Saturday, December 29, 2018

कविता गांव की ओर

सप्तागी

" सततागी "

सतनाम संस्कृति  में सततागी प्रथा रहा है। यह सैंधव सभ्यता में भी रहे जहां कपास की सुत काते जाते थे।और उससे वस्त्र बनाकर पहने जाते थे। उनके अवशेष मुआनजोदडो में मिलते है।( भंडार तेलासी जुनवानी सिरपुर  महानदी तटवर्ती छेत्र  जहां मोहान बोदा जैसे ग्राम हैं। वह मुआन जोदडो जैसे नाम अभाषित करते है यह सतनामी बाहुल्य व समृद्ध छेत्र है )  जहा मातृका पूजा भी रहा है। इसे विवाह रस्म में चुल माटी  मायन पूजा कहते है जो आज भी सतनामियो में प्रचलित है।
बाहरहाल
सुत की धागा पहनना एक प्रतीकार्थ है सभ्य और उन्नत होने का। पहले लोग खाल और वृछ के छाल पहिनते थे और वे मानव सभ्यता के आरंभिक अवस्था रहे हैं।  इसलिए
विवाह के अवसर पर आज भी बिना अटे हाथ से निर्मित कपास की धागा जिसे कुवारी धागा ( पवित्र व आरुग धागा ) कहते है से मडवा दून कर डेढा डेढहिन सभी परिजनो की उपस्थिति में दूल्हे राजा को सततागी( यानि की सात तागे वाली कुवारी  या पवित्र धागे से निर्मित) धारण कराकर एक बडी जिम्मेदारी के लिए संस्कारित करते हैं।
  ब्राह्मणों में जो  धागा पहनते है वह तीन ताग के होते है यह उपनयन संस्कार है । यह बचपन में  अध्ययन और भिछाटन के लिए है ‌जिस बालक को यह पहने देख लोग ब्राह्मण बटुक जान कर भिछा देते थे।इसलिए इसे जनेऊ नाम से जाने जाते थे।
  कलान्तर में यह अनावश्यक रुप से महिमामांडित कर दी ग ई ।और  जनेऊ का अधिकारी हिन्दूओ में ब्राह्मण को बताकर उन्हे वर्ण विभाजन श्रेष्ठतम व देवतुल्य कर दिए गये।
  परन्तु सतनाम संस्कृति एक अलग तरह के संस्कृति है ।यहा सततागी धारण के अपने घर परिवार माता पिता पत्नी  सहित समाज के प्रति सप्तवचन को सातगाठ बांधकर सततागी धारण कर सत्य निष्ठा से जीवन यापन करते है।
  पारंपरिक उत्सव व  विवाह आदि   में हमे अपनी इतिहास व जड की समृद्ध विरासत तलाशनी चाहिए।
   आजकल ब्राह्मणों के अनुकरण पर या उनके कहने पर सततागी को जनेऊ कह सततागी के व्यापक अर्थ व भावार्थ को सीमित किए जा रहे हैं।
   यह नही होना चाहिए। समाज में जनेऊ के जगह सततागी नाम प्रचलन में लाना चाहिए। और इसे स्वैच्छिक करना चाहिए।
।। सतनाम ।।

डा अनिल भतपहरी

औरा धौरा और तेदू वृछ

गुरुघासीदास जंयती के पावन अवसर पर गुरुघासीदास शोध पीठ  पं र शु वि वि एंव गुरुघासीदास साहित्य संस्कृति आकादमी द्वारा आयोजित शोध संगोष्ठी में सतनाम धर्म संस्कृति में औरा -धौरा और तेंदू पेड़ की महत्ता  एंव उनके तले  गुरुघासीदास की आध्यात्मिक साधना पर आधार व्यक्तव्य देते हुए ....

हमारे सुधि पाठकों हेतु शोध पत्र का सारांश -

"औरा-धौंरा वृछ तले ध्यानरत  गुरुघासीदास"

छत्तीसगढ़ की पावन धरा पर सुदुर वनांचल में सतनम जागरण के अलख जगाते गुरुघासीदास ने  सतनाम पंथ का प्रवर्तन किए ।
     इनके पूर्व वे सोनाखान के बीहड़ वन एंव छाता पहाड़ में कठोर अग्नि तपस्या किए।
सतनाम ग्यानोदय और अभीष्ट सिद्धि के उपरान्त वे गिरौदपुरी वापस आए .. उनके आगमन की सूचना का बेहतरीन वर्णन मि चूशोल्म ने बड़ी ही अलंकारिक शैली मे किए है ...
हजारो लोग इस तपस्वी को देखने सुनने उमडने लगे और लाखो लोगो मैदान मे एकत्र हुए ।
फागुन शुक्ल सप्तमी को वे सतनाम की दिव्य सप्त संदेश देते छत्तीसगढ़ की धरा पर सतनाम पंथ जो स्वतंत्र धर्म सदृश्य था का प्रवर्तन किए ...
  तदुपरान्त वे इसी विशाल प्रांगण के समीप पहाड़ी में स्थित तीन पेड़ के झुरमुट के पास ध्यानस्थ होकर नित्य दर्शन को आकांछी जनमानस को उपदेशना देने लगे ...
  यह ३ सौभाग्यवती पेड़ थे औंरा धौरा और तेंदू ।
औंरा - हिन्दी मे इसे आंवला कहते है संस्कृत मे अमृता अमृत फल पंचरसा कहते हैं।
अंग्रेज़ी में एंब्लिक माइरीबालन कहते हैं। वैज्ञानिक नाम रिबीस युवा क्रिप्सा नाम है।
औषधीय गुण आयु वृद्धि काया कल्प मेधा यौवन  वीर्यवर्धक है।
ऋषि च्यवन ने कभी इसी के आधार पर च्यबन प्राश बनाकर मानव हितार्थ दिव्य औषधि का निर्माण किए ।आवला हरण और बहेरा यह त्रिफला आयुर्वेद की त्रिदोष कफ पित्त वात नाशक है ।इसके यह प्रमुख धटक है।

धौरा- यह बहुपयोगी व औषधि गुणो से युक्त पौधे हैं। इनका वैज्ञानिक नाम  एनोजेसीस लैटी फोलिया है ।जो १८-२० फीट की ऊचाइ वाले सधन पत्ते दार सफेद तने वाला पेड है। इस कारण यह धौरा नाम पडा ।
जिनके चपाचय हमारे अंदर आहार निद्रा और आंतरिक जैविक धड़ी को नियंत्रित करते हैं। तनाव और ब्लड प्रेशर को इनके छांव मे बैठने मात्र से राहत मिलते हैं। आत्।हीना खत्म हो आत्मसंबल बढता है। मन मे दृढता व संकल्प बोध आते है। इनके गोंद बनते हू और प्राकृतिक रुप से इनके पत्ते में रेशम कीट पलते हैं तथा उच्च स्तर के टसर यानि  कोसा सिल्क मिलते हैं। इनमें वस्त्र आदि बनाकर मानच सभ्यता के दो डग भरे ।

औषधीय गुण चपाचय गर्भ प्रसव सर्दी खासी  मे राहत ल्युकोरा टानिक कृषि उपकरण चारकोल निर्माण ...मे
तेंदू - अनेक औषधीय गुणो के खान और एंटीबायोटिक फल तथा डायबिटीज़ के राम बाण फलमीठा और कसैला का स्वाद अप्रतिम स्वाद लिए यह विलछण  पेड़ हैं। जो भीषण गरमी मे लहलहाते है।
  जब सूर्य की  प्रचंड ताप से वनप्रातंर झुलसते है तब अ
यह गहन छाया व डारबी ग्रीन पत्ते से दूर से सुकुन पहुचाते है।
यह मध्यम आकार १५-२० फीट की ऊंचाई वाले यह पेड आकर्षित करते हैं।
  इनका वैज्ञानिक नाम डायोसपायरस मेलैनोआक्सीलन है।
   इनकी पत्ते की बीडी बनाकर लोग पीते हैं बाबा जी ने इनके संरछण और व्यसन रोकने के लिए संदेश कहे कि "चोगी झन पिहा ।
ताकि तेंदू पेड़ संरछित रहे । फलस्वरुप जो व्यसन न त्याग सके कलान्तर में चोगिया सतनामी के रुप में चिन्हित किए गये।और फिर वे घीरे घीरे व्यसन त्याग सात्विक सतनामी हुए ।
यह फल  कुपषित जनता को पोषण दे यह चेतना भी इनके पीछे भी नजर आते है।यह मल्टीविटामिन से युक्त आहारी फल है।कच्चे तेदू के बीच को चावल की भात की तरह खाकर पेट भर सकते हैं।
  फल को सुखाकर रखते है और जब चाहे तब इसे सूखे मेवे की तरह खाए जाते हैं।
    इस तरह देखे तो इन बहुगुणी पौधे जो प्रकृति ने एक जगह विशिष्ट प्रयोजन हेतु  उगाए थे को बाबा जी अपना आश्रय बनाया ।
वे अमृत फल दार वृछ औरा की सधन छांह में अमृत तलाशे और धौरा के छांह मे बैठ सामाजिक विद्वेष से हुए तनाव और संक्रमण पीड़ा जो प्रसव पीड़ा जैसे आक्रान्त व व्यतिथ करने वाले कारक थे से शमन का धैर्य पाया ।
चिलचिलाती जेठ की भीषण तपन में भी  तेंदू की सधन शीतल  छाया  में आसनगत होकर सामाजिक विद्वेष की भीषण दाह से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किए और संसार मे प्रथम जाति वर्ग विहिन समानता से युक्त सतनाम पंथ की सर्व व्यापकता व प्रसार की योजना बनाते अपने महति प्रयोजन को धरातल में उतारे ।
फलस्वरुप उनके अंत: करण में समाजिक दंश यानि विष तत्व का वे निवारण कर सके और एक महान युगान्तरकारी कार्य निष्पादित कर सकें।
  आज यह पेड़ और उनके परिसर विश्व में पवित्रतम स्थनों मे शुमार है।जहां प्रतिदिन हजारो लोग आस्था से सर झुकाते है।
  फागुन शुक्ल सप्तमी  को विश्व का सबसे बड़ा ग्राम के रुप मे तीन दिन तक परिणत हो जाते हैं।
     जहां १२-१५ लाख लोग स्व नियंत्रित प्रकृतस्थ साधनात्मक जीवन यापन करने की प्रेरणा लेते हैं और अपने मार्गदर्शक गुरु के सानिध्य प्राप्त करते हैं।
औरा धौरा पेड के उडत हे शोर
तेंदू के तीर ह छागे अंजोर
सतनाम जपइय्या हवय ग मोर बाबा ।...
    इस तरह देखे तो इन तीनो औषधीय गुणों से युक्त वृछ को गुरुघासीदास ने अपनी आध्यात्मिक साधना व ध्यान स्थल के रुप में परिणीत किए।जैसे बुद्ध को  पीपल के नीचे आत्मग्यान मिला और वे बोधिवृछ के नाम प्रसिद्ध हो गये।ठीक गुरुघासीदास की साधना के  साक्छी व सहभागी ये औरा धौरा व तेंदू  वन वृछ जन- जन में पूजनीय व आस्था के केन्द्र हो गये।
       सतनाम धर्म -संस्कृति में जहां भी जिस ग्राम मुहल्ले और धार्मिक स्थलों में  जैतखाम स्थापित है उनके  परिसर और गुरुघासीदास गुरुद्वारा सतघाम मंदिर आदि प्रांगण में इन वृछ के पौंधों का रोपण करे और गिरौदपुरी जैसे पावन प्राकृतिक वातावरण निर्मित कर अपनी  आध्यात्मिक  व वैद्यकीय विकास करते स्वांत: सुखाय के साथ साथ सर्व सुखाय की अवधारणा को परिपुष्ट करे ।साथ ही  प्रकृति व अपनी महान संस्कृति का संरछण करे ताकि हम आने वाली पीढ़ी को हरियाली व औषधीय गुणों से युक्त  शानदार सांस्कृतिक विरासत सौंप सके। जिससे  हमारी इस कृत्य से  उन लोगों में स्वाभिमान जागृत हो और गर्व कर सके । आइये इस गुरुपर्व पर हम सब यह संकल्प लें कि हमारे जैतखाम व धार्मिक परिसर में औरा धौरा और तेंदू वृछ के पौधे वन विभाग या वनांचल छेत्र मे वर्षा काल में उगे पौधों को लाकर रोपण करें।
        ।। जय सतनाम ।।
      डा. अनिल कुमार भतपहरी
        सहा प्राध्यापक
शासकीय बृजलाल वर्मा महाविद्यालय पलारी

     डा अनिल कुमार भतपहरी
        सहा प्राध्यापक
    शा. बृजलाल वर्मा महाविद्यालय पलारी
    9098165229

Wednesday, December 26, 2018

सतनाम रावटी धाम

सतनाम‌ रावटी दर्शन यात्रा

सतनाम रावटी नौ धाम का करके दर्शन ।
हुआ आलोकित कलुषित ये अन्तर्मन।।
हर जगह स्वागत करने उमड़े जन-मन।
गुरुवाणी गान अरु संतों की सत्संग।।
सतमय करने धरा को यह है प्रयोजन ।
मिले सतनामी संत करे सर्वत्र आव्रजन ।।
सतनाम संस्कृति में रावटी यात्रा का प्रचलन।
इष्टमित्रों के संग और साथ चले परिजन ।।
प्रकृति के सानिध्य में बिताए कुछ छण ।
अपने जीवन संधर्ष में भरते रहे नव उमंग।।
मिलती रहे सफलताएं करते रहे सृजन ।
सतनाम सुमरत  बीते यह नश्वर जीवन ।।

टीप- सतनाम धर्म-संस्कृति में गुरुघासीदास ने नाम-पान देकर नौ विशिष्ट स्थान पर प्रचार -प्रसार किए यह  नौ रावटी धाम के रुप में विख्यात है जो कि  निम्नवत है -चिरईपदर,दंतेवाड़ा,कांकेर,पानाबरस,डोंगरगढ़,भंवरदाह, भोंरमदेव,रतनपुर,दल्हापहाड़ ।

          सत श्री सतनाम
       डा. अनिल भतपहरी

रावटी धाम दर्शन

सतनाम रावटी नौ धामों का हुआ दर्शन ।
कृपा सद्गुरु की पाकर मन हुआ पावन।।
इन रमणीय जगहों पर किया गुरु ने रमन ।
जन को‌ नाम-पान देने इनका किया चयन ।।
करे सभी नर-नारी इन पावन धामों का दर्शन।
मिले सुख शांति उन्हे अरु हो धन्य यह जीवन ।।

                  ।।सतनाम ।।
          डा. अनिल भतपहरी

जैतखाम

"पालो निसाना और जैतखाम "
सतनाम संस्कृति में धरो -घर  लधु आकार का जैतखाम यानि कि" निसाना " का प्रचलन हैं जिसमे "पालो" यानि कि ध्वज  चढता है। असल में आरंभ से यह  चुल्हापाट में पुरी पावनता के साथ स्थापित रहा। वहाँ से" पालों" निशाना के नाम से  आंगन तक आया। गुरु घासीदास बाबा ने उसे बीच गली तक लाए और विशाल २१  हाथ वाली जैतखाम  के ऊपर फहराए ।तब से जैतखाम सतनाम संस्कृति का महत्वपूर्ण प्रतिमान बन गये। कहते है बाबा अपने हाथो ४ जैतखाम स्थापित किए १ सोनाखान में राजाराम के महल के समछ ।दूसरा दुलहरा तालाब पार रतनपुर में ।और जोडा जैतखाम चांद सुरुज नाम से मोतीमहल भंडारपुरी गुरुद्वारा प्रांगण में ।
  तब तक सतनामियो के घर में चुल्हापाट में पालो और कही कही आगन में निसाना स्थापित होने लगे।
  राजा गुरु बालकदास के समय वृहत्तर रुप से घर घर  निसाना स्थापित हुआ और उनके जन्मदिन को उसमें पालो चढना आरंभ हुआ।यह सतनामी समाज का पहला महोत्सव हुआ।
   कलान्तर में जब मंत्री नकूलदेव ढीढी द्वारा सार्वजनिक गुरुघासीदास जयंती का शरुआत १९३८ से हुआ तब गांव गांव में जैतखाम गडना आरंभ हुआ।जैतखाम में अब गुरुबाबा के जन्मदिन पर पालो चढने लगा।इस तरह सतनामियो में यह दूसरा बडा महोत्सव का शुभारंभ हुआ। इस तरह जैतखाम सर्वत्र स्थापित होने लगे।धर्मध्वज पालो  अहिर्निश फहरने लगे।इससे एक विशिष्ट स्थिती और गरिमा समाज में आया।और अन्य लोग नोटिस करने लगे।

जैतखाम जहाँ है कहने की आवश्यकता नही उनके इर्दगिर्द सतनामी आबाद  होन्गे।
      एकल और जोडा जैतखाम दोनो की संस्कृति है। गिरौदपुरी भंडारपुरी बराडेरा चटुआ खडुआ खपरी आदि धार्मिक स्थलो में जोडा जैतखाम है। यह सर ई और साजा लकडी के शानदार गोलाई पंच गठान की बांस के डंडा जो तीन हुक में फसे हुए सवा गज के आयताकार सफेद ध्वज जिसे पालो‌ कहते है फहरते है। इनके विशिष्ट सांकेतिक भावार्थ हैं।
    अब तो गिरौदपुरी में  एकल बडा स्वरुप में जैतखाम है उसे जोडा स्वरुप देने की आवश्यकता हैं।
   वर्तमान समय प्रचार प्रसार और भव्यतम स्थापनाओ का हैं। जहाँ लाखों जनसमूह एकत्र होन्गे वहाँ आकर्षण और सबके ऊपर प्रभाव हो ऐसा विलछण प्रतिमान  चाहिए। भंडारपुरी महल के कंगुरे पर इसीलिए ३ बंदरो का शिल्पांकन हुआ। जो बिन कुछ कहे जनमानस को सतनाम की अप्रतिम संदेश देते रहे।
  आज हमे ऐसे ही भव्य निर्माण चाहिए जैसे समर्थवान होने पर ८४ हजार बौद्ध विहार अनेक स्तुप और गुफाओं  मे बुद्ध चरित का चित्रांकन हुए ताकि आगामी पीढी भलीभाँति समझे।
     अभी केवल जैतखाम की शरुआत हुई है। धीरे धीरे उन्हे आकर्षक व भव्यतम रुप देना हैं।
अनुयाईयों  के  समर्थ. होने पर धर्म कर्म. और. प्रतिष्ठान. भी भव्यतम होन्गे।सतनाम।
  डा. अनिल भतपहरी

Wednesday, December 12, 2018

ये कर दिस

कहें बिंदास अनिल भतपहरी
       आपके वास्ते छकड़ी हमरी
  
सोचे  नइ  रहेन ये भोकवा मन, जंउहर करदिस।
कलेचुप अतलंगहा मन ल,चंउर कस छर दिस।।
छिदिर-बिदिर करिन तेन ल, सुमा डोरी कस बर दिस।
बड़ बकवाय बोवाय बंबरी मं,आमा कइसे फर गिस ।।
जनता ल जोन जोजवा समझिस, उकरेच मुडा़ पुर गिस।
खाइस बाप पुरखा पान,दतला के जम्मा दांतेच झर गिस ।।
           -डा.अनिल भतपहरी

Monday, December 10, 2018

पानी न इये

"पानी नइये"

का कहव संगी मय  का सुनब संगी तय
कहे सुने के अब तो कहानी न इये
गाये बर गीत अब तो सुहानी न इये
कहे सुने के अब तो कथा कहानी न इये .....
बस गरजना हाबे बादर म पानी न इये

मारत  फुटानी टुरा बरा भजिया ल  खाबे
काबर काचा मिरचा कर्सस ल चाबे
चिरपुर बड देख क इसे कलबलागे
हद होगे होटल म पानी न इये बोतल म पानी न इये ...

असनादे खुसरे समारु अपन नहानी घर म
चुपरत साबुन मगन गावे गीत सुहानी घर म
आखी म परे गेजरा नल खोले त पानी न इये
बाल्टी म पानी न इये डोलची म पानी न इये ....

लगिन के नेवता भेजे हावे समयदास
जिहा दार भात उहा पहिदे माधोदास
दमकाते साठ थारी भात रेन्गे बाहिर सोज्झी धाट
नरवा म पानी न इये तरिया म पानी न इये ....

करत बराबरी टुरामन से ,
टुरीमन होगे आधु
इकर करसतानी ले
होगे उकर करसतानीे पाछु 
उधरा हे फुन्दरा अउ लाज बनगे गजरा ...
आखी म पानी न इये न जवानी न इये
जवानी के सुघ्घर  रवानी न इये ...

डा अनिल भतपहरी
९६१७७७७५१४

Sunday, December 9, 2018

ठोकर

कहें बिंदास अनिल भतपहरी
        आपके वास्ते छकड़ी हमरी

खाकर ठोकर सम्हलते है गिरने से लोग।
इसके पूर्व बहुत इतराते हैं कितने ही लोग।।
है कितने ही लोग,जो जीते रहे मुगालते में।
लगे रहते है छद्म,रुप धन बल की गफलत में।।
मिलें मंजिल सदभाव से,सद्मार्ग में ही जाकर।
कोई नहीं सम्हलते,बिना कोई ठोकर खाकर।।

               -डा. अनिल भतपहरी

गुरुघासीदास व सतनाम साहित्य

[12/9, 18:13] Dr anilbhatpahari: १ संत सतनाम दास  - दादूलाल जोशी
पुरानिक चेलक
२ मनोहरदास नृसिंह सम्मान
मंगत रविन्द्र , हर प्रसाद निडर 
३ पं साखाराम बधेल सम्मान - डा जे आर सोनी ,कृष्ण कुमार शानु
४ पं सुकुलदास धृतलहरे सम्मान - सेवकराम बांधे ,खिलावन सतनामी
५सुकालदास भतपहरी सम्मान - आसकरण जोगी, गजानंद पात्रे
६ नंकेशरलाल टंडन सम्मान -
एस पी नवरत्न  ,डा आर पी टंडन
७साधु बुलनदास सम्मान -
शशिभूषण स्नेही महंत बृज खांडे
[12/9, 18:28] Dr anilbhatpahari: १सतनाम सागर- संत सतनाम दास 
२नामायण  गुरुघासीदास चरित - नृसिंह
३सत्यायण - गुरुघासीदास चरित प सखाराम बधेल
४ समायण सतनाम पोथी - सुकुल दास धृतलहरे
५ सतनाम संकीर्तन - सुकालदास भतपहरी गुरुजी
६ सत सागर - प नम्मुराम मनहर
७ सत्यनाम धर्म ग्रंथ - प नंकेसर लाल टंडन
८ - गुरु उपकार - साधु बुलन दास
९ - श्री प्रभात सागर - मंगत रविन्द्र
१० - सतनाम सरित प्रवाह(  प्रकाश्य) डा अनिल भतपहरी
   ये सभी महाकाव्यात्मक रचनाएँ हैं।
गद्य में -
१सतनाम आंन्दोलन व सतनामी समाज -डा शंकरलाल टोडर
२ सतनाम दर्शन - इंजी टी आर खुन्टे
३  छत्तीसगढ़ राज्य और सतनामी समाज - के आर मारकन्डे
४ गुरुघासीदास  की मानवता व गुरुघासीदास उनके आन्दोलन - साधू सर्वोत्तम साहेब
५ सतनाम दर्शन - भाऊराम धृतलहरे
६ सतनाम के अनुयाई  व सतनाम रहस्य ,- डा जे आर सोनी
७ गुरुघासीदास और सतनाम साहित्य -  डा. अनिल भतपहरी शोध प्रबंध शीध्र प्रकाश्य

Thursday, December 6, 2018

सतनाम धाम गिरौदपुरी

सतनामी तीर्थ
💐💐💐
                सतनामियों सहित अनेक मुख्यधारा से वंचित समाज का अपना कोई सामूहिक आस्था प्रकट करने हेतु न तीर्थ था न संत महात्मा ।शुक्र है कि आज गिरौदपुरी चटुआ खडुआ भंडार तेलासी और उनके नव रावटी स्थल हैं। जहां लोग अपनत्व भाव लेकर जाते आते हैं। और सामूहिक रुप से एकत्र होकर केवल आस्था ही नहीं बल्कि  अपनी संगठनिक शक्ति और लाखो लोग स्व नियंत्रित सद्भाव का प्रदर्शन करते हैं।
           तो इस तरह जैसे अन्य वैश्विक धर्म इसाई मुस्लिम बौद्ध हिन्दूओ का जुडाव येरुशलम वेटिकन सिटी मक्का मदिना बोधगया सारनाथ  या लामाओ के बुद्ध मैनेस्ट्री में होते हैं। सिखो का अमृतसर  और हि‌न्दुओ का चारो कुंभ मे जमवाडा होते है वर्तमान में उसी तरह गिरौदपुरी सतनाम धर्म के महान तीर्थ धाम के रुप में आकार ले चूका है देश  भर से श्रद्धालु आते हैं। यहा तक विदेश से भी आने लगे हैं। यह सतनामियों की बहुत बडी उपलब्धि है।  और यह स्व स्फूर्त हुआ हैं। लाखो लोगो की करोड़ो रुपये जो अन्य मेले मड ई  खेल तमाशे में नष्ट होते थे आज गिरौदपुरी में वह सात्विक मंगल भजन सत्संग प्रवचन और स परिवार प्रकृति के सानिध्य में सहभोज करते तीन दिन सधनात्मक जीवन जीते आत्मविभोर होते हैं। यह  अप्रतिम मंजर है।इसे ब्राह्मण वाद या अंधविश्वास आदि के साथ जोड़कर न देखे। ऐसा देखने समझने वाले सांस्कृतिक व आध्यात्मिक रुप से कृपण व आलोचना प्रवृत्ति के लोग है जो भ्रमित व सशंकित है।
   हां आपार भीड़ में कुछ नादां भोला भाले और कुछ अंध श्रद्धालु भी मिलेन्गे पर वे अपवाद और उनके निम्नतर बौद्धिक स्तर है।उन्हे नजर अंदाज करना चाहिए।

डा अनिल भतपहरी
      ।।सतनाम ।।
💐💐🙏🙏💐💐

तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम

"तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम "
सतनाम धर्म के प्रवर्तक और महान मानवतावादी  संत गुरु घासीदास बाबा का जन्मभूमि एंव तपस्थली है।गिरौदपुरी सतधाम का राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति है।१९३५ के गिरौदपुरी मेले के  पाम्पलेट में उनके राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार की उल्लेख मिलते है। जहाँ देश भर से लाखों श्रद्धालुओ के आगमन और उनके आने जाने ठहरने की सूचना है।
    नैसर्गिक  सुषमा से अच्छादित यह पावन स्थल अत्यन्त रमणीय व मनमोहक है।वन्य जीव से आबाद बार अभ्यारण्य और कलकल बहती जोगनदी व ट्रान्स  महानदी के कछार पर स्थित गिरौदपुरी का सौन्दर्य हर किसी के मन को भाते है।
   बन तुलसा( बडी तुलसी )के झाड़ियों से  महकते पहाड़ी परिछेत्र में सुप्रसिद्ध औरा-धौरा वृछ के तले ध्यानरत गुरुघासीदास तेन्दू वृछ के समीप धर्मोपदेश व मनन चिन्तन और योग तपस्या मे निरत रहते थे ।समीप पहाड़ी के नीचे चरण कुण्ड और वहाँ से ५०० मीटर दूर    अमृतकुण्ड का जल गंगाजल सदृश्य पवित्र है। यह दोनो प्राकृतिक कुण्ड सदानीरा है जहाँ स्वच्छ जलराशि बारहोमास पहाड़ी की तलहटी मे विद्यमान आस्था कौतुहल और अनुसंधान का विषय है।इस कुण्ड के जल का धार्मिक पूजापाठ मे गंगाजल जैसा ही अनुप्रयोग जनमानस करते रहे है।यहा तक कृषि कार्य और खेतों मे इनके छिडकाव हेतु दूर-दूर से लोग गैलनो, कनस्तरो और अन्य पात्रों मे भरकर ले जाते है।
  इस जगह में आते ही सुकून शांति और मन हृदय मे पवित्रता का आभास श्रद्धालुओं को होते है।इसलिए स्वस्फूर्त बारहो मास वे उक्त आकर्षण मे आबद्ध हो सतधाम आते है।जहां पर अपनत्व और एक तरह से स्वच्छंदता का स्वानुभुति होते है।यहा पर पण्डे पुजारी कोई दान दछिणा रोक टोक नही है बल्कि लोग स्वत: अनुशासित होकर राग द्वेष से मुक्त परम आनंद मे निमग्न नजर आते है।मंगल भजन सत्संग चंदन तुलसी की महक शुद्ध प्राकृतिक हवाएँ प्रदूषण मुक्त नैसर्गिक जगह सचमूच सतलोक सदृश वातावरण इस पवित्र धाम का है। जहाँ प्रमुख दर्शनीय स्थल निम्नवत् है-
१ गिरौदपुरी ग्राम
२ झलहा मंडल का दोतल्ला  घर
३ उसी घर से लगा गुरु बाबा का  जन्म स्थल
४ गोपाल मरार के घर बाडी और कुंआ
५ गुरु द्वारा हल चलाए बाहरा खेत
६ बाहरा तालाब 
७ नागर महिमा स्थल
८ बुधारु सर्पदंश उपचार स्थल
९ बछिया जीवन दान स्थल
१० सफुरामाता जीवन दान स्थल
११ शेर पंजा मंदिर
१२ औरा धौरा तेंदूपेड़/ मुख्य प्राचीन मंदिर
१३ चरण कुंड
१४ अमृतकुंड
१५ छाता पहाड
१७ पंचकुंडी
१८ सुन्दरवन
१९ जोक नदी
२० हाथी पथरा
२१ विशाल जैतखाम
इन सभी के सहित१५ कि मी परिछेत्र और फा शु पंचमी से सप्तमी तक १०-१५ लाख जनमानस के स्वनियंत्रित चहल पहल भजन सत्संग प्रवचन चौका पंथी और संत महंत गुरु वंशज और प्रतिभाशाली लेखक कवि कलाकार सेवादार दर्शनीय है।
    श्रद्धा-भक्ति और आस्था के अनगिनत स्थलो मे तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम अप्रतिम व अद्वितीय है।इनका दर्शन मात्र से आत्मकल्याण व आत्मिक सुखानूभुति होते है।
    ।।जय सतनाम।।
- डां अनिल भतपहरी