Friday, February 22, 2019

नागफन और सतनाम संस्कृति

"पंचमुखी / सप्तमुखी सर्पफेन छत्र और उनका
                महत्व "

गुरु घासीदास के ससुराल सिरपुर ‌में  सर्पछत्रपति बुद्ध प्रतिमाएं है।
  जनश्रुति है कि महंत अजोरीदास कबरा महंत की पुत्री सफुरा मंदिर की पुजारन और सहज योग मे निष्णान्त सद्गुणी रुपसी थी। उनका वरण गुरु ने किया। और दोनो ने मिलकर युगान्तरकारी  सतनाम धम्म प्रवर्तन किया।
गुरुघासीदास ने बुद्ध की तरह कठोर तपस्या कर आत्मग्यान अर्जित किए ।तो जनमानस उन्हे बुद्ध की तरह महा सिद्ध महायोगी कह गुरु पद आसिन कर श्रद्धावनत  हो गये। सफूरा भी सफूरामाता के नाम से विख्यात  पुज्यनीय हुई।
       यहां भंडारपुरी गुरुद्वारा १८३०  में स्थापित सद्गुरु आसन का चित्र और सिरपुर की सुप्रसिद्ध " सर्पफेन सिरो छत्रधारी बुद्ध " का ध्यान मग्न प्रतिमा अवलोकनीय है।
   ऐसा प्रतीत होता है कि बुद्ध प्रतिमा के बाद भारतीय समाज में उनके अनुकरण करते सारे देवी देवताओ के मूर्तियां बनने लगे व आकंठ मूर्तिपूजा  में  रमने लगे  । इनके साथ -साथ ढोंग ,पाखंड, पूजा कर्मकांड आदि होने लगे ।भव्य और बड़ी बड़ी मंदिर काम कलाओ आदि वैभव  व विलासिता पूर्वक बनने लगे और जनमानस उसी खोने लगे तब कही जाकर पुनश्च इन जगहों से जनमन को शोषण आदि से बचाने पुनश्च  प्रबुद्ध महापुरष के रुप में गुरुघासीदास का अवतरण हुआ। वे जनमानस को मंदिर मूर्ति और  पंडे पुरोहित के मकड़जाल से मुक्त कराकर सहज योग और परस्पर सद्भाव व सात्विक आहार विहार व्यवहार से जीवन में सुख शांति समृद्धि पाने का सहज मार्ग प्रशस्त किए जो सतनाम दर्शन व पंथ या धर्म के रुप मे विख्यात हुए।

दोनो जगहों की दूरी महज १० कि मी है।और इस परिछेत्र में प्राचीन काल से जनजीवन आबाद है।
प्रग्यावान ग्यानवान और महायोग साधक सिद्ध महापुरुष जिसे पालि मे बुद्ध और जन भासा में सिद्ध कहे गये ।जिन्हे सहस्त्रचक्र कमल व अष्टचक्र सिद्ध कह उनके  सर के ऊपर कुंडली जागृत के प्रतीकार्थ सर्प फेन युक्त कर संस्मृत किए गये। इसलिए बुद्ध महावीर और अन्य सिद्ध साधक को प्राचीन शिल्पकार नागफन से युक्त दिखाए।कुछ विचारक व इतिहास विद इसे नागवंशी धोषित करते रहे है।
   
 

   बाहरहाल   इन दोनो की  और इन सब तथ्यों के संबंध  विचारणीय व अध्ययनीय है।
    इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध महासम्मेलन  १९९३ सिरपुर में आर्य नागार्जुन सुरई - ससाई ने गुरुवंशज दयावन्त साहेब  अनेक बौद्ध भिछुक सतनामी संत महंत व सरदार दीलिप सिंग जी सिख पंचायत के अध्यछ  और सैकड़ो प्रबुद्ध विचारको /हजारो आसपास के सहजयानी सतनामियों की गरिमामय उपस्थिति में गुरुघासीदास को "बोधिसत्व गुरुघासीदास " के नाम से संबोधित करते उन्हे बोधिसत्व कह जन कल्याणकारक " बुद्धमहापुरुष ' धोषित किए।
      सभागार धन्य धन्य कह जय सतनाम जय बुद्ध की हर्ष ध्वनि से गुंजायमान हो उठे।
    सौभाग्यवश उस महासम्मेलन में हम सचिव के रुप में उपस्थित थे।अध्यछ रामलाल बौद्ध नागराज और उपाध्यछ फत्तेलाल बौद्ध  अन्य पदाधिकारियों मे डा उपराम बधेल और चिखली जुनवानी  देवगांव अमसेना तेलासी के लोग रहे। अपनी जड़ अ

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