Sunday, February 10, 2019

बौद्ध नगरी सिरपुर

अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन सिरपुर हेतु प्रयाण  ....

बौद्ध नगरी सिरपुर की ख्याति अन्तर्राष्ट्रीय तो था ही अब अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटक भी बौद्ध स्मारकों के अवलोकन और समकालीन समय की अध्ययन के निमित्त एकत्र होने लगे है।  
  दुर्गा महाविद्यालय रायपुर मे अध्ययन के दर्म्यान १९८८-९२ तक छात्रसंध मे मेरिट बेस पर सम्मलित होते रहे।फलस्वरुप समाजिक व धार्मिक कार्यक्रम में रुचि‌ जागृत   हुए।पिताश्री के निर्देशन मे  सतनाम युवा जागृति मंच का अध्यछ का दायित्व सम्हाले सिरपुर मे बुद्ध पूर्णिमा का आयोजन करते मेला समिति के सचिव रहे।
   इस तरह बौद्ध संस्कृति व आदरणीय भंते भिछु संध का  सानिध्य मिलते रहा। तब आयोजको मे बेड़ेकर साहब अशोक फुटाने यशवंत ठाकरे रामलाल बौद्ध फत्तेलाल वासनिक जी के साथ मिलकर भंते आर्य नागार्जुन  सुराई ससाई जपान और भंते हिमोन होरीसावा जैसों का आशीष मिलते रहा।
     आज २०-२२ वर्ष अन्तराल बाद बौद्ध महासभा के अध्यछ जागृत साहब के सानिध्य मे अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव सिरपुर जाना हुआ। (वैसे हर एक दो वर्ष मे जाना होता ही रहा है  पर कार्यक्रम मे शामिल होने आज इतने वर्षो बाद  जाने का संयोग हुआ।)  वहां पहले से अधिक भव्य और महाराष्ट्र - छग सहित अनेक प्रांत व देश के बौद्ध धर्मावलंबियों और छत्तीसगढ के  सतनामी समाज साहू वर्मा एंव अन्य पिछडा वर्ग के लोगों के साथ सर्व समाज की सहभागिता देख मन बेहद प्रफुल्लित हुआ कि हमलोगों द्वारा प्रज्जवलित आयोजन रुपी दीपक का प्रकाश आज वैश्विक स्तर पर जा पहुंचा है।

     बाहरहाल बुद्ध कबीर रैदास नानक गुरुघासी जैसे बुद्ध पुरुष और उनके अनुयाई को इन संत गुरु महात्माओ के द्वारा व्यवहृत सच्चनाम सचनाम सतनाम सतिनाम सत्यनाम सत्तनाम शतनाम को समन्वय करते विराट सतनाम धर्म के रुप मे प्रतिष्ठापित कराने की महति आवश्यकता है। ताकि विषमताओं और भेदभाव वाली संस्कृति के समनान्तर समानता पर सतनाम‌ संस्कृति  प्रचलन जनमानस में कर सके।

     बचपन में जिन पुरावशेष वाली टीलाओं में चढते खेलते बिताए आज उन टीलों में भव्यतम बौद्ध स्मारके देख हतप्रभ होते रहे और सहयात्रियों सहित  आगतुकों को अपना संस्मरण सुनाते तो वे लोग हतप्रभ सुनते रहे।
          वैसे हमारे पाठको बताते हमें सदैव गर्वानुभूति होते रहे है कि सिरपुर जुनवानी हमारे व पुरखो का गांव है।भट्टप्रहरी गोत्र पाली से आए है। ऐसा लगता है कि हमारे वंशज बौद्ध नरेश व आचार्य आदि भट्ट जनों  के प्रहरी रहे हो।या स्वयं भट्टप्रहरी  सामंत हो।‌जो बौद्ध धर्मावलंबी।जो कि कलान्तर में १८वी सदी मे  गुरुघासीदास के सतनाम आन्दोलन से दीछित होकर सतनामी बन गये ।
           बाहरहाल आप सभी सुधि पाठको को इस महासम्मेलन की  झलक व महत्ता बताते हर्षित है। एक दिन यह पुरा स्थल व आयोजन समानता वादी   सभी वर्गों को समन्वय करने में सफलता अर्जित करेगी ऐसी उम्मीद के साथ आयोजको को बधाई व मंगलकामनाएं

       ।।सच्चनाम - सतनाम ।।
          ।।सत श्री सतनाम।।
      डा. अनिल भतपहरी

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