Friday, June 28, 2024

छत्तीसगढ़ी भाषा

#anilbhattcg 

।।छत्तीसगढ़ी भाषा।।

     छत्तीसगढ़ी से छत्तीसगढ़ जैसे उड़िया से उड़ीसा ,मराठी से महाराष्ट्र, तमिल से तमिलनाडु, बंगला से बंगाल , असमिया से असम इत्यादि इन प्रदेशों में उन्हे उनकी अपनी भाषा में ही शिक्षा दी जाती हैं। 
छत्तीसगढ़ आजादी के पहले मराठा /अंग्रेज शासन में सीपी एंड बरार में थे और  मराठी (लिपि देवनागरी ) अंग्रेज़ी में राजकाज होते थे।आजादी के बाद हिन्दी प्रदेश म प्र के हिस्सा था और लिपि देवनागरी ही रही। छत्तीसगढ़ी की अपनी लिपि नहीं होने से यह भ्रम बना हुआ है कि यह मात्र बोली है जबकि ऐसा नहीं है। कितनी ही ऐसी समृद्घ भाषा है जिनकी अपनी कोई लिपि नहीं है।
   अधिकतर जनता ग्रामीण पृष्ठभूमि की हैं और वहां छत्तीसगढ़ी और उनकी करीब 13 सहायक भाषा बोली है इनमें छत्तीसगढ़ी एक तरह से संपर्क भाषा है। इसे जशपुर से लेकर बीजापुर और उड़ीसा की संबलपुर नुआ पाड़ा से लेकर महाराष्ट्र की आमगांव तक भली भांति समझी और बोली भी जाती हैं।
        इस तरह लगभग 2 करोड़ समुदाय द्वारा व्यवहृत की जाने वाली छत्तीसगढ़ी भाषा जो हर तरह से उपयुक्त है जिसे विगत  डेढ़ दो सौ वर्षो से देवनागरी में लिखी भी जा रही हैं। विविधतापूर्ण साहित्य, पत्र पत्रिकाएं दूरदर्शन आकाशवाणी एवं अन्य टीवी चैनल पर व्यवहृत किए जा रहे हैं। जिसकी व्याकरण हिन्दी से पहले लिखी जा चुकी हैं। यहां की शहरी  व्यापारी/ कर्मचारी जनता जो कि कई प्रांतों से आकर बसे हुए हैं और उनकी संपर्क भाषा हिन्दी हैं के आधार पर डेढ़ करोड़ छत्तीसगढ़ी भाषियों  के ऊपर  हिन्दी को नहीं लादना चाहिए। क्योंकि आज भी शहरों की सीमा के बाद ग्राम की सरहद में हिन्दी का प्रवेश नहीं है। गांव में कोई हिन्दी का व्यवहार नहीं होते। भले राजकाज में मजबूरी से करने पड़ते हैं।
     बहरहाल भाषाई दृष्टि से अलग छत्तीसगढ़ होने के बाद परिस्थिया बदली  और लोक व्यवहार के बाद शासकीय। कार्यालय व कार्यक्रम पर छत्तीसगढ़ी व्यवहृत होने लगी छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बनाए गए और बकायदा शासन प्रशासन को छत्तीसगढ़ी भाषा और देवनागरी लिपि में काम करने की आव्हान की गई। कुछेक जगहों पर न्यायालीन फैसले, बैनामा, रिपोर्ट, आवेदन आदि दिए जाने लगे। इस तरह छत्तीसगढ़ी राजकाज में व्यवहृत भी होने लगा।  प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री एवं भाषाविदों ने अनेक अवसरों पर, छत्तीसगढ़ी को समर्थ भाषा बताते ही रहे हैं। 
केवल लिपि और शिक्षा के माध्यम नहीं होने मात्र से इसे भाषा न मानी जाए? या कोई समाचार पत्र या चैनल का पुरा माध्यम न होने से भाषा न समझा जाय? ऐसा नहीं होना चाहिए। क्योंकि छत्तीसगढ़ी जनता अपेक्षाकृत साधन सक्षम नहीं हैं और प्राय कृषक है जो जीवन संघर्ष से ही लगे हुए हैं। जो थोड़ा बहुत सक्षम है वे अन्य व्यवसाय में रत भाषा बोली संस्कृति की ओर से तठस्थ है।
     वैसे हर भाषा जिसमें लोग बोलते हैं वह बोली है और वह बोली जिसमे लिखित स्वरुप और व्याकरण सम्मत हो वह भाषा है। आजकल बाडी लैंग्वेज, मूक बधिरों की भाषा पर बाते होने लगी है जिसकी अपनी कोई लिपि नहीं केवल इशारे होती हैं।
           करोड़ों लोगों द्वारा व्यवहृत छत्तीसगढ़ी भाषा हैं और इनकी अपनी समृद्ध लोक साहित्य और पर्याप्त लिखित साहित्य , भाषा,व्यकरण ,शब्दकोश आदि हैं। शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं में यह शमिल है। त्रिभाषा शिक्षा के माध्यम हेतु  छत्तीसगढ़ी, हिन्दी अंग्रजी उपयुक्त है।   एकछिक विषय के रुप में प्राचीन भाषा   पालि, प्राकृत संस्कृत या अन्य रखें जा सकते है।
   नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा और संस्कृति का संरक्षण महत्वपूर्ण भाग है। इस दृष्टि से विचार किया जाना समीचीन है। 
   यहां के रचनाकारों/ बुद्धिजीवियों/ शिक्षाविदों/ जनप्रतिनिधियो के लिए माननीय न्यायालय का टिप्पणी विचारणीय है कि छत्तीसगढ़ी को भाषा के रुप में निशंक भाव से कैसे प्रतिष्ठित किया जाय? या प्रतिष्ठित हैं उसे कैसे बताया जाय कि  पूर्णतः शंका निर्मूल हो सके। भाषा और बोली का अन्तर्द्वंद पूर्णतः निराकृत हो सके। और भाषा के प्रति कोई ठोस नीति निर्धारण हो सके।
      ताकि इन्हें बोलने वाले करोड़ों लोगों की हित सध सके।
                     डा. अनिल भतपहरी/ 9617777514

जोंगनदी

जोंक महानदी के तट पर आबाद मानव सभ्यता एवं संस्कृति का केंद्र 

  नदियां मानव सभ्यता की जननी हैं या फिर हम ऐसा भी कह सकते हैं कि नदियों के तट पर ही मानव प्रजातियों का उद्गम और विकास हुआ हैं। आरम्भ से लेकर अब तक इनकी तट पर ही मानव बस्तियां पाई गई हैं। उनके घर खेती और व्यवसाय  स्थल रहा है और सदियों तक रहेगा। वें नदियों के गोद में ही अनेक उपलब्धियों को अर्जित करते यहां तक की यात्राएं तय कर सका हैं।
    हालांकि मानव निवास स्थल के अवशेष गुफाएं  आदि हमें पर्वत की ऊंचाई में भी मिलती है लेकिन वह सुरक्षागत कारणों से है। असल में जलश्रोत जहां रहा, वहा मानव की बसाहटे हुईं। भले निस्तार हेतु पानी उपर तक ले गए
पर मानव समुदाय  पर्वत के नीचे या समतल जगहों पर स्थित कुंड या प्रवाहित जलधार के पास आए।
  प्रायः पर्वत ही नदियों के जनक हैं पर समतल मैदान में भी पाताल फोड़ कुआं और जल स्त्रोत मिलती हैं ,जिसे छत्तीसगढ़ी मे "चितावर "और "चुहरी "कहते हैं वहा से भी नदियों का उद्गम होते हैं। इन्हें लेकर रचे गए लोकगीत दर्शनीय है  _
 
 चितावर में राम चिरई बोले 
तोला कोन बन में खोजंव 
मैना मंजूर जोही मोला तार लेबे रे दोस ...

 चितावर/ चुहरी के आसपास जरुर  पहाड़, पर्वत, पठार पाए जाते हैं  जिसके ऊंचाई या तराई भाग में जलकुंड होते हैं ।जहां से जल प्रवाहित हों नदी का स्वरुप ग्रहण कर लेती हैं। यह जल स्रोत सदनीरा या मौसमी भी होते हैं।
   भारत वर्ष में कुंड पोखर सरोवर जलस्रोत वंदनीय हैं तो वहा से प्रवाहित होती नदियां पूज्यनीय हैं। हमारे यहां गंगा, यमुना, नर्मदा चंबल ,बेतवा,गोदावरी, कावेरी महानदी, इंद्रावती ,सतलज, व्यास, रावी, गोमती ,तीस्ता ,सोन भद्र ,ब्रम्हपुत्र  आदि के तट पर ही नगरी और उन्नत सभ्यता का विकास हुआ हैं। देश के दो महत्वपूर्ण प्रदेश उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा कही जाने वाली महानदी प्राचीन काल में चित्रोत्पला गंगा के नाम से जानी जाती रही हैं और गंगा जैसी ही पावन मोक्षदायनी मानी गई हैं। क्योंकि इनकी उद्गम सिहावा पर्वत छत्तीसगढ़ से होकर बंगाल की खाड़ी में चिल्का झील बनाती ठीक गंगा की तरह हिमालय पर्वत से निकल कर सुंदरवन मे झील बनाती बंगाल की खाड़ी सागर में समाहित हो जाती हैं।
      अपने तट पर अनेक धार्मिक वाणिज्यिक और प्रदेश की राजधानी बनाती हुई लाखों हैक्टर कृषि भूमि को सिंचित करती करोड़ों जन जीवन के लिए अन्नोत्पादन कराती उनके पेयजल की भी आपूर्ति कराती हैं। इसलिए मानव समाज के लिए ये नदियां वरदान हैं।
  महानदी की सहायक नदी जोक नदी भी मानव सभ्यता के केंद्र रहें हैं। उड़ीसा सरकार द्वारा अनेक तरह से अनुसंधान इस संदर्भ में किए गए हैं और कार्य अनवरत जारी है हैं। लगभग 25000 साल पहले इनकी तट पर मानव इतिहास के अवशेष मिलती हैं। 
    उड़ीसा के नुआपाड़ा जिले के सुना बेरा पठार से निकलने वाली और महासमुंद जिले के बागबाहरा के छाती गांव में छत्तीसगढ़ प्रवेश करने वाली नदी के किनारे किए गए अन्वेषण में मानव इतिहास के पहले आरंभिक औजार निर्माता से लेकर आधुनिक काल तक के साक्षी मिलेंगे।  प्रागतिहैसिक औजारों की बड़ी संख्या में खोज से पता चलता है कि इस घाटी में 25000 साल पहले आदिमानव निवास करते थे।
 छत्तीसगढ़ सरकार के संस्कृति और पुरातत्व निदेशालय की टीम द्वारा किए गए सर्वेक्षण का नेतृत्व करने वाले गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय संबलपुर के इतिहास स्कूल के प्रमुख डॉक्टर अतुल कुमार प्रधान ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि जोंक नदी घाटी छत्तीसगढ़ में मानव इतिहास का उद्गम स्थल है। 
प्रागैतिहासिक औजारों में हजारों वर्षों के फ्लैग ब्लैक पॉइंट और कर शामिल है सेंड भट खुरमुरी डूंगरी पाली रीवा नीलेश्वर उधर लाल में परेशानी डूमरपाली बाल्डी दी कुर्मादी चंदन सरगांव पुष्कर निठुर से भी बड़ी संख्या में प्रागैतिहासिक स्थल खोजे गए हैं यह औजार 2500 से लेकर के  6000 साल पुराने जान पड़ते हैं ।अन्वेषण से कसडोल के अमोंदी  ग्राम में एक बड़ी प्रारंभिक ऐतिहासिक बस्ती भी प्राप्त हुई है अन्वेषण की कुछ प्रारंभिक स्थल बर्तनों के टुकड़े कटोरा बेसिन भंडारण कर मोटी काठी के बर्तन और भौतिक एवम संस्कृतिक वस्तुएं मिली है।
   जोंक नदी की सहायक नदियों में भंडार, कोलार ,मैच का चिराग बाग भैया भूसा का में लहर जैसे की छोटी बड़ी सहायक नदियां इसमें जाकर मिलती है। यह नदी उत्तर दिशा में बहती है और कल 215 किलोमीटर क्षेत्र को कर करती है छत्तीसगढ़ उड़ीसा के बीच एक अंतर राज्य सीमा बनाती है यह नदी कहानी छोटी बड़ी पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरती है  नुआपाडा पहाड़ी श्रृंखला के एक संकीर्ण चट्टानी चैनल से बहने के बाद श्री नारायण के पास महानदी में समागम हो जाती है  गिरौदपुरी सोनाखान रेंज की पहाड़ियों में स्वर्ण भंडारण प्राप्त हुई है इस क्षेत्र से नदी गुजरती है और मिट्टी और चट्टानों के कटाव के द्वारा अपने साथ सोने के बारीक कारण प्रवाहित करके महानदी की रेत में प्रवाहित करके ले जाती है। इसलिए महानदी की रेत में श्री नारायण से लेकर से लेकर के  हीराकूद बांध तक नदी के दोनों और सोनझरिया जनजाति निवास करती हैं। जो महानदी की रेत से पारंपरिक रुप से सदियों से स्वर्ण कण निकालते आ रहें हैं।

छत्तीसगढ महतारी के करधन 
जिसमे भरा हैं अपार स्वर्ण कण 

  यह स्वर्ण कण जोंक  नदी ही प्रवाहित कर महानदी में मिलती है इसलिए इस नदी का ऐतिहासिक आर्थिक सामाजिक धार्मिक रूप से  मध्य भारत में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान हैं । यह उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की सीमारेखा और जीवनरेखा भी हैं।

 यदि मानव बसाहट पहाड़ पर्वत पठार पर हो तो भी जल के लिए जलकुंड या  वहा से प्रवाहित जलधार क्षेत्र नदी के तट पर उनको आना ही होता है!  थे विश्वकी विश्व की अनेक बड़ी सभ्यताओं का विकास या बड़ी नगरों का विकास नदियों के तट पर ही हुआ है चाहे वह नील नदी हो अमेजॉन हो या ब्रह्मपुत्र हो गंगा हो गोदावरी हो या महानदी हो इन सभी नदियों में हमें मानव सभ्यता के विकास का चिन्ह दिखाई पड़ता है। 
    छत्तीसगढ़ राज्य के महासमुंद जिले और रायपुर जिले से होकरबहती हुई बहती हुई सोना बेड़ा पत्थर से शुरू होती है और
जोक नदी का प्रवाह क्षेत्र 2480 वर्ग मीटर है जिसमें विविध प्रकार के वनस्पतियां के नदी पर्वत वन पर्वत इत्यादि और विभिन्न पशु पक्षी आबाद है यह नदी दर्शनी और धार्मिक दृष्टिकोण से भी का तीसरा महत्व है गिरोधपुरी के समय यहां इसके तट पर लाखों लोग स्नान कर दर्शन कर पुण्य अर्जित करते है। अन्य नदियों की तरह इनपर भी अनेक काव्य और प्रेरक साहित्य रचे गए हो जो उनकी विशेषताओं को  प्रकट करती हैं।

" जोगनदी पलाशिनी "

जोगनदी पलाशिनी 
अमृत जल वाहिनी
है बहु व्याधि हरिणी 
मन की विकार नाशिनी 
इनकी तट पर पावन तपोभूमि 
गिरौदपुरी सत्घाम है विराजती 
धन्य वन प्रांतर हुआ महिमामय 
घासीगुरु के तपबल से गरिमामय 
 लाखो नर- नारी कर स्नान 
अर्जित करते  पुण्य कर आचमन 
प्रकृति से पल भर होते मिलाप 
 मिटते दु:ख सब क्लेश संताप
जीवन प्रवाह में द्वीप सा कठोर भार 
विगलित करते सत्संग जड़ता विकार 
जल मध्ये प्रकृतस्थ हस्ति प्रतिमा
मन मैगल प्रछालित चमके चंद्र पूर्णिमा 
यहां केवल मेल मिलाप नही 
हाट बाजार व्रत उपवास नही 
होते यहां सभी जन सत साधक 
 बनकर आते वे सबके लायक 
 संत सेवक अरु सत्यानुरागी 
संकल्पित मन में बनु सतगामी 
पंगत संगत का अनुठा महा पर्व 
तट पर सम्पन्न अनुष्ठान यह सर्व 
भरते हृदय में उमंग अरु उत्साह 
पावन सतनाम सरित प्रवाह 
गाकर जस प्रफूल्लित हुआ अनिल
सुर मे ताल मिलाकर हर्षित इनकी सलिल ...


 डॉ अनिल कुमार भतपहरी 
       सहा प्राध्यापक प्र श्रे 
    उच्च शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़

Monday, June 24, 2024

अमलताश

#anilbhatpahari 

अमलताश 

विकट संकट में
फंसे झंझट में  
आई प्रिये पास 
चिलचिलाती धूप में 
ज्यों खिली अमलताश 
होकर प्रसन्न प्रकृति 
धारित करती स्वर्णाभूषण
हर्षित उपवन अरु तन मन 
प्रदर्शित करती वैभव विलास...
 
उधर  तन्वंगी हुई चित्रोत्पल्ला 
स्वच्छ जलराशि अमृत पिला 
विचरते विहंग करलव 
धावित गोधन बेला गोधुलि
अलसाई नयन 
टेह बंशी की  गूंजी रुनझुन 
सुनाई पड़ी अल्हड़ गीत भजन 
हो रहे हो मधुमय सहवास ...

 मधुर गान  मोहिनी मुस्कान मधुर
संग थिरक उठे यह मन मयुर  
डोर अनजान सी बंध चली  
मृदुल पुरवाही संग गंध बही 
मतवाली डाली मदमाती अमलतास 
आई तुम पतझड़ में बनकर मधुमास ...

      -डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Monday, June 17, 2024

ससों झन कर

ओ संगी रे ओ साथी रे 
सांसों झन कर संगी रे 
मुड़ी झन धर संगी  रे 
दुःख के दिन ह बहुरही 
अऊ सुख के दिन आही...

कटही कुलुप हर साइता राख 
ये दे सुकुआ उवत हे पहाही रात...

हमन के भाग खुलगे बनगे हमर सरकार 
मिलही रोजी रोटी सबों ल चाऊर दार....

चलय नहीं कखरो अब तो जोर जुलुम 
हमीं मन सेउक अन हमिच मन हुकुम...

Friday, June 14, 2024

बदलाव

#anilbhattcg  #satshrisatnam 

   बदलाव 

देखते ही देखते 
देखो बदल गया 
खुश होते रहें 
देख बदलाव 
दु:ख भी हुआ 
जैसे बिदाई से 
देख बदलाव 

सुख और दुःख 
हैं अभिन्न अंग 
हंसते रोते बिताए 
जीवन इनके संग 
वन,खेत कारखाना 
गांव शहर में आबूदाना 
पाकर खुशहाल इंसान 
भरते मन में सुख भाव 

शहर बनते गांव 
विकास तो यही हैं 
कोई सुविधाए भोगे 
तो क्यों किसी को 
होते रहें अभाव 

उड़ते विमान नभ में 
देखने उमड़ते गांव 
देवता होते सवार 
पाकर उनके मत 
बनाते रहें सरकार 
ऐसा बना रहा सद्भाव 

जारी हैं उद्यम 
उड़ने के लिए 
हतप्रभ और चमत्कृत 
करने के लिए 
चलने लगा दांव 

रौपे दिए जायेंगे 
कालोनी के गमलों में 
उजड़ते जंगल 
क्यों हाय तौबा 
होते क्यों बेकल 
क्यों करते कांव कांव 

उजड़े तो बसे भी हैं  
अनेक गांव शहर 
रेल पुल सड़कें 
कब तक रहें 
लगोटी तीर कमान में 
भूखे प्यासे टूटी मचान में 
बेबस हताश 

बनाकर अजायबघर 
मानव जीवन को 
घोर आदिम कर 
कब तक दिखाते रहें 
हमें नुमाइश बनाकर 
क्या हमे नहीं चहिए बदलाव

तुम छूकर आसमान 
घूम फिर कर देश जहान 
कह रहें हो सब हैं व्यर्थ 
अन्न जल हवा ही सार 
मरणासन्न हुए तब जाकर 
करने लगे यह चीत्कार 
यह कैसा मनोभाव 

सब भोग चूके तुम 
कुछ तो भोगने दो 
सोच रहें हो तुम 
कुछ हमे भी सोचने दो 
मन में हो सुंदरम आविर्भाव 

हमने भी विकास का 
पैमाना तय किया हैं 
संतुलित और सहज होते 
सुखमय किया है
भागमभाग जीवन में 
कुछ तो हों ठहराव

उजड़े सर के बाल 
उम्र की अवस्था है 
ठीक उजड़ रहें वन 
सरकारी व्यवस्था हैं 
कैसे रहेगा यथावत 
स्वीकारे अपेक्षित बदलाव 

          डा अनिल भतपहारी/ 9617777514

Sunday, June 9, 2024

जनमत का करामात

#satshrisatnam 

   ।।जनमत का करामात ।।
 
सियासी पारा से नौतपा तपेंगे लकालक 
तर बत्तर तन पसीने से सबके हैं लथपथ 
मतदाताओं की दान का  देखो करा  मात 
नही दे सके कोई किसी को शह और मात 
किसी एक दल को मिला नही स्पष्ट बहुमत 
पता नहीं अब ऊट प्यारे लेगा किस करवट 
कोई जीत कर हारे तो  कोई हार कर  जीते 
पर सच कहें संविधान और लोकतंत्र ही जीते 
बिराजे  आसन पर  जनता  का सच्चा सेवक 
लोक  कल्याण के  निमित्त  कार्य करे  प्रेरक 
जात पात छल छद्म प्रपंच का हो शीघ्र विनाश 
ज्ञान विज्ञान सम्मत हो समता मूलक  विकास 
                      
     _ डा अनिल भतपहरी/

Monday, June 3, 2024

गर गंगरेल न होते

#anilbhattcg 

गर गंगरेल न होते तो?

सार्वजनिक उपक्रम चाहें उद्योग हों, बांध हों या अन्य बड़ी योजनाएं उनके चलते ही देश में समृद्धि आई। परन्तु 4_ 5 दशक बीती नहीं बड़ी तेज़ी से इन सब चीजों का निजीकरण इसलिए हो रहें हैं प्रबंधन की लापरवाही और भ्रटाचार से वे घाटे में चलते बीमार हो रहें या बंद होने के कगार पर हैं। कैसी कुतर्क हैं? यदि ऐसा हैं तो सरकारी तंत्र को ही निजीकरण कर दिया जाय ताकि फायदे ही फायदे हों कल्याण का कोई कार्य ही न हों। जहां प्रबंधन के लोग दोषी हो उन्हें कठोर सजा दे और भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगावे ना कि किसी व्यक्ति या संस्थान को चलाने सौप दे?
     इस भीषण गर्मी में देश की नवरत्न मे एक भिलाई स्टील प्लांट के लिए महानदी मे निर्मित गंगरेल बांध विकास के आधार लौह उत्पादन के अतिरिक्त लाखों मानव के प्यास बुझा रहें हैं यह वरदान नही तो क्या हैं?
     कल्पना कीजिए यदि भिलाई स्टील प्लांट अन्य राज्य या जगह पर बने होते तो रायपुर सहित दुर्ग भिलाई महासमुंद धमतरी बलौदा बाजार जिलों के लाखों कृषक के लाखों एकड़ खेती उनके निस्तरी के लिए तालाब और पीने के पानी हेतु कुआ नलकूप आदि सुख गए होते।
गावों में भीषण महामारी और पानी के लिए हाहाकार मच गए होते।
मुझे स्मृत हैं जब तीन दशक पूर्व निस्तारी हेतु नहरों में पानी आते तब महानदी तटवर्ती सहित पूरा ग्रामीण अंचल पानी के लिए रतजगा करते थे। हैंडपंप और कुवे से पेयजल खींचते आज कंधे की हड्डी खिसक गए और हमारी श्रीमती जी के हाथ से कोई वजनी समान और कुछेक समय के लिए आवश्यक कार्य तक नहीं होते।
   पेयजल के लिए जो संघर्ष स्वयं के घर और 400 फीट गहरे बोर नहीं करा लिए तब तक कैसे कैसे पापड़ बेले हैं। गांवों में गर्मी के दिनों दूषित जल से फैलने वाली चेचक का प्रकोप झेले हैं। पर दैवीय कृपा मान झून झने और कतार हो  शीतला देवी की कृपा पाने जस भक्ति करते निरीह जनमानस को देखते ही बड़े हुए हैं। हैजा, डायरिया फैले तो धूकी दाई और देवी का प्रकोप मान पूजा पाठ कर मनौती मांगने बदना/ बलि देने लग जाए।
    बहरहाल मानव को सहज अन्न जल  और स्वास्थ चाहिए। यदि इनके लिए एक गंगरेल वरदान हैं तो क्या हम सभी जल स्त्रोत/ वाहक नदियों में बड़ा न सही प्रत्येक 5_10  km में स्टाप डेम बनाकर  कृषि और निस्तारी के लिए जल प्रबंधन कर सकें। क्योंकि जब आधार ही बेहतर और ठोस नही होगा राष्ट्र और जन जीवन कैसे उन्नत होंगे।
       चंद उद्योगपतियों को राष्ट्र की अमूल्य धरोहरों को ना सौपे और ना ही जनता द्वारा चुनी हुई सरकार और उनके लोग धनपतियों के इशारे पर कार्य करने विवश हों।
       सरकारी उपक्रम ACC सीमेंट उद्योग 
मानढर जिसके sift incharg हमारे ससुर जी थे और वहां कार्यरत हजारों श्रमिको को निष्ठापूर्वक कार्य करते देखे खुशहाल जनता देखे वहा ताला लगाकर निजी सीमेंट फैक्ट्री का जाल यहां फैलाए गए।50 से 70 रु मे उच्च क्वालिटी की सीमेंट के जगह आज 300 रु की सीमेंट मे बने घर सड़क पुल को महज 5_10 में टूटते देख रहें हैं। देश को 21 वी सदी में पहुंचने वाले BSNL आज मरणासन्न हैं jio,adia,tata docomo के चलते। जब इनकी तिजोरिया भर रही तो यह कैसे मर खप रहें हैं? इस दशा में पहुंचाए कौन?
ये हैं वर्तमान निजीकरण और लाभ के लिए या कहें शोषण के लिए नया उपक्रम। कथित विकास हेतु जैव विविधता को नष्ट करना वन उजाड़ना और बेतरतीब उत्खनन कर औद्योगीकारण के नाम पर  जीवनाधार कृषि और उत्तम स्वस्थ हेतु औषधि युक्त आबोहवा के श्रोत वन ( वर्तमान में हसदेव आदि)का विनाश करना।
      इन धनपतियों को वैभव प्रदर्शन ,वैश्विक पर्यटन और विदेशी स्थायी संपदा के लिए देश का अकूत संपदा ही चाहिए। जो उनके हित/ चाह की सरकार बनेगी उनके हित और चाह के कार्य करेगी। वोट के स्वामी जनता केवल कथित धर्म संस्कृति और ढोल मजीरे कथा कहिनी में ही मोकाए रहेंगे। यह है शातिर और धूर्तो की महत्वाकांक्षी परियोजनाये... 
       जरा सोचिए अच्छा लगे तो जनजागरण के निमित्त शेयर कीजिए।
                     _ डा अनिल कुमार भतपहारी/ 9617777514