड़ ले तब भजन कर न इये झन कर ।" 
       अब सवाल यह है कि क्या हम बारहों माह इसी में उलझे नही रहते ? ३६५ दिन खाने पीने में नही लगे रहते ? तब विचार चिन्तन मनन और हक अधिकार के लिए कब लामबंद होन्गे? गिरौदपुरी मेला में कोई सतनामी नि:शुल्क  खाने और महज धुमने फिरने नही जाता। अपितु गुरुबाबा के व्यक्तित्व कृत्तित्व व उनके संग साथ बिताए समय स्थल पर जाकर उनके सदृश्य होने और प्रेरणा लेने जाते है। वहां उनकी विचारों को ग्यान और दर्शन को जानने समझने और प्रकृति के सानिध्य मे रहकर कुछ अलौकिक भाव आत्मबल जैसे चीजे अर्जित करने जाते है।तो प्रबंधको को चाहिए कि ऐसी चीजों को उपलब्ध करावे।
न कि लाखो चंदा लेकर एकत्र कर केवल दाल भात खिला कर अपनी कर्तव्य का इतिश्री कर ले? 
     श्रद्घालुओं को भी चाहिए कि वे भी अपनी दोनो तरह की भूख का शमन कर अपना नैतिक कल्याण कर सौभाग्यवान बने।
    आमतौर पर  देखा जाय तो तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम मेला परिसर सहित आसपास के कस्बो  चौक -चौराहों में अनेक सामाजिक संस्था व्यक्ति खरोरा पलारी संडी वटगन बलौदाबाजार लवन कसडोल सहित चारो तरफ के पहुंच मार्गो मे पड़ने वाले  अनेक जगहों पर विगत अनेक वर्षों से संचालित है।यह स्वस्फूर्त है जो सतनामियों की मूल प्रवृत्ति कि भूखे को भोजन प्यासे को पानी देने को अभिव्यक्त करते है। विगत कुछ वर्षों से छ.ग. शासन द्वारा मेले में नि:शुल्क दाल -भात सेंटर संचालित हो रहे है। बावजूद लाखों परिवार आदतन स्वपाकी होने के कारण जोंक नदी और वनप्रांतर मे पारिवारिक सहभोज एंव सात्विक आहार- विहार करते तीन दिनों तक साधनात्मक जीवन व्यतित करते आ रहें हैं।
     परन्तु यह विडंबना है कि विशाल काय समुदाय के मानसिक छुधा के शमन और उन्हें सही मार्गदर्शन हेतु कोई व्यवस्थित आयोजन शिविर आदि की कोई प्रभावी आयोजन व उनके लिए कोई व्यवस्था नही हो पाते।और न ही छत्तीसगढ के संस्कृति विभाग द्वारा सतनाम सञस्कृति के संवर्धन और प्रदर्शन आदि करने के लिए कोई सार्थक पहल नही करते न ऐसा सोच या विचार कही हो पाते।
  दाल -भात सेंटर और अनगिनत नि: शुल्क भोग भंडारा आदि देख ऐसा लगता है कि समाज का धन केवल जबरजस्ती लोगो के भूख मिटाने में अपव्यय हो रहे है।जबकि स्वाभिमानी समाज व श्रद्धालू दर्शनार्थी ऐसा कोई अपेछा भी नही रखते कि कोई हमे नि: शुल्क भोजन करावे!  
      ऐसे सेवादारों समितियों और संस्थाओं से अपील है कि आगामी वर्ष या इसी वर्ष से ही मेला परिसर मे होने वाले विभिन्न आयोजन में विविधता लाए ।कही सत्संग प्रवचन हो कही पर सतनाम सहज योग साधना शिविर लगे।समाधिस्थ संतों के इर्द गिर्द आध्यात्मिक आयोजन करे। अनेक साहित्यिक संस्थाए काव्यपाठ कथावाचन व संगीतमय प्रवचन  करे । प्रगतिशील छत्तीसगढ सतनामी समाज विगत कुछ वर्षों ऐसा आयोजन करने की स्थिति में  काफी संधर्ष के बाद आज सछम हो पाई है।और हमारे सैकड़ो लेखक कवि कलाकारों को  उनकी अपनी प्रतिभा प्रदर्शन हेतु मंच उपलब्ध करा सके है। इसी तरह कुछ वर्षो से  चिकित्सीय शिविर  हमारे चिकित्सक वैद्य गण करने लगे है ।
सामान्य ग्यान प्रतियोगी परीछा से संदर्भित  पुस्तक विक्रय केन्द्र और आडियो विडियो कैसेट सीडी पेन ड्राइव चिप्स आदि का स्टाल लगाए ।और उन्हे विशेष छूट प्रदान कर खरीदने प्रेरित करे। या कुछ सतनाम  साहित्य आरती पंथी संग्रह या अमृतवाणी उपदेश युक्त  कलेण्डर आदि नि: शुल्क उपलब्ध करावे ताकि सतनाम धर्म संस्कृति का उत्तरोतर संवर्धन और  विकास हो।इस तरह के रचनात्मक कार्य करने वाली समिति को मुक्त हस्त से अनुदान व सहयोग दे ।न कि दाल भात सब्जियां खिला कर या समिति के सदस्य और घर -परिवार   खा पीकर एकत्र किए संसाधन को नष्ट  करें। 
          सब तरह के आयोजन युक्तियुक्त हो और उनका संचालन व्यवस्थित हो ताकि सब तरह से सबकों लाभ मिल सकें।

"भोजन भट्ट के जगह ग्यान भट्ट होना बेहद जरुरी हैं।"
            डा. अनिल भट्ट 
      

                ।। सतनाम ।।

             डा अनिल भतपहरी
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।।भोजन भंडारा ही नही ग्यान भंडारा भी हो।।
    भोजन के बिन भजन नही और भजन के बिन मनन नही  । अर्थात् मनन करने के पूर्व भोजन अतिआवश्यक है।संसार में मानव  की यात्रा भोजन के नाम पर ही हुआ है।समस्त प्राणी जगत भोजन के लिए ही सक्रिय है।तत्पर व क्रियाशील है।यदि इनकी आवश्यकता न हो तो यह दुनिया जैसा है संभवत: ऐसा न होता।
      सभी अपनी भूख मिटाने में लगे है। यह भूख आमतौर पर दो तरह के है ।
पहला पेट की भूख 
दूसरा मन मतिष्क की भूख 
पेट की भूख - खाद्य  समाग्री  से मिटाई जाती है ।जबकि मन और मतिष्क की भूख  ललित कलाओं  और प्रेरक व रचनात्मक  विचारों से मिटाई जा सकती है।
 जिस व्यक्ति या समाज  के  पेट का भूख मिट गया हो या उनकी अपेछाकृत कम चिन्ता हो वह समाज या व्यक्ति  मन मतिष्क का भूख मिटाने में संलग्न होकर सभ्यता के सोपान तय करते है। उनकी मन मतिष्क से ऊपजे चीजे ही उसे उन्नत व सुसभ्य करते है। 
     गुरुघासीदास जैसे समर्थ गुरु ने अपने अनुयाईयों की इसी मन मस्तिष्क की भूख मिटाने हेतु बिन आगी पानी से सतनाम दर्शन और  विचार रुपी स्वादिष्ट भोजन पका कर अप्रतिम कार्य किया ।उनकी प्रशस्ति में यह पंथी गीत विगत २०० वर्षों से दिग् दिगंत में परिव्याप्त है- 
तय तो रांधि डारे भोजन हो आगी के बिना ।
आगि के बिना हो साहेब पानी के बिना ....
चित कर चुल्हा हिय कर हड़िया 
भाव के भात साहेब दया कर दाल 
प्रेम भाव से परोसत हे हमर गुरु रोइय्या हो ... देखो अजब रसोइय्या हो गुरु ....

   आजकल  हमने मन मतिष्क की भूख मिटाने   गुरु उपदेश और उनके सद विचारो  और सतनाम दर्शन रुपी अप्रतिम  सामाग्री के जगह पापी पेट के भूख मिटाने दाल चांवल सब्जी जुगाड़ने और उन्हे स्वादिष्ट कर खाने पीने में उन्मत्त होते जा रहे है।
     भोजन की मजा में लगा समाज भजन चिन्तन मनन से कोसो दूर छिटकते जा रहे है।और जिव्हा के स्वाद के लिए रात दिन लगा हुआ है। यह इन्द्रिय आग्रह  छणिक  सुख है। इन्द्रिय निग्रह सदा के लिए सुख  नही ।
सतनाम धर्म सुख शांति और आत्मोत्सर्ग का महा धर्म और उनके प्रदाता सुधढ़ पंथ है न कि छद्म छणिक सुख के लिए यह गढ़ा गया है। हां गुरु उपदेश जरुर है कि "तय बारा महिना के खर्चा जोड़ ले तब भजन कर न इये झन कर ।" 
       अब सवाल यह है कि क्या हम बारहों माह इसी में उलझे नही रहते ? ३६५ दिन खाने पीने में नही लगे रहते ? तब विचार चिन्तन मनन और हक अधिकार के लिए कब लामबंद होन्गे? गिरौदपुरी मेला में कोई सतनामी नि:शुल्क  खाने और महज धुमने फिरने नही जाता। अपितु गुरुबाबा के व्यक्तित्व कृत्तित्व व उनके संग साथ बिताए समय स्थल पर जाकर उनके सदृश्य होने और प्रेरणा लेने जाते है। वहां उनकी विचारों को ग्यान और दर्शन को जानने समझने और प्रकृति के सानिध्य मे रहकर कुछ अलौकिक भाव आत्मबल जैसे चीजे अर्जित करने जाते है।तो प्रबंधको को चाहिए कि ऐसी चीजों को उपलब्ध करावे।
न कि लाखो चंदा लेकर एकत्र कर केवल दाल भात खिला कर अपनी कर्तव्य का इतिश्री कर ले? 
     श्रद्घालुओं को भी चाहिए कि वे भी अपनी दोनो तरह की भूख का शमन कर अपना नैतिक कल्याण कर सौभाग्यवान बने।
    आमतौर पर  देखा जाय तो तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम मेला परिसर सहित आसपास के कस्बो  चौक -चौराहों में अनेक सामाजिक संस्था व्यक्ति खरोरा पलारी संडी वटगन बलौदाबाजार लवन कसडोल सहित चारो तरफ के पहुंच मार्गो मे पड़ने वाले  अनेक जगहों पर विगत अनेक वर्षों से संचालित है।यह स्वस्फूर्त है जो सतनामियों की मूल प्रवृत्ति कि भूखे को भोजन प्यासे को पानी देने को अभिव्यक्त करते है। विगत कुछ वर्षों से छ.ग. शासन द्वारा मेले में नि:शुल्क दाल -भात सेंटर संचालित हो रहे है। बावजूद लाखों परिवार आदतन स्वपाकी होने के कारण जोंक नदी और वनप्रांतर मे पारिवारिक सहभोज एंव सात्विक आहार- विहार करते तीन दिनों तक साधनात्मक जीवन व्यतित करते आ रहें हैं।
     परन्तु यह विडंबना है कि विशाल काय समुदाय के मानसिक छुधा के शमन और उन्हें सही मार्गदर्शन हेतु कोई व्यवस्थित आयोजन शिविर आदि की कोई प्रभावी आयोजन व उनके लिए कोई व्यवस्था नही हो पाते।और न ही छत्तीसगढ के संस्कृति विभाग द्वारा सतनाम सञस्कृति के संवर्धन और प्रदर्शन आदि करने के लिए कोई सार्थक पहल नही करते न ऐसा सोच या विचार कही हो पाते।
  दाल -भात सेंटर और अनगिनत नि: शुल्क भोग भंडारा आदि देख ऐसा लगता है कि समाज का धन केवल जबरजस्ती लोगो के भूख मिटाने में अपव्यय हो रहे है।जबकि स्वाभिमानी समाज व श्रद्धालू दर्शनार्थी ऐसा कोई अपेछा भी नही रखते कि कोई हमे नि: शुल्क भोजन करावे!  
      ऐसे सेवादारों समितियों और संस्थाओं से अपील है कि आगामी वर्ष या इसी वर्ष से ही मेला परिसर मे होने वाले विभिन्न आयोजन में विविधता लाए ।कही सत्संग प्रवचन हो कही पर सतनाम सहज योग साधना शिविर लगे।समाधिस्थ संतों के इर्द गिर्द आध्यात्मिक आयोजन करे। अनेक साहित्यिक संस्थाए काव्यपाठ कथावाचन व संगीतमय प्रवचन  करे । प्रगतिशील छत्तीसगढ सतनामी समाज विगत कुछ वर्षों ऐसा आयोजन करने की स्थिति में  काफी संधर्ष के बाद आज सछम हो पाई है।और हमारे सैकड़ो लेखक कवि कलाकारों को  उनकी अपनी प्रतिभा प्रदर्शन हेतु मंच उपलब्ध करा सके है। इसी तरह कुछ वर्षो से  चिकित्सीय शिविर  हमारे चिकित्सक वैद्य गण करने लगे है ।
सामान्य ग्यान प्रतियोगी परीछा से संदर्भित  पुस्तक विक्रय केन्द्र और आडियो विडियो कैसेट सीडी पेन ड्राइव चिप्स आदि का स्टाल लगाए ।और उन्हे विशेष छूट प्रदान कर खरीदने प्रेरित करे। या कुछ सतनाम  साहित्य आरती पंथी संग्रह या अमृतवाणी उपदेश युक्त  कलेण्डर आदि नि: शुल्क उपलब्ध करावे ताकि सतनाम धर्म संस्कृति का उत्तरोतर संवर्धन और  विकास हो।इस तरह के रचनात्मक कार्य करने वाली समिति को मुक्त हस्त से अनुदान व सहयोग दे ।न कि दाल भात सब्जियां खिला कर या समिति के सदस्य और घर -परिवार   खा पीकर एकत्र किए संसाधन को नष्ट  करें। 
          सब तरह के आयोजन युक्तियुक्त हो और उनका संचालन व्यवस्थित हो ताकि सब तरह से सबकों लाभ मिल सकें।

"भोजन भट्ट के जगह ग्यान भट्ट होना बेहद जरुरी हैं।"
            डा. अनिल भट्ट 
      

                ।। सतनाम ।।

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के लिए कब लामबंद होन्गे? गिरौदपुरी मेला में कोई सतनामी नि:शुल्क  खाने और महज धुमने फिरने नही जाता। अपितु गुरुबाबा के व्यक्तित्व कृत्तित्व व उनके संग साथ बिताए समय स्थल पर जाकर उनके सदृश्य होने और प्रेरणा लेने जाते है। वहां उनकी विचारों को ग्यान और दर्शन को जानने समझने और प्रकृति के सानिध्य मे रहकर कुछ अलौकिक भाव आत्मबल जैसे चीजे अर्जित करने जाते है।तो प्रबंधको को चाहिए कि ऐसी चीजों को उपलब्ध करावे।

न कि लाखो चंदा लेकर एकत्र कर केवल दाल भात खिला कर अपनी कर्तव्य का इतिश्री कर ले? 

     श्रद्घालुओं को भी चाहिए कि वे भी अपनी दोनो तरह की भूख का शमन कर अपना नैतिक कल्याण कर सौभाग्यवान बने।

    आमतौर पर  देखा जाय तो तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम मेला परिसर सहित आसपास के कस्बो  चौक -चौराहों में अनेक सामाजिक संस्था व्यक्ति खरोरा पलारी संडी वटगन बलौदाबाजार लवन कसडोल सहित चारो तरफ के पहुंच मार्गो मे पड़ने वाले  अनेक जगहों पर विगत अनेक वर्षों से संचालित है।यह स्वस्फूर्त है जो सतनामियों की मूल प्रवृत्ति कि भूखे को भोजन प्यासे को पानी देने को अभिव्यक्त करते है। विगत कुछ वर्षों से छ.ग. शासन द्वारा मेले में नि:शुल्क दाल -भात सेंटर संचालित हो रहे है। बावजूद लाखों परिवार आदतन स्वपाकी होने के कारण जोंक नदी और वनप्रांतर मे पारिवारिक सहभोज एंव सात्विक आहार- विहार करते तीन दिनों तक साधनात्मक जीवन व्यतित करते आ रहें हैं।

     परन्तु यह विडंबना है कि विशाल काय समुदाय के मानसिक छुधा के शमन और उन्हें सही मार्गदर्शन हेतु कोई व्यवस्थित आयोजन शिविर आदि की कोई प्रभावी आयोजन व उनके लिए कोई व्यवस्था नही हो पाते।और न ही छत्तीसगढ के संस्कृति विभाग द्वारा सतनाम सञस्कृति के संवर्धन और प्रदर्शन आदि करने के लिए कोई सार्थक पहल नही करते न ऐसा सोच या विचार कही हो पाते।

  दाल -भात सेंटर और अनगिनत नि: शुल्क भोग भंडारा आदि देख ऐसा लगता है कि समाज का धन केवल जबरजस्ती लोगो के भूख मिटाने में अपव्यय हो रहे है।जबकि स्वाभिमानी समाज व श्रद्धालू दर्शनार्थी ऐसा कोई अपेछा भी नही रखते कि कोई हमे नि: शुल्क भोजन करावे!  

      ऐसे सेवादारों समितियों और संस्थाओं से अपील है कि आगामी वर्ष या इसी वर्ष से ही मेला परिसर मे होने वाले विभिन्न आयोजन में विविधता लाए ।कही सत्संग प्रवचन हो कही पर सतनाम सहज योग साधना शिविर लगे।समाधिस्थ संतों के इर्द गिर्द आध्यात्मिक आयोजन करे। अनेक साहित्यिक संस्थाए काव्यपाठ कथावाचन व संगीतमय प्रवचन  करे । प्रगतिशील छत्तीसगढ सतनामी समाज विगत कुछ वर्षों ऐसा आयोजन करने की स्थिति में  काफी संधर्ष के बाद आज सछम हो पाई है।और हमारे सैकड़ो लेखक कवि कलाकारों को  उनकी अपनी प्रतिभा प्रदर्शन हेतु मंच उपलब्ध करा सके है। इसी तरह कुछ वर्षो से  चिकित्सीय शिविर  हमारे चिकित्सक वैद्य गण करने लगे है ।

सामान्य ग्यान प्रतियोगी परीछा से संदर्भित  पुस्तक विक्रय केन्द्र और आडियो विडियो कैसेट सीडी पेन ड्राइव चिप्स आदि का स्टाल लगाए ।और उन्हे विशेष छूट प्रदान कर खरीदने प्रेरित करे। या कुछ सतनाम  साहित्य आरती पंथी संग्रह या अमृतवाणी उपदेश युक्त  कलेण्डर आदि नि: शुल्क उपलब्ध करावे ताकि सतनाम धर्म संस्कृति का उत्तरोतर संवर्धन और  विकास हो।इस तरह के रचनात्मक कार्य करने वाली समिति को मुक्त हस्त से अनुदान व सहयोग दे ।न कि दाल भात सब्जियां खिला कर या समिति के सदस्य और घर -परिवार   खा पीकर एकत्र किए संसाधन को नष्ट  करें। 

          सब तरह के आयोजन युक्तियुक्त हो और उनका संचालन व्यवस्थित हो ताकि सब तरह से सबकों लाभ मिल सकें।

"भोजन भट्ट के जगह ग्यान भट्ट होना बेहद जरुरी हैं।"

            डा. अनिल भट्ट 

      

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Sunday, March 10, 2019

भोजन भंडारा ही नही ग्यान भंडारा भी आयोजित हो

।।भोजन भंडारा ही नही ग्यान भंडारा भी हो।।

तपोभूमि गिरौदपुरी धाम मेला परिसर सहित आसपास के कस्बो  चौक -चौराहों में अनेक सामाजिक संस्था व्यक्ति खरोरा पलारी संडी वटगन बलौदाबाजार लवन कसडोल सहित अनेक जगहों पर विगत अनेक वर्षों से संचालित है।यह स्वस्फूर्त है जो सतनामियों की मूल प्रवृत्ति कि भूखे को भोजन प्यासे को पानी देने को अभिव्यक्त करते है। विगत कुछ वर्षों से छ.ग. शासन द्वारा मेले में नि:शुल्क दाल -भात सेंटर संचालित हो रहे है। बावजूद लाखों परिवार आदतन स्वपाकी होने के कारण जोंक नदी और वनप्रांतर मे पारिवारिक सहभोज एंव सात्विक आहार- विहार करते तीन दिनों तक साधनात्मक जीवन व्यतित करते आ रहें हैं।
     परन्तु यह विडंबना है कि विशाल काय समुदाय के मानसिक छुधा के शमन और उन्हें सही मार्गदर्शन हेतु कोई व्यवस्थित आयोजन शिविर आदि की कोई प्रभावी आयोजन व उनके लिए कोई व्यवस्था नही हो पाते।और न ही छत्तीसगढ के संस्कृति विभाग द्वारा सतनाम सञस्कृति के संवर्धन और प्रदर्शन आदि करने के लिए कोई सार्थक पहल नही करते न ऐसा सोच या विचार कही हो पाते।
  दाल -भात सेंटर और अनगिनत नि: शुल्क भोग भंडारा आदि देख ऐसा लगता है कि समाज का धन केवल जबरजस्ती लोगो के भूख मिटाने में अपव्यय हो रहे है।जबकि स्वाभिमानी समाज व श्रद्धालू दर्शनार्थी ऐसा कोई अपेछा भी नही रखते कि कोई हमे नि: शुल्क भोजन करावे! 
      ऐसे सेवादारों समितियों और संस्थाओं से अपील है कि आगामी वर्ष या इसी वर्ष से ही मेला परिसर मे होने वाले विभिन्न आयोजन में विविधता लाए ।कही सत्संग प्रवचन हो कही पर सतनाम सहज योग साधना शिविर लगे।समाधिस्थ संतों के इर्द गिर्द आध्यात्मिक आयोजन करे। अनेक साहित्यिक संस्थाए काव्यपाठ कथावाचन व संगीतमय प्रवचन  करे । प्रगतिशील छत्तीसगढ सतनामी समाज विगत कुछ वर्षों ऐसा आयोजन करने की स्थिति में  काफी संधर्ष के बाद आज सछम हो पाई है।और हमारे सैकड़ो लेखक कवि कलाकारों को  उनकी अपनी प्रतिभा प्रदर्शन हेतु मंच उपलब्ध करा सके है। इसी तरह कुछ वर्षो से  चिकित्सीय शिविर  हमारे चिकित्सक वैद्य गण करने लगे है ।
सामान्य ग्यान प्रतियोगी परीछा से संदर्भित  पुस्तक विक्रय केन्द्र और आडियो विडियो कैसेट सीडी पेन ड्राइव चिप्स आदि का स्टाल लगाए ।और उन्हे विशेष छूट प्रदान कर खरीदने प्रेरित करे। या कुछ सतनाम  साहित्य आरती पंथी संग्रह या अमृतवाणी उपदेश युक्त  कलेण्डर आदि नि: शुल्क उपलब्ध करावे ताकि सतनाम धर्म संस्कृति का उत्तरोतर संवर्धन और  विकास हो।इस तरह के रचनात्मक कार्य करने वाली समिति को मुक्त हस्त से अनुदान व सहयोग दे ।न कि दाल भात सब्जियां खिला कर या समिति के सदस्य और घर -परिवार   खा पीकर एकत्र किए संसाधन को नष्ट  करें।
          सब तरह के आयोजन युक्तियुक्त हो और उनका संचालन व्यवस्थित हो ताकि सब तरह से सबकों लाभ मिल सकें।

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