छत्तीसगढी साहित्य समिति के प्रांतिय सम्मेलन म पढे़ आलेख के सार
"छत्तीसगढ़ी साहित्य दसा अउ दिसा "
-डा.अनिल भतपहरी
छत्तीसगढ़ी के लिखित साहित्य के दसा हर तो बड़ सुघ्घर हवे।फेर ये समे म मौखिक या मुअखरा साहित्य के दसा जरुर बिगड़त हवे।
तंइहा समे मं त आनी- बानी कथा कहिनी गीत गोबिन्द भजन - कीर्तन होय। अइसे कौनो घर नइ रहिस होही जिहां बबा ढोकरी दाई या ममा दाई मन सो कथा कहिनी सुनके लरिका मन के नींद परत रहीस होही।
बारो महिना तिहार बार मं संझाकन गुड़ी त कोन्हो बर पीपर या लीम अमली के तरी छांह मं ब इठ कत्कोन कथा -कहिनी , जन उला भजन चलय ।अउ यही हर मनोरंजन के परमुख साधन रहय।
तिही पाय के हमर भाखा मं किसिम किसिम के मुंहावरा लोकोत्ति अउ संत महात्मा मन के बानी मिंझरे अंतस ल उजास करय । भखा बोली बने राहय त घर गली गांव मं सुन्ता सम्मत रहय।
सियान अउ बैठांगुर मन काकर घर का चलत हे काकर मन मं का हवे । तेकर आरो पता करत रहय।अउ जिकर मन मं इरखा दोष रहे या पले उन ल बरजय । ते पाय गांव सरग सही राहय।आज जाके पता करो सरग कहां बिलागे?
गांवेच म उपजन बाढे -पढे लिखे नौकरी पाय शहर -पहर घरे मनखे आज गांव मं रहे नी सके। उहां के महौल अब पहिली सरीख न इ रहिगय। कोनो तिहार बार मं जाके देखव त मनचलहा बाल संगी मन गांव पहुचौनी के टेक्स मांगथे ... पहिली पिला खवा तब हमर सो गोठियाव ।ऐसे टाइप के अलकरहा महौल बन गय हे।
चारी चुगरी -गारी गल्ला -इरखा दोष लड़ई -झगरा से घर परिवार गांव गांव हलकान हे । हर दस बीस गांव के मंझोत म चौकी थाना खुगे बुलाक तहसील म कोर्ट कचहरी बनगे ये सब जगा पुलिस मुंसी वकील बाबू मन के तिकड़म चलत हे ।सबझन ल ऐसी पेशी म फसा के अपन रोजी रोजगार चलावत हे।अउ मनखे मंद जुआ के चाहली फंसे लड ई झगरा कर करम ठठावत हवे।
गांव मन म पुलिस पटवारी अउ वकील के बड़ महातम बाढ़ गे अउ मास्टर बैद ग्राम सेवक सियान अउ संत मन के पुछन्ता न इ रहिगे।
अइसे मे जनता के जैसे प्रवृत्ति रही ओकर भासा बोली उही रकम के विकसित होही।
छत्तीसगढ़ी जनता अब इही तरीका के ठोली बोली द्वि अर्थी अउ वाले सबद के चलागन बाढगे ।मन अउ आत्मा जुड़ावन बोली अब सुने बर कान तरसथे।
अभी गुरुपरब के समे क ई जगह साहित्यिक आयोजन होईस ।एक जगा नेवताए के अवसर मिलिस .. उहा पहिचान के मिलय त सबो झन पुछय क इसे डा साहब का हालचाल हे? अउ प्रोफेसर साहेब बड मोटागे हस? बड़ भोगा गे हस .? .देख ऊ न इ देस ? का खाथव जी ? आजकल एफ बी सोसल मीडिया म बड आथव ? मै उकर प्रस्न सुन अकबका जंव?
एक जुन्नटहा गीतकार अउ गायक मिलिस ... पैलगी करेंव पुछिस कब आय अनिल बाबु ? बाल बच्चा सब बने हे? कौनो केसेट किताब बनवाय कि नही ? मन परसन्न हो जाथे ।
कहे के मतलब अब अइसन आत्मीयता नदावत हे व्यक्तित्व विकास अउ सुख सम्मत के गोठ दुरिहावत हे। ये म बड़ गुनान करे जाय कि अइसे गत काबर होय लगिस।
चारो मुड़ा भौतिक संसाधन के उपलब्धता अउ उन पाय सेती बौरे सेती गलाकाट प्रतिस्पर्धा हर हर मनखे ल प्रतिस्पर्धी बना दय हे।सहर के कालोनी म जोन कृत्रिम सहयोग अउ आत्मीयता के वातावरण देखे बर मिलथे ओ पल भर के होथे।सब हाय हलो तक ही सीमित हे। अउ हमन ओही म मोकाय हन। थोरिक आधु बढे म पीठ पाछु आलोचना व प्रतिस्पर्धा मं लगे मनसे म सक सुबहा के सिवा कछु न इये।
खैर वाचिक या मौखिक परंपरा मं जोन ममहावत शबद अउ भासा रहिस ओकर भले प्रचलन अब रदियावत जात हे काबर मनसे बस्सावत मंद पीके अत्तरमुहां कहरत बोली क इसे उच्चार सकही? एकर बेवस्था हमर सरकार अलगे राज बने से जोरदरहा कर दे हवे।हर चुन ई मं लोगन मं चुलुक लगा दिए जाथे ।तहां ले उन मन फाहर पुतर बोले के लाइसेंस पा जथे।पिए खाए हे कहिके अब तो माइलोगन मन तको सुने के बिबस अउ अभियस्त हो गे हवे।
लिखित रुप म छत्तीसगढ़ी ह ब्रिटिश जमाना ले चले आत हे।त कोनो मन कथे कि दंतेसरी मंदिर के सिलालेख जोन १३-१४ सदी के आय ओमा छत्तीसगढी हे। त ये हमर बड़ गौरव के बात हवे।
महात्मा कबीर के सिस्य धरमदास के पद म छत्तीसगढी देखे बर मिलथे तिहि पाय के उन ल आदि कवि माने जात हे ।फेर ए सब लकर धकर के स्थापना आय। व इसे जबे त पद्मावत म तको छत्तीसगढी के ठेठ सब्द हवे जोन आजकल प्रचलन ले नंदावत हे ज इसे ओरवाती छेना दई सुआ इत्यादि ।त का जायसी जी ल छत्तीसगढी के आदिकवि माने जाय?
घरमदास जी मातृभाषा बघेलखंडी आय जोन ह पेन्ड्रारोड बेलगहना यहां तक रतनपुर के आत ल फ इले हवय ।तेन पाय के हमला उकर पद शब्द मन छत्तीसगढी लगथे।अउ उन आदि कवि कहे के मन करथे।उन मन बुढत काल इहा आइस अउ कुछेक साल बिता के चलदिन ।ओकर कोनो पद छत्तीसगढी म निये।
बाहरहाल छत्तीसगढी मं निर्गुण बानी के बिजहा जरुर बो दे गिस आधु चलके कबीर पंथ अउ सतनाम पंथ के जोन पंथी गीत भजन चौका आरती बनिन उन ल छत्तीसगढी आरंभिक साहित्यिक अउ शिष्ट सरुप माने जा सकते। गुरुघासीदास अउ गुरु अम्मरदास के उपदेश दृष्टान्त बोधकथा पंथी भजन जेन म एक विशिष्ट दरसन अउ जीवन पद्धति के लेखा जोखा हवे।येन भी हस्तलिखित अउ मुअखरा रहीस । शिछा के द्वार तो १८६० के बाद इहा खुलिस अउ लोगन पढे लिखे जानिस। (कुछ पर प्रातिन्क साछर मन राजा रजवाडा मन लिखे पढे बर लानिस उही मन आरंभिक जानकारी इहा के लिखिन ।जेमा रेवाराम खाडेराव दलपत राव ठाकुर जगमोहन आदि हवय फेर एमन छत्तीसगढी म न इ लिखिन। मराठा अउ अंगरेज मन मालगुजारी अउ लगान वसुली बर बाहिर साछर लोगन ल बसाइस इही मन गांव म रहि के कुछ रचनात्मक प्रवृत्ति वाले मन छत्तीसगढी ल लेखन लानिस ) छापाखाना आय से १९०० के आसपास छपे लगिस।
जेन म ब इबिल के कथा छत्तीसगढी अनुवाद ये गद्य सरुप म रहिस।
छत्तीसगढी बियाकरण म काव्योपधाय हीरालाल चंद्राहू त महाकाव्य अउ साहित्य लिखे म सतनाम दास पं सुखीदास
सुन्दरलाल सर्मा मुकटधर पांडे लोचन पांडे मनोहरदास नृसिह हरिठाकुर कुंज बिहारी चौबे नरेन्द्र देव वर्मा पवन दीवान कपिलनाथ कश्यप गिरिवरदास वैष्णव श्यामलाल चतुर्वेदी केयुर भूषण , सखाराम बधेल सुकालदास भतपहरी ज इसे मन धर्म संस्कृति के संगे संग मानवीय प्रवृत्ति के बड़ सुघ्घर चितरन करिन।अउ छत्तीसगढी ल संवारिन साहित्यिक सरुप म ढालिन ।
तेकर पाछु साञस्कृतिक आंदोलन म चंदैनी गोदा सोनहा बिहान सुकुआ के अंजोर अंजोरी रात जैसे सैकडो संस्थाए उनके गीत कार गायक व संगीतकार ६०-२००० तक ४० साल तक छत्तीसगढी को गीतात्मक स्वरुप में ढाल कर माधुर्य किए उनमे लछ्मण मस्तुरिया रामेश्वर वैष्णव सुशील यदु जीवन यदु राही पवनदीवान मुकुन्द कौशल मंगत रविन्द्र रमेश विश्वहार पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे विनय पाठक शंकुनतला तरार निरुपमा शर्मा डा. सत्यभामा आडिल सुधा वर्मा डा जे आर सोनी देवधर महंत अरुण निगम अनिल भतपहरी जैसे लोगो ने अविस्मरणीय योगदान दिए।और निरन्तर सिरजन म रत हवे।
अलग छत्तीसगढ के बाद तो हर तरह के लेखन एमा बड़ तेज गति ले सुरु होइस ।अउ छत्तीसगढी अकादमिक रुप ले पढ़े पढाय के बिसय बनिस । स्कूल कालेज के पाठ्यक्रम आइस ।अउ पीएससी / अन्य राज स्तरीय प्रतियोगी परीछा म प्रश्न पत्र रखे गिस ते पाय के इनमे वृहत्तर लेखन होय लगे हे। ये सेहरौनिक बात आय। छत्तीसगढी राजभासा आयोग के गठन होय ले साहित्यकार मन ल अनुदान मिले से साधक के रचना छपे लगिस ।बिजहा अउ माई कोठी जैसे योजना आय ले छत्तीसगढी साहित्य पोठाय लगिस।
नाटक अउ सनीमा तको एक उद्योग कस लमियात हवे अउ कत्कोन कलाकार मन ल अपन परतिभा देखाय के अवसर मिले लगिस।
एखर बाद भी छत्तीसगढी ह सरकारी कामकाज अउ आफिस म पढे लिखे लोगन म बने जात के बौरात न इये ये सञसो के बात आय। आजो भी इहा के लोगन एखर सार्वजनिक उपयोग बर कनउर मरथे ।या सबके आधु म अपढ या गांव के समझी कहिके ठोठकई / झिझक ई चलत हे । इहीच हर बड़ अलकरहा अचरुज हवय ।हम सबन ल ये भाव ल बदलेच ल लगही।तभेच हम भासा के उपनिवेश अउ बौद्धिक आतंकवाद ल बाच के सम्मुन्नत विकास डहन रेन्गे ल परही।
हमन ल आस हवे असनेच आयोजन ले अउ जुरियाय लिखंता पढंता गुनवंता मन के उदिम ले हमर भासा आठवी अनुसूची म संधर के अपन महातम के झञडा लहराही। छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढी के मान सब डहन बगरही।
जय छत्तीसगढ़ जय छत्तीसगढ़ी
जय हिन्द
डा. अनिल भतपहरी
ऊंजियार -सदन अमलीडीह
रायपुर छग
९६१७७७७५१४
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