Friday, February 22, 2019

सर्पफेन छत्र और सतनाम संस्कृति

"पंचमुखी / सप्तमुखी सर्पफेन छत्र और उनका
                महत्व "

गुरु घासीदास के ससुराल सिरपुर ‌में  सर्पछत्रपति बुद्ध प्रतिमाएं है।
  जनश्रुति है कि महंत अजोरीदास कबरा महंत की पुत्री सफुरा मंदिर की पुजारन और सहज योग मे निष्णान्त सद्गुणी रुपसी थी। उनका वरण गुरु ने किया। और दोनो ने मिलकर युगान्तरकारी  सतनाम धम्म प्रवर्तन किया।
गुरुघासीदास ने बुद्ध की तरह कठोर तपस्या कर आत्मग्यान अर्जित किए ।तो जनमानस उन्हे बुद्ध की तरह महा सिद्ध महायोगी कह गुरु पद आसिन कर श्रद्धावनत  हो गये। सफूरा भी सफूरामाता के नाम से विख्यात  पुज्यनीय हुई।
       यहां भंडारपुरी गुरुद्वारा १८३०  में स्थापित सद्गुरु आसन का चित्र और सिरपुर की सुप्रसिद्ध " सर्पफेन सिरो छत्रधारी बुद्ध " का ध्यान मग्न प्रतिमा अवलोकनीय है।
   ऐसा प्रतीत होता है कि बुद्ध प्रतिमा के बाद भारतीय समाज में उनके अनुकरण करते सारे देवी देवताओ के मूर्तियां बनने लगे व आकंठ मूर्तिपूजा  में  रमने लगे  । इनके साथ -साथ ढोंग ,पाखंड, पूजा कर्मकांड आदि होने लगे ।भव्य और बड़ी बड़ी मंदिर काम कलाओ आदि वैभव  व विलासिता पूर्वक बनने लगे और जनमानस उसी खोने लगे तब कही जाकर पुनश्च इन जगहों से जनमन को शोषण आदि से बचाने पुनश्च  प्रबुद्ध महापुरष के रुप में गुरुघासीदास का अवतरण हुआ। वे जनमानस को मंदिर मूर्ति और  पंडे पुरोहित के मकड़जाल से मुक्त कराकर सहज योग और परस्पर सद्भाव व सात्विक आहार विहार व्यवहार से जीवन में सुख शांति समृद्धि पाने का सहज मार्ग प्रशस्त किए जो सतनाम दर्शन व पंथ या धर्म के रुप मे विख्यात हुए।

दोनो जगहों की दूरी महज १० कि मी है।और इस परिछेत्र में प्राचीन काल से जनजीवन आबाद है।
प्रग्यावान ग्यानवान और महायोग साधक सिद्ध महापुरुष जिसे पालि मे बुद्ध और जन भासा में सिद्ध कहे गये ।जिन्हे सहस्त्रचक्र कमल व अष्टचक्र सिद्ध कह उनके  सर के ऊपर कुंडली जागृत के प्रतीकार्थ सर्प फेन युक्त कर संस्मृत किए गये। इसलिए बुद्ध महावीर और अन्य सिद्ध साधक को प्राचीन शिल्पकार नागफन से युक्त दिखाए।कुछ विचारक व इतिहास विद इसे नागवंशी धोषित करते रहे है।
   
 

   बाहरहाल   इन दोनो की  और इन सब तथ्यों के संबंध  विचारणीय व अध्ययनीय है।
    इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध महासम्मेलन  १९९३ सिरपुर में आर्य नागार्जुन सुरई - ससाई ने गुरुवंशज दयावन्त साहेब  अनेक बौद्ध भिछुक सतनामी संत महंत व सरदार दीलिप सिंग जी सिख पंचायत के अध्यछ  और सैकड़ो प्रबुद्ध विचारको /हजारो आसपास के सहजयानी सतनामियों की गरिमामय उपस्थिति में गुरुघासीदास को "बोधिसत्व गुरुघासीदास " के नाम से संबोधित करते उन्हे बोधिसत्व कह जन कल्याणकारक " बुद्धमहापुरुष ' धोषित किए।
      सभागार धन्य धन्य कह जय सतनाम जय बुद्ध की हर्ष ध्वनि से गुंजायमान हो उठे।
    सौभाग्यवश उस महासम्मेलन में हम सचिव के रुप में उपस्थित थे।अध्यछ रामलाल बौद्ध नागराज और उपाध्यछ फत्तेलाल बौद्ध  अन्य पदाधिकारियों मे डा उपराम बधेल और चिखली जुनवानी  देवगांव अमसेना तेलासी के लोग रहे। अपनी जड़ व अस्मिता तलाशने हेतु इस तरह के आयोजन और गंभीर विचार विमर्श होते रहना चाहिए।
   क्योकि गुरुघासीदास के गिरौदपुरी निर्वासन  और  भंडारपुरी आगमन के पूर्व हम  लोगो के पूर्वज इस परिछेत्र में सुसम्पन्न व आबाद थे।बल्कि यही लोग गुरु को बसाने में अप्रतिम योगदान दिए ।उनके सतनाम जागरण  को गतिमान करने अपना सर्वस्व न्योछावर किए।‌ यह सब चीजों की जानकारिया न ई पीढ़ी के लोगो और अन्य समुदाय के लोगो को जानना समझना चाहिए।
      ।। सच्चनाम - सतनाम ।।

नागफन और सतनाम संस्कृति

"पंचमुखी / सप्तमुखी सर्पफेन छत्र और उनका
                महत्व "

गुरु घासीदास के ससुराल सिरपुर ‌में  सर्पछत्रपति बुद्ध प्रतिमाएं है।
  जनश्रुति है कि महंत अजोरीदास कबरा महंत की पुत्री सफुरा मंदिर की पुजारन और सहज योग मे निष्णान्त सद्गुणी रुपसी थी। उनका वरण गुरु ने किया। और दोनो ने मिलकर युगान्तरकारी  सतनाम धम्म प्रवर्तन किया।
गुरुघासीदास ने बुद्ध की तरह कठोर तपस्या कर आत्मग्यान अर्जित किए ।तो जनमानस उन्हे बुद्ध की तरह महा सिद्ध महायोगी कह गुरु पद आसिन कर श्रद्धावनत  हो गये। सफूरा भी सफूरामाता के नाम से विख्यात  पुज्यनीय हुई।
       यहां भंडारपुरी गुरुद्वारा १८३०  में स्थापित सद्गुरु आसन का चित्र और सिरपुर की सुप्रसिद्ध " सर्पफेन सिरो छत्रधारी बुद्ध " का ध्यान मग्न प्रतिमा अवलोकनीय है।
   ऐसा प्रतीत होता है कि बुद्ध प्रतिमा के बाद भारतीय समाज में उनके अनुकरण करते सारे देवी देवताओ के मूर्तियां बनने लगे व आकंठ मूर्तिपूजा  में  रमने लगे  । इनके साथ -साथ ढोंग ,पाखंड, पूजा कर्मकांड आदि होने लगे ।भव्य और बड़ी बड़ी मंदिर काम कलाओ आदि वैभव  व विलासिता पूर्वक बनने लगे और जनमानस उसी खोने लगे तब कही जाकर पुनश्च इन जगहों से जनमन को शोषण आदि से बचाने पुनश्च  प्रबुद्ध महापुरष के रुप में गुरुघासीदास का अवतरण हुआ। वे जनमानस को मंदिर मूर्ति और  पंडे पुरोहित के मकड़जाल से मुक्त कराकर सहज योग और परस्पर सद्भाव व सात्विक आहार विहार व्यवहार से जीवन में सुख शांति समृद्धि पाने का सहज मार्ग प्रशस्त किए जो सतनाम दर्शन व पंथ या धर्म के रुप मे विख्यात हुए।

दोनो जगहों की दूरी महज १० कि मी है।और इस परिछेत्र में प्राचीन काल से जनजीवन आबाद है।
प्रग्यावान ग्यानवान और महायोग साधक सिद्ध महापुरुष जिसे पालि मे बुद्ध और जन भासा में सिद्ध कहे गये ।जिन्हे सहस्त्रचक्र कमल व अष्टचक्र सिद्ध कह उनके  सर के ऊपर कुंडली जागृत के प्रतीकार्थ सर्प फेन युक्त कर संस्मृत किए गये। इसलिए बुद्ध महावीर और अन्य सिद्ध साधक को प्राचीन शिल्पकार नागफन से युक्त दिखाए।कुछ विचारक व इतिहास विद इसे नागवंशी धोषित करते रहे है।
   
 

   बाहरहाल   इन दोनो की  और इन सब तथ्यों के संबंध  विचारणीय व अध्ययनीय है।
    इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध महासम्मेलन  १९९३ सिरपुर में आर्य नागार्जुन सुरई - ससाई ने गुरुवंशज दयावन्त साहेब  अनेक बौद्ध भिछुक सतनामी संत महंत व सरदार दीलिप सिंग जी सिख पंचायत के अध्यछ  और सैकड़ो प्रबुद्ध विचारको /हजारो आसपास के सहजयानी सतनामियों की गरिमामय उपस्थिति में गुरुघासीदास को "बोधिसत्व गुरुघासीदास " के नाम से संबोधित करते उन्हे बोधिसत्व कह जन कल्याणकारक " बुद्धमहापुरुष ' धोषित किए।
      सभागार धन्य धन्य कह जय सतनाम जय बुद्ध की हर्ष ध्वनि से गुंजायमान हो उठे।
    सौभाग्यवश उस महासम्मेलन में हम सचिव के रुप में उपस्थित थे।अध्यछ रामलाल बौद्ध नागराज और उपाध्यछ फत्तेलाल बौद्ध  अन्य पदाधिकारियों मे डा उपराम बधेल और चिखली जुनवानी  देवगांव अमसेना तेलासी के लोग रहे। अपनी जड़ अ

Thursday, February 21, 2019

सर्पफेन शिरो छत्रपति

"पंचमुखी / सप्तमुखी सर्पफेन छत्र और उनका
                महत्व "

गुरु घासीदास के ससुराल सिरपुर ‌में  सर्पछत्रपति बुद्ध प्रतिमाएं है।
  जनश्रुति है कि महंत अजोरीदास कबरा महंत की पुत्री सफुरा मंदिर की पुजारन और सहज योग मे निष्णान्त सद्गुणी रुपसी थी। उनका वरण गुरु ने किया। और दोनो ने मिलकर युगान्तरकारी  सतनाम धम्म प्रवर्तन किया।
गुरुघासीदास ने बुद्ध की तरह कठोर तपस्या कर आत्मग्यान अर्जित किए ।तो जनमानस उन्हे बुद्ध की तरह महा सिद्ध महायोगी कह गुरु पद आसिन कर श्रद्धावनत  हो गये। सफूरा भी सफूरामाता के नाम से विख्यात  पुज्यनीय हुई।
       यहां भंडारपुरी गुरुद्वारा १८३०  में स्थापित सद्गुरु आसन का चित्र और सिरपुर की सुप्रसिद्ध " सर्पफेन सिरो छत्रधारी बुद्ध " का ध्यान मग्न प्रतिमा अवलोकनीय है। दोनो जगहों की दूरी महज १० कि मी है।और इस परिछेत्र में प्राचीन काल से जनजीवन आबाद है।
प्रग्यावान ग्यानवान और महायोग साधक सिद्ध महापुरुष जिसे पालि मे बुद्ध और जन भासा में सिद्ध कहे गये ।जिन्हे सहस्त्रचक्र कमल व अष्टचक्र सिद्ध कह उनके  सर के ऊपर कुंडली जागृत के प्रतीकार्थ सर्प फेन युक्त कर संस्मृत किए गये। इसलिए बुद्ध महावीर और अन्य सिद्ध साधक को प्राचीन शिल्पकार नागफन से युक्त दिखाए।कुछ विचारक व इतिहास विद इसे नागवंशी धोषित करते रहे है।
   
 

   बाहरहाल   इन दोनो की  और इन सब तथ्यों के संबंध  विचारणीय व अध्ययनीय है।
    इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध महासम्मेलन  १९९३ सिरपुर में आर्य नागार्जुन सुरई - ससाई ने गुरुवंशज दयावन्त साहेब  अनेक बौद्ध भिछुक सतनामी संत महंत व सरदार दीलिप सिंग जी सिख पंचायत के अध्यछ  और सैकड़ो प्रबुद्ध विचारको /हजारो आसपास के सहजयानी सतनामियों की गरिमामय उपस्थिति में गुरुघासीदास को "बोधिसत्व गुरुघासीदास " के नाम से संबोधित करते उन्हे बोधिसत्व कह जन कल्याणकारक " बुद्धमहापुरुष ' धोषित किए।
      सभागार धन्य धन्य कह जय सतनाम जय बुद्ध की हर्ष ध्वनि से गुंजायमान हो उठे।
    सौभाग्यवश उस महासम्मेलन में हम सचिव के रुप में उपस्थित थे।अध्यछ रामलाल बौद्ध नागराज और उपाध्यछ फत्तेलाल बौद्ध  अन्य पदाधिकारियों मे डा उपराम बधेल और चिखली जुनवानी  देवगांव अमसेना तेलासी के लोग रहे। अपनी जड़ अस्मिता और संस्कृति से जुड़ने और जानने सनझने प्रबुद्ध विचारवानो को इन प्राचीन जगहों और जनजीवन की संस्कृति मनोवृत्ति का भ्रमण अध्ययन चिन्तन मनन और सबमे उचित समन्वय करने की प्रयास करते रहना चाहिए।

     ।। सतनाम ।।

Tuesday, February 19, 2019

छत्तीसगढ़ी के दसा अउ दिसा

छत्तीसगढी साहित्य समिति के प्रांतिय सम्मेलन म पढे़ आलेख के सार

"छत्तीसगढ़ी साहित्य दसा अउ दिसा "
                        -डा.अनिल भतपहरी

छत्तीसगढ़ी के लिखित साहित्य के दसा हर तो बड़ सुघ्घर हवे‌।फेर ये समे म मौखिक या मुअखरा साहित्य के दसा जरुर बिगड़त हवे।
तंइहा समे मं त आनी- बानी कथा कहिनी गीत गोबिन्द भजन - कीर्तन होय। अइसे कौनो घर नइ रहिस होही जिहां बबा ढोकरी दाई या ममा दाई मन सो कथा कहिनी सुनके लरिका मन के नींद परत रहीस होही।
    बारो महिना तिहार बार मं संझाकन गुड़ी त कोन्हो बर पीपर या लीम अमली के तरी छांह मं ब इठ कत्कोन कथा -कहिनी , जन उला  भजन चलय ।अउ यही हर मनोरंजन के परमुख साधन रहय।
तिही पाय के हमर भाखा मं किसिम किसिम के मुंहावरा लोकोत्ति अउ संत महात्मा मन के बानी मिंझरे  अंतस ल उजास करय ।  भखा बोली बने राहय त घर गली गांव मं सुन्ता सम्मत रहय।
    सियान अउ बैठांगुर मन काकर घर का चलत हे काकर मन मं का हवे । तेकर आरो पता करत रहय।अउ जिकर मन मं इरखा दोष रहे या पले उन ल बरजय । ते पाय गांव सरग सही राहय।आज जाके पता करो सरग कहां बिलागे?
     गांवेच म उपजन बाढे -पढे लिखे नौकरी पाय शहर -पहर घरे  मनखे आज गांव मं रहे नी सके। उहां के महौल अब पहिली सरीख न इ रहिगय। कोनो तिहार बार मं जाके देखव त मनचलहा बाल संगी मन गांव पहुचौनी के टेक्स मांगथे ... पहिली पिला खवा तब हमर सो गोठियाव ।ऐसे टाइप के अलकरहा महौल बन गय हे।
  चारी चुगरी -गारी गल्ला -इरखा दोष लड़ई -झगरा से घर परिवार गांव गांव हलकान हे । हर  दस बीस गांव के मंझोत म चौकी थाना खुगे बुलाक तहसील  म कोर्ट कचहरी बनगे ये सब जगा पुलिस  मुंसी वकील बाबू मन के तिकड़म चलत हे ।सबझन ल ऐसी पेशी म फसा के अपन रोजी रोजगार चलावत हे।अउ मनखे मंद जुआ के चाहली  फंसे लड ई झगरा कर करम ठठावत हवे।
      गांव मन म पुलिस पटवारी  अउ वकील के बड़ महातम बाढ़ गे अउ मास्टर बैद ग्राम सेवक सियान अउ संत  मन के पुछन्ता न इ रहिगे। 
        अइसे मे जनता के जैसे प्रवृत्ति रही ओकर भासा बोली उही रकम के विकसित होही।
      छत्तीसगढ़ी जनता  अब इही तरीका के ठोली बोली द्वि अर्थी अउ वाले सबद के चलागन बाढगे ।मन अउ आत्मा जुड़ावन बोली अब सुने बर कान तरसथे।
         अभी गुरुपरब के समे क ई  जगह  साहित्यिक आयोजन होईस ।एक जगा नेवताए के अवसर मिलिस .. उहा पहिचान के मिलय त सबो झन पुछय क इसे डा साहब का हालचाल हे? अउ प्रोफेसर साहेब बड मोटागे हस?  बड़ भोगा गे हस .? .देख ऊ न इ देस ? का खाथव जी ? आजकल एफ बी सोसल मीडिया म बड आथव ?  मै उकर प्रस्न सुन अकबका जंव?
एक जुन्नटहा गीतकार अउ गायक मिलिस ... पैलगी करेंव पुछिस कब आय अनिल बाबु ? बाल बच्चा सब बने हे? कौनो केसेट किताब बनवाय कि नही ? मन परसन्न हो जाथे ।
       कहे के मतलब अब अइसन आत्मीयता नदावत हे व्यक्तित्व विकास अउ सुख सम्मत के गोठ दुरिहावत हे। ये म बड़ गुनान करे जाय कि अइसे गत काबर होय लगिस।
  चारो मुड़ा भौतिक संसाधन के उपलब्धता अउ उन पाय सेती बौरे सेती गलाकाट प्रतिस्पर्धा हर हर मनखे ल प्रतिस्पर्धी बना दय हे।सहर के कालोनी म जोन कृत्रिम सहयोग अउ आत्मीयता के वातावरण देखे बर मिलथे ओ पल भर के होथे।सब हाय हलो तक ही सीमित हे। अउ हमन ओही म मोकाय हन।  थोरिक आधु बढे म  पीठ पाछु आलोचना व प्रतिस्पर्धा मं लगे मनसे म सक सुबहा के सिवा कछु न इये।
       खैर वाचिक या मौखिक परंपरा मं जोन ममहावत शबद अउ भासा रहिस ओकर भले प्रचलन अब रदियावत जात हे काबर मनसे बस्सावत मंद पीके अत्तरमुहां कहरत बोली क इसे उच्चार सकही? एकर बेवस्था हमर सरकार अलगे राज बने से जोरदरहा कर दे हवे।हर चुन ई मं लोगन मं चुलुक लगा दिए जाथे ।तहां ले उन मन फाहर पुतर बोले के लाइसेंस पा जथे।पिए खाए हे कहिके अब तो माइलोगन मन तको सुने के बिबस अउ  अभियस्त हो गे हवे।
लिखित रुप म छत्तीसगढ़ी ह ब्रिटिश जमाना ले चले आत हे।त कोनो मन कथे कि दंतेसरी मंदिर के सिलालेख जोन १३-१४ सदी के आय ओमा छत्तीसगढी हे। त ये हमर बड़ गौरव के बात हवे।
   महात्मा कबीर के सिस्य धरमदास के पद म छत्तीसगढी देखे बर मिलथे तिहि पाय के उन ल आदि कवि माने जात हे ।फेर ए सब लकर धकर के स्थापना आय। व इसे जबे त पद्मावत म तको छत्तीसगढी के ठेठ सब्द हवे जोन आजकल प्रचलन ले नंदावत हे ज इसे ओरवाती छेना दई सुआ   इत्यादि ।त का जायसी जी ल छत्तीसगढी के  आदिकवि माने जाय?
घरमदास जी मातृभाषा बघेलखंडी आय जोन ह पेन्ड्रारोड बेलगहना यहां तक रतनपुर के आत ल फ इले हवय ।तेन पाय के हमला उकर पद  शब्द मन छत्तीसगढी लगथे।अउ उन आदि कवि कहे के मन करथे।उन मन बुढत काल इहा आइस अउ कुछेक साल बिता के चलदिन ।ओकर कोनो पद छत्तीसगढी म निये।
  बाहरहाल छत्तीसगढी मं निर्गुण बानी के बिजहा जरुर बो दे गिस आधु  चलके कबीर पंथ अउ सतनाम पंथ के  जोन पंथी  गीत भजन चौका आरती बनिन उन ल छत्तीसगढी आरंभिक साहित्यिक अउ शिष्ट सरुप माने जा सकते। गुरुघासीदास अउ गुरु अम्मरदास के उपदेश  दृष्टान्त बोधकथा पंथी भजन  जेन  म एक विशिष्ट दरसन अउ जीवन पद्धति के लेखा जोखा हवे।येन भी हस्तलिखित अउ मुअखरा  रहीस । शिछा के द्वार तो १८६० के बाद इहा खुलिस अउ लोगन पढे लिखे जानिस। (कुछ पर प्रातिन्क साछर मन राजा रजवाडा मन लिखे पढे बर लानिस उही मन आरंभिक जानकारी इहा के लिखिन ।जेमा रेवाराम खाडेराव दलपत राव ठाकुर जगमोहन आदि हवय फेर एमन छत्तीसगढी म न इ लिखिन। मराठा अउ अंगरेज  मन मालगुजारी अउ लगान वसुली बर बाहिर साछर लोगन ल बसाइस इही मन गांव म रहि के कुछ रचनात्मक प्रवृत्ति वाले मन छत्तीसगढी ल लेखन लानिस  ) छापाखाना आय से १९०० के आसपास छपे लगिस।
जेन म ब इबिल के कथा छत्तीसगढी अनुवाद ये गद्य सरुप म रहिस।
छत्तीसगढी  बियाकरण म काव्योपधाय हीरालाल चंद्राहू त महाकाव्य अउ साहित्य लिखे म सतनाम दास पं सुखीदास 
सुन्दरलाल सर्मा मुकटधर पांडे लोचन पांडे  मनोहरदास नृसिह हरिठाकुर कुंज बिहारी चौबे नरेन्द्र देव वर्मा   पवन दीवान कपिलनाथ कश्यप गिरिवरदास वैष्णव  श्यामलाल चतुर्वेदी  केयुर भूषण , सखाराम बधेल सुकालदास भतपहरी ज इसे मन धर्म संस्कृति के संगे संग मानवीय प्रवृत्ति के बड़ सुघ्घर चितरन करिन।अउ छत्तीसगढी ल संवारिन साहित्यिक सरुप म ढालिन ।
     तेकर पाछु साञस्कृतिक आंदोलन म चंदैनी गोदा सोनहा बिहान सुकुआ के अंजोर अंजोरी रात जैसे सैकडो संस्थाए उनके गीत कार गायक व संगीतकार ६०-२००० तक ४० साल तक छत्तीसगढी को गीतात्मक स्वरुप में ढाल कर माधुर्य किए उनमे लछ्मण मस्तुरिया रामेश्वर वैष्णव सुशील यदु जीवन यदु राही पवनदीवान मुकुन्द कौशल मंगत रविन्द्र रमेश विश्वहार पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे वि‌नय पाठक शंकुनतला तरार निरुपमा शर्मा डा. सत्यभामा आडिल  सुधा वर्मा डा जे आर सोनी  देवधर महंत  अरुण निगम अनिल भतपहरी जैसे लोगो ने अविस्मरणीय योगदान दिए।और निरन्तर सिरजन म रत हवे।
    अलग छत्तीसगढ के बाद तो हर तरह के लेखन एमा बड़ तेज  गति ले सुरु होइस ।अउ छत्तीसगढी अकादमिक रुप ले पढ़े पढाय के बिसय बनिस । स्कूल कालेज के पाठ्यक्रम आइस ।अउ पीएससी / अन्य  राज स्तरीय प्रतियोगी परीछा म प्रश्न पत्र रखे गिस  ते पाय के  इनमे वृहत्तर लेखन होय लगे  हे। ये सेहरौनिक बात आय। छत्तीसगढी राजभासा आयोग के गठन होय ले साहित्यकार मन ल अनुदान मिले से साधक के रचना छपे लगिस ।बिजहा अउ माई कोठी जैसे योजना आय ले छत्तीसगढी साहित्य पोठाय लगिस।
नाटक अउ सनीमा तको एक उद्योग कस लमियात हवे अउ कत्कोन कलाकार मन ल अपन परतिभा देखाय के अवसर मिले लगिस।
एखर बाद भी  छत्तीसगढी ह सरकारी कामकाज अउ आफिस म पढे लिखे लोगन म  बने जात के बौरात न इये ये सञसो के बात आय। आजो भी इहा के लोगन एखर सार्वजनिक उपयोग बर  कनउर मरथे ।या सबके आधु म अपढ या गांव के समझी कहिके ठोठकई / झिझक ई चलत हे । इहीच हर बड़ अलकरहा अचरुज  हवय ।हम सबन ल ये भाव ल बदलेच ल लगही।तभेच हम भासा के उपनिवेश अउ बौद्धिक आतंकवाद ल बाच के सम्मुन्नत विकास डहन रेन्गे ल परही।
      हमन ल आस हवे असनेच आयोजन ले अउ जुरियाय लिखंता पढंता गुनवंता मन के उदिम ले हमर भासा आठवी अनुसूची म संधर के अपन महातम के झञडा लहराही। छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढी के मान सब डहन बगरही।
जय छत्तीसगढ़ जय छत्तीसगढ़ी
       जय हिन्द
डा. अनिल भतपहरी
ऊंजियार -सदन अमलीडीह
     रायपुर छग
९६१७७७७५१४

Saturday, February 16, 2019

संधान

"सद्गति "
कुटुम्बर की
गुह्य गह्वर गुफा
सदृश्य हैं
अन्त:करण
जहां बहु रत्न
है आभरण
फिर भी
मानव कृपण
करो उद्यम
अरु संधान
धट भीतर हैं
सभी समाधान
उतरों और जानो 
गुफा की तिलस्म
न हो कोई
उनसे विस्मय
हो निर्भय
जय वरण्य
सतनाम की सिद्धी
सिद्धि से समृद्धि
समृद्धि से शांति
शांति से समाधि
मिले ऐसी
दिव्य सद्गति

    -डा. अनिल भतपहरी
(तपोभूमि गिरौदपुरी सत्धाम में सम्मलित हो रहे  सतनाम सहजयोगी संतों को सादर समर्पित )
चित्र- कुटुम्सर गुफा  बस्तर

Thursday, February 14, 2019

मंउहा

"मंउहा अउ मंउहारी"

मंउहा ल बद्दी झन देव ये बिरिछ बड़ गुणकारी।
सकेल फूल-फर सुखाथे लोगन अपन घर बारी।।
अंगाकर रोटी मं मिंझार या उसन खाथे तरकारी।
लाइ-मुर्रा संग भुंज के खाले बिटामीन भरे भारी।।
कोवा फर के तेल निकार कर ले कत्कोन निस्तारी।।
साबुन बनाले,दिया बार करय घर-दुवार उजियारी।
धुंगियाय बिन बरय चुल्हा मं कांचा येहर बड़ भारी ।।
कोन बैचुकहा सरो के येला मंद बना करिन मतवारी।।
मंउहा हे त मधुबन हे एकर बिन असकट जिनगानी।
निक लागे एकर आबोहवा महकय भांठा मंउहारी।।

-डा. अनिल भतपहरी

Sunday, February 10, 2019

बौद्ध नगरी सिरपुर

अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन सिरपुर हेतु प्रयाण  ....

बौद्ध नगरी सिरपुर की ख्याति अन्तर्राष्ट्रीय तो था ही अब अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटक भी बौद्ध स्मारकों के अवलोकन और समकालीन समय की अध्ययन के निमित्त एकत्र होने लगे है।  
  दुर्गा महाविद्यालय रायपुर मे अध्ययन के दर्म्यान १९८८-९२ तक छात्रसंध मे मेरिट बेस पर सम्मलित होते रहे।फलस्वरुप समाजिक व धार्मिक कार्यक्रम में रुचि‌ जागृत   हुए।पिताश्री के निर्देशन मे  सतनाम युवा जागृति मंच का अध्यछ का दायित्व सम्हाले सिरपुर मे बुद्ध पूर्णिमा का आयोजन करते मेला समिति के सचिव रहे।
   इस तरह बौद्ध संस्कृति व आदरणीय भंते भिछु संध का  सानिध्य मिलते रहा। तब आयोजको मे बेड़ेकर साहब अशोक फुटाने यशवंत ठाकरे रामलाल बौद्ध फत्तेलाल वासनिक जी के साथ मिलकर भंते आर्य नागार्जुन  सुराई ससाई जपान और भंते हिमोन होरीसावा जैसों का आशीष मिलते रहा।
     आज २०-२२ वर्ष अन्तराल बाद बौद्ध महासभा के अध्यछ जागृत साहब के सानिध्य मे अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव सिरपुर जाना हुआ। (वैसे हर एक दो वर्ष मे जाना होता ही रहा है  पर कार्यक्रम मे शामिल होने आज इतने वर्षो बाद  जाने का संयोग हुआ।)  वहां पहले से अधिक भव्य और महाराष्ट्र - छग सहित अनेक प्रांत व देश के बौद्ध धर्मावलंबियों और छत्तीसगढ के  सतनामी समाज साहू वर्मा एंव अन्य पिछडा वर्ग के लोगों के साथ सर्व समाज की सहभागिता देख मन बेहद प्रफुल्लित हुआ कि हमलोगों द्वारा प्रज्जवलित आयोजन रुपी दीपक का प्रकाश आज वैश्विक स्तर पर जा पहुंचा है।

     बाहरहाल बुद्ध कबीर रैदास नानक गुरुघासी जैसे बुद्ध पुरुष और उनके अनुयाई को इन संत गुरु महात्माओ के द्वारा व्यवहृत सच्चनाम सचनाम सतनाम सतिनाम सत्यनाम सत्तनाम शतनाम को समन्वय करते विराट सतनाम धर्म के रुप मे प्रतिष्ठापित कराने की महति आवश्यकता है। ताकि विषमताओं और भेदभाव वाली संस्कृति के समनान्तर समानता पर सतनाम‌ संस्कृति  प्रचलन जनमानस में कर सके।

     बचपन में जिन पुरावशेष वाली टीलाओं में चढते खेलते बिताए आज उन टीलों में भव्यतम बौद्ध स्मारके देख हतप्रभ होते रहे और सहयात्रियों सहित  आगतुकों को अपना संस्मरण सुनाते तो वे लोग हतप्रभ सुनते रहे।
          वैसे हमारे पाठको बताते हमें सदैव गर्वानुभूति होते रहे है कि सिरपुर जुनवानी हमारे व पुरखो का गांव है।भट्टप्रहरी गोत्र पाली से आए है। ऐसा लगता है कि हमारे वंशज बौद्ध नरेश व आचार्य आदि भट्ट जनों  के प्रहरी रहे हो।या स्वयं भट्टप्रहरी  सामंत हो।‌जो बौद्ध धर्मावलंबी।जो कि कलान्तर में १८वी सदी मे  गुरुघासीदास के सतनाम आन्दोलन से दीछित होकर सतनामी बन गये ।
           बाहरहाल आप सभी सुधि पाठको को इस महासम्मेलन की  झलक व महत्ता बताते हर्षित है। एक दिन यह पुरा स्थल व आयोजन समानता वादी   सभी वर्गों को समन्वय करने में सफलता अर्जित करेगी ऐसी उम्मीद के साथ आयोजको को बधाई व मंगलकामनाएं

       ।।सच्चनाम - सतनाम ।।
          ।।सत श्री सतनाम।।
      डा. अनिल भतपहरी